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केवल डीएनए से कैसे पता चल गया कि शुतुरमुर्ग भारत के आसमान में भी उड़ते थे

जौनपुर

 28-06-2024 09:37 AM
डीएनए

आप एक डीएनए (DNA) को अपनी नग्न आँखों से नहीं देख सकते, लेकिन हैरानी की बात है कि आकार में इतना छोटा होने के बावजूद इसमें आपके पूर्वजों की आनुवंशिकता से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारियां संग्रहित होती हैं। इंसानों से लेकर जानवरों और यहाँ तक कि पेड़-पौंधों में भी डीएनए मौजूद होता है। किसी जीव के डीएनए के भीतर एन्कोड(Encode) किए गए जीन और आनुवंशिक सामग्री (genes and genetic material) के पूरे सेट को “आनुवंशिक संरचना” कहा जाता है। किसी जीव के लक्षण, विशेषताओं और जैविक कार्यों का निर्धारण, उसकी आनुवंशिक संरचना के आधार पर ही किया जाता है। विभिन्न प्रजातियों की आनुवंशिक संरचना का विश्लेषण करके, हम उनके विकास और अनुकूलन में मूल्यवान जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। आनुवंशिक संरचना को बेहतर ढंग से समझने के लिए इस लेख में, हम शुतुरमुर्गों की तीन नस्लों पर उनके व्यवहार और शारीरिक विशेषताओं को समझने के लिए किए गए आनुवंशिक विश्लेषण पर चर्चा करेंगे। इस अध्ययन के माध्यम से, हमारा उद्देश्य इस बात पर प्रकाश डालना है कि कैसे शुतुरमुर्गों ने धीरे-धीरे उड़ने की अपनी क्षमता खो दी और केवल जमीन पर चलने लगे। इसके अलावा, हम भारत में शुतुरमुर्ग के इतिहास पर भी नज़र डालेंगे।
अधिकांश जीवों की भांति शुतुरमुर्ग के पास भी अपना खुद का अनूठा आनुवंशिक मानचित्र (genetic map) होता है। आनुवंशिक मानचित्र एक तरह का चार्ट होता है, जो गुणसूत्र पर जीनों के अनुक्रम और उनके बीच की दूरी को दर्शाता है। यह हमारे डीएनए के रोडमैप (roadmap) की तरह होता है, जो दर्शाता है कि कौन सा जीन कहाँ स्थित हैं। आनुवंशिक मानचित्र बनाने के लिए, आनुवंशिकीविद् किसी विशेष क्रॉस (प्रजाति) की संतानों का विश्लेषण करते हैं और ट्रैक करते हैं कि कितनी बार दो विशिष्ट आनुवंशिक लक्षण एक साथ विरासत में मिले हैं। दोनों लक्षणों को एक साथ विरासत में लेने वाली संतानों का प्रतिशत जितना अधिक होगा, गुणसूत्र पर लक्षणों के लिए जिम्मेदार जीन उतने ही करीब होंगे। आनुवंशिक दूरी की इकाइयों को मानचित्र इकाइयाँ (units)(म्यू) या सेंटीमॉर्गन (Centimorgan) (सीएम) कहा जाता है। गुणों की विरासत और गुणसूत्रों की संरचना को समझने के लिए आनुवंशिक मानचित्र आवश्यक हैं। आनुवंशिक मानचित्रों का विश्लेषण करके, वैज्ञानिक जीनों के सापेक्ष स्थानों और एक दूसरे से उनकी दूरियों की पहचान कर सकते हैं। यह जानकारी हमें यह समझने में सहायता करती है कि समय के साथ प्रजातियों का विकास कैसे हुआ तथा उन्होंने अपने बदलते माहौल के हिसाब से अनुकूलन कैसे विकसित किया?
हाल ही में शोधकर्ताओं ने लाल, नीले और काले गर्दन वाले पोलिश शुतुरमुर्गों के तीन मुख्य प्रकारों के जीन का अध्ययन किया। उन्होंने उनके डीएनए को देखने के लिए दो वैज्ञानिक तकनीकों का उपयोग किया:
डीएनए फिंगरप्रिंटिंग (DNA fingerprinting)
माइक्रोसैटेलाइट्स (Microsatellites)
डीएनए फिंगरप्रिंटिंग के लिए, उन्होंने हिन fI (Hin fI) नामक एक विशेष एंजाइम और जेफरी के 33.15 (Jeffrey's 33.15) नामक एक जांच का उपयोग किया। दूसरी तकनीक में शुतुरमुर्गों के लिए बनाए गए पाँच विशेष प्राइमरों (primers) के साथ एक पीसीआर प्रक्रिया (PCR procedure) का प्रयोग किया गया। फिर उन्होंने पीसीआर परिणामों को एक जेल पर अलग किया और उनकी जांच ALFexpress नामक मशीन से की। इस प्रयोग के माध्यम से शोधकर्ताओं का लक्ष्य यह देखना था कि शुतुरमुर्ग के इन तीनों प्रकारों के भीतर और बीच में कितनी आनुवंशिक विविधता यानी वे अनुवांशिक रूप से कितने अलग हैं? शोधकर्ताओं ने पाया कि इनमें से प्रत्येक नस्ल के भीतर बहुत अधिक आनुवंशिक विविधता नहीं है। काली गर्दन वाले शुतुरमुर्गों में सबसे अधिक आनुवंशिक विविधता थी, जबकि लाल गर्दन वाले शुतुरमुर्गों में सबसे कम थी। लाल और नीली गर्दन वाले शुतुरमुर्ग आनुवंशिक रूप से बहुत समान होते हैं, लेकिन लाल और काली गर्दन वाले शुतुरमुर्ग काफी अलग होते हैं। इस अंतर का मतलब है कि लाल और काली गर्दन वाले शुतुरमुर्गों को एक साथ प्रजनन करने से सबसे अच्छे परिणाम मिल सकते हैं।
बहुत कम लोग इस बात को जानते हैं, कि एक समय में शुतुरमुर्ग भी उड़ा करते थे, लेकिन एक विशेष प्रकार के डीएनए (विनियामक डीएनए (regulatory DNA) में आए परिवर्तन ने रैटाइट्स (ratites) नामक पक्षियों के एक पूरे समूह से उनकी उड़ने की क्षमता छीन ली। शुतुरमुर्ग भी इसी समूह का एक पक्षी है। शुतुरमुर्ग के अलावा रैटाइट्स पक्षियों के परिवार में कीवी (kiwi), रियास (rheas), कैसोवरी (cassowary), टिनैमस (tinamous) और अब विलुप्त हो चुके मोआ और हाथी पक्षी (moa and elephant birds) भी शामिल हैं। आज इनमें से केवल टिनैमस ही उड़ सकते हैं। इससे संबंधित रिपोर्ट ‘साइंस जर्नल’ (Science Journal) में प्रकाशित हुई थी। विनियामक डीएनए को यह नाम इसलिए दिया गया, क्योंकि इस बात का निर्धारण यही करता है कि ‘जीन को कब और कहाँ सक्रिय होना है?’ हालांकि यह प्रोटीन बनाने के लिए निर्देश नहीं देता है। शुतुरमुर्ग, रिया और विलुप्त मोआ जैसे जो पक्षी उड़ नहीं सकते, उनमें उड़ने वाले पक्षियों, जैसे टिनमौ की तुलना में छोटे या गायब हो चुके पंख की हड्डियां होती हैं। इन उड़ान रहित पक्षियों में एक उरोस्थि (छाती की निचली हड्डी) होती है, लेकिन उनमें कील हड्डी (keel bone) नहीं होती है, जहां उड़ान की मांसपेशियां जुड़ी होती हैं।
इसके अतिरिक्त, जो पक्षी उड़ नहीं सकते उनके शरीर अक्सर उड़ने वाले पक्षियों की तुलना में बड़े और पैर लंबे होते हैं। नए शोध से पता चलता है कि इनमें से कुछ अंतर नियामक डीएनए में बदलाव से जुड़े हैं। इसे बेहतर ढंग से समझने के लिए, हार्वर्ड विश्वविद्यालय (Harvard University) के विकासवादी जीवविज्ञानी स्कॉट एडवर्ड्स (Scott Edwards) और उनके सहयोगियों ने आठ उड़ान रहित पक्षियों सहित 11 पक्षी प्रजातियों की आनुवंशिक निर्देश पुस्तकों, या जीनोम का विश्लेषण किया था।
आज के समय में आपको भारत में शुतुरमुर्ग भले ही देखने को भी न मिले, लेकिन दिलचस्प रूप से भारत में शुतुरमुर्ग का इतिहास 25,000 साल पुराना है। हाल ही में राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश में डीएनए युक्त शुतुरमुर्ग के अंडे के छिलके के टुकड़े खोजे गए हैं। भारत में सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (Centre for Cellular and Molecular Biology (CCMB) की टीम ने इन अंडों के छिलकों पर मौजूद डीएनए परीक्षण किया और पाया कि वे अफ्रीका के शुतुरमुर्गों से काफी हद तक मिलते-जुलते हैं। उन्होंने अंडों कि उम्र का निर्धारण करने के लिए कार्बन डेटिंग (carbon dating) नामक एक विधि का भी उपयोग किया, जिससे उन्हें पता चला की ये अंडे के छिलके कम से कम 25,000 साल पुराने हैं। यह शोध भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (रुड़की) के वैज्ञानिकों और अन्य के साथ मिलकर किया गया था। उनका शोध 9 मार्च, 2017 को विज्ञान पत्रिका ‘PLOS ONE’ में प्रकाशित हुआ है। अध्ययन से पता चलता है कि शुतुरमुर्ग लगभग 20 मिलियन साल पहले अफ्रीका से यूरेशिया (जिसमें यूरोप और एशिया शामिल हैं।) में फैल गए थे। यह इसलिए संभव हुआ क्योंकि बहुत समय पहले पृथ्वी के महाद्वीप आपस में जुड़े हुए थे। डीएनए विश्लेषण से पता चला कि भारत में पाए जाने वाले अंडे के छिलके 92 प्रतिशत अफ्रीकी शुतुरमुर्ग से मिलते-जुलते हैं, जिन्हें स्ट्रुथियो कैमेलस (Struthio camelus) के नाम से जाना जाता है। इसका मतलब है कि शुतुरमुर्ग वास्तव में हजारों साल पहले भारत में रहते थे।

संदर्भ
https://tinyurl.com/5n8ksztv
https://tinyurl.com/myz82bwe
https://tinyurl.com/vkez5mj9
https://tinyurl.com/2p7rf45v
https://tinyurl.com/3w28excd

चित्र संदर्भ
1. शुतुरमुर्गों को संदर्भित करता एक चित्रण (PickPik)
2. दो शुतुरमुर्गों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. आनुवंशिक दूरी की इकाइयों को मानचित्र इकाइयाँ या सेंटीमॉर्गन कहा जाता है। को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. जीन फिंगरप्रिंटिंग के चरणों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. स्थिर खड़े शुतुरमुर्ग को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. शुतुरमुर्ग के टूटे हुए अंडे को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)



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