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राजपलायम कुकुर , जिसे 'पॉलीगर हाउंड' (Polygar Hound) या 'इंडियन घोस्ट हाउंड' (Indian Ghost Hound) के नाम से भी जाना जाता है, बड़े और शक्तिशाली कुकुरों (Dogs) की एक नस्ल है। इस नस्ल के कुकुर मूलरूप से तमिलनाडु राज्य के राजपलायम शहर से सम्बंधित हैं। राजापलायम कुकुर की नस्ल का एक समृद्ध इतिहास है। इनका उपयोग मुख्य रूप से क्षेत्र के नायकर राजवंश द्वारा मुख्य रूप से रक्षक कुकुर के रूप में और जंगली सूअर, बाघ, तेंदुए और बाइसन जैसे बड़े जानवरों के शिकार के लिए किया जाता था। इनका उपयोग गाँवों को जंगली जानवरों के आक्रमण से बचाने के लिए भी किया जाता था।
इसके साथ ही इनका प्रयोग युद्ध में भी किया जाता था। राजपलायम अपनी बहादुरी और वफादारी के लिए जाने जाते हैं। ये उन लोगों के लिए बेहतरीन विकल्प है जो बड़े एवं शक्तिशाली कुकुर पालने के शौकीन हैं। इस नस्ल का नाम राजापलायम शहर के नाम पर रखा गया, जहां इस नस्ल की उत्पत्ति हुई थी। स्थानीय लोगों के बीच राजापलायम कुकुरों को बहादुरी और धन का प्रतीक माना जाता था। हालाँकि, आधुनिकीकरण के कारण, इस नस्ल की जनसंख्या में गिरावट देखी गई है और आज इसे एक दुर्लभ नस्ल माना जाता है। हालाँकि, इनकी दुर्लभता और जनसंख्या में गिरावट के कारण, राजपलायम का मालिक होना एक बड़ी जिम्मेदारी के साथ-साथ गर्व की भी बात है। राजापलायम कुकुर के बाहरी आवरण के बाल अत्यंत छोटे एवं चिकने होते हैं। ये सफेद, क्रीम, काले और भूरे जैसे रंगों में होते है। इनका शरीर अत्यंत दृढ़ एवं मांसल होता है जो इनकी शक्ति को दर्शाता है। इनका जबड़ा बेहद शक्तिशाली और थूथन लंबा और नुकीला होता है। इनके कान आमतौर पर झुके हुए और पूंछ लंबी एवं पतली होती है। इनका वज़न आम तौर पर लगभग 60-65 पाउंड के बीच होता है और कंधे तक इनकी लंबाई लगभग 30-32 इंच होती है। राजपलायम एक वफादार और बहादुर नस्ल है जो सुरक्षात्मक प्रवृत्ति के होती है। इसके साथ ही वे अत्यधिक बुद्धिमान होते हैं जिन्हें आसानी से प्रशिक्षित किया जा सकता है और इसी कारण वे पुलिस और सैन्य कार्यों के लिए एक उत्कृष्ट विकल्प होते हैं। ये कुकुर दिल के सौम्य और विशाल होते हैं और अपने मालिकों के लिए अच्छे साथी होते हैं। ये बच्चों और अन्य पालतू जानवरों के साथ अच्छे व्यवहार के लिए जाने जाते हैं।
राजापलायम का रखरखाव भी बेहद आसान एवं लागत प्रभावी है। इनके बाल छोटे होते हैं इसलिए उन्हें अधिक संवारने की आवश्यकता नहीं होती है। केवल नियमित साफ सफाई एवं पौष्टिक भोजन से यह हृष्ट पुष्ट एवं रोग मुक्त बने रह सकते हैं। हालांकि इनको नियमित व्यायाम एवं आपके समय की आवश्यकता होती है।
यह तो बात हो गई राजवंशी परिवारों में पाले जाने वाले राजपलायम की, लेकिन क्या आपका ध्यान कभी उन कुकुरों की ओर भी गया है जो सड़क पर भूखे प्यासे एवं दीन हीन हालत में, चाहे गर्मी हो या सर्दी, या फिर बारिश, रहते हैं। और यदि आप उनके पास से भी गुजर जाएं, तो आपसे एक टुकड़े रोटी की उम्मीद लगाए रहते हैं। हम में से कुछ तो कभी-कभी उनको कुछ खाने को दे देते हैं, लेकिन अधिकांश लोग उनको दुत्कार देते हैं, तो कभी डंडे से या लात से या किसी अन्य वस्तु से मार भी देते हैं। जबकि हमारे हिंदू धर्म ग्रंथो में कुकुरों को भी देवताओं के साथ स्वर्ग में उच्च स्थान दिया गया है।
क्या आप जानते हैं कि हिंदू धर्म ग्रंथो में भी एक देव मादा कुकुर 'सरमा' का वर्णन मिलता है, जो इंद्र के दरबार में अन्य सभी देवताओं के साथ रहती थी। उनको देवशुनि अर्थात देवताओं की कुकुर के नाम से भी जाना जाता है। उनके विषय में एक कहानी यह प्रचलित है कि एक बार जब पणिस नामक लुटेरों के एक गिरोह ने इंद्र की गाय के झुंड को चुरा लिया, इंद्र ने सबसे पहले गायों को लाने के लिए एक पक्षी, सुपर्णा को भेजा, लेकिन पक्षी बहुत आसानी से दही के लालच में आ जाता है, और वापस जाकर इंद्र को बताता है कि गायें नहीं मिलीं। इसके बाद इंद्र सरमा को गायों को ढूढ़ने के लिए भेजते हैं और सरमा अपनी कूटनीतिक बातों से पणियों को गायों को वापस करने के लिए मना लेती है और साथ ही इंद्र के साथ एक सौदा करती है, कि भविष्य में उसकी संतानों को कभी भी दूध की कमी नहीं होगी।
वैदिक ग्रंथों और हिंदू पौराणिक कथाओं में कुकुरों को 'श्वान' कहा गया है जिसका अर्थ अत्यंत गहरा है। सिक्किम और उत्तरी बंगाल के कुछ हिस्सों में कुकुरों को कालभैरव जैसे देवताओं की सवारी के रूप में पूजा जाता है। उन्हें स्वर्ग के साथ-साथ नरक के द्वार का रक्षक भी माना जाता है। भगवान दत्तात्रेय का संबंध भी चार कुकुरों से माना जाता है, जो चार वेदों का प्रतिनिधित्व करते हैं। महाराष्ट्र के गंडगापुर के पवित्र भगवान दत्तात्रेय मंदिर में कुकुरों को मंदिर के अंदर प्रवेश करने और रहने पर प्रतिबंध नहीं है। कुछ पुरानी मान्यताओं के अनुसार, काले कुकुरों को भैरव देव का अवतार भी कहा जाता है। महाभारत में भी स्वर्ग जाते समय युधिष्ठिर अपने कुकुर को अपने साथ ले जाना चाहते थे, इसलिए उन्होंने इंद्र से अनुरोध किया, कि जो कुकुर उनकी तपस्या के दौरान उनके साथ रहा, उसे स्वर्ग में स्थान दिया जाए। वास्तव में यह कुकुर मृत्यु के देवता यम थे, जिन्होंने युधिष्ठिर की सत्यता की परीक्षा लेने के लिए यह रूप धारण किया था। यह भी धारणा है कि चार आंखों वाले चार कुकुरों द्वारा यमलोक की रक्षा की जाती है। कई अवसरों पर मृत्यु समारोह के दौरान कुकुरों को भोजन का प्रसाद दिया जाता है। कुकुरों को पाताल और पृथ्वी के प्राणियों के बीच की कड़ी माना जाता है।
हिंदू धर्म में कुकुरों से जुड़े कुछ अंधविश्वास और मान्यताएं भी हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, राहु और शनि ग्रह के नकारात्मक प्रभाव से पीड़ित लोगों को काले कुकुरों को भोजन खिलाने से कुछ राहत मिल सकती है। जिन लड़कियों की कुंडली में मंगल मजबूत होता है, उनका विवाह कुकुरों से करा दिया जाता है। यह सुनने में भले ही आश्चर्यजनक लगे, लेकिन अभी भी कुछ लोग हैं जो कुकुरों के संबंध में इन सभी अंधविश्वासों का पालन करते हैं। शकुन-अपशकुन में विश्वास करने वाले लोग मानते हैं कि यदि आपके सामने से कोई कुकुर अपने मुंह में हड्डी ले जाते हुए निकल जाए, तो यह एक अच्छा शकुन होता है। अगर आप बाहर जा रहे हैं और आपका पालतू कुत्ता छींक दे, तो यह एक अच्छा शगुन माना जाता है।
वास्तव में हमारे इस लेख के माध्यम से हमारा लक्ष्य कुकुर देव सरमा की पौराणिक कथा से लेकर भारतीय धर्म ग्रंथो में वर्णित अन्य कुकरों की कथाओं और विभिन्न देवताओं के साथ उनके संबंध से प्रेरणा लेकर देश में सड़क पर रहने वाले कुत्तों के प्रति करुणा एवं दया की संस्कृति को बढ़ावा देना है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/4ajtc6wh
https://tinyurl.com/y3eze83m
https://tinyurl.com/txmmcvts
चित्र संदर्भ
1. राजापलायम कुकुर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. दो राजापलायम कुकुर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. अपने मालिक के साथ खड़े राजापलायम कुकुर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. देव मादा कुकुर 'सरमा' को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. बिस्किट खाते कुत्ते को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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