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हमारा देश भारत आस्था, संस्कृति, अनुष्ठानों और परंपराओं का देश है जहां किसी भी परंपरा या धार्मिक अनुष्ठान में सम्मिलित होने के लिए विशिष्ट वेशभूषा होती है। धार्मिक अनुष्ठानों से जुड़ी विशिष्ट वेशभूषा का ही एक हिस्सा चरण पादुका हैं जिन्हें भारत में, विभिन्न पेड़ों की लकड़ी से बनाया जाता है। लकड़ी से बनी चरण पादुकाओं का न केवल सांस्कृतिक महत्व है बल्कि ये आराम, स्थायित्व और सौंदर्य का विशिष्ट मिश्रण भी प्रस्तुत करती हैं। प्राचीन काल में तो इन्हें केवल चंदन की लकड़ी से बनाया जाता था। पादुका के निर्माण में चंदन का उपयोग भारत की समृद्ध विरासत और प्राकृतिक सामग्रियों के प्रति श्रद्धा को दर्शाता है। तो आइए आज के अपने इस लेख में पेड़ों की लकड़ी से बनने वाली चरण पादुकाओं और इनको पहनने से होने वाले लाभों के विषय में जानते हैं। इसके साथ ही इन्हें कैसे बनाया जाता है, यह भी देखते हैं।
हिंदू धर्म में अति प्राचीन काल से ही अक्सर मंदिरों में, पूजा के दौरान, और देवताओं या श्रद्धेय गुरुओं के सम्मान में चरण पादुकाओं का उपयोग किया जाता रहा है। चरण पादुकाओं का संदर्भ रामायण जैसे प्राचीनतम हिंदू ग्रंथ में भी मिलता है। 14 साल के वनवास के दौरान, जब भरत अपने भाई श्री राम को वापस अयोध्या ले जाने के लिए उनसे मिलने के लिए वन में आए, तो प्रभु श्री राम स्वयं तो वापस नहीं जाते, लेकिन वे उन्हें अपनी चरण पादुकाएं अपनी उपस्थिति और अधिकार के प्रतीक के रूप में देते हैं।
चरण पादुकाओं को देवताओं या आध्यात्मिक गुरुओं के पदचिह्नों का प्रतीक भी माना जाता है जिनसे हमें उनके द्वारा बताए गए धर्म और ज्ञान के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरणा प्राप्त होती है। कई हिंदू मंदिरों में, चरण पादुकाओं को देवताओं के पास प्रमुखता से रखा जाता है, जो उनकी दिव्य उपस्थिति का प्रतीक है। भिक्षुओं और तपस्वियों को अक्सर चरण पादुकाएं पहने देखा जा सकता है जो उनकी सरल और सख्त जीवनशैली को दर्शाता है। चरण पादुका पर बनी पैर के अंगूठे की घुंडी आध्यात्मिक ध्यान और एकाग्रता के बिंदु का प्रतिनिधित्व करती है। इससे अभ्यासकर्ताओं को अपने विचारों और ऊर्जा को परमात्मा की ओर केंद्रित करने का स्मरण होता रहता है। एड़ी के नीचे और पैर के अगले हिस्से के रूप में चरण पादुका की तली भौतिक और आध्यात्मिक दुनिया के बीच संतुलन का प्रतीक हैं। यह पहनने वाले को धार्मिकता के मार्ग पर चलने और जीवन में संतुलन बनाए रखने की याद दिलाती है। वास्तव में पारंपरिक चरण पादुका का समग्र अलंकृत डिज़ाइन विनम्रता, सांसारिक संपत्ति से वैराग्य और आध्यात्मिक यात्रा पर ध्यान केंद्रीकरण को दर्शाता है।
चरण पादुका बनाने के लिए मुख्य रूप से निम्नलिखित वृक्षों की लकड़ी उपयोग में लाई जाती है:
चंदन: चंदन की लकड़ी को अपनी हल्की सुगंध के लिए जाना जाता है और माना जाता है कि इसमें शुद्ध करने वाले गुण होते हैं। चंदन से बनी चरण पादुका का उपयोग अक्सर मंदिरों और विशेष अनुष्ठानों में किया जाता है।
सागौन: सागौन की लकड़ी को अपने स्थायित्व और मजबूती के लिए जाना जाता है। इससे बनी चरण पादुकाएं दैनिक जीवन में उपयोग करने के लिए एक लोकप्रिय और व्यावहारिक विकल्प मानी जाती हैं।
शीशम: शीशम की लकड़ी को अपने सुंदर महीन रेखाओं वाले पैटर्न और लाल रंग के लिए अत्यंत मूल्यवान माना जाता है। शीशम से बनी चरण पादुकाएं अत्यंत सुंदर लगती हैं जिनका विशिष्ट अवसरों पर उपयोग किया जाता है।
नीम: जीवाणुरोधी और कवकरोधी गुणों सहित नीम अपने औषधीय गुणों के लिए प्रसिद्ध है। माना जाता है कि नीम की लकड़ी नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा प्रदान करती है। नीम से बनी चरण पादुकाएं स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होती हैं।
लकड़ी से बनी चरण पादुकाएं पैरों को स्वस्थ और सुरक्षित रखने के लिए आदर्श मानी जाती हैं। वैसे तो लकड़ी की आकर्षक प्रकृति अपने आप में गुणवत्ता और शैली का संकेतक है, इनके उपयोग से आप स्थायित्व और सुंदरता दोनों प्राप्त कर सकते हैं। हालांकि रोज़़मर्रा की जिंदगी में तो प्रतिदिन चरण पादुका नहीं पहनी जा सकती, लेकिन लकड़ी से बने जूते अवश्य उपयोग में लाए जा सकते हैं।
नियमित रूप से लकड़ी से बने जूते पहनने के कई फायदे हैं, जिनकी सूची नीचे दी गई है:
मुद्रा:
इन जूतों में तलवों के स्थान पर लगी लकड़ी से शरीर की मुद्रा को बनाए रखने में सहायता मिलती है। पीठ के निचले हिस्से को उचित सहारा देकर यह रीढ़ की हड्डी को सीधा रखते हैं। इस विशेषता के कारण, लकड़ी के जूते उन लोगों के लिए आदर्श माने जाते हैं जिन्हें काम के दौरान लंबे समय तक खड़े रहने की आवश्यकता होती है। गर्भवती महिलाओं को रीढ़ की हड्डी को सहारा देने के लिए अक्सर लकड़ी के सैंडल पहनने की भी सलाह दी जाती है।
सुरक्षा:
लकड़ी के तलवे वाले जूते बिजली के झटके से भी बचाते हैं और पैरों की थकान को कम करते हैं। वे जमीन पर पड़ी किसी भी नुकीली वस्तु से भी सुरक्षा प्रदान कर सकते हैं।
ऊष्मा रोधन:
लकड़ी प्रकृति द्वारा हमें प्रदान किया गया सबसे अच्छा ऊष्मा रोधी तत्व है। इसलिए लकड़ी के तलवे वाले जूते पहनने से सर्दियों में पैर गर्म और गर्मियों में ठंडे रहते हैं।
स्वेद रोधी:
लकड़ी में पैरों से पसीना सोखने का भी अनोखा गुण होता है। यह पैरों से किसी भी तरह की दुर्गंध को दूर करने में सहायक है।
हवादार:
लकड़ी के तलवे वाले जूते पैरों को लकड़ी में मौजूद छोटे-छोटे छिद्रों के कारण अधिक आसानी से वायु प्राप्त करने में सक्षम बनाते हैं। यह गर्मी के दिनों में भी आपके पैरों को ठंडा और सूखा रखने में मदद करते हैं।
लकड़ी के जूतों को हाथ से बनाया जाता है जो एक महीन शिल्प का कार्य है। वास्तव में लकड़ी को मानव पैर की संरचना के अनुसार काटकर उसे जूते का रूप देना एक शिल्पकार का ही कार्य हो सकता है। भले ही जूते लकड़ी के बने हों, फिर भी उनका आरामदायक होना आवश्यक होता है। लकड़ी को जूतों के रूप में उकेर कर हाथ से चलने वाली मशीनों से संसाधित करने के बाद, उन्हें रेत से साफ किया जाता है और मैन्युअल रूप से तैयार किया जाता है। एक बार जब यह कार्य समाप्त हो जाता है, तो जूतों को कुछ हफ्तों के लिए हवा में सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है। सुखाने की प्रक्रिया के दौरान वे सख्त हो जाते हैं। इसके बाद इन्हें हाथों से रंगा जाता है और फिर वार्निश किया जाता है। रंगने के कारण यह अधिक मौसम प्रतिरोधी हो जाते हैं।
संदर्भ
https://shorturl.at/bgpsS
https://shorturl.at/gG348
चित्र संदर्भ
1. बिक्री हेतु रखे गए लकड़ी के जूतों और चरण पादुका को संदर्भित करता एक चित्रण (Rawpixel,wikimedia)
2. लकड़ी की चरण पादुका को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. साधु-संतों और भिक्षुकों द्वारा पहनी जाने वाली साधारण पादुकाओं को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. संग्रहालय में प्रदर्शित लकड़ी के जूतों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. लकड़ी के रंगीन जूतों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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