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“क्या आप जानते हैं कि ‘मानचित्रों का इतिहास ईसा मसीह के जन्म से भी अधिक पुराना माना जाता है।’ मानचित्रकला की शुरुआत प्राचीन ग्रीस से शुरू हुई थी। हमारी अपनी सिंधु घाटी सभ्यता में भी मानचित्र के उपयोग के साक्ष्य खोजे गए हैं। हालाँकि, 17वीं शताब्दी के मध्य में ब्रिटिश औपनिवेशिक युग के दौरान महान त्रिकोणमितीय सर्वेक्षण की शुरुआत के साथ ही मानचित्र-निर्माण का स्वरूप ही बदल गया। 1767 में हमारे देश के मानचित्र को चित्रित करने के लिए भारतीय सर्वेक्षण विभाग की स्थापना की गई। चलिए आज भारत में मानचित्र कला के इतिहास का पता लगाने की कोशिश करते हैं, और यह भी जानते हैं कि भारत का पहला नक्शा कैसे तैयार किया गया?
मानचित्रकला वाकई में एक रोमांचक क्षेत्र है। उदाहरण के तौर पर हमारी पृथ्वी वास्तव में गोल है, लेकिन हम शुरुआत से ही इसकी विशेषताओं को एक सपाट और द्वि-आयामी सतह (Two-Dimensional Surface) पर प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहे हैं। इसका मतलब यह है कि ‘दुनियां का कोई भी नक्शा 100% सटीक नहीं हो सकता, और प्रत्येक में कुछ न कुछ विकृतियाँ ज़रूर होती हैं।’ कुछ मानचित्र-निर्माता मानते हैं कि, “हर नक्शा थोड़ा सफेद झूठ बोलता है। लेकिन इस 'झूठ' के भीतर, सच्चाई के भी कुछ अंश होते हैं, अगर हम जानते हैं कि उन्हें कैसे पढ़ना है, तो यह हमें कई कहानियां भी सुनाते हैं। -” दिलचस्प बात यह है कि मानचित्रों की भी अपनी भाषा होती है, जिसे वह प्रतीक, दिशाएँ, पैमाने और विवरण के रूप में बोलते हैं।
मानचित्रों ने समय के साथ अलग-अलग उद्देश्यों की पूर्ति की है। साथ ही मानचित्र कलात्मक चित्रण से अधिक सटीक, डिजिटल और स्केलेबल संस्करणों (Digital And Scalable Versions) में विकसित होते गए।
दक्षिण एशिया, (जिसमें भारतीय उपमहाद्वीप, नेपाल, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र के कुछ हिस्सों में पूर्वी एशिया और मध्य पूर्व की इस्लामी भूमि की तुलना में प्राचीन या मध्ययुगीन मानचित्रों की संख्या कम है।
इस बात में कोई संदेह नहीं है कि खगोल विज्ञान, गणित, ज्यामिति, साम्राज्यों और राजवंशों के संबंध में भारत का इतिहास बेहद समृद्ध रहा है, लेकिन इसके बावजूद, हमारे देश में पुराने मानचित्रों की कमी होना बहुत अजीब और आश्चर्यजनक है। हालांकि ऐसा भी हो सकता है कि पुर्तगालियों के आने से पहले भारत में एक जीवंत मानचित्रण परंपरा रही होगी, लेकिन दुर्भाग्य से भारत के प्राचीन मंदिरों की भांति इसका भी बहुत कम हिस्सा ही बच पाया है।
भारत में प्रारंभिक मानचित्रकला के साक्ष्यों में दूसरी या पहली ईसा पूर्व के बर्तन, क्लासिक पेंटिंग (Classic Painting) और उदयगिरि में पवित्र नदियों को चित्रित करने वाली 400 ईसा पूर्व की कुछ मूर्तियां शामिल हैं।
भौगोलिक स्थानों का उल्लेख महाकाव्य, रामायण और भवभूति के उत्तररामचरित में भी मिलता है, लेकिन इन्हें आधुनिक अर्थों में 'मानचित्रकला' नहीं माना जा सकता है। भले ही हमारे पास भारतीयों द्वारा बनाया गया कोई प्राचीन नक्शा उपलब्ध नहीं है, लेकिन फिर भी पुराने दिनों में भारत को अक्सर ग्रीस और रोम के व्यापारियों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले नक्शों में दिखाया जाता था। ये मानचित्र भी इस्लामी और इतालवी पृष्ठभूमि के विद्वानों और बाद में पुर्तगाली नाविकों द्वारा बनाए गए थे। हालांकि ये पुराने नक्शे बहुत सटीक नहीं दिखते। इनमें स्थानों के आकार और दूरियाँ बिल्कुल भी सही नहीं हैं, लेकिन इन्हें देखने से हमें यह समझने में मदद मिलती है कि समय के साथ वैश्विक व्यापार और धन के मामलों में भारत कितना महत्व रखता था। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि यह हमें दिखाता है कि पिछले कुछ दशकों में भारत के बारे में दुनिया की समझ कैसे बदल गई है।
फ्रांसेस्को लोरेंजो पुले (Francesco Lorenzo Pule) नामक एक इतालवी विद्वान ने "ला कार्टोग्राफिया एंटिका डेल'इंडिया (La Cartographia Antica Dell'india)" नामक अपने महान कार्य में कई भारतीय मानचित्रों का पुनर्निर्माण किया। इनमें से कुछ मानचित्र ‘लोकप्रकाश’ नामक एक पुरानी पांडुलिपि से लिए गए थे, जिसे मूल रूप से 11वीं शताब्दी में कश्मीर के क्षेमेंद्र नामक एक भारतीय विद्वान ने तैयार किया था। कुछ मानचित्र 12वीं शताब्दी के ब्रह्मांड विज्ञान पर एक जैन ग्रंथ, लघु संग्रहणी सूत्र से भी लिए गए थे।
जब वास्को डी गामा (Vasco Da Gama) भारत के पश्चिमी तट पर कालीकट में उतरा, तो पुर्तगालियों ने तेज़ी से मालाबार तट और भारत के अन्य हिस्सों के विस्तृत नक्शे बनाना शुरू कर दिया। कुछ ही दशकों में दुनिया भर के नाविकों के लिए भारत के नक्शे बनाए और कॉपी किए जाने लगे। 1502 का एक प्रसिद्ध मानचित्र, कैंटिनो प्लैनिस्फेयर (Cantino Planisphere), का नाम ड्यूक ऑफ फेरारा (Duke Of Ferrara) के एक एजेंट अल्बर्टो कैंटिनो (Alberto Cantino) के नाम पर रखा गया था, जो गुप्त रूप से पुर्तगाल से इटली का नक्शा लाया था। पुर्तगालियों, मुगलों, डचों और अन्य यूरोपीय लोगों के योगदान से मानचित्र निर्माण का विकास जारी रहा।
1590 में, एक मुगल प्रशासनिक पुस्तक, आइन-ए-अकबरी में पुराने भारतीय मानचित्रों का उल्लेख किया गया था। लगभग उसी समय, मुगल धातु श्रमिक, लुप्त हो चुकी मोम ढलाई (Lost-Wax Casting) की कला को फिर से सीख रहे थे। यह एक ऐसी तकनीक है जहां सटीक प्रतियां बनाने के लिए धातु की मूर्तियों को मोम के सांचों में पिघलाया जाता है। इस पुरानी तकनीक का उपयोग तारों और ग्रहों को दिखाने वाले आदर्श, खोखले ग्लोब बनाने के लिए किया जाता था। 1900 के अंत में, इसका उपयोग विश्व मानचित्र बनाने के लिए फिर से किया जाने लगा।
ब्रिटिश शासन के दौरान, 1767 में ब्रिटिश सर्वे ऑफ इंडिया (British Survey Of India) के तहत पहला आधिकारिक मानचित्र-निर्माता नियुक्त किया गया था। 19वीं शताब्दी में, विलियम लैंबटन (William Lambton) द्वारा ग्रेट ट्रिगोनोमेट्रिकल सर्वे (Great Trigonometric Survey) नामक एक बड़ी परियोजना शुरू की गई थी।
इस सर्वेक्षण ने हमें उस समय तक पृथ्वी के वक्र का सबसे सटीक माप दिया। इसके तहत यह भी गणना की गई कि पहाड़, गुरुत्वाकर्षण को कैसे प्रभावित करते हैं। मानचित्रों ने हमें अधिकांश स्थानों की समुद्र तल से ऊंचाई भी बताई।
मोहम्मद-ए-हमीद, मणि सिंह और नैन सिंह जैसे भारतीय मानचित्र-निर्माताओं की टीमों द्वारा, तिब्बत और चीन का मानचित्रण करने के लिए कई मानचित्रण यात्राएँ की गईं। 1876 में, नैन सिंह को एशिया के भूगोल के बारे में हमारे ज्ञान में उनके योगदान के लिए रॉयल ज्योग्राफिकल सोसाइटी (Royal Geographical Society) के स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया था।
भारत के स्वतंत्र होने के बाद, सरकार अर्थव्यवस्था के लिए अपने प्राकृतिक संसाधनों की खोज और मानचित्रण के महत्व को भांप गई थी। इसलिए, 1949 में, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जो कि ब्रिटिश सर्वे ऑफ इंडिया (Survey Of India) हुआ करता था।) के प्रमुख भूभौतिकीविदों के नेतृत्व में केंद्रीय भू भौतिकी बोर्ड (Central Board Of Geophysics (CBG) की स्थापना की गई थी। सीबीजी ने भूमि और महासागरों का अध्ययन करने के लिए कोलकाता में भूभौतिकीय अनुसंधान विंग और कोच्चि में समुद्र विज्ञान अनुसंधान विंग की स्थापना की।
बाद में, वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (Council Of Scientific And Industrial Research (CSIR) के तहत, ये हैदराबाद में राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान (National Geophysical Research Institute (CSIR-NGRI) और गोवा में सीएसआईआर-राष्ट्रीय महासागरीय संस्थान (CSIR-National Institute Of Oceanography (CSIR-NIO) बन गए।
अन्य मानचित्रण एजेंसियों में भारतीय सर्वेक्षण (SOI), और राष्ट्रीय एटलस तथा विषयगत मानचित्रण संगठन (NATMO) शामिल हैं। ये एजेंसियां उद्योग, राजनीति और शिक्षा आदि क्षेत्र से जुड़े हर तरह के नक्शे बनाती हैं।
15 अगस्त 1947 को भारत को आज़ादी मिल गई। लेकिन इस बीच भारत का नक्शा कई बार बदला है। सबसे बड़ा परिवर्तन 1956 में हुआ जब राज्य पुनर्गठन अधिनियम पारित किया गया। उसके बाद भी नौ बार राज्य की सीमाएं बदली गईं।
1947 में कश्मीर के कुछ हिस्सों को पाकिस्तान और 1963 में चीन के हाथों खोने के बाद, भारत की बाहरी सीमाएं केवल तीन बार बदली हैं। कश्मीर, हैदराबाद, जूनागढ़, मणिपुर और त्रिपुरा जैसे राज्य 1947 और 1949 के बीच भारत में शामिल हुए। 1961 में गोवा, 1962 में पांडिचेरी और 1975 में सिक्किम भी भारत के अभिन्न हिस्से बन गए।
संदर्भ
https://tinyurl.com/y36bkb5s
https://tinyurl.com/9m4xwhan
https://tinyurl.com/3ahf7s9b
चित्र संदर्भ
1. भारतीय प्रायद्वीप के सबसे पहले ज्ञात प्रतिनिधित्वों में से एक तबुला प्यूटिंगरियाना में पाया जाता है, जो चौथी शताब्दी ईस्वी सन् के रोमन मानचित्र का 12वीं शताब्दी का संस्करण है। को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. एक हस्त निर्मित मानचित्र को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. उदयगिरि की गुफाओं की मूर्तियों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. मुहम्मद सादिक इस्फ़हानी द्वारा पहली बार जौनपुर में निर्मित एटलस (मानचित्र), इंडो- इस्लामिक कार्टोग्राफी के इतिहास में अद्वितीय रचना माना जाता है। इसका काम 1646-47 के दौरान जौनपुर में ही पूरा हुआ था। को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. 1502 के एक प्रसिद्ध मानचित्र, कैंटिनो प्लैनिस्फेयर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. 1590 के गोवा के मानचित्र को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
7. राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान के लोगो को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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