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आज हम जिस भारत देश को जानते हैं, उसका अस्तित्व इस धरती के महान पुत्र- छत्रपति शिवाजी के बिना लगभग असंभव ही होता। उनकी अनुकरणीय दूरदर्शिता और साहस ने हमें मुगलों और तुर्क सल्तनतों के चंगुल से “स्वराज्य” दिलाया। शिवाजी महाराज का मानना था कि, अफ़गानों, तुर्कों, उज़बेको, फ़ारसी, एबिसिनियाई (Abyssinians) और अन्य आक्रमणकारियों को इस भूमि, इसके लोगों पर शासन करने और इसके भाग्य का फैसला करने का कोई अधिकार नहीं था। ऐसी कई घटनाएं प्रख्यात हैं, जो इस बात की पौराणिक और उत्कृष्ट उदाहरण हैं कि, कैसे शिवाजी ने अपने से अधिक दुर्जेय शत्रुओं पर जीत हासिल करने के लिए, अपने छोटे से इलाके और मौजूद अल्प संसाधनों का सदुपयोग किया था। आज हम उनकी बात कर रहें हैं, क्योंकि आज 19 फरवरी के दिन, उनकी जयंती मनाई जाती हैं।
कहा जाता है कि, शिवाजी महाराज के पास 360 से भी ज्यादा किले थे। कुछ किले तो ऐसे भी थे, जहां उनकी इजाजत के बिना, ‘परिंदा भी पर नहीं मार सकता था’। लोहगढ़ और रायगढ़ किले उनके दो शीर्ष किलों में से एक थे। वे इस किले का उपयोग अपना खजाना रखने के लिए करते थे। दोनों किलों का उपयोग मराठा साम्राज्य में सूरत से लूटे गए सामान को संग्रहीत करने के लिए किया जाता था। लेकिन आज दोनों किले वीरान हो गए हैं। आइए आज, इन दोनों किलों का हाल और उनके समृद्ध इतिहास के बारे में देखते हैं।
लोहगढ़ महाराष्ट्र में लोनावला के पास स्थित, सबसे मजबूत पहाड़ी किलों में से एक है। लोनावला के इस वास्तुशिल्प दुर्ग ने मराठा और ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन होने से पहले, कई शासकों के लिए एक महत्वपूर्ण सैन्य मुख्यालय के रूप में कार्य किया है। लोहगढ़ किला इतिहास प्रेमियों के लिए भी एक बहुत लोकप्रिय स्थल है। सह्याद्रि पर्वतमाला पर स्थित यह किला इंद्रायणी और पवना नदी घाटियों के बीच विभाजक के रूप में कार्य करता है।
लोहगढ़ किले में तीन विशाल और बेहद मजबूत लोहे के दरवाजे हैं, शायद उन्हीं से इस किले का नाम पड़ा है। इसलिए, यह किला लोनावाला आयरन फोर्ट(Iron Fort) के नाम से भी लोकप्रिय है। यह किला समुद्र तल से 1,033 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। किले को काफ़ी प्राकृतिक सुंदरता प्राप्त है। यह किला एक छोटी श्रृंखला द्वारा इसके पड़ोसी विसापुर किले से जुड़ता है। विसापुर और लोहगढ़ किलों ने बाद में, मराठा साम्राज्य के खजाने की सुरक्षा हेतु, एक मजबूत संयुक्त किलेबंदी का प्रतिनिधित्व किया।
लोहगढ़ किला भारत के सबसे पुराने किलों में भी गिना जाता है। किले का प्रमुख निर्माण मध्यकाल का प्तित होता है। लेकिन, तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के दौरान शासन करने वाले प्राचीन भारतीय कबीले सातवाहन के निशान भी इस किले के अंदर पाए गए है। इसलिए, कई इतिहासकारों का मानना है कि, लोहगढ़ की प्रारंभिक किलेबंदी 2,300 साल पहले शुरू हुई होगी।
आइए, अब रायगढ़ के बारे में जानते हैं। अनियमित कील के आकार की चट्टान पर स्थित रायगढ़, महाराष्ट्र का रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण पहाड़ी किला था। यह छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा स्थापित मराठा स्वराज्य की राजधानी के रूप में कार्य करता था, और इसका निर्माण आबाजी सोंदेव और हिरोजी इंदुलकर द्वारा किया गया था। छत्रपति शिवाजी महाराज के शासन के बाद, छत्रपति संभाजी महाराज ने वर्ष 1689 में मुगलों द्वारा इस किले पर कब्जा करने तक, इसे संभाला था। हालांकि, 1735 में यह मराठा नियंत्रण में वापस आ गया, और 1818 तक अंग्रेजों द्वारा मराठाओं को हराने तक उनके पास रहा। भारत के अधिकांश भाग पर विजय प्राप्त करने के बाद, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपना ध्यान मराठा साम्राज्य की ओर लगाया। दूसरे आंग्ल-मराठा युद्ध (1803) में असफलताओं का सामना करने के बाद, अंग्रेजों ने मराठा साम्राज्य के पेशवा बाजीराव द्वितीय के कब्जे वाले, मराठा पहाड़ी किलों पर कब्जा करने के उद्देश्य से लगभग एक लाख सैनिकों की एक सेना खड़ी की थी।
लोहगढ़ व रायगढ़ जैसे असंख्य एवं मजबूत किले शिवाजी महाराज के जीवन का जश्न तो मनाते ही है, परंतु, आज भी शिवाजी महाराज को महाराष्ट्र के हर मराठी घर में एक देवता का स्थान दिया जाता हैं। इसके पीछे निम्नलिखित कारण हैं –
1. शिवाजी को कोई ‘पहले से स्थापित सिंहासन’ विरासत में नहीं मिला था, बल्कि, उन्होंने किशोर अवस्था में ही ‘एक नए राज्य – ‘स्वराज्य’ की स्थापना की’ थी। इसके विपरीत, उनके समकालीन शासक मुख्यतः वंशानुगत राजा थे, जिन्होंने उनका साम्राज्य बनाने के लिए कुछ नहीं किया था।
2. शिवाजी महाराज कुछ अन्य महत्वपूर्ण मायनों में भी उनसे भिन्न थे। उनके शासन के तहत, ‘रयत’ अर्थात जनता मानती थी कि, उन्होंने खुद जनता के उद्देश्य को पूरा किया है। लोगों का मानना था कि, शिवाजी का राज्य भी उनकी अपनी भूमि थी।
3. उस युग में, जब सामंत रयत का शोषण, लूटपाट और अत्याचार करते थे, तो राजा आमतौर पर इसमें हस्तक्षेप नहीं करते थे। लेकिन, शिवाजी के शासनकाल के दौरान, किसानों और राजा के बीच एक संबंध स्थापित हुआ। रयत की मदद करने के लिए, शिवाजी ने अपनी शक्ति का इस्तेमाल किया। इस कारण, जनता आनंदित थी, तथा उनके राज्य को ‘राम राज्य’ माना जाने लगा था।
4. शिवाजी महाराज ने अपने प्रांत में कृषि को भी पुनर्जीवित किया। उन्होंने वहां बसने वालों को भूमि प्रदान की, बीज और उपकरण देकर जनता को खेती के लिए प्रोत्साहित किया। साथ ही, उन्होंने खेती योग्य भूमि के लिए, किराया और कर कम रखा, और कई अमानवीय प्रथाओं को समाप्त कर दिया। इसके अलावा, किसानों को सूखे के दौरान लगान देने से भी रोका गया।
5. दूसरी ओर, शिवाजी का महिलाओं के प्रति रवैया भी उल्लेखनीय था। उन्होंने गरीब महिलाओं के खिलाफ, सत्ता में बैठे लोगों द्वारा किए गए अपराधों को नजरअंदाज नहीं किया। शिवाजी ने अपने सेनापतियों और सैनिकों को चेतावनी दी थी कि, लड़ाई में किसी भी महिला, चाहे वह हिंदू हो या मुस्लिम, को नुकसान नहीं पहुंचाया जाना चाहिए। वास्तव में, शिवाजी जन्म और आचरण से हिंदू थे। हालांकि, वह एक सहिष्णु नेता थे, और उनके राज्य में यह नियम था कि, उनके सैनिकों को मस्जिदों, पवित्र पुस्तकों या महिलाओं को नुकसान नहीं पहुंचाना था। कई मुसलमानों ने उनकी सेना और प्रशासन में काम किया, और कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों के साथ उच्च पदों पर रहे।
संदर्भ
http://tinyurl.com/mr3k5pz2
http://tinyurl.com/37xtuxk7
http://tinyurl.com/bdevjuby
चित्र संदर्भ
1. लोहगढ़ व रायगढ़ किलों के निर्माता शिवाजी महाराज को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. रायगढ़ किले में शिवाजी महाराज की प्रतिमा को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. लोहगढ़ क़िले की दीवारों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. लोहगढ़ क़िले में गणेश दरवाज़े को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. रायगढ़ किले की दीवारों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. रायगढ़ क़िले के महा दरवाज़े को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
7. शिवाजी महाराज की प्रतिमा उठाये एक लड़के को संदर्भित करता एक चित्रण (
PixaHive)
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