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आपने आपके बचपन में तितलियों का पीछा तो किया ही होगा; जरा सोचिए अगर तितलियां न होती तो क्या होता? तितलियों की सही आबादी बेहतर पर्यावरणीय परिस्थितियों का संकेतक है। तितलियाँ परागण, खाद्य श्रृंखला और पारिस्थितिकी तंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
बड़ी और चमकीले रंग की मोनार्क (Monarch) तितली, जो मूल रूप से उत्तरी अमेरिका (North America) में पाई जाती है, हर साल लगभग 4,000 किलोमीटर की यात्रा करती है। यह तितली अपने प्रवास के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। परंतु इसी तितली को 21 जुलाई, 2022 को ‘प्रकृति संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ’ (International Union for Conservation of Nature (IUCN) की अति संकटग्रस्त प्रजातियों की लाल सूची (Red list) में ‘लुप्तप्राय’ प्रजाति के रूप में वर्गीकृत किया गया है। मोनार्क तितली एक महत्वपूर्ण परागणकर्ता हैं और वैश्विक खाद्य श्रृंखला को बनाए रखने जैसी विभिन्न पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएं प्रदान करती हैं। पिछले एक दशक में अमेरिकी महाद्वीप में उनकी आबादी में 23% से 72% की गिरावट आई है। इन प्रजातियों की एक छोटी आबादी ऑस्ट्रेलिया (Australia), हवाई (Hawai) और भारत में भी पाई जाती है। आईयूसीएन के अनुसार, प्राकृतिक स्थानों पर वृक्षों की कानूनी तथा अवैध कटाई एवं कृषि और शहरी विकास हेतु जगह बनाने के लिए वनों की कटाई ने मेक्सिको (Mexico) और कैलिफोर्निया (California) में इन तितलियों के शीतकालीन आश्रय के बड़े क्षेत्र को नष्ट कर दिया है। ये तितलियाँ एक अनूठी जीवन शैली का पालन करती हैं। वे वर्ष में दो बार अमेरिकी महाद्वीप को पार करते हुए प्रवास करती हैं तथा विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों के परागण में मदद करती हैं। लेकिन वे केवल एक ही विशेष पौधे मिल्कवीड (Milkweed) पर प्रजनन करती हैं, जिसके बाद मोनार्क तितली के लार्वा (Larvae) इस पौधें से अपना भोजन प्राप्त करते हैं।
किंतु खेती के लिए भूमि को साफ करने के उद्देश्य से इन तितलियों के प्राकृतिक आवासों पर हानिकारक खरपतवार नाशक का व्यापक रूप से इस्तेमाल किया गया जिससे इनके प्राकृतिक आवास नष्ट हो गए। एक रिपोर्ट के अनुसार, 2000 के दशक में व्यापक रूप से ग्लाइफोसेट (Glyphosate) नामक एक खरपतवार नाशक का यहां के खेतों में इस्तेमाल किया गया था, जिससे अधिकांश मिल्कवीड के पौधे नष्ट हो गए थे,जिससे इन तितलियों के प्रजनन में बाधा उत्पन्न हुई है। संरक्षणवादियों के अनुसार, जलवायु परिवर्तन ने तूफानों और सूखे को और अधिक तीव्र बनाकर तथा फूलों के विकास चक्र को बाधित करके ऐसी स्थितियों को और भी बदतर बना दिया है। हालांकि, अब तितलियों के शीतकालीन आश्रय और प्रजनन स्थलों की सुरक्षा जैसे संरक्षण प्रयासों के कारण मोनार्क तितलियों की संख्या में आवश्यक वृद्धि भी हुई है।
क्या आपको पता हैं कि तितलियाँ कशेरुकी (Vertebrate) जानवरों और पौधों में भविष्य में होने वाले परिवर्तन के प्रति संवेदनशील संकेतक के रूप में भी कार्य करती हैं। तितलियाँ पर्यावरणीय क्षरण के प्रति तेजी से प्रतिक्रिया करती हैं। स्थलीय पारिस्थितिक तंत्र में भी पर्यावरणीय गुणवत्ता का आकलन करने में तितलियों की भूमिका महत्वपूर्ण है। उनकी उपस्थिति निवास स्थान और क्षेत्रीय वनस्पति की गुणवत्ता का प्रत्यक्ष संकेतक है।
‘भारतीय प्राणी विज्ञान सर्वेक्षण’ (Zoological Survey of India) के अनुसार, हमारे देश में तितलियों की कुल 1,318 प्रजातियाँ हैं। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अनुसार, ‘प्रकृति संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ’ ने इनमें से 35 तितली प्रजातियों को गंभीर रूप से संकटग्रस्त और 43 तितली प्रजातियों को लुप्तप्राय प्रजातियों के रूप में वर्गीकृत किया है। सेब से लेकर कॉफी (Coffee) तक, कई खाद्य फसलें उनके परागण के लिए तितलियों पर निर्भर हैं। संयुक्त राष्ट्र (United Nations) के ‘खाद्य और कृषि संगठन’ (Food and Agriculture Organization) के अनुसार, दुनिया की 75% कृषि के लिए परागण आवश्यक है, जिसमें तितलियों का महत्वपूर्ण योगदान है । यदि तितलियों की आबादी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है तो इससे खाद्य श्रृंखला पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा । यदि खाद्य फसलों में परागण ही नहीं होगा तो हमारे लिए भोजन की व्यवस्था कैसे होगी? यह एक महत्वपूर्ण एवं विषम प्रश्न है। पर्यावरणविदों का कहना है कि अगर तितलियां विलुप्त हो जाती हैं, तो इसके कई अन्य जीवों, जो तितली के लार्वा और प्यूपा (Pupa) को खाते हैं, के लिए भी प्रतिकूल परिणाम सामने आएंगे ।
अतः अब भारत में तितलियों की आबादी को बढ़ावा देने के लिए केंद्रीय एवं राज्य सरकारों द्वारा तितली उद्यान स्थापित करने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जा रही है। कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश और महाराष्ट्र की पहल का अनुकरण करते हुए मध्य प्रदेश के इंदौर और भोपाल में इस तरह के उद्यान स्थापित किए गए हैं। भोपाल के ‘वन विहार राष्ट्रीय उद्यान’ के तितली उद्यान में तितलियों की कम से कम 36 प्रजातियाँ देखी गईं हैं। ‘भारतीय प्राणी विज्ञान सर्वेक्षण’ ने दुर्लभ और लुप्तप्राय तितली की प्रजातियों के संरक्षण के लिए ‘राष्ट्रीय हिमालय अध्ययन मिशन’ के हिस्से के रूप में हिमालय क्षेत्र में सक्रिय परागणकों के रूप में तितलियों का अध्ययन भी किया जा रहा है। भारत सरकार द्वारा देश की दुर्लभ और लुप्तप्राय प्रजातियों की सुरक्षा के लिए कई वन्यजीव संरक्षण अधिनियम बनाए गए हैं। तितलियों की एक सौ छब्बीस प्रजातियों को भारत सरकार के वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची-I में सूचीबद्ध किया गया है, और इसके अलावा 299 प्रजातियों और 18 प्रजातियों को क्रमशः अनुसूची-II और अनुसूची-IV में सूचीबद्ध किया गया है । इस अधिनियम के तहत दुर्लभ पशु प्रजातियों के लिए उपयुक्त वातावरण बनाने के लिए ‘रामसर स्थल’ के रूप में अंतरराष्ट्रीय महत्व के आर्द्रभूमि और प्राकृतिक विरासत स्थलों को नामित भी किया है। यूनेस्को के 1971 के सम्मेलन के अनुसार रामसर स्थल अंतर्राष्ट्रीय महत्व की आर्द्रभूमियां होती हैं।
पारिस्थितिक तंत्रों का संरक्षण आज एक प्रमुख चिंता का विषय बन गया है । हालांकि तितलियों के जीवन चक्र की बेहतर समझ इन प्रजातियों के विलुप्त होने को रोकने में मदद करेगी। तितलियों के प्राकृतिक आवासों के संरक्षण के लिए आज भूमि प्रबंधन अनिवार्य हो गया है। मौजूदा संरक्षण योजना का मूल्यांकन करने के लिए तितली संरक्षण के सक्रिय प्रबंधन की अत्यधिक आवश्यकता है। हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि तितलियों के प्रजातियों के इष्टतम प्रबंधन के लिए संरक्षण रणनीतियों को प्रमुखता के साथ संचालित करने की आवश्यकता है।
संदर्भ
https://bit.ly/40pOctS
https://bit.ly/42QyFVw
https://bit.ly/3M3agpL
चित्र संदर्भ
1. एक तितली के विकास के विभिन्न स्तरों को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. मोनार्क तितली को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. सामान्य मिल्कवीड पर मोनार्क कैटरपिलर को दर्शाता एक चित्रण (Picryl)
4. भारत में विविध तितलियों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. तितलियों को दर्शाता चित्रण (Pixabay)
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