मेरठ क्षेत्र का समृद्ध इतिहास, मानव सभ्यता के उदय से कहीं पहले, प्रागैतिहासिक काल तक फैला हुआ है। मेरठ और इसके आसपास पाए गए जीवाश्मों से, एक ऐसी दुनिया का पता चलता है जो लाखों साल पहले अस्तित्व में थी, जब परिदृश्य बहुत अलग था, जिसकी हम केवल कल्पना ही कर सकते हैं। ये प्राचीन अवशेष, सुदूर अतीत की एक दुर्लभ झलक पेश करते हैं, जो जीवन के विकास एवं पर्यावरणीय परिवर्तन के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं, जिन्होंने इस क्षेत्र को आकार दिया। उपजाऊ नदी तटों से लेकर शिवालिक पहाड़ियों के ऊबड़-खाबड़ इलाके तक, मेरठ का जीवाश्म रिकॉर्ड मानव इतिहास से बहुत पहले की पृथ्वी दशा की एक ज्वलंत तस्वीर पेश करता है। क्षेत्र की सबसे असाधारण खोजों में से एक, हाथी का जीवाश्म है, जो 50 लाख वर्ष से अधिक पुराना है। यह शिवालिक वन क्षेत्र में पाया गया है। आज, हम बिग बैंग सिद्धांत(Big Bang theory) के इतिहास पर चर्चा से शुरुआत करेंगे, जो बताता है कि, ब्रह्मांड, एक बिंदु से कैसे उत्पन्न और विस्तारित हुआ। उसके बाद, हम एक रोमांचक खोज : उत्तरी स्पेन में पाई गई 14 लाख वर्ष पुरानी हड्डियों के बारे में, जानकारी देखेंगे। अंत में, हम शिवालिक वन क्षेत्र में हुई, एक आकर्षक खोज के बारे में बात करेंगे, जहां 5 मिलियन वर्ष से अधिक पुराने एक हाथी का जीवाश्म खोजा गया था, जो इन राजसी प्राणियों के प्राचीन अतीत में नई अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।
बिग बैंग सिद्धांत का इतिहास:
बिग बैंग के शुरुआती संकेत, 20वीं सदी की शुरुआत में किए गए गहरे अंतरिक्ष अवलोकनों के परिणामस्वरूप मिले। 1912 में, अमेरिकी खगोलशास्त्री – वेस्टो स्लिपर (Vesto Slipher) ने चक्राकार आकाशगंगाओं (जिन्हें नेब्यूला (Nebulae) माना जाता था)) के अवलोकनों की, एक श्रृंखला आयोजित की और उनके डॉपलर रेडशिफ़्ट (Doppler Redshift) को मापा। लगभग सभी मामलों में, चक्राकार आकाशगंगाएं हमारी आकाशगंगाओं से, दूर जाती हुई देखी गईं।
1922 में, रूसी ब्रह्मांड विज्ञानी अलेक्ज़ेंडर फ़्रीडमैन(Alexander Friedmann) ने फ़्रीडमैन समीकरण विकसित किया, जिसे सामान्य सापेक्षता के लिए, आइंस्टीन के समीकरणों से प्राप्त किया गया था। आइंस्टीन, उस समय अपने ब्रह्मांड संबंधी स्थिरांक की वकालत कर रहे थे, इसके विपरीत, फ़्रीडमैन के काम से पता चला कि, ब्रह्मांड संभवतः विस्तार की स्थिति में था।
1924 में, एडविन हबल(Edwin Hubble) द्वारा, निकटतम चक्राकार नेब्यूला की महान दूरी की माप से पता चला कि, ये प्रणालियां वास्तव में अन्य आकाशगंगाएं थीं। उसी समय, हबल ने माउंट विल्सन वेधशाला(Mount Wilson Observatory) में 100-इंच (2.5 मीटर) हुकर दूरबीन(Hooker telescope) का उपयोग करके, दूरी संकेतकों की एक श्रृंखला विकसित करना शुरू किया। और 1929 तक, हबल ने दूरी और रिसेशन वेग(Recession velocity) के बीच, एक संबंध की खोज की, जिसे अब, ‘हबल नियम’ के रूप में जाना जाता है।
बाद में 1927 में, बेल्जियम(Belgium) के भौतिक विज्ञानी और रोमन कैथोलिक पादरी – जॉर्जेस लेमैत्रे(Georges Lemaitre) ने, स्वतंत्र रूप से फ़्रीडमैन के समीकरणों के समान परिणाम निकाले और प्रस्तावित किया कि, आकाशगंगाओं की अनुमानित निकासी ब्रह्मांड के विस्तार के कारण थी। 1931 में, उन्होंने इसे यह सुझाव देते हुए और आगे बढ़ाया कि, ब्रह्मांड के वर्तमान विस्तार का मतलब है कि, जिस समय में हम पीछे जाएंगे, ब्रह्मांड उतना ही छोटा होगा। उन्होंने तर्क दिया कि, अतीत में किसी बिंदु पर, ब्रह्मांड का संपूर्ण द्रव्यमान एक ही बिंदु पर केंद्रित रहा होगा, जहां से अंतरिक्ष और समय का मूल उत्पन्न हुआ होगा।
इन खोजों ने, 1920 और 30 के दशक में भौतिकविदों के बीच बहस शुरू कर दी, जिनमें से अधिकांश ने, इस बात की वकालत की कि, ब्रह्मांड स्थिर स्थिति में था। इस मॉडल में, ब्रह्मांड के विस्तार के साथ-साथ नए पदार्थ का लगातार निर्माण होता रहता है, जिससे, समय के साथ पदार्थ की एकरूपता और घनत्व बरकरार रहता है। इन वैज्ञानिकों के बीच, बिग बैंग का विचार वैज्ञानिक से अधिक धार्मिक लग रहा था और लेमैत्रे के खिलाफ़ उनकी धार्मिक पृष्ठभूमि के आधार पर, पूर्वाग्रह के आरोप लगाए गए थे।
इस दौरान मिल्ने मॉडल(Milne Model) और ऑसिलरी यूनिवर्स मॉडल(Oscillary Universe Model) जैसे अन्य सिद्धांतों की भी वकालत की गई। ये दोनों सिद्धांत, आइंस्टीन के सामान्य सापेक्षता के सिद्धांत पर आधारित थे(ऑसिलरी यूनिवर्स मॉडल का समर्थन स्वयं आइंस्टीन ने किया था)। और उन्होंने माना कि, ब्रह्मांड अनंत या अनिश्चित व आत्मनिर्भर चक्रों का अनुसरण करता है।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, स्टेडी स्टेट मॉडल(Steady State Model) (जिसे खगोलशास्त्री – फ़्रेड हॉयल द्वारा औपचारिक रूप दिया गया था) और बिग बैंग सिद्धांत के समर्थकों के बीच, बहस चरम पर पहुंच गई। विडंबना यह है कि, यह हॉयल ही थे, जिन्होंने मार्च 1949 में, बीबीसी रेडियो प्रसारण के दौरान, "बिग बैंग" वाक्यांश गढ़ा था, जिसे कुछ लोगों ने अपमानजनक बर्खास्तगी माना था (जिसे हॉयल ने नकार दिया था)।
अवलोकन संबंधी साक्ष्य अंततः स्टेडी स्टेट की तुलना में, बिग बैंग के पक्ष में जाने लगे। 1965 में कॉस्मिक माइक्रोवेव बैकग्राउंड रेडिएशन(Cosmic microwave background radiation) की खोज और पुष्टि ने, बिग बैंग को ब्रह्मांड की उत्पत्ति और विकास के सर्वोत्तम सिद्धांत के रूप में स्थापित किया। 60 के दशक के उत्तरार्ध से लेकर, 1990 के दशक तक, खगोलविदों और ब्रह्मांड विज्ञानियों ने सैद्धांतिक समस्याओं को हल करके, बिग बैंग के लिए अधिक बेहतर मामला बनाया।
उत्तरी स्पेन(Spain) में एक खुदाई से मिली, 1.4 मिलियन वर्ष पुरानी हड्डियां, मानव प्रागैतिहासिक पटल को फिर से लिख सकती हैं-
इस ऐतिहासिक खोज में शामिल वैज्ञानिकों के अनुसार, 1.4 मिलियन वर्ष पुरानी चेहरे की हड्डियां, यूरोपीय महाद्वीप पर, अब तक खोजे गए सबसे पुराने मानव जीवाश्म हैं और मानव प्रागैतिहासिक किताब को बदल सकते हैं।
उत्तरी स्पेन के बर्गोस(Burgos) में स्थित, मानव विकास संग्रहालय(Museum of Human Evolution) की सामान्य समन्वयक पुरातत्वविद् – अरोरा मार्टिन(Aurora Martin) ने बताया कि, "हमें अभी तक नहीं पता है कि, पाए गए जीवाश्म कौन सी पहली मानव प्रजाति के थे।" उन्होंने आगे कहा कि, “बर्गोस के पास सिएरा डे अटापुएरका (Sierra de Atapuerca) उत्खनन स्थल की गुफ़ाओं में पाई गईं ये हड्डियां, एक सफ़लता है, जो मानव विकास के इतिहास को फिर से लिखने में मदद करेगी। 1994 तक, यह ज्ञात था कि 500,000 साल पहले, यूरोप में कोई प्राचीन मानव प्रजाति नहीं थी। अब हम 14 लाख साल पहले के बारे में बात कर रहे हैं। दूसरे शब्दों में, हमने यूरोप में मनुष्यों के विकास को, 10 लाख साल पीछे धकेल दिया है।”
"यह नया आविष्कार, 2022 की गर्मियों में खोजे गए थे। अटापुएरका साइट की खोज 19वीं शताब्दी के अंत में, रेलवे कार्य के दौरान की गई थी, जबकि, यहां पहली खुदाई 1976 में शुरू हुई थी। यूरोपीय महाद्वीप पर अब तक पाए गए सबसे पुराने मानव जीवाश्म, 2007 में इस क्षेत्र में पाए गए थे, जो 1.2 मिलियन वर्ष पुराने थे।
शिवालिक वन क्षेत्र में मिला, 50 लाख वर्ष से अधिक पुराना हाथी का जीवाश्म-
सहारनपुर ज़िले के अंतर्गत आने वाले शिवालिक वन प्रभाग के, सहारनपुर वन क्षेत्र में एक सर्वेक्षण के दौरान, एक हाथी का जीवाश्म मिला है। वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ हिमालयन जियोलॉजी, देहरादून के वैज्ञानिकों ने, जीवाश्म का अध्ययन करने के बाद कहा है कि, यह 50 लाख साल से भी ज़्यादा पुराना है। इस हाथी के पूर्वज को स्टेगोडॉन(Stegodon) कहा जाता है।
सहारनपुर ज़िले के अंतर्गत मौजूद, शिवालिक वन प्रभाग, सहारनपुर का वन क्षेत्र 33,229 हेक्टेयर है। एक सर्वेक्षण के दौरान, यहां एक हाथी का जीवाश्म मिला। जीवाश्म सर्वेक्षण संघ में, सहारनपुर मंडल के मुख्य वन संरक्षक – वी. के. जैन, प्रकृति के लिए विश्वव्यापी कोष(World Wide Fund for Nature), भारत के – डॉ. आई. पी बोपन्ना व देवव्रत पनवर शामिल थे। जैन जी ने पत्रकारों से बातचीत में बताया कि, उन्हें यह जीवाश्म, बादशाही बाग राऊ के दाता सौत के किनारे मिला, जो बादशाही बाग रेंज से महज़ 3-4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस जीवाश्म का अध्ययन वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ हिमालयन जियोलॉजी, देहरादून के वैज्ञानिकों ने किया। संस्थान के वैज्ञानिक – डॉ. आर. के. सहगल और सेवानिवृत्त वैज्ञानिक – डॉ. ए. सी. नंदा ने शिवालिक रेंज में पाए जाने वाले, विभिन्न जीवाश्मों का अध्ययन किया है। अध्ययन के बाद उन्होंने बताया कि, यह जीवाश्म स्टेगोडॉन नामक हाथियों के पूर्वज का है, जो वर्तमान में विलुप्त हो चुका है। यह जीवाश्म करीब 50 लाख साल पुराना है।
पत्थर पर पड़े हाथी के दांत, निशान छोड़ देते हैं। ऐसे हाथी, लगभग डायनासौर के बराबर होते थे। उनके लंबे दांत ही उनकी पहचान थे। ऐसे जीवाश्म पहले भी, कई देशों में मिल चुके हैं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/rszy9zhr
https://tinyurl.com/3dzxrk69
https://tinyurl.com/38y32kcf
चित्र संदर्भ
1. हाथी के जीवाश्म को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. बिग बैंग को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. निएंडरथल नामक पूर्वी मानव के जबड़े के टुकड़ों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. विशालकाय कछुए मेगालोचेलिस एटलस का कंकाल, जो अब तक का सबसे बड़ा ज्ञात कंकाल है, तथा सबसे प्रसिद्ध शिवालिक जीवाश्मों में से एक है! को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)