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हमारा शहर मेरठ देश के महत्वपूर्ण पारंपरिक और औद्योगिक शहरों में से एक है। यह शहर परंपरागत रूप से हथकरघा कार्यों और कैंची उद्योग के लिए जाना जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हमारा मेरठ शहर उत्तरी भारत के उन पहले शहरों में से एक है, जहां 19वीं शताब्दी के दौरान प्रकाशन केंद्र (Publication Center) स्थापित किया गया था।
भारत में प्रिंटिंग प्रेस का इतिहास 16वीं शताब्दी में शुरू हुआ, जब पुर्तगाली व्यापारी इस तकनीक को गोवा लाए थे। भारत में पहला प्रिंटिंग प्रेस (Printing Press) 1556 में, जोआओ डि बस्टामांटे (João De Bustamante) द्वारा सेंट पॉल कॉलेज (St. Paul's College), गोवा में स्थापित किया गया था। जबकि भारतीय स्वामित्व वाला पहला प्रिंटिंग प्रेस 1780 में कलकत्ता में स्थापित किया गया था। इन्ही प्रिंटिंग प्रेसों ने भारत में पश्चिमी विचारों और संस्कृति को फैलाने तथा दुनिया के बाकी हिस्सों में हमारे देश से जुड़ी जानकारी प्रसारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान, कई भारतीय प्रिंटिंग प्रेसों का उपयोग राजनीतिक साहित्य के उत्पादन और वितरण के लिए भी किया गया था। 20वीं शताब्दी में आधुनिक प्रिंटिंग प्रौद्योगिकी की शुरुआत ने तो भारत के प्रिंटिंग उद्योग में क्रांति ला दी थी।
आज, भारत में एक समृद्ध प्रिंटिंग उद्योग स्थापित है, जहां अनगिनत प्रिंटिंग प्रेस द्वारा सामग्री की एक विस्तृत श्रृंखला का उत्पादन किया जाता है। प्रिंटिंग प्रेस ने भारत के इतिहास, संस्कृति और राजनीति को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
‘कन्क्लूजन्स फिलोसोफिकाज़’ (Conclusions Philosophicas,) को भारत में प्रकाशित पहली पुस्तक माना जाता है उसके बाद कैटेसिस्मो दा डॉक्ट्रिना क्रिस्टा (Catechismo Da Doctrina Christa) नामक दूसरी पुस्तक प्रकाशित की गई । गैस्पर जॉर्ज डि लिओ परेरा (Gaspar Jorge De Leão Pereira) द्वारा लिखित ‘कम्पेंडियम स्पिरिचुअल दा वाइड क्रिस्टा’ (Compendium Spirituale Da Vide Christa) भारत में सबसे पुरानी उपलब्ध मुद्रित पुस्तक है।
भारतीय भाषा की पहली किताब जेसुइट फादर (Jesuit Fathers) द्वारा 20 अक्टूबर, 1578 को केरल में ‘तंपीरन वणक्कम’ (Tampiran Vanakkam) के नाम से तमिल भाषा में छापी गई थी , जिसके लिए कागज़ चीन से आयात किया गया था। प्रिंट ने भारत में अपनी उपस्थिति 1780 के दशक से ही महसूस करनी शुरू कर दी थी। 1850 के दशक तक, पुणे, दिल्ली, लखनऊ और अहमदाबाद जैसे कुछ अन्य शहर प्रिंट के केंद्र के रूप में उभरे थे। उन्नीसवीं सदी के अंत तक, भारत दुनिया के सबसे बड़े प्रिंट बाजारों में से एक बन गया था, और आज 21वीं सदी में भी यह स्थिति कायम है। आज, भारत में जीवन के हर पहलू में प्रिंट व्याप्त हो गया है।
आज हमारे मेरठ शहर में कई पारंपरिक और आधुनिक उद्योग स्थापित हो गए हैं। यह शहर अपने हथकरघा कार्यों और कैंची उद्योग के लिए प्रसिद्ध है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हमारा मेरठ उत्तरी भारत के उन पहले शहरों में से एक था जहां प्रकाशन हुआ और 1860 और 1870 के दशक के दौरान यह शहर वाणिज्यिक प्रकाशन का एक प्रमुख केंद्र बन गया। लेखक रामलाल की पुस्तक ‘संगीत पूरनमल का’ ( The Music of Puranmal ) 1879 में मेरठ से प्रकाशित हुई थी। यह मेरठ में छपाई के शुरुआती ज्ञात उदाहरणों में से एक है जिसके कवर पृष्ठ पर 'लाला ससीपद बाजार में ज्वाला प्रकाश प्रिंटहाउस में संगीत पूरनमल का छपा' साफ-साफ लिखा हुआ देखा जा सकता है।
मेरठ शहर देश की राजधानी दिल्ली के निकट है, जिसके कारण यह शहर उद्योगों के लिए एक आदर्श स्थान माना जाता है। मेरठ में टायर, कपड़ा, ट्रांसफॉर्मर (Transformer), चीनी, डिस्टिलरी (Distillery), केमिकल (Chemical), इंजीनियरिंग (Engineering), पेपर (Paper), पब्लिशिंग (Publishing) और खेल सामग्री निर्माण सहित 520 से अधिक छोटे और मध्यम स्तर के उद्योग स्थापित हैं। मेरठ अपनी राजस्व सृजन (2022-23 में 51,212 करोड़ रुपये के साथ) क्षमता के माध्यम से राष्ट्रीय खजाने में भी अहम योगदान देता है।
भारत के इतिहास में ईसाई मिशनरी मुद्रण के मुख्य केंद्र माने जाते थे और उन्होंने भारत के कई क्षेत्रों में छपाई की शुरुआत की। कलकत्ता के पास सेरामपुर में विलियम कैरी (William Carey) द्वारा 1799 में बैप्टिस्ट मिशन प्रेस की स्थापना की गई थी। अन्य मिशन प्रेस में मुंबई में अमेरिकन मिशन प्रेस (American Mission Press) (1817), कटक मिशन प्रेस (1837) और मैंगलोर में बेसल मिशन प्रेस (Basel Mission Press) (1841) शामिल हैं।
आज पूरी दुनिया में सैकड़ों मुद्रण संग्रहालय हैं, जिनमें से ज्यादातर यूरोप (Europe) और अमेरिका (America) में स्थपित हैं। भारत के पास 5,000 साल पुरानी एक विशाल सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत है । लेकिन संग्रहालयों के संदर्भ में हम बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रहे है। भारत में अधिकांश संग्रहालयों को उचित ढंग से व्यवस्थित नहीं किया जाता है, ज्यादातर संग्रहालयों में कर्मचारियों की संख्या अधिक है, जो केवल नौकरशाही के जाल में उलझे हुए हैं। कई सहस्राब्दियों से एक समुद्री विरासत होने के बावजूद, भारत में एक भी समुद्री संग्रहालय मौजूद नहीं है। इसके अलावा, हम एक दशक से अधिक समय से एक कपड़ा संग्रहालय स्थापित करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। भारत में कुछ फिल्म संग्रहालय तो है परंतु मुद्रण संग्रहालय मात्र एक ही है । कटक में सरकारी प्रेस से जुड़ा ‘ओडिशा प्रिंटिंग संग्रहालय’ शायद भारत का एकमात्र संग्रहालय है जो विशेष रूप से मुद्रण के लिए समर्पित है और इसमें मशीनरी का एक प्रतिनिधि संग्रह है जो लेटरप्रेस के युग से लेकर फोटोटाइपसेटिंग (phototypesetting) के युग तक मुद्रण के सभी पहलुओं को शामिल करता है। भारत में मुद्रण संग्रहालयों की आवश्यकता है, और उन्हें बनाने के लिए सरकार, प्रिंट प्रशंसकों और मुद्रण व्यापार संघों की उपस्थिति भी जरूरी है।
संदर्भ
https://bit.ly/3M3lniM
https://bit.ly/40Gymec
https://bit.ly/3TV9HjV
चित्र संदर्भ
1. लेखक रामलाल की पुस्तक ‘संगीत पूरनमल का’ ( The Music of Puranmal ) 1879 में मेरठ से प्रकाशित हुई थी। यह मेरठ में छपाई के शुरुआती ज्ञात उदाहरणों में से एक है जिसके कवर पृष्ठ पर 'लाला ससीपद बाजार में ज्वाला प्रकाश प्रिंटहाउस में संगीत पूरनमल का छपा' साफ-साफ लिखा हुआ देखा जा सकता है। को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. प्रिंटिंग प्रेस गोवा राज्य संग्रहालय को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. ‘थंबिरान वणक्कम; तमिलनाडु, भारत में छपी पहली पुस्तक। को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. संगीत पूरनमल का पुस्तक को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. एक मुद्रण संग्रहालय को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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