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मशरूम कर रहा है कमाल ! उत्तर प्रदेश सहित देश भर में इसकी खेती में बढ़ती दिलचस्पी

मेरठ

 07-01-2023 11:13 AM
फंफूद, कुकुरमुत्ता

मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार करने और छोटे स्थानों या भूमि के टुकड़े में फसल उगाकर उसे उपयोग में लाने के लिए देश में बागवान बड़ी संख्या में मशरूम उगा रहे है। जिन लोगों के पास बगीचे नहीं हैं, उनके द्वारा प्री-इनोक्युलेटेड किट (Pre-inoculated kits) जो मशरूम उगाने की किट है, की सहायता से मशरूम बहुत आसानी से घर के अंदर ही उगाए जा सकते हैं। यह उन लोगों के लिए एक सफल फसल है जिनके पास खुद के खेत नहीं हैं। आज मशरूम की खेती के बारे में हमारे सामने कई सफलता की कहानियां भी है। आइए सबसे पहले जानते हैं एक ऐसी ही सफल कहानी ।
हरियाणा के हिसार में रहने वाले विकास आज मशरूम की खेती करके 1 वर्ष में 50 लाख तक की कमाई कर लेते है। 2014 में, उन्होंने राज्य सरकार के कृषि विभाग, ‘कृषि विज्ञान केंद्र’ (Krishi Vigyan Kendra) से प्रशिक्षण लिया और वेदांत मशरूम प्राइवेट लिमिटेड (Vedanta Mushroom Pvt. Ltd) स्टार्टअप शुरू किया। विकास ने सबसे पहले केवल 5,000 खाद बैग के साथ मशरूम की खेती शुरू की। परंतु गलत खाद तथा बाजार में भाव की कमी के कारण विकास को पहले ही प्रयास में 14 लाख का नुकसान हो गया। वह इस झटके से अप्रभावित रहे और अंततः इसे एक सफलता में बदल दिया। विकास ने तब कृषि विभाग के अधिकारियों से मदद ली , जिन्होंने सुझाव दिया कि वह मशरूम को सुखाकर उन्हें मूल्यवर्धन के साथ बेच दें। फिर विकास ने मशरूम पाउडर बनाने के लिए मशरूम सुखाना शुरू किया और स्वास्थ्य पेय, बिस्कुट, पापड़ और अचार तैयार करना शुरू किया। इससे बना स्वास्थ्य पेय तपेदिक, थायरॉयड, मधुमेह और रक्तचाप के रोगियों के लिए सबसे अच्छा काम करता है। शाकाहारी भोजन का पालन करने वाले लोगों के लिए यह विटामिन-डी का अच्छा स्रोत है। आज विकास विभिन्न प्रकार के मशरूम जैसे बटन (button), सीप (oyster) और दूधिया–(milky) आदि उगाते हैं जिससे उनकी दस गुना ज्यादा कमाई होती है।100 रुपये प्रति किलो की कीमत के मुकाबले, विकास मशरूम को 1,000 रुपये प्रति किलो के मूल्य वर्धित उत्पादों में बेचते है, जिससे उन्हें सालाना 35 लाख रुपये का लाभ होता है। विकास के लिए सबसे बड़ा बाजार दिल्ली, लुधियाना और पंजाब में है।
साथ ही विकास ने पिछले छह वर्षों में 12,000 से अधिक किसानों को प्रशिक्षित किया है, जिनमें से 3,000 किसान पूरे वर्ष सक्रिय रूप से मशरूम उगाते हैं। कुछ अन्य किसान मशरूम मौसम के अनुसार उगाते हैं जबकि अन्य उन्हें अपनी सुविधा के अनुसार उगाते हैं। और इसी तरह भारत में आज किसानों में मशरूम को लेकर उत्पादन की क्षमता बढ़ रही है।
विकास की भविष्य के लिए दृष्टि है कि वह अपने उत्पादों का निर्यात करे और अपने खेत पर एक उच्च प्रौद्योगिकी इकाई स्थापित करें। इस संदर्भ में गैनोडर्मा ल्यूसिडम नामक एक मशरूम भी बड़ा प्रचलित है। गैनोडर्मा ल्यूसिडम (Ganoderma Lucidum) सदियों से ही मधुमेह, कैंसर, सूजन, अल्सर (छाले) के साथ-साथ बैक्टीरिया और त्वचा के संक्रमण जैसे रोगों को ठीक करने के लिए उपयोग किया जाने वाला एक औषधीय मशरूम है। हालांकि, भारत में, आज भी कवक (fungus) की क्षमता का पता लगाया जा रहा है। यह दुनिया में सबसे महत्वपूर्ण औषधीय मशरूमों में से एक माना जाता है क्योंकि इसके रासायनिक घटक कई औषधीय गुण प्रदर्शित करते हैं। इसमें लगभग 400 से अधिक रासायनिक घटक होते हैं। इसे विश्व स्तर पर "लाल ऋषि मशरूम" (Red Reishi Mushroom) के रूप में भी जाना जाता है। इस मशरूम की खपत का इतिहास चीन में 5,000 साल पहले का है। इसका उल्लेख जापान, कोरिया, मलेशिया और भारत जैसे देशों के ऐतिहासिक और चिकित्सा अभिलेखों में भी मिलता है। सामान्य मशरूम से अलग, इसकी ख़ासियत यह है कि यह केवल लकड़ी पर बढ़ता है। समय के साथ, कई शोधकर्ताओं ने इस कवक को पहचाना और इसके घटकों और गुणों की पहचान करने की कोशिश की। अनुसंधान अभी भी जारी है और कई रोचक तथ्य खोजे जा रहे हैं।
इस मशरूम की निचली सतह छिद्रयुक्त और हल्के सफेद रंग की होती है और परिपक्वता पर लाल बीजाणु पैदा करती है। यह गर्म और आर्द्र जलवायु में अच्छी तरह से पनपता है, और उपोष्णकटिबंधीय और समशीतोष्ण क्षेत्रों के मिश्रित जंगलों में अधिमानतः बढ़ता है।
लकड़ी के लठ्ठों और बुरादे पर इसकी खेती कर इस मशरूम को व्यापार और आजीविका के लिए लोकप्रिय बनाने का प्रयास किया जा रहा है। पहले इसे केवल जंगल से एकत्र किया जाता था लेकिन इसकी बढ़ती मांग ने कृत्रिम रूप से इसकी खेती करने के प्रयासों को बढ़ावा दिया है। इसकी पहली सफल कृत्रिम खेती 1969 में चीनी विज्ञान अकादमी (Chinese Academy of Science) के तकनीशियनों द्वारा की गई थी। तब से, इस मशरूम की खेती विभिन्न लकड़ी के लट्ठों के साथ-साथ बुरादे की सतह में भी की जाती है, जिसमें गेहूं की भूसी, चाय की पत्ती, कपास की भूसी और अन्य अतिरिक्त लकड़ी की सतह होती हैं। दवाओं के अलावा, गैनोडर्मा ल्यूसिडम का उपयोग चाय, कॉफी, खाद्य ऊर्जा स्रोत , स्वास्थ्य बूस्टर, पेय पदार्थ, बेक किए गए सामान और आयुर्वृद्धि विरोधक प्रसाधन सामग्री जैसे उत्पादों के निर्माण के लिए आधार सामग्री के रूप में भी किया जाता है।
किंतु इसका उत्पादन बड़े पैमाने पर चीन, जापान, कोरिया, मलेशिया, थाईलैंड और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों तक ही सीमित है। इसी कारण वर्ष भारत में भी इस मशरूम को अन्य हर्बल उत्पादों के समान उतनी लोकप्रियता नहीं मिली है । आप शायद सोच रहे होंगे कि भारत में इसकी खेती की क्या गुंजाइश है जबकि विदेशों में उत्पादित इस मशरूम के अधिकांश उत्पादों की खपत घरेलू रूप से की जाती है और बहुत सीमित मात्रा में कच्चे माल का निर्यात किया जाता है। किंतु अब इस मशरुम के बारे में जागरूकता फैल रही है और इस मशरूम की मांग ने भारत सहित कई देशों को बड़े पैमाने पर इसका उत्पादन करने और इसके उत्पादों का निर्माण करने के लिए प्रेरित किया है। हालांकि, इसका वर्तमान उत्पादन इसकी बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है, और इस प्रकार बड़े पैमाने पर इस मशरूम की खेती करने की आवश्यकता है।
भारत, जहां अधिकांश आबादी मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर है, में इस मशरूम की खेती करने की काफी संभावनाएं हैं। इसे घर के अंदर भी उगाया जा सकता है और इस प्रकार यह मौसम की अत्यधिक स्थिति, मानव-वन्यजीव संघर्ष, कठोर स्थलाकृति और खराब मिट्टी की स्थिति के प्रभावों से सुरक्षित है। भारत में, वर्तमान में मशरूम ज्यादातर प्रयोगशाला अनुसंधान तक ही सीमित है। हालाँकि, इसकी खेती के कुछ सफल प्रयास विभिन्न भारतीय संगठनों द्वारा किए गए हैं। इसकी खेती देश में लकड़ी के लट्ठों जो स्थानीय रूप से बिलेट कहलाते है, पर की जाती है। गैनोडर्मा ल्यूसिडम में आजीविका सृजन की अपार संभावनाएं हो सकती हैं, लेकिन कुछ चुनौतियां भी हैं। महामारी के दौरान हर्बल और प्राकृतिक स्वास्थ्य उत्पादों की बढ़ती मांग के कारण, भारत में बड़े पैमाने पर इसकी खेती और विपणन के लिए अवसर उत्पन्न हुए है। गनोडर्मा ल्यूसिडम के सूखे फल या कच्चे पाउडर को 4,000-5000 रुपये प्रति किलोग्राम से बेचा जा सकता है।
परंतु फिर भी हमें उत्पादों के व्यावसायीकरण के लिए किसानों द्वारा उगाए गए मशरूम के रासायनिक विश्लेषण, गुणवत्ता मूल्यांकन और विपणन की दिशा में विशेष रूप से काम करने की आवश्यकता है। अभी हम कच्चे माल के लिए दूसरे देशों पर निर्भर हैं और भारत में इसकी मांग को पूरा करने के लिए इसका आयात कर रहे हैं। इस प्रकार, गैनोडर्मा ल्यूसिडम में भारत में उद्यमिता के साथ-साथ आजीविका के अवसर की हर संभावना है, केवल किसानों के बीच उचित विस्तार की आवश्यकता है।

संदर्भ–
https://bit.ly/3IipdCP
https://bit.ly/3VmB7hI

चित्र संदर्भ
1. मशरूम की फसल को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. गैनोडर्मा ल्यूसिडम को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. मशरूम के किसान को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
4. सुखाई जा रही गैनोडर्मा ल्यूसिडम को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)

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