Post Viewership from Post Date to 06-Feb-2023 (31st Day)
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
1893 777 2670

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

मध्‍य एशिया से भारत तक शेरवानी की यात्रा

मेरठ

 06-01-2023 11:47 AM
स्पर्शः रचना व कपड़े

हैदराबाद के पुरानी हवेली इलाके में निज़ाम के संग्रहालय में आने वाले लोग अंतहीन दिखने वाली वॉक-इन अलमारी को देखकर दंग रह जाते हैं। छठे निजाम महबूब अली खान को जीवन में अच्छी चीजों का बड़ा शौक था। ऐसा माना जाता है कि "उन्होंने कभी भी एक पोशाक नहीं दोहराई"। एक शोध ने शेरवानी के विकास में उनकी भूमिका पर प्रकाश डाला है जो अब शादियों के दौरान पसंद की जाने वाली पोशाक है और औपचारिक अवसरों के दौरान राजनीतिक वर्ग द्वारा पसंद की जाती है। शेरवानी ने भी अपनी शुरुआत से लेकर आज के संस्करण तक कई तरह की यात्रा की है।
शेरवानी 19वीं सदी के ब्रिटिश भारत में क्षेत्रीय मुगल रईसों और उत्तरी भारत के राजघरानों की यूरोपीय शैली की दरबारी पोशाक के रूप में उत्पन्न हुयी थी, जिसे 19वीं सदी के अंत में सामान्‍य रूप से अपनाया गया था। यह पहली बार 1820 के दशक में लखनऊ में देखी गयी। इसे धीरे-धीरे भारतीय उपमहाद्वीप के बाकी राजघरानों और अभिजात वर्ग द्वारा तथा बाद में सामान्य आबादी द्वारा एक पारंपरिक पोशाक के रूप में अपनाया गया। एम्मा टारलो (Emma Tarlo) के अनुसार, “शेरवानी एक फ़ारसी लबादा (persian cape), जिसे ‘बालाबा’ या ‘चापकन’ कहते हैं से विकसित हुई। इसे धीरे-धीरे भारतीय रूप (अंगरखा) दिया गया, और अंत में शेरवानी में विकसित किया गया, जिसमें यूरोपीय फैशन (european fashion) का पालन करते हुए सामने की ओर बटन थे।” शेरवानी दक्षिण एशिया (South Asia) में पुरुषों द्वारा पहना जाने वाला लंबी बाजू वाला बाहरी कोट है। इसे पश्चिमी घेरदार कोट (frock coat) की तरह पहना जाता है, यह कमर की तरफ से कुछ दबा हुआ तथा घुटनों तक की लंबाई वाला होता है और सामने की ओर बटन लगे होते हैं। यह बिना कॉलर या फिर शर्ट-शैली के कॉलर के साथ भी हो सकता है, या मंदारिन कॉलर (mandarin collar) की शैली में एक स्टैंड-अप कॉलर (stand-up collar) के साथ हो सकता है।
शेरवानी की उत्पत्ति मध्य एशिया में 16वीं और 17वीं शताब्दी में देखी जा सकती है, जब यह दिल्ली सल्तनत और मुगल साम्राज्य में तुर्की और फारसी कुलीनों द्वारा नियमित रूप से पहने जाने वाला पसंदीदा परिधान(dress code) था। भारत की तीव्र गर्मी में इस पहनावे का चुनाव लोगों को थोड़ा अजीब लगा लेकिन विदेशी शासकों ने अपनी मातृभूमि की परंपराओं और संस्कृतियों को बनाए रखने पर जोर दिया। साथ ही अधिकांश रईसों और राजघरानों के पास कई महल थे और वे हमेशा गर्मियों के महीनों में उत्तर भारत के ठंडे इलाकों में चले जाते थे। यह प्रवृत्ति बाबर (1526-1530) के शासनकाल में सबसे अधिक प्रचलित थी जब पुरुषों ने अपनी मातृभूमि तुर्किस्तान की वेशभूषा को बनाए रखने के लिए एक चाफन (Chafan- A long coat), और पोस्टिन (Postin- Sheepskin Coat) पहना था।
अकबर के शासनकाल के दौरान वस्‍त्रों में फारसी, मुस्लिम और हिंदू शैलियों का संगम हुआ। बादशाह अकबर ने दरबारी वेशभूषा को प्रचलन में लाने में गहरी दिलचस्पी ली और यहाँ तक कि कपड़ों के पुराने नामों को नया नाम दिया। शॉल का नाम बदलकर परमनरम रखा गया जिसका अर्थ है 'बेहद नरम', जबकि बुर्का और हिजाब का नाम बदलकर ‘चित्रगुप्त’ रखा गया, जिसका अर्थ है 'चेहरा छिपाना'। जामा को सर्बगति नाम दिया गया था जिसका अर्थ है 'पूरे शरीर को ढंकना' । यह पुरुषों द्वारा पहना जाने वाला जामा ही था जिसने आधुनिक शेरवानी की नींव रखी। जामा जैसे कोट सबसे पहले कुषाणों या सीथियनों (Scythians) के समय में पहने जाते थे और जल्द ही यह विलुप्‍त हो गए। जामा को फिर एक नया रूप दिया गया और 16वीं शताब्दी में सम्राट अकबर द्वारा विशेष रूप से उनके मुगल दरबार में पुरुषों द्वारा पुन: प्रारंभ किया गया। अकबर के नए संस्करण में जामा के किनारों में कट(slits) नहीं थे और इसमें एक गोल घेरदार स्कर्ट थी। नए संस्करण को ‘चक-दार-जामा’ कहा गया। खुले जैकेट शैली के परिधान को पटका नामक कपड़े की बेल्ट से बांधा जाता था जिसे अक्सर जटिल डिजाइनों के साथ हाथ से बुना जाता था। रत्नजड़ित तलवारों को लटकाने के लिए कमरबंद (sash) जैसी पट्टी का भी प्रयोग किया जाता था। चक-दार-जामा अकबर के दरबार में पुरुषों के लिए आधिकारिक दरबारी पोशाक बन गया। भले ही चक-दार-जामा हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मों का मिश्रण था। दोनों धर्मों को एक साथ लाने और उच्च वर्ग के लोगों के लिए एक सामान्य वस्‍त्र बनाकर देश को एकजुट करने में अकबर की गहरी दिलचस्पी शेरवानी के विकास के लिए आधारशिला थी। एक ऐसा समय भी था जब भारतीय पुरुषों का फैशन सबसे दिखावटी और महिलाओं के फैशन के बराबर था। मुगल पुरुषों के कपड़े रेशमी, मलमल और ब्रोकेड जैसे शानदार कपड़ों से बनाए गए थे और वे मुगल महिलाओं की तरह बड़े-बड़े आभूषण विशेष रुप से हार भी पहनते थे ।
जैसे ही मुगल शासन समाप्त हुआ और ब्रिटिश ने भारत पर अपना साम्राज्य स्थापित किया, शेरवानी अपने एक और कायापलट से गुजरी। पूर्वी भारत के अधिकारियों और ब्रिटिश सेना द्वारा पहने जाने वाले ब्रिटिश फ्रॉक कोट के समान अधिक संरचित जैकेट में बड़े घेरे के साथ निचली किनारी को सुव्यवस्थित किया गया था। शेरवानी के विभिन्न रूप खुले जैकेट से दोनों तरफ बटन और कॉलर (खुले और बंद कॉलर) वाली शैलियों में विकसित हुए। ये शेरवानी शैली अब केवल भारतीय राजघरानों के लिए नहीं थी क्योंकि समृद्ध व्यवसायी, कलाकार, बैंकर और अन्य समृद्ध व्यक्तियों ने भी इस परिधान को अपनाना शुरू कर दिया था।
ब्रिटिश शासन के अंत में शेरवानी भारतीय पुरुषों में जातीय गौरव का प्रतीक बन गई। स्वतंत्रता संग्राम के कई आंदोलनों, विशेष रूप से अलीगढ़ आंदोलन में कई क्रांतिकारियों को यह पोशाक पहने हुए देखा गया क्योंकि उन्होंने ब्रिटिश निर्मित कपड़े को अस्वीकार कर दिया था। शेरवानी बिना किसी अलंकरण के सादी जैकेट बन गयी और अक्सर ठोस रंग के कपड़े से बनी होती थी। जवाहरलाल नेहरू और जिन्ना जैसे कई प्रभावशाली भारतीय नेताओं ने साधारण बंद कॉलर या बंदगला शैली की शेरवानी को अपने सिग्नेचर लुक (Signature look) के रूप में अपनाया और कई भारतीय पुरुषों को ऐसा करने के लिए प्रेरित किया। ब्रिटिश काल की शेरवानी शैली अभी भी भारतीय पुरुषों द्वारा पहनी जाती हैं। भारतीय फैशन डिजाइनरों और बॉलीवुड फिल्मों के उद्भव के परिणामस्वरूप विभिन्न कपड़ों, रंगों और छायाचित्रों के साथ शेरवानी के अधिक अलंकृत संस्करण सामने आए हैं। भारतीय दूल्हे अक्सर अपनी शादी के दिन शेरवानी पहनते हैं, क्योंकि यह अभी भी भारत की समृद्ध विरासत का एक महत्वपूर्ण प्रतीक है। यह करीबी दोस्तों और परिवार के लिए शादियों में शामिल होने वाले भारतीय पुरुषों की पसंद का परिधान भी है। आधुनिक शेरवानी अब चूड़ीदार के ऊपर पहनने तक ही सीमित नहीं है, क्योंकि फैशन डिजाइनरों ने शेरवानी कोसज्जित पतलून , धोती, पटियाला सलवार यहां तक ​​कि लुंगी के साथ भी प्रयोग किया है।

संदर्भ:

https://bit.ly/3HXNwFP
https://bit.ly/3I2ijRH

चित्र संदर्भ

1. चौमहल्ला पैलेस रॉयल पेंटिंग को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. फ़ारसी लबादा को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
3. शेरवानी में भवलपुर के नवाब को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. हैदराबाद में शेरवानी पैटर्न को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)

***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • अपने युग से कहीं आगे थी विंध्य नवपाषाण संस्कृति
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:28 AM


  • चोपता में देखने को मिलती है प्राकृतिक सुंदरता एवं आध्यात्मिकता का अनोखा समावेश
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:29 AM


  • आइए जानें, क़ुतुब मीनार में पाए जाने वाले विभिन्न भाषाओं के शिलालेखों के बारे में
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:22 AM


  • जानें, बेतवा और यमुना नदियों के संगम पर स्थित, हमीरपुर शहर के बारे में
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:31 AM


  • आइए, अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस के मौके पर दौरा करें, हार्वर्ड विश्वविद्यालय का
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:30 AM


  • जानिए, कौन से जानवर, अपने बच्चों के लिए, बनते हैं बेहतरीन शिक्षक
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:17 AM


  • आइए जानें, उदासियों के ज़रिए, कैसे फैलाया, गुरु नानक ने प्रेम, करुणा और सच्चाई का संदेश
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:27 AM


  • जानें कैसे, शहरी व ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं के बीच अंतर को पाटने का प्रयास चल रहा है
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:20 AM


  • जानिए क्यों, मेरठ में गन्ने से निकला बगास, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के लिए है अहम
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:22 AM


  • हमारे सौर मंडल में, एक बौने ग्रह के रूप में, प्लूटो का क्या है महत्त्व ?
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:29 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id