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असम की कुकी जनजाति की तरह देश की अन्य जनजातियां भी करती है, कई समस्याओं का सामना

मेरठ

 13-05-2024 09:24 AM
सिद्धान्त 2 व्यक्ति की पहचान

असम राज्य विभिन्न देशज आदिवासी समुदायों का घर है, जिनमें से प्रत्येक जनजाति की अपनी अनूठी संस्कृति, भाषा और परंपराएं हैं। असम की कुछ प्रमुख जनजातियों में कार्बी, बोडो, दिमासा आदि शामिल हैं। आइए, आज असम के आदिवासी समुदाय में से एक, कुकी जनजाति को देखते हैं। कुकी लोग एक देशज समुदाय हैं, जो मुख्य रूप से असम, मणिपुर, मिजोरम और नागालैंड सहित भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में पाए जाते हैं। कुकी जनजाति की अपनी अलग भाषा और सांस्कृतिक प्रथाएं हैं। जबकि, आज उन्हें विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इनमें भूमि अधिकार, पहचान, सामाजिक-आर्थिक विकास और राजनीतिक प्रतिनिधित्व से संबंधित मुद्दे शामिल हैं। आइए जानते हैं। वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार, असम की कुल जनसंख्या में, अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या 12.4% थी। अतः भारतीय संविधान असम की जनजातियों को दो समूहों में वर्गीकृत करता है: अनुसूचित जनजाति – पहाड़ी और अनुसूचित जनजाति – मैदानी। असमिया भाषा का उपयोग लगभग सभी जनजातियों द्वारा सामान्य भाषा के रूप में किया जाता है। असम के विभिन्न अन्य देशज समुदाय भी पहले आदिवासी जनजातियां थीं। लेकिन बाद में, अहोम, मोरान, मोटाक, केओट (कैबार्टा), सुतिया, कोच राजबोंगशी आदि समुदायों में हुए व्यापक धर्मांतरण के बाद, उन्हें गैर-आदिवासी दर्जा प्राप्त हुआ।
अतः आज असम की मुख्य मैदानी अनुसूचित जनजाति में बोडो, देवरी, कचारी, मिसिंग आदि शामिल हैं, और कार्बी, दिमासा आदि समुदायों को पहाड़ी अनुसूचित जनजाति का दर्जा प्राप्त है। “कुकी जनजाति”, जिसे ‘चिन-कुकी-मिज़ो’ के नाम से भी जाना जाता है, पूर्वोत्तर भारत के प्रमुख जातीय समूहों में से एक है। उनकी उत्पत्ति का पता तिब्बती-बर्मन(Tibeto-Burman) जातीय परिवार से लगाया जा सकता है, जिसमें मिज़ो, ज़ोमी और विभिन्न अन्य संबंधित समुदाय शामिल हैं। कुकी समुदाय की मणिपुर, मिजोरम, असम, त्रिपुरा और नागालैंड के साथ-साथ बांग्लादेश और म्यांमार के कुछ हिस्सों में भी मजबूत उपस्थिति है। कुकी जनजाति के पास एक समृद्ध भाषाई विरासत है, और इसके विभिन्न उपसमूहों के बीच कई बोलियां बोली जाती हैं। परंतु, इनकी मुख्य भाषा तिब्बती-बर्मन भाषा परिवार से संबंधित है। मुख्य रूप से एक मौखिक परंपरा का पालन करने के बावजूद भी, उन्होंने साहित्य के माध्यम से अपनी सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण प्रगति की है। विभिन्न लोककथाओं, कहावतों और मौखिक इतिहासों को प्रलेखित किया गया है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि, सदियों पुरानी परंपराएं और ज्ञान भावी पीढ़ियों तक पहुंचते हैं।
कुकी जनजाति में ‘सॉम’ लड़कों के लिए एक सामुदायिक केंद्र के रूप में कार्य करता है। यह एक शैक्षिक केंद्र है, जहां ‘सॉम-अपा’, अर्थात एक बुजुर्ग, शिक्षण और मार्गदर्शन प्रदान करते थे। जबकि, ‘लॉम’ एक पारंपरिक युवा संघ होता है, जो लड़कों और लड़कियों दोनों के लिए सामाजिक जुड़ाव और व्यक्तिगत विकास को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह भी एक और शिक्षण संस्थान के रूप में कार्य करता है। पारंपरिक ज्ञान प्रदान करने के अलावा, लॉम विशिष्ट खेती के तरीकों, शिकार तकनीकों, मछली पकड़ने की प्रथाओं और खेल गतिविधियों से संबंधित तकनीकी विशेषज्ञता और व्यावहारिक कौशल के प्रसारण की सुविधा भी प्रदान करता है। त्यौहार कुकी संस्कृति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, एवं सामाजिक एकता और धार्मिक श्रद्धा के अवसर के रूप में कार्य करते हैं। चापचर कुट, मीम कुट और क्रिसमस यहां लोगों द्वारा मनाए जाने वाले कुछ प्रमुख त्योहार हैं। इन उत्सवों के दौरान, समुदाय अपनी खुशी और गहरी जड़ें जमाते हुए, जीवंत पारंपरिक नृत्यों, गीतों और अनुष्ठानों में संलग्न होते है। ये समारोह पारंपरिक शिल्प, व्यंजन और संगीत को प्रदर्शित करने का अवसर भी प्रदान करते हैं, जिससे उनकी सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण में योगदान होता है।
चावल, मक्का, बाजरा और सब्जियों जैसी फसलों की खेती पर ध्यान देने के साथ, कृषि कुकी जनजाति की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। वे स्थानांतरित खेती, जिसे स्थानीय रूप से “झूम” के रूप में जाना जाता है, और स्थायी खेती दोनों का अभ्यास करते हैं। कुकी लोगों का ज़मीन से गहरा जुड़ाव और उनकी टिकाऊ खेती के तरीके प्रकृति के साथ उनके सामंजस्यपूर्ण संबंध को उजागर करते हैं कुकी जनजाति के पास विभिन्न प्रकार के पारंपरिक संगीत वाद्ययंत्र होते हैं, जिनमें ड्रम, बांसुरी, घंटियां और “तुंगटे” और “खो” जैसे तार वाले वाद्ययंत्र शामिल हैं। उनके सुंदर चाल और जीवंत वेशभूषा वाले नृत्य, रोजमर्रा की जिंदगी के विभिन्न पहलुओं को दर्शाते हैं। इतना सुंदर समाज एवं संस्कृति होने के बावजूद भी, आज भारत में आदिवासियों को महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जो उनके जीवन को कठिन बना रही हैं। इन समुदायों के सामने आने वाली चुनौतियां निम्नलिखित हैं।
१.एक बड़ी समस्या उनके प्राकृतिक संसाधनों का दोहन है। सरकार की उदारीकरण और वैश्वीकरण की नीतियां आर्थिक विकास के लिए संसाधनों के उपयोग को प्राथमिकता देती हैं, जो संसाधनों के उपयोग के पारंपरिक आदिवासी दृष्टिकोण से टकराती है। इससे जनजातीय क्षेत्रों से संसाधनों का दोहन हुआ है, जिससे पारिस्थितिक क्षति हुई है।
२.एक अन्य बड़ी मुद्दा विकास परियोजनाओं के कारण जबरन विस्थापन है। इन परियोजनाओं के लिए कई आदिवासी क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया गया है, और विस्थापित समुदाय अक्सर उचित पुनर्वास पाने के लिए संघर्ष करते हैं।
३.कुछ लोग खराब स्वास्थ्य स्थितियों से पीड़ित हैं, उनकी जीवन प्रत्याशा कम है और सिकल सेल एनीमिया(Sickle Cell Anemia) जैसी बीमारियों की दर अधिक है।
४.कई जनजातियों में बेरोजगारी एक बड़ी समस्या हैं। या फिर, शोषणकारी और कम वेतन वाली नौकरियों में काम करने के लिए ये लोग मजबूर हो गए हैं।
५.वैश्वीकरण ने इन समुदायों की स्थिति को और खराब कर दिया है, जिससे दलित जनजातियों के लिए सामाजिक बहिष्कार और असुरक्षा बढ़ गई है।
६.आदिवासी महिलाएं विशेष रूप से प्रभावित होती हैं, क्योंकि वे अक्सर अपनी भूमि के निगमित शोषण से सीधे प्रभावित होती हैं। दूसरी ओर, गरीबी के कारण जनजातीय क्षेत्रों से कई युवा महिलाएं काम की तलाश में शहरी केंद्रों की ओर पलायन करती हैं, जहां उन्हें शोषण और खराब जीवन स्थितियों का सामना करना पड़ता है। ७.अप्रवासी मजदूरों की आमद और विकास परियोजनाओं ने आदिवासी संस्कृतियों और आवासों को भी खतरे में डाल दिया है।

संदर्भ
https://tinyurl.com/yan9942k
https://tinyurl.com/ycxjsskj
https://tinyurl.com/34srt796

चित्र संदर्भ
1. कुकी समुदाय की महिला को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
2. मानचित्र में मणिपुर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. कुकी युवक को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
4. कुकी समुदाय की महिला को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. आदिवासी समुदाय को संदर्भित करता एक चित्रण (picryl)

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