Post Viewership from Post Date to 25-May-2024 (31st Day)
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
1967 120 2087

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

विश्व पुस्तक दिवस पर डूबिये रामपुर रज़ा लाइब्रेरी के अद्भुद ज्ञान सागर में

मेरठ

 24-04-2024 09:28 AM
मध्यकाल 1450 ईस्वी से 1780 ईस्वी तक

हमारे शहर रामपुर में स्थित रज़ा लाइब्रेरी सिर्फ किताबों, पांडुलिपियों और दुर्लभ दस्तावेजों का भंडार नहीं है, बल्कि ज्ञान और इतिहास का एक असाधारण खज़ाना है। 18वीं शताब्दी के इतिहास के साथ, यह पुस्तकालय इंडो-इस्लामिक सांस्कृतिक विरासत का भंडार भी है। भारत सरकार द्वारा प्रबंधित, इस पुस्तकालय में तुर्की, उर्दू, पश्तो, तमिल, हिंदी, संस्कृत, फारसी, अरबी और कई अन्य भाषाओं में पांडुलिपियों का एक दुर्लभ और बहुमूल्य संग्रह है। इसमें अवध, कांगड़ा, दक्कनी, राजपूत, फारसी, मुगल, तुर्क-मंगोल और अन्य कला विद्यालयों से संबंधित लघु चित्रों का एक बड़ा संग्रह भी है।
इन ऐतिहासिक दस्तावेजों के अलावा, खगोलीय उपकरण, इस्लामी सुलेख के नमूने और फारसी और अरबी के अनूठे चित्र भी पुस्तकालय की शोभा बढ़ाते हैं। वास्तव में रामपुर रज़ा लाइब्रेरी दक्षिण एशिया के महत्वपूर्ण पुस्तकालयों में से एक है। आइए आज के अपने इस लेख में इस लाइब्रेरी के इतिहास के विषय में जानते हैं और साथ ही यह भी देखते हैं कि यह किस लिए प्रसिद्ध है? रामपुर रज़ा लाइब्रेरी की स्थापना वर्ष 1774 में नवाब फैजुल्लाह खान द्वारा की गई थी, जिन्होंने 1774 से 1794 तक रामपुर पर शासन किया था। उन्होंने प्राचीन पांडुलिपियों और इस्लामी सुलेख के लघु नमूनों के अपने व्यक्तिगत संग्रह से पुस्तकालय की स्थापना की। नवाब मुहम्मद यूसुफ अली खान जो उर्दू के प्रसिद्ध कवि और प्रसिद्ध कवि मिर्जा गालिब के शिष्य थे, ने इस पुस्तकालय में एक अलग विभाग बनवाया था। उन्होंने संग्रह को कोठी जेनराली के नवनिर्मित कमरों में भी स्थानांतरित कर दिया। और कश्मीर तथा भारत के अन्य क्षेत्रों के प्रसिद्ध प्रकाशकों, बाइंडरों और सुलेखकों को भी उनके योगदान के लिए पुस्तकालय में आमंत्रित किया। बाद के नवाबों द्वारा पुस्तकालय का और अधिक संवर्धन किया गया। नवाब कल्बे अली खान (1865-87) को पांडुलिपियों और चित्रों और इस्लामी सुलेख के नमूनों के संग्रह में रुचि थी।
वह एक विद्वान और कवि थे। वर्तमान में रज़ा लाइब्रेरी हामिद मंजिल नामक जिस महल में स्थित है उसे हामिद अली खान द्वारा बनवाया गया था। हामिद अली खान को रामपुर में शहर की मस्जिद, महल की प्राचीर और राज्य भवनों के नवीनीकरण के लिए जाना जाता था। उन्होंने 20वीं सदी की शुरुआत में हामिद मंजिल नामक एक महल बनाने के लिए अपने मुख्य अभियंता डब्ल्यू सी राइट (W.C. Wright) को अनुबंधित किया। 1957 में रज़ा लाइब्रेरी को इस इमारत में स्थानांतरित कर दिया गया था। अंतिम नवाब रज़ा अली खान (1930-1966) ने पुस्तकालय के विकास में असाधारण रुचि दिखाई। उन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत पर कई पुस्तकें और दुर्लभ पांडुलिपियां खरीदीं। रामपुर रज़ा लाइब्रेरी में 60,000 मुद्रित पुस्तकों, 17,000 पांडुलिपियों, इस्लामी सुलेख के 3000 दुर्लभ नमूनों, 5,000 लघु चित्रों, नवाबों की प्राचीन वस्तुओं, प्राचीन खगोलीय उपकरणों और 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व से 19वीं शताब्दी ईसवी तक के बीच की अवधि के सोने, चांदी और तांबे के 1500 दुर्लभ सिक्कों का एक समृद्ध संग्रह है। यहाँ मुगल पुरावशेषों और विभिन्न भाषाओं की ताड़पत्र पांडुलिपियों का भी खजाना मौजूद है।
200,000 से अधिक दुर्लभ पांडुलिपियों के व्यापक संग्रह के साथ, रज़ा लाइब्रेरी शोधकर्ताओं और विद्वानों के लिए स्वर्ग से कम नहीं है। ये पांडुलिपियाँ साहित्य, इतिहास, धर्म और दर्शन जैसे विषयों से संबंधित हैं, जो मानव सभ्यता के विभिन्न पहलुओं में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करती हैं। रज़ा लाइब्रेरी में विभिन्न अवधियों और क्षेत्रों की दुर्लभ और खूबसूरती से सजाई गई प्रतियों के साथ कुरानों का एक प्रभावशाली संग्रह भी है। ये कुरान समृद्ध इस्लामी विरासत और सुलेखकों और प्रकाशकों के कलात्मक कौशल के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। पांडुलिपियों के अलावा, पुस्तकालय में विभिन्न भाषाओं में मुद्रित पुस्तकों का एक विशाल संग्रह भी है। प्राचीन ग्रंथों से लेकर आधुनिक साहित्य तक, यहाँ इस संग्रह में आगंतुकों को विविध रुचियों और विद्वतापूर्ण गतिविधियों के अनुसार सब कुछ प्राप्त हो जाता है।
क्षेत्र की साहित्यिक विरासत को संरक्षित करने के लिए इस लाइब्रेरी के अंदर रामपुर-संभल संग्रह भी है। इस संग्रह में अरबी, फ़ारसी, उर्दू और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में दुर्लभ कार्य शामिल हैं, जो क्षेत्र की सांस्कृतिक समृद्धि को प्रदर्शित करते हैं। रज़ा लाइब्रेरी में ऐतिहासिक घटनाओं, प्रतिष्ठित व्यक्तित्वों और सांस्कृतिक बारीकियों को कैद करने वाली तस्वीरों और शिला मुद्रण का एक उल्लेखनीय संग्रह है। ये दृश्य रिकॉर्ड अतीत की झलक प्रस्तुत करते हैं और शोधकर्ताओं और इतिहास में रुचि रखने वालों के लिए एक मूल्यवान संसाधन प्रदान करते हैं। रज़ा लाइब्रेरी में दुर्लभ और उत्कृष्ट कला चित्रों को समर्पित एक अलग खंड है। ये कलाकृतियाँ मुगल लघुचित्र, राजस्थानी और पहाड़ी चित्रकला सहित विभिन्न विषयों को दर्शाती हैं, जो भारत की समृद्ध कलात्मक विरासत को प्रदर्शित करती हैं। इसके अलावा रज़ा लाइब्रेरी में एक सुसज्जित वाचनालय, और संदर्भ अनुभाग है जहाँ विद्वानों को डिजिटल संसाधनों तक पहुंच के साथ अनुसंधान के लिए एक अनुकूल वातावरण प्राप्त होता है। यह पुस्तकालय अकादमिक गतिविधियों का समर्थन करता है और विविध बौद्धिक क्षेत्रों की खोज को प्रोत्साहित करता है।
रज़ा लाइब्रेरी में सुलेख और मुद्राशास्त्र को समर्पित विशिष्ट अनुभाग भी हैं। यहाँ मौजूद सुलेख की जटिल कलात्मकता किसी को भी आश्चर्यचकित कर सकती है, जबकि प्राचीन सिक्कों की एक विविध श्रृंखला से मुद्राशास्त्री भी अपने दांतों तले उंगलियां चबा सकते हैं। रज़ा लाइब्रेरी में बच्चों की किताबों के व्यापक संग्रह से भरा एक समर्पित अनुभाग है, जो कम उम्र से ही साहित्य की खोज को प्रोत्साहित करता है।
नाजुक पांडुलिपियों की दीर्घायु सुनिश्चित करने के लिए, रज़ा लाइब्रेरी में एक सुसज्जित संरक्षण प्रयोगशाला है। जहाँ प्रशिक्षित विशेषज्ञ नाजुक पन्नों को पुनर्स्थापित और संरक्षित करने के लिए लगन से कार्य करते हैं, जिससे आने वाली पीढ़ियों के लिए इन अमूल्य संसाधनों का उपलब्ध होना सुनिश्चित हो सके। किताबों और पांडुलिपियों के अलावा, रज़ा लाइब्रेरी में दुनिया भर से दुर्लभ पत्रिकाओं का एक व्यापक संग्रह है। ये पत्रिकाएँ विभिन्न युगों के बौद्धिक विमर्श और सांस्कृतिक विकास की झलक प्रस्तुत करती हैं। रज़ा लाइब्रेरी में मानचित्रों का एक उल्लेखनीय संग्रह है, जिसमें प्राचीन मानचित्र अभिलेख से लेकर समकालीन भू-राजनीतिक मानचित्र तक शामिल हैं। ये मानचित्र भौगोलिक ज्ञान के विकास को दर्शाते हैं और ऐतिहासिक सीमाओं और क्षेत्रों में अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं।
सांस्कृतिक और शैक्षिक पहलों को बढ़ावा देने के लिए, रज़ा लाइब्रेरी द्वारा प्रदर्शनियों, सेमिनारों और कार्यशालाओं का आयोजन भी किया जाता है। ये आयोजन पुस्तकालय के भीतर संरक्षित समृद्ध विरासत से जुड़ने के लिए विद्वानों, छात्रों और आम जनता के लिए एक पारस्परिक मंच प्रदान करते हैं। अपने विशाल संग्रह और ज्ञान को संरक्षित करने के प्रति समर्पण के कारण रज़ा लाइब्रेरी भारत के सबसे बड़े पुस्तकालयों में से एक है। इसका महत्व इसके भौतिक स्थान से परे तक फैला हुआ है, क्योंकि यह ज्ञान और आत्मज्ञान के प्रतीक के रूप में प्रत्यक्ष है।
1949 में रामपुर राज्य का भारत संघ में विलय होने के बाद पुस्तकालय का नियंत्रण और प्रबंधन 6 अगस्त 1951 को रज़ा अली खान बहादुर द्वारा गठित एक ट्रस्ट द्वारा किया जाने लगा। यह प्रबंधन जुलाई, 1975 तक जारी रहा। प्रो. एस. नुरुल हसन की सलाह पर पुस्तकालय को वित्तीय अनुदान और बेहतर प्रबंधन प्रदान करने के विभिन्न उपाय किए गए।
परिणामस्वरूप पुस्तकालय को 1 जुलाई 1975 को संसद के एक अधिनियम के तहत भारत सरकार द्वारा अपने अधिकार में ले लिया गया। बाद में नवाब सैयद मुर्तजा अली खान को आजीवन नव निर्मित बोर्ड का उपाध्यक्ष नामित किया गया। 8 फरवरी 1982 को उनकी मृत्यु के साथ ही उपाध्यक्ष का पद स्वतः ही समाप्त हो गया। अब यह पुस्तकालय भारत सरकार के संस्कृति विभाग के तहत राष्ट्रीय महत्व के एक स्वायत्त संस्थान का दर्जा रखता है और पूरी तरह से केंद्र सरकार द्वारा वित्त पोषित है। शिक्षा मंत्रालय द्वारा पुस्तकालय को 'राष्ट्रीय महत्व के पुस्तकालय' के रूप में नामित किया गया है।यह पुस्तकालय 2003 में स्थापित राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन के तहत एक नामित 'पांडुलिपि संरक्षण केंद्र' (Manuscript Conservation Centre' (MCC) भी है।

संदर्भ
https://tinyurl.com/bdhutt4h
https://tinyurl.com/4347haws
https://tinyurl.com/vrmdma8c

चित्र संदर्भ

1. रामपुर की रज़ा लाइब्रेरी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. रज़ा लाइब्रेरी के एक श्याम श्वेत चित्र को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. भीतर से रामपुर की रज़ा लाइब्रेरी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. रज़ा लाइब्रेरी में चित्र प्रदर्शनी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. रज़ा लाइब्रेरी में प्रदर्शित चाकुओं को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)

***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • अपने युग से कहीं आगे थी विंध्य नवपाषाण संस्कृति
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:28 AM


  • चोपता में देखने को मिलती है प्राकृतिक सुंदरता एवं आध्यात्मिकता का अनोखा समावेश
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:29 AM


  • आइए जानें, क़ुतुब मीनार में पाए जाने वाले विभिन्न भाषाओं के शिलालेखों के बारे में
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:22 AM


  • जानें, बेतवा और यमुना नदियों के संगम पर स्थित, हमीरपुर शहर के बारे में
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:31 AM


  • आइए, अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस के मौके पर दौरा करें, हार्वर्ड विश्वविद्यालय का
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:30 AM


  • जानिए, कौन से जानवर, अपने बच्चों के लिए, बनते हैं बेहतरीन शिक्षक
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:17 AM


  • आइए जानें, उदासियों के ज़रिए, कैसे फैलाया, गुरु नानक ने प्रेम, करुणा और सच्चाई का संदेश
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:27 AM


  • जानें कैसे, शहरी व ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं के बीच अंतर को पाटने का प्रयास चल रहा है
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:20 AM


  • जानिए क्यों, मेरठ में गन्ने से निकला बगास, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के लिए है अहम
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:22 AM


  • हमारे सौर मंडल में, एक बौने ग्रह के रूप में, प्लूटो का क्या है महत्त्व ?
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:29 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id