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कैसा रहा है, राष्ट्रीय विरासत को संजोए रखने वाले भारतीय डाक टिकटों का इतिहास?

लखनऊ

 15-12-2023 10:00 AM
सिद्धान्त I-अवधारणा माप उपकरण (कागज/घड़ी)

आपने पत्र व्यवहार करते समय, कई डाक टिकट देखे होंगे। परंतु, क्या आप जानते हैं कि, हमारे देश भारत में ‘भारतीय डाक टिकट’ का इतिहास, वर्ष 1852 में, कागज़ी डाक टिकट की शुरुआत के साथ शुरू हुआ था। इससे पहले वर्ष 1774 में, डाक के भुगतान हेतु, तांबे के टोकन पेश किए गए थे। हालांकि, उनका उपयोग सुविधाजनक नहीं था। इसलिए,पूर्व भुगतान के लिए किसी अन्य टोकन की आवश्यकता महसूस की गई थी।उसी समय, इंग्लैंड (England) में पेनी पोस्टेज(Penny Postage) की सफलता के कारण, सिंध के आयुक्त– सर बार्टल फ्रेर (Sir Bartel Frere) ने 1852 में, पहली बार अपने प्रांत के लिए कागज़ी टिकट पेश किए थे। हालांकि, अक्टूबर, 1854 में नियमित भारतीय डाक टिकटों की शुरुआत के बाद, इन्हें खारिस्त कर दिया गया था। परंतु, फिर भी केवल सिंध प्रांत के लिए अधिकृत, इनका उपयोग काफ़ी समय तक जारी रहा। इसके पश्चात, 1854 में ब्रिटिश भारत के लिए डाक टिकट जारी करने और उन्हें भारत में मुद्रित करने का निर्णय लिया गया। डाक टिकटों के लिए पहले डिज़ाइन में, कलकत्ता टकसाल के कर्नल फोर्ब्स(Col. Forbes) द्वारा ‘शेर और ताड़ के पेड़’ को दिखाने का प्रयास किया गया था। यह एक साहसी और कल्पनाशील डिज़ाइन था; लेकिन, किसी कारणवश इसका उपयोग कभी भी नहीं किया गया। सर्वेयर जनरल(Surveyor General) के कार्यालय द्वारा 1854 में डिजाइन और मुद्रित किए जाने वाले अगले टिकट, रानी विक्टोरिया(Queen Victoria) की युवा फोटो दिखाते थे, तथा आधे आने (प्राचीन पैसे का एक माप) वाले नीले लिथोग्राफ(Lithograph) वाले टिकट थे।
इसके साथ ही, किंग एडवर्ड VII (King Edward VII), किंग जॉर्ज V(King George V) और किंग जॉर्ज VI(King George VI) को चित्रित करने वाले, टिकटों की एक लंबी श्रृंखला भी सामने आई थीं। जबकि, 1854 में जारी किए गए पहले भारतीय डाक टिकटों पर ‘इंडिया पोस्टेज’ शीर्षक था। एवं, उसी वर्ष इस शीर्षक को ‘ईस्ट इंडिया पोस्टेज(East India Postage)’ में बदल दिया गया। बाद में, 1882 में इसे फिर से बदलकर ‘इंडिया पोस्टेज’ कर दिया गया। और, यह 1962 तक जारी रहा। नवंबर, 1962 से, ‘इंडिया पोस्टेज’ के स्थान पर एक नया शीर्षक ‘भारत’/‘INDIA’ पेश किया गया।हालांकि, दिसंबर, 1962 व जनवरी 1963 में जारी किए गए तीन टिकटों पर, पहले वाला ही शीर्षक अंकित था। 1854 में रानी विक्टोरिया के टिकट जारी किए गए थे, जो प्रथा 15 अगस्त, 1947 को हमारे देश भारत को स्वतंत्रता मिलने के साथ, समाप्त हो गई। 21 नवंबर, 1947 में जारी की गई,स्वतंत्र भारत की पहली टिकटों की संख्या तीन थी। उन पर अशोक स्तंभ, भारतीय राष्ट्रीय ध्वज और एक विमान का चित्रण किया गया था। तब से आज तक, भारत में 3000 से अधिक डाक टिकट जारी किए गए हैं।
1957 तक, जब भारतीय रुपये का दशमलवीकरण किया गया, तब तक टिकट जारी करना, आनो में शुरु था। फिर, रुपए को 100 ‘नए पैसे’ में विभाजित किया गया। तब, 1964 में, नाम से प्रारंभिक “नए” यह शब्द, हटा दिया गया। मुद्रा में यह परिवर्तन, उस समय के टिकटों के मूल्यवर्ग में परिलक्षित होता है। प्रारंभिक टिकटें विशेष अंक थे। जबकि, 1949 में 16 मूल्यों की पहली निश्चित “पुरातात्विक” श्रृंखला जारी की गई थी।
इन टिकटों से जुड़े कुछ अन्य तथ्य निम्नलिखित हैं:
१. जैसा कि हमने ऊपर पढ़ा, सिंध प्रांत के लिए, भारत में जारी किए गए पहले टिकट, “सिंडी डॉक्स (Scinde Dawks)” थे। इसके अलावा, २.सबसे दुर्लभ भारतीय टिकटों में 1854 में जारी हुआ, 4 आना का टिकट भी शामिल है।इस टिकट में, रानी विक्टोरिया का नीले रंग में रंगा सिर एक लाल फ्रेम के भीतर उल्टा डिजाइन किया गया था। ३.“आधिकारिक ओवरप्रिंट” (Official Overprint) के साथ, 1948 में 10 रूपए का गांधी टिकट जारी किया गया था। रानी विक्टोरिया का, और गांधी जी का यह टिकट, दोनों ही दुनिया में डाक टिकट संग्रह के लिए महत्वपूर्ण हैं। और,
४. चूंकि भारत अंग्रेज़ों के लिये एक बहुत महत्वपूर्ण उपनिवेश था, यहां पर्याप्त सरकारी बुनियादी ढांचे उपलब्ध कराये गए थे। जिसके कारण, आज तक टिकट संग्राहकों को आधिकारिक भारतीय टिकटों की एक विस्तृत श्रृंखला प्रदान की गई है, जिन पर “सेवा (Service)” ओवरप्रिंटेड या अंकित था। आज डाक टिकट, राष्ट्रीय विरासत और महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओं को मनाने, उनके स्मरण में और उन्हें बढ़ावा देने का एक तरीका है। यह राष्ट्र के एक राज–दूत, डाक प्रशासन की ब्रांड छवि और राष्ट्र की संप्रभुता के बयान के रूप में, एक महान भूमिका निभाते हैं। स्वतंत्रता के बाद, डाक टिकटों के माध्यम का उपयोग शुरू में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में, देश की उपलब्धियों के साथ-साथ पंचवर्षीय योजनाओं, इस्पात संयंत्रों, बांधों, जैसे विषयों को चित्रित करके, देश के सामाजिक-आर्थिक विकास को उजागर करने के लिए किया गया था। इसके बाद, टिकटों पर देश की समृद्ध सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत का प्रदर्शन किया गया और कला, वास्तुकला, शिल्प समुद्री विरासत, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, रक्षा और सिनेमाई विषयों पर कई खूबसूरत टिकट जारी किए गए। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के महान नेताओं को भी स्मारक टिकटों से सम्मानित किया गया है। साथ ही, चित्रकला, साहित्य, विज्ञान, संगीत, सामाजिक उत्थान आदि क्षेत्रों में अतुलनीय योगदान देने वाली विभूतियों को टिकटों के माध्यम से सम्मानित किया गया हैं। “डाक का प्रतीक” और “सांस्कृतिक दूत” के रूप में उनके दोहरे चरित्र को ध्यान में रखते हुए, डाक टिकटों को दो श्रेणियों में विभाजित किया गया हैं। पहली श्रेणी के टिकटों का, डाक शुल्क के भुगतान के प्रतीक के रूप में दैनिक उपयोग किया जाता है। इनमें, कम जटिल डिज़ाइन होते हैं, जिससे उनके निर्माण में न्यूनतम व्यय होता है, और वे बड़ी मात्रा में मुद्रित होते हैं। दूसरी ओर, सांस्कृतिक श्रेणी को अधिक सौंदर्यात्मक डिज़ाइनों के साथ डिज़ाइन और मुद्रित किया जाता है। वे सीमित मात्रा में निर्मित होते हैं, और डाक टिकट संग्रहकर्ताओं के बीच रुचि पैदा करते हैं।

संदर्भ
https://tinyurl.com/ypb8cte9
https://tinyurl.com/2wy9axtv
https://tinyurl.com/3a5h774j

चित्र संदर्भ
1. 1947 में जारी किए गए पहले भारतीय डाक टिकटों पर ‘इंडिया पोस्टेज’ शीर्षक था। को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. डाक टिकटों के लिए पहले डिज़ाइन में, कलकत्ता टकसाल के कर्नल फोर्ब्स(Col. Forbes) द्वारा ‘शेर और ताड़ के पेड़’ को दिखाने का प्रयास किया गया था। को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3.  रानी विक्टोरिया(Queen Victoria) की युवा फोटो दिखाता, आधे आने का, वर्ष 1854 का लिथोग्राफ डाक टिकट को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. 21 नवंबर, 1947 में जारी की गई,स्वतंत्र भारत की पहली टिकट को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. भारत में 2014 के टिकट पर बाबा आमटे को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)



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