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डिजिटलीकरण आपकी पढ़ने की आदतों और ध्यान अवधि को कैसे प्रभावित कर रहा है?

लखनऊ

 14-12-2023 10:15 AM
विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

आज के समय में कागज़ की किताबों से आने वाली मनोहारी सुगंध कहीं खो सी गई है। ऐसा शायद इसलिए हुआ है क्योंकि आज लोग सीखने और पढ़ने के लिए कागज़ के बजाय, ऑनलाइन वेबसाइट (Online Website) या डिजिटल रूप से उपलब्ध लिखित सामग्री पर अधिक निर्भर रहने लगे हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि, अध्ययनों से पता चलता है कि छात्र ऑनलाइन सामग्री की तुलना में किताबों के माध्यम से अधिक प्रभावी ढंग से सीखते हैं। कई शोधों में यह बात भी सामने आई है कि जो लोग ऑनलाइन पढ़ते हैं, उनकी ध्यान अवधि, कागज़ पर पढ़ने वाले लोगों की तुलना में कम होती है। ‘ध्यान अवधि’ का अर्थ है कि, “हम किसी कार्य पर बिना विचलित हुए कितनी देर तक ध्यान केंद्रित कर सकते हैं।” ध्यान अवधि हमारी शिक्षा और हमारे लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण होती है। बच्चों की ध्यान क्षमता उम्र के साथ बढ़ती जाती है। उदाहरण के तौर पर 2 साल के बच्चों के लिए ध्यान अवधि 7 मिनट और बड़े बच्चों तथा वयस्कों के लिए यह लगभग 20 मिनट तक हो सकती है। हमारी ध्यान अवधि हमारे 40 के दशक की शुरुआत में अपने चरम पर होती है और फिर धीरे-धीरे कम होने लगती है।
हालांकि इंटरनेट के अलावा भी हमारी ध्यान की अवधि को कई कारक प्रभावित कर सकते हैं, जिनमें हमारा आहार, व्यायाम, मानसिक स्वास्थ्य और हमारा पसंदीदा काम भी शामिल हैं। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि पिछले 15 वर्षों में हमारी ध्यान अवधि जो सन 2000 में 12 सेकंड थी, वह आज घटकर केवल 8.25 सेकंड रह गई है। ऐसा संभवतः हमारी बढ़ती डिजिटल जीवनशैली के कारण हो सकता है। आज स्मार्टफोन (Smartphones), टैबलेट (Tablets), मुफ्त वाई-फाई (Free Wi-Fi) और विश्वसनीय 4जी (Reliable 4G) के तेज़ी से बढ़ते प्रसार के कारण, हम हमेशा इंटरनेट से जुड़े रहते हैं। कैफे (Cafes), सुपरमार्केट (Supermarkets), बस या ट्रेन (Trains) जैसे किसी सार्वजनिक स्थान पर भी इंटरनेट हमेशा उपलब्ध होने लगा है। 2011 में किये गए एक अध्ययन से पता चला कि यूके (UK) के एक इंटरनेट उपयोगकर्ता ने केवल एक महीने में 81 वेबसाइटों पर 2,518 वेब पेज देख डाले थे। इस आधार पर आप कल्पना कर सकते हैं कि आज के समय में यह संख्या कितनी अधिक बढ़ चुकी होगी। हालांकि ऑनलाइन पाठकों की संख्या में विस्तार होना ऑनलाइन व्यवसायों के लिए अच्छा है, क्योंकि प्रत्येक नई तकनीक के साथ उनके दर्शकों की संख्या भी बढ़ रही है, और अब उनके ग्राहक उन तक पूरे दिन और किसी भी समय पहुंच सकते हैं।
हालांकि इंटरनेट से हमेशा जुड़े रहने और यहां पर इतनी अधिक सामग्री उपलब्ध होने के कारण लोगों की एकाग्रता और ध्यान केंद्रित करने की क्षमता गंभीर रूप से प्रभावित हो रही है। अमेरिका में हाल ही में हुए एक अध्ययन से पता चलता है कि भले ही आज छात्र बहुत सारी जानकारी, तुरंत हासिल कर सकते हैं, लेकिन इसके बावजूद उनकी ध्यान केंद्रित करने की क्षमता कम हो रही है, साथ ही वे विषयों का गहराई से विश्लेषण नहीं करना चाहते या यूं कहें कि नहीं कर पा रहे हैं। आज के इंटरनेट उपयोगकर्ता "तत्काल संतुष्टि और त्वरित समाधान" की दुनिया में रहते हैं, जिसके कारण वे बहुत जल्दी अधीर हो रहे हैं और अधिक गहराई से नहीं सोच पा रहे हैं। हैरानी की बात है कि आज एक औसत आदमी आमतौर पर किसी वेबसाइट पर केवल आठ सेकंड तक ध्यान केंद्रित कर पा रहा है। इंटरनेट के युग ने हमारी ध्यान अवधि पर गहरा असर डाला है। इसने हमारे शरीर और दिमाग, दोनों की कार्यशैली को प्रभावित किया है। इंटरनेट हमारी याददाश्त, ध्यान केंद्रित करने की अवधि और हमारी नींद के पैटर्न पर भी प्रभाव डाल रहा है। आपको जानकर हैरानी होगी कि प्रौद्योगिकी के आदी होने के कारण, जो लोग प्रौद्योगिकी का अत्यधिक या दुरुपयोग करते हैं उनके मस्तिष्क के पैटर्न और रसायन विज्ञान, मादक द्रव्यों के आदी लोगों के ही समान हो जाते हैं। वास्तव में, तकनीकी लत वाले लोगों के मस्तिष्क का स्कैन शराब और भांग के आदी लोगों के मस्तिष्क स्कैन के समान ही होता है।
आज वैज्ञानिक यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि बच्चों के लिए डिजिटल स्क्रीन (Digital Screen) और पारंपरिक किताबों के उपयोग को कैसे संतुलित किया जाए?
" बायलिट्रेट ब्रेन (Biliterate Brain)" शब्द का उपयोग उन बच्चों का वर्णन करने के लिए किया जाता है जो, डिजिटल और कागज़ी प्रिंट दोनों प्रारूपों में पढ़ सकते हैं। मैरीएन वुल्फ (Maryann Wolf) नामक एक न्यूरोसाइंटिस्ट (Neuroscientist), स्क्रीन और कागज़ पर पढ़ने के फायदों और नुकसानों पर शोध कर रही हैं। उनका मानना है कि “विस्तृत और धीमी गति से पढ़ने के लिए डिजिटल की तुलना में कागज़ी प्रिंट पाठन बेहतर साबित होता है। हालांकि स्क्रीन कुछ कौशल सिखाने के लिए उपयोगी हो सकती हैं, लेकिन बच्चों को पढ़ना सीखने के लिए केवल स्क्रीन पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। कई शोधों में यह सामने आया है कि भले ही डिजिटल रूप से पढ़ने वाले छात्र सीधे प्रश्नों का उत्तर अच्छी तरह से दे सकते हैं, लेकिन प्रिंट में पढ़ने वाले लोग जटिल प्रश्नों के साथ बेहतर प्रदर्शन करते हैं, जिनके लिए गहन सोच की आवश्यकता होती है। ऑनलाइन सामग्री में वृद्धि के कारण ऑनलाइन वातावरण ने विश्वविद्यालय के छात्रों को अधिक पढ़ने और तेज़ी से पढ़ने के लिए प्रेरित किया। साथ ही इससे पाठ्य सामग्री को सरसरी तौर पर पढ़ने की उनकी क्षमता में भी सुधार हुआ। हालांकि, इसने पाठकों को कम धैर्यवान बना दिया है, और वे आसानी से विचलित हो जा रहे हैं। इसके अलावा डिजिटल पढाई से उनकी आंखों पर तनाव का अनुभव होने की संभावना भी अधिक हो गई। टैबलेट (Tablet) पर ईबुक (Ebook) पढ़ने वाले बहुत छोटे बच्चों पर रीच, याउ और वॉर्सचौएर के 2016 ( Reich, Yau And Warschauer (2016) के अध्ययन में यह बात सामने आई है कि, ध्वनि, एनिमेशन और गेम (Animation And Games) वाली ईबुक बच्चों का ध्यान भटका सकती हैं। बेहतर समझ और फोकस के लिए कागज़ी किताबें, डिजिटल किताबों से बेहतर हो सकती हैं। वीडियो और लिंक जैसी सुविधाएँ भी ध्यान भटका सकती है।

संदर्भ
http://tinyurl.com/4576rwka
http://tinyurl.com/4tnvjx9v
http://tinyurl.com/5e6apjmr
http://tinyurl.com/3md3t8x5
http://tinyurl.com/rjuu7h7v
http://tinyurl.com/umtmkknx

चित्र संदर्भ
1. पुस्तक से मोबाइल की ओर अग्रसरता को दर्शाता एक चित्रण (pexels)
2. मोबाइल चलाते व्यक्ति को दर्शाता एक चित्रण (pexels)
3. भारत में इंटरनेट उपयोगकर्ताओं को दर्शाता एक चित्रण (google)
4. मोबाइल चलाते बच्चे को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. पुस्तक बनाम ई-बुक को दर्शाता एक चित्रण (wallpaperflare)



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