मकर संक्रांति, एक लोकप्रिय शीतकालीन त्यौहार है, जिसे देश के अन्य हिस्सों में पोंगल, लोहड़ी और माघ बिहू आदि नामों से फ़सल त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। इस त्यौहार को तमिलनाडु में पोंगल, असम में बिहू, पंजाब में लोहड़ी, उत्तरी राज्यों में माघ बिहू और केरल में मकर विलाक्कू के रूप में मनाया जाता है। यह त्यौहार, जिसे अक्सर 'रबी फ़सल कटाई के त्यौहार' के रूप में मनाया जाता है, कृषि की प्रचुरता और भरपूर फ़सल के मौसम का प्रतीक है। क्या आप जानते हैं कि, दशहरा, जिसे विजयदशमी के नाम से भी जाना जाता है, खरीफ़ फ़सलों की कटाई के बाद, रबी फ़सलें उगाने की शुरुआत का प्रतीक है। इसके अलावा, नवरात्रि के दौरान भी फ़सलों से जुड़े कई अनुष्ठानों का पालन किया जाता है, उनमें से एक है पहले दिन मिट्टी के बर्तन में जौ बोना। तो आइए, आज ख़रीफ़ और रबी फ़सलों का दशहरा और नवरात्रि के त्यौहारों से संबंध को समझने का प्रयास करते हैं। इसके साथ ही, हम शरद नवरात्रि में जौ बोने के महत्व के बारे में जानेंगे और नवरात्रि के दौरान, नवपत्रिका अनुष्ठान पर कुछ प्रकाश डालेंगे। इस संदर्भ में, हम इस अनुष्ठान में उपयोग किए जाने वाले विभिन्न पौधों के बारे में जानेंगे। अंत में, हम चैत्र और शरद नवरात्रि के बीच अंतर के बारे में भी समझेंगे।
ख़रीफ़ और रबी की फ़सलों का दशहरे से संबंध:
हमारे देश भारत में मनाया जाने वाला विजयादशमी या दशहरे का त्यौहार, वास्तव में, दो उत्सवों का प्रतीक है, पहला रावण पर राम की जीत का, और दूसरा, राक्षस महिषासुर पर देवी दुर्गा की विजय का। दशहरा दस दिनों तक चलने वाला उत्सव है, जो पूरे देश में मनाया जाता है और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। क्या आप जानते हैं कि, धार्मिक महत्व होने के साथ-साथ, दशहरे का कृषि से भी महत्वपूर्ण संबंध है।
दशहरे के त्यौहार का कृषि कार्यों से बहुत गहरा संबंध है। यह त्यौहार, मौसम में बदलाव का भी संकेत देता है | यह मानसून के मौसम के समापन और सर्दियों के ठंडे मौसम की शुरुआत को भी दर्शाता है। किसान अक्सर दशहरे के बाद ख़रीफ़ फ़सल की कटाई शुरू करते हैं और रबी फ़सल बोने की तैयारी करते हैं। चूंकि किसान, दशहरे के बाद, ख़रीफ़ फ़सल की कटाई करते हैं, इसलिए इस अवधि के दौरान देश की मंडियों में दैनिक आवक आमतौर पर काफ़ी बढ़ जाती है। किसान अपने खेतों में ग्वार, कपास, सोयाबीन, चावल, मक्का आदि जैसी फ़सलों की कटाई करते हैं।
शरद नवरात्रि के दौरान, जौ बोने का महत्व:
चैत्र माह में मनाई जाने वाली नवरात्रि को चैत्र नवरात्रि के नाम से जाना जाता है। इस त्यौहार के दौरान, लोग माँ दुर्गा के नौ अवतारों - शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री - की पूजा करते हैं; । नवरात्रि के दौरान, कई रीति-रिवाजों का पालन किया जाता है, उनमें से एक है पहले दिन, मिट्टी के बर्तन में जौ बोना। नौ दिनों के दौरान पौधा बड़ा होता है जिसकी अष्टमी या नवमी को पूजा की जाती है और फिर किसी जलाशय में विसर्जित कर दिया जाता है। अधिकांश लोगों के मन में यह जिज्ञासा अवश्य उठ सकती है कि, नवरात्रि के पहले दिन, जौ क्यों बोया जाता है?
वास्तव में, इसके कई कारण हैं, जिनमें से कुछ निम्न प्रकार हैं:
मानसिक और भावनात्मक कल्याण: चूंकि इसे मां दुर्गा के चरणों के नीचे रखा जाता है, इसलिए यह भावनात्मक, मानसिक और आध्यात्मिक ऊर्जा को ठीक करने में मदद करता है। जब आप इसे नौ दिनों के बाद नवरात्रि के प्रसाद के रूप में खाते हैं, तो यह आपको आध्यात्मिक रूप से ऊपर उठाने में मदद करता है।
तेज़ी से फसल उगाना: प्रारंभिक सभ्यता के दौरान, लोगों ने सबसे पहले जौ की खेती की, क्योंकि यह सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली फसलों में से एक है।
आवश्यक विटामिन और खनिज: जौ में कई महत्वपूर्ण विटामिन होते हैं जो शरीर के लिए फ़ायदेमंद माने जाते हैं। आज बहुत से लोग, अपने घरों में जौ उगाते हैं।
एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर: जौ की घास, एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होती है। डॉक्टरों के अनुसार, इसमें आपके शरीर से धातु के विषाक्त पदार्थों को भी बाहर निकालने की क्षमता होती है।
भविष्यवाणी: पौधे के रंग और वृद्धि को देखकर अक्सर लोग आने वाले वर्ष में अपनी प्रगति की भविष्यवाणी करते हैं। लोगों का मानना है कि पौधे का रंग जितना अच्छा होगा और यह जितनी तेज़ गति से बढ़ेगा, उतनी ही तेज़ गति से उनकी प्रगति होगी।
शरद नवरात्रि के दौरान नवपत्रिका अनुष्ठान:
शरद नवरात्रि के दौरान, सबसे प्रतीकात्मक अनुष्ठानों में से एक 'नवपत्रिका' अनुष्ठान है। इस अनुष्ठान में, नौ अलग-अलग पौधों को एक साथ बांधा जाता है, जो नौ देवियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन नौ पौधों में आम तौर पर, बेल, केले , हल्दी, अनार, अरबी, अशोक, अरुम, जयंती के पत्ते, और चावल के धान, शामिल होते हैं। नवपत्रिका को दिव्य स्त्रीत्व और सभी जीवन रूपों के अंतर्संबंध का प्रतीक माना जाता है।
चैत्र और शरद नवरात्रि के बीच अंतर:
हमारे देश में नवरात्रि का त्यौहार, एक वर्ष में दो बार मनाया जाता है: चैत्र नवरात्रि, जो मार्च या अप्रैल में आती है, और शरद नवरात्रि, जो सितंबर या अक्टूबर में आती है। दोनों ही नवरात्रि में देवी दुर्गा की शक्ति की उपासना की जाती है। इन नौ दिनों के दौरान, हरियाली भी केंद्र स्तर पर होती है। चैत्र नवरात्रि, वसंत और नवीकरण का प्रतीक है, इसे कई राज्यों में हिंदू नव वर्ष की शुरुआत के रूप में भी मनाया जाता है, जबकि शरद नवरात्रि का उत्सव महिषासुर पर देवी दुर्गा की जीत की खुशी में मनाया जाता है। यह उत्सव, बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। इसके अलावा भी, चैत्र और शरद नवरात्रि में कुछ महत्वपूर्ण अंतर होता है जो निम्नलिखित है:
समय और महत्व:
चैत्र नवरात्रि, हिंदू वर्ष के चैत्र माह अर्थात मार्च-अप्रैल में आती है, और इसे कुछ क्षेत्रों में हिंदू नव वर्ष की शुरुआत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। यह नवरात्रि, वसंत के साथ भी शुरू होती है, जो नई शुरुआत और आध्यात्मिक नवीनीकरण का प्रतीक है। शरद नवरात्रि, मानसून के मौसम के समाप्त होते ही आश्विन माह अर्थात सितंबर-अक्टूबर में मनाई जाती है। यह शरद ऋतु में परिवर्तन और आगामी फ़सल के मौसम का प्रतीक है।
उत्सव: यद्यपि, चैत्र नवरात्रि का उत्सव, व्यापक रूप से मनाया जाता है, लेकिन यह उत्तरी और पश्चिमी भारत में विशेष रूप से लोकप्रिय है। महाराष्ट्र में इसे गुड़ी पड़वा, कश्मीर में नवरेह और आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक में इसे उगादि कहते हैं। अंतिम या, नौवें दिन, राम नवमी मनाई जाती है। शरद नवरात्रि, अधिक महत्वपूर्ण नवरात्रि मानी जाती है और यह, पूरे भारत में व्यापक रूप से मनाई जाती है। इसे महानवरात्रि के रूप में भी जाना जाता है। दसवां दिन, दशहरा, भगवान राम की जीत का प्रतीक है, जो बुराई के विनाश का प्रतीक है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/2rv67b3k
https://tinyurl.com/mrjybuen
https://tinyurl.com/43r5zx5b
https://tinyurl.com/mtsnspt4
चित्र संदर्भ
1. बारिश के मौसम में खेती को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. दशहरे को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. खेत में बैलों की सहायता से हल जोतते किसान को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. नवपत्रिका अनुष्ठान को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)