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साल 2020 में रामपुर के कोठी खास बाग का रहस्यमय और बहुचर्चित ‘स्ट्रांग रूम’ खोला गया था। लेकिन, वहां दरअसल कुछ भी नहीं था। शहर के स्थानीय लोगों ने दावा किया कि कोठी खास बाग से कई कीमती आभूषण 70 और 80 के दशक में, देश की सबसे बड़ी चोरी के रूप में गायब हो गए हैं। यूं तो कोठी खास बाग आज भी रामपुर में है, लेकिन इसने अपना प्राचीन गौरव खो दिया है। नवाब काज़िम अली खान ने दावा किया कि, उनकी चाची एवं मुर्तजा खान की पत्नी, आफताब जामिनी के पास आखिरी बार 1993 में उनकी मृत्यु तक, इस कमरे की चाबियां थीं। तथा उन्होंने अपने निधन से पहले, वहां से राजसी सामान बदल दिया होगा।
दरअसल, रामपुर की रियासत को सुरक्षित करने के बाद, 1774 ईसवी में रामपुर के पहले नवाब बने नवाब फैजुल्ला खान ने मुगल कुलीनों से दुर्लभ और मूल्यवान पांडुलिपियों के साथ-साथ, दुर्लभ रत्नों को भी इकट्ठा करना शुरू कर दिया था। फैजुल्ला खान के वंशज, नवाब हामिद अली खान (जन्म 1889- मृत्यु 1930) ने रामपुर किले के अंदर, एक शानदार दरबार महाकक्ष के साथ हामिद मंजिल महल भी बनवाया था, जिसमें एक समय में सोने का सिंहासन और रामपुर के नवाबों का सोने का हुक्का रखा हुआ था। हामिद मंजिल महल के शाही शयनकक्ष में नवाब का अलंकृत सोने का बिस्तर और चांदी की ड्रेसिंग टेबल (Dressing Table) भी थी। नवाब हामिद अली खान के उत्तराधिकारी, उनके बेटे नवाब रज़ा अली खान (जन्म 1930- मृत्यु 1956) थे।
रामपुर राज्य के तत्कालीन प्रधान मंत्री कर्नल जेड. एच. जैदी (Z. H. Zaidi) के विशेषज्ञ मार्गदर्शन में, रज़ा अली खान ने बड़ी संख्या में उद्योग स्थापित किए। इस कारण, रामपुर भारत में सबसे अधिक औद्योगीकृत राज्यों में से एक बन गया और इसकी आय तीन गुना हो गई। उद्योगों द्वारा उत्पन्न अपार धन से, नवाब रज़ा अली खान ने खासबाग महल का पुनर्निर्माण किया, जिससे यह भारत का पहला वातानुकूलित महल बन गया। महल के केंद्र में शाही ‘खजाना तिजोरी ' (Treasure Vault) थी।
नवाब रज़ा अली खान ने रामपुर आभूषण संग्रह में भी काफी वृद्धि की। इसमें भारी मात्रा में, अमूल्य माणिक, दुर्लभ पन्ने और हीरे शामिल थे। गहनों के कमरे ‘स्ट्रांगरूम’ (Strong room) की सामग्री या आभूषणों के बारे में केवल नवाब और कोष अधिकारी को ही जानकारी थी। जबकि, एकमात्र व्यक्ति जिन्हें इस खजाने की तिजोरी का दौरा कराया गया था, वह भारत के तत्कालीन वाइसरॉय (Viceroy) थे।
1942 में, रामपुर के युवराज मुर्तजा अली खान वाइसरॉय लॉर्ड माउंटबेटन (Lord Mountbatten) के सहयोगी थे। अतः रामपुर की उनकी एक यात्रा के दौरान, उन्हें रामपुर शाही तिजोरी के अंदर ले जाया गया, जिसका उन्होंने अपनी डायरी में विस्तृत विवरण लिखा है।
रामपुर के नवाबों की तिजोरी में विशेष रूप से ध्यान आकर्षित करने वाला आभूषण ‘शाही हार’ था। इसके बारे में, माउंटबेटन का दावा है कि, इसमें चार शानदार गोलकोंडा हीरे जड़े थे, जिन्हें वह ‘एंपरेस ऑफ इंडिया’ (Empress of India)’, ‘क्लोंडाइक (Klondyke)’ और अन्य दो हीरो को ‘द ट्विन्स (The Twins)’ नाम देते हैं। दिलचस्प बात यह है कि इन हीरों का अन्य कहीं भी कोई संदर्भ नहीं मिलता है, और न ही किसी आभूषण इतिहासकार ने इनका उल्लेख किया है। माउंटबेटन का रामपुर के मोतियों का वर्णन भी उतना ही चौंका देने वाला है, जिसमें तीन मोतियों के हार शामिल हैं। इनमें विलक्षण मोती थे जो उनके अंगूठे के नाखून जितने बड़े थे।
रामपुर के नवाबों के पास वास्तव में, दस हजार से कुछ अधिक रत्न थे। लेकिन वास्तव में, सबसे अधिक आकर्षक आभूषणों में हीरे, पन्ने, माणिक आदि के आभूषण शामिल थे। साथ ही, इनमें पुष्प हार, मुकुट, हार, कंगन, अंगूठियां, कान की बालियां, एपॉलेट (Epaulettes) और पुगारी आभूषण शामिल थे। 1947 के एक मूल्यांकन के अनुसार, इस पूरे संग्रह का मूल्य 3.5 करोड़ रुपये था!
वर्ष 1966 में नवाब रजा अली खान की मृत्यु के बाद उनके ताज तथा आभूषण समेत कई अन्य कीमती आभूषण, उनके वंशजों को सौंप दिए गए एवं रामपुर के कोठी खास बाग में रख दिए गए, जहां ये मुकुट व आभूषण 1966 तक सुरक्षित थे। जबकि, बाद में अवैध तस्करी के कारण ये मुकुट भारत से लंदन (London) पहुंच गए, जहां पर नीलामी कंपनी क्रिस्टीज (Christies) द्वारा उनकी नीलामी की गई।
रामपुर के गहनों के संबंध में, भारत के राष्ट्रीय अभिलेखागार के एक रिकॉर्ड के अनुसार, सात वस्तुओं को ‘विरासत’ के रूप में सूचीबद्ध किया गया था, जबकि बाकी आभूषण उनकी पत्नी और सात बच्चों के बीच वितरित किए गए थे।
हमनें रामपुर के नवाबी आभूषणों में गोलकोंडा हीरों का जिक्र पाया। क्या आप जानते हैं कि सदियों से दक्कन का क्षेत्र दुनिया में ‘हीरे की राजधानी’ के नाम से विख्यात रहा है। दुनिया के अधिकांश शानदार और बड़े से बड़े हीरों का खनन दक्कन (वर्तमान तेलंगाना और आंध्र प्रदेश राज्यों का क्षेत्र) के मध्य में स्थित गोलकोंडा में किया गया था। दुनिया की कुछ सबसे प्रचुर हीरे की खदानें पेन्नार, कृष्णा और गोदावरी नदियों के किनारे थी। मुख्य रूप से कडप्पा, अनंतपुर, बेल्लारी, कुरनूल, गुंटूर, महबूबनगर, कोल्लूर, गोलापिल्ली, एलुरु और नंद्याला के किनारे ये खाने विकसित हुई थी। कई विदेशी यात्रियों और योद्धाओं ने भी इन रत्नों की तारीफ की है।
रत्न सदियों से, किसी शासक की शक्ति, प्रतिष्ठा और संपन्नता को दर्शाने में उल्लेखनीय भूमिका निभाते रहे हैं। दुनिया के सबसे प्रसिद्ध हीरों में से एक, कोहिनूर हीरा, जो अब ब्रिटिश शाही परिवार (British Royal Family) के स्वामित्व में है, एक समय काकतीय राजवंश के स्वामित्व में था, जिन्होंने लगभग एक हजार साल पहले तेलंगाना पर शासन किया था। काकतीयों के शाही संरक्षण के तहत, कोहिनूर, एक हिंदू देवी भद्रकाली को समर्पित था। और इसीलिए, इसे भद्रकाली मंदिर में रखा गया था। लेकिन, जैसे-जैसे राजनीतिक विजय और सत्ता के खेल के उतार-चढ़ाव ने समय की रेत पर अपनी छाप छोड़ी, कोहिनूर को छल द्वारा भारत से बाहर भेज दिया गया।
विवादों से घिरे, हमारे रामपुर का खजाना भारत की आभूषण विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। हमें उम्मीद है कि इन खजानों की एक झलक से आप में रामपुर के अतीत का अध्ययन करने में नई रुचि पैदा होगी।
संदर्भ
https://tinyurl.com/e65nba5n
https://tinyurl.com/4p6b29rw
https://tinyurl.com/bdhunmfe
https://tinyurl.com/24pxfycy
चित्र संदर्भ
1. रामपुर के खासबाग महल और आभूषणों को दर्शाता एक चित्रण (Prarang)
2. रामपुर के खासबाग महल को दर्शाता एक चित्रण (Prarang)
3. स्वर्णिम आभूषणों को दर्शाता एक चित्रण (rawpixel)
4. खजाने की तिजोरी को दर्शाता एक चित्रण (pxhere)
5. हीरे की अंगूठी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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