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विश्व की सबसे बड़ी छिपकली – कोमोडो ड्रैगन अब क्यों है विलुप्ति की राह पर?

लखनऊ

 03-10-2023 09:40 AM
रेंगने वाले जीव

छोटे द्वीपों पर महाद्वीपीय प्रजातियों की तुलना में जानवरों और पक्षियों की प्रजातियों का इंसानों द्वारा विलुप्त होना आम बात है। यूरोपीय लोगों के संपर्क में आने के कारण, दुनिया भर में विलुप्त हो चुकी पक्षियों की कुल 94 प्रजातियों में से केवल 9 प्रजातियां ही महाद्वीपीय थी, अर्थात, 85 पक्षी प्रजातियां छोटे-छोटे द्वीपों से संबंधित थी। द्वीपों पर इनकी विलुप्ति के लिए ज़िम्मेदार कुछ कारण वनों की कटाई, वनों में आग, चरने वाले स्तनधारियों का वन भ्रमण, खेती और खरपतवार पौधों का बढ़ना आदि हैं। इसके अलावा, द्वीपीय प्रजातियां मानव उपनिवेशीकरण से पहले भी अपनी कम आबादी, प्रतिबंधित आनुवंशिक विविधता तथा संकीर्ण सीमाओं के कारण भी विलुप्त होने की उच्च दर का सामना करती रही हैं। साथ ही, मानव–जनित भूमि परिवर्तन इन प्रजातियों के महत्वपूर्ण आवासों को नष्ट कर देते हैं, जिससे दुनिया भर में द्वीपीय प्रजातियों को भारी नुकसान पहुंचता है।
विलुप्त होने की कगार पर पहुंची, एक द्वीपीय प्रजाति कोमोडो ड्रैगन (Komodo dragon) है जिसे कोमोडो मॉनिटर (Komodo monitor) के नाम से भी जाना जाता है। कोमोडो ड्रैगन छिपकली की एक प्रजाति है, जो कोमोडो, रिनका (Rinca), फ्लोरेस (Flores), कोमोडो द्वीप और गिली मोटांग (Gili Motang) के इंडोनेशियाई (Indonesia) द्वीपों के लिए स्थानिक है। उपरोक्त द्वीपों के अलावा कोमोडो ड्रेगन इंडोनेशिया के पाडर (Padar) द्वीप पर भी पाई जाती थी, हालांकि, 1970 के दशक के बाद से, इन्हें पाडर द्वीप पर नहीं देखा गया है, क्योंकि वे विलुप्त हो गई थी । इस छिपकली का वैज्ञानिक नाम वेरैनस कोमोडोएन्सिस (Varanus komodoensis) है। क्या आप जानते हैं कि यह छिपकली की सबसे बड़ी एवं वजनी मौजूदा जीवित प्रजाति है। कोमोडो ड्रेगन ज़हरीली दंश वाली छिपकलियों की एक प्रजाति है। ये छिपकलियां अपने शिकार या भोजन का पता लगाने के लिए, अपनी गंध क्षमता का उपयोग करती हैं। ये हवा की जांच करने के लिए, अपनी लंबी तथा कांटेदार जीभ का उपयोग करती हैं। साथ ही, आसानी से शिकार करने के लिए इनके पास बड़े, घुमावदार एवं दांतेदार दांत भी होते हैं। इनकी पूंछ लंबी होती है तथा गर्दन फुर्तीली होती है। वयस्क कोमोडो ड्रैगन अलग-अलग, हालांकि, बड़े पैमाने पर, लगभग एक समान पत्थरीले रंग की होती हैं, जबकि किशोर छिपकलियां अधिक जीवंत रंग और स्वरूप प्रदर्शित कर सकती हैं। कोमोडो ड्रैगन मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय सवाना (Savanna) जंगलों में पाई जाती हैं। इसके साथ ही वे, समुद्र तट से लेकर द्वीपों की चोटियों पर भी व्यापक रूप से फैली हुई हैं। इन छिपकलियों का वजन आमतौर पर लगभग 70 किलोग्राम तक होता है। लेकिन, अब तक ज्ञात सबसे बड़ी छिपकली का वजन लगभग 166 किलोग्राम था जो 10.3 फुट (3.13 मीटर) लंबी थी। नर कोमोडो ड्रैगन मादाओं ड्रैगन की तुलना में बड़े और भारी होते हैं।
आज जंगलों में, मानवीय गतिविधियों के कारण इनकी ऐतिहासिक एवं प्राकृतिक सीमा सिकुड़ गई है, तथा जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से यह सीमा और अधिक सिकुड़ने की संभावना है। इस कारण, इन्हें ‘प्रकृति के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ’ (International Union for Conservation of Nature) की लाल सूची (Red list) द्वारा लुप्तप्राय प्रजाति के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। वे इंडोनेशिया के कानून के तहत भी संरक्षित हैं। साथ ही, इनके सुरक्षा प्रयासों में सहायता के लिए, इंडोनेशिया में 1980 में ‘कोमोडो राष्ट्रीय उद्यान’ की स्थापना की गई थी। क्या आप जानते हैं कि कोमोडो ड्रैगन से भी बड़ी मेगैलैनियाप्रिस्का (Megalaniaprisca) थी, जो अब विलुप्त हो चुकी है। इसे कोमोडो ड्रैगन से संबंधित माना जाता है, और यह विश्व में अब तक ज्ञात सबसे बड़ी छिपकली थी। इस प्रागैतिहासिक विशाल छिपकली की लंबाई 3.5 मीटर से 7 मीटर तक थी और इसका वजन 971 से 940 किलोग्राम के बीच होता था। मेगैलैनिया प्लेइस्टोसिन ऑस्ट्रेलिया (Pleistocene Australia) में खुले जंगलों और घास के मैदानों सहित विभिन्न प्रकार के आवासों में रहती थी। अनुमान लगाया जाता है कि यह छिपकली भी अपने संबंधी कोमोडो ड्रैगन की तरह, भोजन के लिए बड़े स्तनधारियों, सांपों, अन्य सरीसृपों और पक्षियों का शिकार करती होगी। वैसे तो, हमारे देश भारत में भी वेरैनस सॉल्वेटर (Varanus salvator) छिपकली, जो कोमोडो ड्रैगन की संबंधी है, पाई जाती है। यह छिपकली मूल रूप से भारत के अंडमान और निकोबार द्वीप समूह सहित दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया (Asia) में पाई जाती है। भारत में इन छिपकलियों की चार प्रजातियां पाई जाती है जिनमें बंगाल मॉनिटर छिपकली(वैज्ञानिक नाम - वेरैनस बेंगालेंसिस (Varanus benghalensis), मरुस्थलीय मॉनिटर (वैज्ञानिक नाम – वेरैनस ग्रिसियस (Varanus griseus), येलो मॉनिटर (वैज्ञानिक नाम - वेरैनस फ्लेवेसेंस (Varanus flavescens) और एशियन वॉटर मॉनिटर (वैज्ञानिक नाम - वेरैनस सॉल्वेटर (Varanus salvator) शामिल हैं। बंगाल मॉनिटर भारत के कई हिस्सों में पाई जाती है। यह राजस्थान के रेगिस्तान से लेकर, सदाबहार वनों तक और यहां तक कि आगरा और दिल्ली-एनसीआर (NCR) जैसे घनी आबादी वाले शहरी इलाकों में भी पाई जा सकती हैं। लगभग 2 मीटर की लंबाई तक बढ़ने वाली, वॉटर मॉनिटर दुनिया के सबसे बड़े सरीसृपों में से एक है, जबकि, इसकी स्थलीय संबंधी बंगाल मॉनिटर लगभग 1.75 मीटर की लंबाई तक बढ़ सकती है। इन सभी चार छिपकलियों को भारत के ‘वन्यजीव संरक्षण अधिनियम’ की अनुसूची के तहत सूचीबद्ध किया गया है। आखिरी बार, लाल सूची में बंगाल मॉनिटर्स का मूल्यांकन 2009 में किया गया था।
भारत में भी, मांस, वसा और त्वचा के लिए इस छिपकली का शिकार किया जाता है। इनसे जुड़े अंधविश्वासों के चलते, इनके जननांगों का भी व्यापार किया जाता है। साथ ही, इनसे मिलने वाले इन उत्पादों का चिकित्सा क्षेत्र में भी उपयोग किया जाता है। इन सभी कारणों के चलते इनकी संख्या में तेजी से कमी आ रही है।
अब ये छिपकलियां आसानी से दिखाई नहीं देती हैं। शहरीकरण या गहन खेती हेतु इन छिपकलियों के आवास को व्यापक स्तर पर नष्ट किया गया है। मॉनिटर छिपकलियों से जुड़े विभिन्न मिथकों और अंधविश्वासों के कारण, उन्हें मानव-वन्यजीव संघर्ष और वन्यजीव तस्करी जैसे मुद्दों का खामियाजा भुगतना पड़ा है।

संदर्भ
https://tinyurl.com/ybjbmckd
https://tinyurl.com/3pr6uhyu
https://tinyurl.com/4rkc8c8v
https://tinyurl.com/3r6maxxf
https://tinyurl.com/3v5j83sp

चित्र संदर्भ

1. पालतू कोमोडो ड्रैगन को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. कोमोडो ड्रैगन को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. आपस में झगड़ते कोमोडो ड्रैगन को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. वेरैनस सॉल्वेटर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. बंगाल मॉनिटर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)



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