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आइए, जानते हैं “शटलकॉक” से जुड़ी कुछ रोचक बातें

लखनऊ

 01-09-2023 09:27 AM
य़ातायात और व्यायाम व व्यायामशाला

अधिकांश लोगों को बैडमिंटन खेलने का बहुत शौक होता है, किंतु क्या आप जानते हैं कि इस खेल में उपयोग की जाने वाली शटलकॉक (Shuttlecock) का इतिहास क्या है? शटलकॉक, जिसे बर्डी (Birdie) या शटल (Shuttle) के नाम से भी जाना जाता है, बैडमिंटन खेल का एक विशेष सहायक उपकरण है। इसे बनाने के लिए पंखों या कृत्रिम सामग्री को कॉर्क या रबर से बने आधार या तल से जोड़ा जाता है, और परिणामस्वरूप एक शंक्वाकार आकृति हमें प्राप्त होती है। 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व के एक प्राचीन चीनी खेल “जियानज़ी” (Jianzi), में एक छोटे शटलकॉक को पैर से उछाल कर खेला जाता था। यह संभवतः फुटबॉल के जैसे ही एक खेल कुजू (Cuju) से विकसित हुआ है। कुजू को सैन्य प्रशिक्षण के लिए एक खेल के रूप में खेला जाता था। तो आइए, लेख के जरिये, इस बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं। माना जाता है, कि जियानज़ी का पहला ज्ञात संस्करण चीन (China) में उत्पन्न हुआ था, जो 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व का है। चीन में इसे tījiànzi कहा जाता है, जिसमें tī का मतलब “किक” तथा jian zi का मतलब छोटी शटलकॉक है, अर्थात पूरे शब्द का अर्थ “छोटी शटल कॉक को किक” करना है। यूरोप (Europe) में शटलकॉक, द्वितीय विश्व युद्ध से पहले आ गई थी, जब जियांगक्सू (Jiangxu) प्रांत के एक चीनी एथलीट ने 1936 में बर्लिन (Berlin) के ओलंपिक खेलों में इसका प्रदर्शन किया था। इस प्रदर्शन से जर्मनी (Germany) और अन्य देश इतने प्रभावित हुए कि, उन्होंने इस खेल को सीखना और खेलना शुरू कर दिया। 1999 में अंतर्राष्ट्रीय शटलकॉक फेडरेशन (International Shuttlecock Federation) की स्थापना की गई, जिसके बाद से हर वर्ष “विश्व शटलकॉक चैंपियनशिप” का आयोजन किया जाने लगा। तब से ही दिन प्रति दिन इस खेल को अधिक मान्यता मिलती गई, इसके साथ ही वर्ष 2003 के दक्षिणपूर्वी एशियाई खेलों (Southeastern Asiatic games) में इसे एक खेल के रूप में शामिल कर लिया गया। औसतन, एक इकाई प्रतिदिन लगभग 600 शटलकॉक का उत्पादन करती है और उद्योगों द्वारा उत्पादित शटलकॉक की संख्या लगभग 20,000 प्रतिदिन है। हालांकि, पिछले एक दशक में कृत्रिम शटलकॉक के आयात ने शटलकॉक से जुड़े बाजार के परिदृश्य को बदल दिया है। मशीन से निर्मित शटलकॉक बेहतर गुणवत्ता के साथ-साथ सस्ती होती है, इसलिए, लोग प्राकृतिक रूप से बनी शटलकॉक को खरीदना कम कर रहे हैं। परिणामस्वरूप, जहां प्राकृतिक रूप से बनी शटलकॉक के उत्पादन में कमी आई, वहीं इस क्षेत्र से जुड़े पारंपरिक कारीगरों को बेरोजगारी का सामना करना पड़ रहा है। लोग प्राकृतिक रूप से शटलकॉक बनाने के व्यवसाय को छोड़ने लगे हैं। चीनी और ताइवानी कंपनियों ने शटलकॉक के घरेलू बाजार में अपनी जगह बनाई है, जिसकी वजह से सस्ते होने के बावजूद भी प्राकृतिक शटलकॉक की मांग में कमी आने लगी है। युवा पीढ़ी के अब बहुत से लोग इस कला में रुचि नहीं रखते हैं और उन्होंने कोई दूसरा रोजगार अपना लिया है। पारंपरिक रूप से शटलकॉक को प्रायः जीवित बत्तखों और हंसों के पंखों को तोड़कर बनाया जाता है। इस प्रक्रिया के दौरान पक्षियों को न तो मारा जाता है, और न ही मूर्छित किया जाता है। शिकारी और किसान पक्षी की गर्दन पकड़ते हैं, और जबरदस्ती उसके एक मुट्ठी पंख उखाड़ देते हैं, हालांकि इस प्रक्रिया में पक्षी के शरीर से खून निकलने लगता है। वहीं, कृत्रिम शटल को बनाने के लिए प्रायः नायलॉन (Nylon) का उपयोग किया जाता है। नायलॉन से बने शटलकॉक टिकाऊ होते हैं, और जब उनको उछाला जाता है, तो उनकी गति अधिक होती है। यही कारण है कि नए खिलाड़ी नायलॉन से बनी शटलकॉक को अधिक पसंद करते हैं। हालांकि, पेशेवर खिलाड़ियों के बीच पंखों से बने शटलकॉक ही अधिक प्रचलित हैं, क्योंकि पंखों से बना शटलकॉक, उन्हें एक उचित नियंत्रण प्रदान करता है। पंखों से बने शटलकॉक का उपयोग ओलम्पिक (Olympics) जैसे अंतर्राष्ट्रीय आयोजनों में भी किया जाता है। ओलंपिक में उपयोग की जाने वाली शटलकॉक के शीर्ष हिस्से का व्यास 0.98"-1.1" (25-28 मिलीमीटर) होता है और कुल पंखों का व्यास 2.28"-2.68" (58-68 मिलीमीटर) के बीच होता है। शटलकॉक की कुल लंबाई 3.35"-3.75" (85-95 मिलीमीटर) के बीच होती है और यह पंखों की लंबाई और शीर्ष भाग की ऊंचाई पर निर्भर करती है। बैडमिंटन शटलकॉक का भार 0.167-.194 औंस (4.75-5.5 ग्राम) के बीच होता है। इसके अलावा बैडमिंटन मैच खेलने के लिए भी पंखों से बने शटलकॉक को सबसे उपयुक्त माना जाता है। हालांकि, पंखों से बने शटलकॉक को उचित देखभाल की भी आवश्यकता होती है। नायलॉन से बने शटलकॉक की तुलना में पंख से बने शटलकॉक अधिक महंगे होते हैं, जिसका अर्थ है कि उन्हें बार-बार बदलना तुलनात्मक रूप से अधिक खर्चीला हो जाता है। यदि आपने बैडमिंटन खेलना अभी शुरू किया है, तो नायलॉन से बने शटलकॉक का उपयोग करना आपके लिए अच्छा विकल्प होगा। उदाहरण के लिए, आप योनेक्स मेविस 350 (Yonex Mavis 350) शटलकॉक और योनेक्स मेविस 2000 नायलॉन शटलकॉक का उपयोग कर सकते हैं। ये दोनों शटलकॉक आपके लिए सस्ते होंगे, लंबे समय तक चलेंगे तथा बैडमिंटन खेल का एक अच्छा अनुभव प्रदान करेंगे। शटलकॉक की बात हुई है, तो साथ में हम बैडमिंटन के इतिहास को भी जान ही लेते हैं। इस खेल का आविष्कार मूल रूप से 1860 के आसपास भारत में ‘पूना’ नामक खेल के रूप में हुआ था। ब्रिटिश सेना के अधिकारियों के साथ यह खेल इंग्लैंड (England) पहुंचा, जहां उन्होंने प्रतिस्पर्धी खेल के लिए, खेल के नियमों को और अधिक संहिताबद्ध कर दिया।

संदर्भ:
https://tinyurl.com/4d3u3shc
https://tinyurl.com/3z35ybe6
https://tinyurl.com/32jy544r
https://tinyurl.com/mtseax2w
https://tinyurl.com/2j2rcu4u
https://tinyurl.com/3fccuc77

चित्र संदर्भ
1. बैडमिंटन खेलते लोगों के चित्र को दर्शाता चित्रण (Look and Learn)
2. प्राचीन चीनी खेल “जियानज़ी” को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. जियानज़ी का पहला ज्ञात संस्करण चीन (China) में उत्पन्न हुआ था, को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. विशाल शटलकॉक को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
5. भारतीय बैडमिंटन खिलाडियों को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
6. पंखों की शटलकॉक को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
7. नायलॉन से बने शटलकॉक को दर्शाता चित्रण (wikimedia)



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