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हमारा शहर लखनऊ पूरी दुनिया में चिकनकारी कढ़ाई के लिए हमेशा से ही प्रसिद्ध रहा है। इस कढ़ाई में कई तरह के टांके होते हैं, जिनको भिन्न नाम भी दिए गए हैं, जिनमें से एक कार्य को छाया कार्य के नाम से भी जाना जाता है। चिकनकारी छाया कार्य कढ़ाई की एक शैली है जो बेहद नाजुक और जटिल होती है। चिकनकारी कढ़ाई की सूक्ष्मता, बारीकी एवं कोमलता किसी भी वस्त्र के मूल्य को निर्धारित करती है। चिकनकारी का यह कार्य जितना महीन होता है, उतना ही महंगा होता है। किंतु यदि किसी कारणवश आपका इतना महंगा पसंदीदा कपड़ा खराब हो जाए, तो दुख तो अवश्य होता है। लेकिन क्या हो, अगर आपका कपड़ा खुद अपनी मरम्मत कर सके!
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि हाल ही में कुछ ऐसे वस्त्रों का निर्माण किया जा रहा है, जिनमें स्व-मरम्मत करने की क्षमता मौजूद है। जी हाँ मशरूम से बनाए गए चमड़े में स्वयं से ही ठीक होने की क्षमता होती है, हालांकि वैज्ञानिकों ने अभी तक इस विधि को पूर्ण नहीं किया है। स्व-मरम्मत करने वाले कपड़े सुहावने ढोल की तरह लग सकते हैं। लेकिन हाल के एक अध्ययन से पता चलता है कि मशरूम के पुनर्जनन गुणों के कारण यह जल्द ही संभव हो सकता है। ‘न्यूकैसल विश्वविद्यालय (Newcastle University) और नॉर्थम्ब्रिया विश्वविद्यालय’ (Northumbria University) के शोधकर्ताओं के एक अध्ययन के अनुसार, मशरूम के जड़ जैसे हिस्से में पाए जाने वाले माइसेलियम (Mycelium) का उपयोग करके बनाए गए "मशरूम चमड़े" में स्व-मरम्मत करने वाले गुण हो सकते हैं। ये, सिद्धांतिक रूप से, घरेलू फर्नीचर (Furniture) से लेकर चमड़े की जैकेट (Jacket) तक हर चीज में इस्तेमाल किए जा सकते हैं। रिषि (Reishi) और बोल्ट थ्रेड्स (Bolt Threads) जैसी कंपनियों द्वारा पहले से ही मशरूम के चमड़े से हैंडबैग, टोपी और जैकेट जैसी वस्तुओं का उत्पादन शुरू कर दिया गया है। हालांकि, फिलहाल माइसेलियम सामग्री के उत्पादन के समय अक्सर पुन: उत्पन्न करने वाला बीजाणु ‘क्लैमाइडोस्पोर्स’ (Chlamydospores) मर जाता है। इसलिए वैज्ञानिकों द्वारा मशरूम चमड़े के उत्पादन की प्रक्रिया के दौरान इस जीवाणु को जीवित रखने के लिए कई तरह के अनुसंधान किए जा रहे हैं। ऐसे ही एक अनुसंधान के दौरान क्लैमाइडोस्पोर्स की इस अद्भुत शक्ति का उपयोग करने के लिए, अनुसंधान दल द्वारा माइसेलिया (Mycelia), क्लैमाइडोस्पोरस (Chlamydospores), कार्बोहाइड्रेट (Carbohydrates), प्रोटीन (Proteins) और अन्य पोषक तत्वों को मिलाया गया और एक पतली, चमड़े जैसी सामग्री का उत्पादन किया गया। इस अनुसंधान में वैज्ञानिकों ने पाया कि इस कवकजाल की त्वचा में अभी भी क्लैमाइडोस्पोरस की स्व-पुनर्जीवित शक्ति समाहित है। और जब शोधकर्ताओं ने इसमें छेद किया, तो उन्होंने पाया कि त्वचा खुद को ठीक करने में सक्षम थी।
यदि हम देखें, तो कृत्रिम चमड़े, या प्लास्टिक (Plastic) का अत्यधिक उपयोग करने, जिसने अंत में हमारे पर्यावरण को खराब किया है, से बेहतर विकल्प है कवक से उत्पादित, पर्यावरण-अनुकूलित चमड़ा । साथ ही फ़ैशन कंपनियों के लिए भी, जो उत्पादित कपड़ों से ग्रह पर कम हानिकारक प्रभाव डालने की कोशिश कर रही हैं, कवक से उत्पादित चमड़ा एक अच्छा विकल्प है, क्योंकि यह चमड़ा पुन: प्रयोज्य, जैवनिम्नीकरण, स्पर्श करने में काफी अच्छा, और लंबे समय तक चलने वाला होता है। मशरूम का चमड़ा पिछले एक दशक से विकास के दौर से गुजर रहा है, लेकिन यह उद्योग सामान्य उपभोक्ताओं के लिए यह कुछ वर्षों पहले ही सुलभ हुआ है।
माइसेलियम, जो कवक की जड़ जैसी संरचना है, वास्तव में छोटे छोटे धागों से बना है। यह एक स्ट्रॉबेरी या अन्य प्रकार के कार्बनिक पदार्थों के विघटित होने पर, उसमें मिलने वाले फफूंदी की तरह लगता है। तथा माइसेलियम से चमड़ा बनाने की प्रक्रिया अन्य चमड़े बनाने की प्रक्रिया के लगभग समान ही है, बस यह पूरी तरह से अलग वातावरण से आरंभ किया जाता है। खेत में खुले स्थान पर उगाने के बजाए, एक अंधेरे जंगल में इसका उत्पादन किया जाता है; विशेष रूप से इस तरह के औद्योगिक उत्पादन के लिए, किसी प्रकार की प्रयोगशाला में माइसेलियम कोशिकाओं को थैलों में रखा जाता है, और लकड़ी के बुरादे जैसी सामग्रियों पर इनको पोषित किया जाता है। इसके बाद इनके बढ़ने की प्रतीक्षा की जाती है और जब ये निश्चित प्रकार के घनत्व तक पहुँच जाते हैं, तब ये कोशिकाएं बादल जैसी दिखने लगती हैं। ये पूरी प्रक्रिया अपने आप में किसी जानवर को पालने की तुलना में बहुत सस्ती और तेज है।एक बार झाग बनने के बाद इसे पतली परत में संकुचित किया जाता है। फिर उसे एक पतली परत में बदलकर चमड़े का रूप दिया जाता है। बोल्ट थ्रेड्स (Bolt Threads) के अनुसार, जो माइलो (माइसीलियम) बनाता है, इसे ‘ग्रीन केमिस्ट्री’ (Green chemistry) प्रक्रिया कहते हैं, जो उन्हें इसका विशिष्ट रूप देने में मदद करता है।
लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या इसे तेल का उपयोग करके बनाने पर, इनसे बनी सामग्री सस्ती होंगी? उत्तर स्पष्ट है; तेल के अर्थशास्त्र और अन्य सभी कारणों को देखते हुए- ‘नहीं’, क्योंकि तेल कम उपलब्धता के कारण भविष्य में महंगा हो जाएगा, जिसको देखते हुए इसके अन्य प्रकार के संसाधनों पर विचार करने की आवश्यकता होगी। वर्तमान समय में जानवरों के चमड़े के मौजूदा शुद्ध शाकाहारी विकल्प ज्यादातर प्लास्टिक, या पेट्रोलियम आधारित प्लास्टिक से बने होते हैं। और इसका मतलब है कि न केवल आधार सामग्री अपने आप में एक प्रदूषणकारी तत्व है, बल्कि यह जैवनिम्नीकरण भी नहीं है। और इसलिए जब यह पहनने योग्य नहीं रहते हैं तो इन्हें भराव क्षेत्र में फेंक दिया जाता है।
और ऐसे ही सर्वोत्तम संभव परिदृश्य में, कई सामग्री पुनर्नवीनीकरण पॉलिएस्टर से बनी होती है, जो आमतौर पर प्लास्टिक की बोतलों से प्राप्त होती है, और अन्तः उसका जीवनकाल छोटा होने की वजह से कई सारे प्लास्टिक उत्पाद भरावक्षेत्र में फेंक दिया जाते हैं। तो कुल मिलाकर, अगर आपको लगता है कि इस प्रकार का वैकल्पिक चमड़ा पर्यावरण के लिए बेहतर है क्योंकि इसमें जानवर की हत्या शामिल नहीं है, तो यह विचार गलत है, क्योंकि यह पर्यावरण को और अधिक हानि पहुंचा रहा है। इसलिए माइसेलियम चमड़े और अन्य प्रकार के पौधे-आधारित वैकल्पिक सामग्रियों के बारे में वास्तव में महत्वपूर्ण बात यह है कि भले ही उनके पास जानवरों के चमड़े के समान स्थायित्व न हो, वे जैव निम्नीकरणीय होते हैं, और इसलिए अर्थव्यवस्था के साथ साथ पर्यावरण को भी अधिक नुकसान नहीं पहुंचाते हैं।
संदर्भ :-
https://rb.gy/bl6dw
https://rb.gy/x4cn8
https://rb.gy/3w814
चित्र संदर्भ
1. मशरूम और चमड़े को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
2. इलियोडिक्टियन सिबेरियम मशरूम को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. माइसेलियम को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. माइसेलियम मशरूम के विभिन्न भागों को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
5. माइसेलियम के फैलाव को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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