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खाद्य सुरक्षा हेतु अवैध, अप्रमाणित और अनियमित मत्स्य पालन पर प्रतिबंध है आवश्यक

लखनऊ

 07-06-2023 09:22 AM
समुद्री संसाधन

आज के दिन अर्थात 7 जून को प्रत्येक वर्ष खाद्य मानकों पर हमारा ध्यान आकर्षित करने के लिए, ‘विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस’ (World Food Safety Day (WFSD) मनाया जाता है। खाद्य जनित रोग प्रतिवर्ष विश्व में 10 में से 1 व्यक्ति को प्रभावित करते हैं। उचित खाद्य मानक यह सुनिश्चित करते हैं कि हम जो खाद्य खा रहे हैं वह सुरक्षित है। इस वर्ष खाद्य सुरक्षा, मानव स्वास्थ्य, आर्थिक समृद्धि, कृषि उत्पादन, खाद्य जनितजोखिमों को समझने, रोकने, और उन्हें प्रबंधित करने के प्रोत्साहन हेतु पांचवां ‘विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस’ मनाया जाएगा। ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ (World Health Organisation -WHO) और ‘खाद्य एवं कृषि संगठन’ (Food and Agriculture Organisation-FAO) ने मिलकर 2018 में इस दिन को नामित किया था। इस वर्ष का ‘विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस’ “खाद्य मानक, जीवन बचाते हैं” (Food standards save lives) विषय पर आधारित है। ‘खाद्य और कृषि संगठन’ के विशेषज्ञों के अनुसार, आज के वैश्विक परिवेश में देशों के लिए, विशेष रूप से विकासशील देशों के लिए, मत्स्य निर्यात, राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं की मजबूती के लिए आवश्यक है। मछली व्यापार विकासशील देशों के लिए महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यह अक्सर देश में विदेशी मुद्रा आय में बड़ा योगदान देता है। विश्व स्तर पर लगभग 200 मिलियन लोग अपनी आजीविका के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मत्स्य पालन पर निर्भर हैं। हमारा देश भारत भी एक विकासशील देश है, अतः मत्स्य निर्यात हमारे देश के लिए भी आवश्यक है। अगर देश में उचित योजनाएं बनाई जाए, तो मत्स्य पालन एवं जलीय कृषि क्षेत्र ग्रामीण जनसंख्या और ग्रामीण युवाओं को लाभकारी रोजगार प्रदान कर सकता है।
पोषण और खाद्य सुरक्षा में भी मत्स्य पालन की महत्वपूर्ण भूमिका है। मछली प्रकृति का एक उत्कृष्ट खाद्य है। मछ्ली प्रोटीन (Protein) और सेहतमंद वसा (Fat) का एक महत्वपूर्ण स्रोत होती है। साथ ही, यह आवश्यक पोषक तत्वों की एक अनूठी स्रोत है। मछ्ली में ओमेगा-3 फैटी एसिड (Omega-3 fatty acids), आयोडीन (Iodine), विटामिन डी (Vitamin D) और कैल्शियम (Calcium) आदि पोषक तत्त्व भी पाए जाते हैं। एक संतुलित पोषण को बढ़ावा देने के लिए फसल उत्पादन तथा डेयरी और पशुपालन के साथ-साथ जलीय कृषि की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। हम जो खाद्य उपभोग करते हैं, उसका आधे से अधिक प्रमाण जलीय कृषि से आता है। मछली की मांग वर्ष 1961 में 9 किलोग्राम प्रति व्यक्ति की औसत खपत से तेजी से बढ़कर आज प्रति व्यक्ति 20 किलोग्राम से अधिक हो गई है। भविष्य में जनसंख्या बढ़ने के साथ मछली की मांग और भी अधिक बढ़ने की भी उम्मीद है। इस वजह से, पिछले 20 वर्षों में, जलीय कृषि प्रथाओं में बदलाव आया है, और इन्हें अधिक विकसित करने, तथा इनके संरक्षण के लिए भी प्रयास किए गए हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि सही मत्स्य प्रबंधन नीतियों के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और मजबूत क्षेत्रीय मत्स्य प्रबंधन संगठन महत्वपूर्ण हैं। मत्स्य प्रबंधन से जुड़ी अन्य कार्रवाइयों में अवैध, अप्रमाणित और अनियमित मछली पकड़ने पर अंकुश लगाना, मत्स्य उत्पादों में अधिक शोध एवं निवेश की क्षमता बढ़ाना, तथा मछली और समुद्री भोजन के नुकसान को रोकना शामिल है।
किंतु आज विश्व स्तर पर, अधिकांशतः विकासशील देशों में अवैध, अप्रमाणित और अनियमित मत्स्य पालन भी किया जा रहा है। मछली पकड़ने वाले समुदाय आज भी मछली पकड़ने के पारंपरिक तरीकों को अपनाते हैं, और मछली पकड़ने से संबंधित कानूनी निहितार्थों से काफी हद तक अनभिज्ञ हैं। इस तरीके से मछली पकड़ने का हमारी खाद्य सुरक्षा पर सीधा असर पड़ता है। साथ ही, वैध मछुआरों की पकड़ एवं उत्पादन में गिरावट होती है, जिससे स्थानीय और लघु-स्तरीय मत्स्य पालन का पतन हो सकता है। इससे मछुआरों की आजीविका के लिए भी खतरा है; और यह गरीबी को भी बढ़ावा देता है और खाद्य असुरक्षा में योगदान देता है। संयुक्त राष्ट्र (United Nations) के ‘खाद्य और कृषि संगठन’ ने अवैध मत्स्य पालन को समुद्री सुरक्षा के लिए सबसे महत्वपूर्ण गैर-पारंपरिक अंतरराष्ट्रीय चुनौती के रूप में स्वीकार किया है। अवैध रूप से मछली पकड़ने से सालाना लगभग 23 बिलियन अमेरिकी डॉलर का आर्थिक नुकसान होने का अनुमान है। एक नए शोध से पता चलता है कि हिंद महासागर के खुले क्षेत्र में अनियंत्रित मछली पकड़ने से समुद्री जीवन और समुद्री खाद्य की आपूर्ति खतरे में है। केवल पिछले पांच वर्षों में ही, अनियमित रूप से मछलियों को चारा डालकर पकड़ने की प्रवृत्ति में 830% की वृद्धि हुई है। अवैध और अप्रमाणित मछली पकड़ने के विपरीत, अनियमित तरीके से भी मछलियों को पकड़ा जाता है, जिसके लिए कोई भी कानूनी ढांचा मौजूद नहीं है। यह किसी भी क्षेत्रीय मत्स्य प्रबंधन और प्रवर्तन प्रणाली से बाध्य नहीं है। ‘विश्व वन्य जीवन कोष’ (World Wildlife Fund (WWF) और ‘ट्रिग मैट ट्रैकिंग’ (Trygg Mat Tracking) की एक रिपोर्ट के अनुसार, हिंद महासागर विश्व में पकड़ी गई मछलियों के 14% से अधिक भाग का योगदान देता है। लेकिन इस क्षेत्र के 30% मूल्यांकित भंडार का पहले से ही स्थायी सीमा से परे दोहन किया जा चुका है। इसी रिपोर्ट से पता चलता है कि इस क्षेत्र में अनियंत्रित मछली पकड़ना, जो इस 30% गणना में शामिल ही नहीं है, तीव्रता में बढ़ रहा है। यह स्थिति, लाखों लोगों के आवश्यक आय स्रोत और व्यापक पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को खतरे में डाल रही है। हिंद महासागर में मत्स्य पालन के लिए मौजूदा कानूनी ढांचे भौगोलिक क्षेत्रों, और जिन मछलियों की प्रजातियों के लिए वे बने हैं, दोनों के लिए उचित नहीं है। इसके परिणामस्वरूप, पूरे क्षेत्र में अनियमित मछली पकड़ना जारी है। चूंकि समुद्री भोजन की वैश्विक मांग में वृद्धि जारी है, यह जरूरी है कि इन कानूनों में संशोधन किया जाए। अन्यथा हम समुद्री पारिस्थितिक तंत्र और समुद्री संसाधनों, दोनों को अस्थिर कर देंगे।

संदर्भ
https://bit.ly/45HDt0P
https://bit.ly/3WNhAcM
https://bit.ly/3oIaxoY
https://rb.gy/2sqhe

 चित्र संदर्भ
1. हाथ में मछली पकड़े अधिकारी को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. खाद्य आहार लेते बच्चे को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
3. मछली पकड़ते मछुआरे को दर्शाता चित्रण (flickr)
4. जाल में फंसी मछलियों को संदर्भित करता एक चित्रण (Wallpaper Flare)
5. बिक्री हेतु रखी गई मछलियों को संदर्भित करता एक चित्रण (Wallpaper Flare)



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