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रामपुर के ‘आर्यभट्ट तारामंडल’ (Planetarium) को देश के सबसे अत्याधुनिक तारामंडलों में से एक माना जाता है। यह तारामंडल भारत का पहला डिजिटल लेजर तकनीक (Digital Laser Technology) पर आधारित तारामंडल है। इस तारामंडल से अंतरिक्ष में मौजूद विभिन्न ग्रहों-उपग्रहों को देखा जा सकता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इतने विशाल उपग्रह, अंतरिक्ष में पृथ्वी और चंद्रमा जैसे बड़े खगोलीय पिंडों के प्रभाव के बावजूद इतने स्थिर कैसे रह पाते हैं? यह कोई जादू नहीं है बल्कि , लैग्रेंज बिंदुओं (Lagrange Points) का कमाल है!
वास्तव में, लैग्रेंज बिंदु अंतरिक्ष में ऐसे विशेष स्थान होते हैं, जहां छोटी वस्तुएं दो बड़ी वस्तुओं के बीच एक कक्षा में स्थिर रह सकती हैं। ये बड़ी वस्तुएं पृथ्वी और सूर्य, या चंद्रमा और पृथ्वी जैसे बड़े तारे और ग्रह-उपग्रह हो सकती हैं। लैग्रेंज बिंदुओं पर टिकी किसी वस्तु का एक प्रसिद्ध उदाहरण ट्रोजन क्षुद्रग्रह (Trojan Asteroid) हैं। लैग्रेंज बिंदुओं की अवधारणा का नाम गणितज्ञ जोसेफ-लुई लैग्रेंज (Joseph-Louis Lagrange) के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने 1772 में इनके बारे में अध्ययन किया और लिखा था।
L1, L2, L3, L4 और L5 नाम के पांच लैग्रेंज बिंदु होते हैं। L1, L2, और L3 को मेटास्टेबल (Metastable) कहा जाता है, क्योंकि अगर कोई उपग्रह इन बिंदुओं से थोड़ा दूर चला जाता है, तो वह ईंधन का उपयोग किए बिना वापस नहीं आ सकता। दूसरी ओर, L4 और L5 को स्थिर माना जाता है। यदि कोई वस्तु इन बिंदुओं से दूर जाती है, तो गुरुत्वाकर्षण और अन्य बल उसे वापस जगह में खींच लेते हैं।
‘नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन’ (National Aeronautics and Space Administration (NASA) द्वारा विभिन्न उपग्रहों को सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के दो लैग्रेंज बिंदुओं में स्थापित किया गया है। पृथ्वी और सूर्य के बीच स्थित L1 बिंदु का उपयोग उन उपग्रहों के लिए किया जाता है जो सौर ज्वालाओं का अध्ययन करने के लिए सूर्य का निरीक्षण करते हैं। ये लैग्रेंज बिंदु अंतरिक्ष यान के लिए उपयोगी हो सकते हैं, क्योंकि वे उन्हें एक स्थान पर रहने और ईंधन बचाने में मदद करते हैं। उदाहरण के लिए, पृथ्वी और सूर्य के बीच L1 बिंदु पर वर्तमान में ‘सौर और हेलिओस्फेरिक वेधशाला उपग्रह’ (Solar And Heliospheric Observatory Satellites) मौजूद है।
L2 बिंदु, पृथ्वी से परे स्थित है, जिसका उपयोग अंतरिक्ष दूरबीनों के लिए किया जाता है। उदाहरण के लिए, बेहद चर्चित जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप (James Webb Space Telescope) को L2 बिंदु पर स्थापित किया गया था, जो पृथ्वी से लगभग एक मिलियन मील दूर है। जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप, अंतरिक्ष में स्थापित एक दूरबीन है जिसे मुख्य रूप से इंफ्रारेड एस्ट्रोनॉमी (Infrared astronomy) के संचालन के लिए डिजाइन किया गया है! इन्फ्रारेड एस्ट्रोनॉमी का उपयोग इन्फ्रारेड विकिरण (infrared rays) का उपयोग करके खगोलीय वस्तुओं के अवलोकन और विश्लेषण में किया जाता है। जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप जिस बिंदु पर स्थित है, उसे L2 के रूप में जाना जाता है, यह अंतरिक्ष में एक ऐसा स्थान है जहां पृथ्वी और सूर्य का गुरुत्वाकर्षण संतुलित होता है। यह टेलीस्कोप के लिए एक कॉस्मिक पार्किंग स्थल (Cosmic Parking Lot) की तरह है।
वैज्ञानिक लैग्रेंज बिंदुओं को बहुत उपयोगी एवं महत्वपूर्ण मानते हैं क्योंकि वे पृथ्वी से देखे जाने पर स्थिर स्थिति में दिखाई देते हैं। इससे जेम्स वेब टेलीस्कोप जैसे अंतरिक्ष यान के साथ संचार करना आसान हो जाता है। 18वीं शताब्दी में, गणितज्ञों ने उपग्रहों की गति को नियंत्रित करने वाले पांच लैग्रेंज बिंदुओं का पता लगाया। उन्होंने गणित का प्रयोग यह समझने के लिए किया कि पृथ्वी और चंद्रमा जैसे दो पिंड एक साथ कैसे चलते हैं।
इन लैग्रेंज बिंदुओं को खोजने के लिए कई गणितीय समीकरणों को हल करना पड़ता है, जिससे विभिन्न बलों को संतुलित करने में मदद मिलती है। हालांकि यह काफी चुनौतीपूर्ण हो सकता है, खासकर तब, जब उच्च-क्रम बहुपद समीकरणों को हल करना पड़ता है। हालांकि, इन बिंदुओं को खोजने के लिए वैज्ञानिक, अपने भौतिक अंतर्ज्ञान और तर्क का उपयोग करते हैं। वे प्रत्येक बिंदु की स्थिरता निर्धारित करने के लिए कैलकुलस (Calculus) का भी उपयोग करते हैं, जो लैग्रेंज बिंदुओं पर किसी अंतरिक्ष यान को भेजने के लिए जरूरी है।
वर्तमान में जेम्स वेब टेलीस्कोप L2 बिंदु पर है, लेकिन इसे वहां बने रहने के लिए नियमित समायोजन की आवश्यकता पड़ती है। यदि यह लैग्रेंज बिंदु से दूर चला जाता है, तो इसे भी अपनी जगह पर वापस आने के लिए ईंधन की आवश्यकता होती है। वैज्ञानिकों के अनुसार, आने वाले लगभग 20 वर्षों में, टेलीस्कोप का ईंधन समाप्त हो जाएगा और तब यह हमारे सौर मंडल से बाहर निकल सकता है।
भले ही लैग्रेंज बिंदुओं के पीछे का गणित जटिल है, लेकिन यह उन्नत यांत्रिकी और वेक्टर बीजगणित ( Vector Algebra) का अध्ययन करने वाले छात्रों के लिए आसान काम है, क्योकि वे स्वयं इन बिंदुओं को समझ सकते हैं, और इनसे जुडी गणितीय प्रक्रिया को हल कर सकते हैं।
लैग्रेंज बिंदुओं को और आसानी से समझने के लिए आप एक ऐसे परिदृश्य की कल्पना कर सकते हैं, जहां एक बॉलिंग बॉल (Bowling Ball) सूर्य, एक बेसबॉल (Baseball) पृथ्वी, और एक कंचा (Marble) एक उपग्रह का प्रतिनिधित्व करता है, जो एक क्षैतिज तल पर स्थित हैं, और इनमें से प्रत्येक का अपना गुरुत्वाकर्षण खिंचाव है। भारी होने के कारण बॉलिंग बॉल में बेसबॉल की तुलना में समग्र रूप से अधिक खिंचाव होता है। यदि आप बॉलिंग बॉल और बेसबॉल के बीच कंचे को स्थापित करते हैं, तो यह दो वस्तुओं के गुरुत्वाकर्षण कुओं के बीच ‘सैडल पॉइंट’ (Saddle Point) पर होने जैसा दृश्य होगा। हालाँकि, यदि आप किसी भी दिशा में मार्बल को बहुत तेज़ धक्का देते हैं, तो बड़ी वस्तु का गुरुत्वाकर्षण इसे अपनी ओर खींच लेगा। लैग्रेंज बिंदुओं को समझकर, वैज्ञानिक जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप को अंतरिक्ष में स्थिर रख सकते हैं, जिससे यह आने वाले वर्षों में ब्रह्मांड के रहस्यों का पता लगा सके। L4 और L5 अंक, स्थिर होने के कारण, धूल के बादलों और यहां तक कि क्षुद्रग्रहों को भी आकर्षित करते हैं। इन क्षुद्रग्रहों को ट्रोजन क्षुद्रग्रह के रूप में जाना जाता है। पृथ्वी-सूर्य प्रणाली में, बड़े ग्रहों के L4 और L5 बिंदुओं में अधिक क्षुद्रग्रह हैं।
कुल मिलाकर लैग्रेंज बिंदु अंतरिक्ष में वह विशिष्ट स्थान हैं जहां दो बड़ी वस्तुओं के गुरुत्वाकर्षण, बल संतुलन के क्षेत्र बनाते हैं। ये बिंदु अंतरिक्ष यान को कम ईंधन के साथ स्थित रहने में मदद करते हैं, और उनका उपयोग अंतरिक्ष में विभिन्न उपग्रहों और वस्तुओं द्वारा किया जाता है।
संदर्भ
https://rb.gy/oo7s9
https://rb.gy/5sd0f
https://rb.gy/pjkws
चित्र संदर्भ
1. रामपुर के ‘आर्यभट्ट तारामंडल और लैग्रेंज बिंदु को दर्शाता एक चित्रण (prarang, wikimedia)
2. लैग्रेंज बिंदु L2 पर उपग्रह संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. सभी लैग्रेंज बिंदुओं को दर्शाता चित्रण (flickr)
4. लैग्रेंज बिंदुओं के आकर्षण को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. अंतरिक्ष में जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. किसी तारे की परिक्रमा कर रहे ग्रह (नीला) के पांच लग्रैंगियन बिंदुओं (लाल) (पीला), और प्रभावी क्षमता (गुरुत्वाकर्षण + घूर्णी) के बीच संबंध को दर्शाने वाली छवि को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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