Post Viewership from Post Date to 30-Jun-2023 30th day
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
2374 530 2904

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

रामपुर के व्यंजनों को सुगन्धित करती, उत्तराखंड के पहाड़ों की लखोरी या पीली मिर्च

लखनऊ

 25-05-2023 10:02 AM
साग-सब्जियाँ

हमारे शहर रामपुर की नवाबी शान स्वादिष्ट और मसालेदार व्यंजनों के बिना अधूरी मानी जाती है। और रामपुर के इन्हीं नवाबी व्यंजनों में ‘पीली मिर्च’ के नाम से मशहूर ‘लखोरी मिर्च’, जान फूंकने का काम करती है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि हमारे व्यंजनों में जान फूकनें वाली यह मिर्च आखिर आती कहां से है?
भारत दुनिया में मिर्च का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता राष्ट्र माना जाता है। वैश्विक स्तर पर मिर्च के बाज़ार में हमारी हिस्सेदारी लगभग 37% है। देश के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग प्रकार की मिर्च की कई किस्में उगाई जाती हैं। आसानी से समझने के लिए मिर्च को दो मुख्य श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
1.ताजी या हरी मिर्च।
2.सूखी या लाल मिर्च।
ताजी हरी मिर्च में उच्च मात्रा में विटामिन-सी (Vitamin-C) होता है तथा यह स्वास्थ्य के लिए लाभदायक हो सकती हैं। इसे अपने तीखेपन के लिए जाना जाता हैं, जिसके लिए ‘कैप्साइसिन’ (Capsaicin) नामक अल्कलॉइड (Alkaloids) जिम्मेदार होता है। ताजी मिर्च का स्वाद तीखा और जीभ पर जल्दी महसूस होता है। दूसरी ओर, सूखी मिर्च में विटामिन सी की मात्रा बहुत कम हो जाती है, लेकिन ताजी मिर्च की तुलना में इसमें लगभग 100 गुना अधिक विटामिन-ए (Vitamin-A) होता है। ताजी मिर्च की तुलना में सूखी मिर्च का स्वाद और उसकी गरमी मंद हो जाती है। भारत में आमतौर पर ताजी मिर्च अधिक खाई जाती है, जिनकी सूची निम्नवत दी गई है:
१. हरी ज्वाला (Green Flame): इस मिर्च को मुख्य रूप से गुजरात में उगाया जाता है, इस मिर्च की स्कोविल हीट यूनिट (Scoville Heat Unit (SHU) अज्ञात है। स्कोविल हीट यूनिट, मिर्च और अन्य पदार्थों के तीखेपन या गर्मी मापने की इकाई होती है।
२. तेजा (Teja): आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में उगाई जाने वाली इस मिर्च की स्कोविल हीट यूनिट (एसएचयू ) 50,000 से 70,000 तक होती है, और यह एक तीखी मिर्च है।
३. लवंगी (Lavangi): मुख्य रूप से महाराष्ट्र में उगाई जाने वाली यह एक तीखी किन्तु एक मध्यम गर्म मिर्च होती है, जिसका एसएचयू लगभग 30,000-50,000 के बीच होता है।
४. भूत जोलोकिया (Bhoot Jolokia): इसे असम और अन्य उत्तर-पूर्वी राज्यों में बड़े पैमाने पर उगाया जाता है, यह मिर्च 1,041,427 एसएचयू के साथ दुनिया की सबसे तीखी मिर्चों में से एक है।
५. धानी या कंथारी (Dhani Or Kanthari): इसे ‘बर्ड्स आई रेड चिली’ (Bird's Eye Red Chilli) के नाम से भी जाना जाता है, यह मिर्च भारत (मुख्य रूप से केरल), थाईलैंड (Thailand), वियतनाम (Vietnam) और इंडोनेशिया (Indonesia) में उगाई जाती है। इसमें बहुत अधिक गर्मी होती है और इसका एसएचयू 50,000 से 100,000 के बीच होता है। इसे अपने औषधीय गुणों के लिए भी जाना जाता है।
६. भावनगरी (Bhavnagari): गुजरात में उगाई जाने वाली, यह मिर्च लगभग 30,000-50,000 के एसएचयू के साथ एक मध्यम तीखी मिर्च होती है।
७. डल्ले खुर्सानी (Dalle Khursani): इसे नेपाल के पूर्वी हिमालयी क्षेत्र और भारत के कुछ हिस्सों में उगाया जाता है, और इसका एसएचयू 100,000 से 350,000 के बीच होता है और इसका उपयोग विभिन्न व्यंजनों में किया जाता है ---------आमतौर पर इस्तेमाल की जाने वाली भारतीय सूखी मिर्च--------
१. कश्मीरी (Kashmiri): कश्मीरी मिर्च, जम्मू और कश्मीर में उगाई जाने वाली एक कम तीखी मिर्च होती है, जिसका एसएचयू 1,000 से 2,500 के बीच होता है। यह व्यंजनों में एक समृद्ध रंग भी लाती है।
२. गुंटूर (Guntur): आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले में उगाई जाने वाली इस गर्म मिर्च का एसएचयू, लगभग 50,000 से 85,000 के बीच होता है। ३. ब्याडगी (Byadgi): कर्नाटक में उगाई जाने वाली यह मिर्च हल्के से मध्यम गर्मी वाली होती है और व्यंजनों को एक समृद्ध लाल रंग प्रदान करती है। इसका एसएचयू 30,000-50,000 के बीच होता है।
४. मुंडू (Mundu): तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में उगाई जाने वाली इस मिर्च का एसएचयू 30,000 से 50,000 के बीच होता है और यह एक मध्यम तीखी मिर्च होती है।
५.बोरिया (Boriya): बोरिया मिर्च गोल होती है, और इसे तमिलनाडु एवं आंध्र प्रदेश में उगाया जाता है। इस मिर्च का विशेषतः दाल, कढ़ी और करी (curry) में उपयोग किया जाता है। इसका एसएचयू 800,000-1,000,000 के बीच होता है।
६.संकेश्वरी (Sankeshwari): यह मिर्च मुख्य रूप से महाराष्ट्र में उगाई जाती है। इसका उपयोग कोल्हापुरी व्यंजनों में किया जाता है और इसे काफी गर्म माना जाता है, हालांकि इसका एसएचयू अज्ञात है।
७.मथानिया (Mathania): राजस्थान में उगाई जाने वाली यह मिर्च अपेक्षाकृत तीखी लाल होती है। इसका एसएचयू 50,000 से 70,000 के बीच होता है। इसे आमतौर पर राजस्थानी व्यंजनों में प्रयोग किया जाता है।
हमारे रामपुर के व्यंजन भी अपने अनूठे स्वाद के लिए जाने जाते हैं। इन व्यंजनों में ‘खड़ा मसाला’ जैसे सूखे मसालों का भरपूर उपयोग किया जाता है। इन खड़े मसालों में काली और सफेद मिर्च, लौंग, दालचीनी, जावित्री, काली और हरी इलायची की फली, तेजपत्ता, जीरा और धनिया आदि शामिल हैं।
लेकिन इन सभी के साथ-साथ रामपुरी व्यंजनों को स्वादिष्ट बनाने का बहुत बड़ा श्रेय विशेषतौर पर पीली मिर्च या लखोरी मिर्च को भी दिया जाता है। पीली मिर्च आमतौर पर बाजार में मिलने वाली हरी मिर्च से ज्यादा तीखी होती है, लेकिन भारत के पूर्वोत्तर राज्यों की ‘भूत जोलोकिया’ मिर्च जितनी तीखी नहीं होती। यह मिर्च व्यंजनों को एक अनोखा स्वाद प्रदान कर देती है। लखोरी मिर्च की खेती, मुख्य रूप से रामपुर के निकट बसे पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में की जाती है। इस मिर्च को अपना ‘लखोरी’ नाम उत्तराखंड में गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्र की सीमा पर स्थित लखोरा नामक गाँव से मिला है, यहां इस गांव में इस प्रकार की मिर्च की खेती सबसे पहले की गई थी। लखोरी मिर्च पीले रंग की होती है और सूखने पर इनमें एक अलग सिकुड़न आती है। लखोरी मिर्च को उनके आकार के आधार पर दो प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है। लकोरी जमरी नामक छोटी मिर्च में सबसे अधिक बीज होते हैं जिनका उपयोग आमतौर पर चिली फ्लेक्स (chilli flakes) बनाने के लिए किया जाता है । इस किस्म की बड़ी मिर्च का उपयोग पूरे मसाले के रूप में किया जाता है या इसे पाउडर (powder) में पीस लिया जाता है। लखोरी मिर्च को मिर्च की अन्य किस्मों से जो विशेषता अलग करती है, वह हैं इसकी झुर्रियां जो सूखने पर ही विकसित होती है।
अन्य फसलों की तुलना में लखोरी मिर्च को उगाने में मेहनत भी अधिक लगती है। इसके बीजों को आमतौर पर फरवरी और मार्च के बीच चारों ओर बिखेर कर बोया जाता है, और इसकी कटाई अक्टूबर में होती है। मिर्च की कटाई के बाद, उनकी गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए उन्हें अच्छी तरह से धूप में सुखाया जाता है। इन सूखी मिर्चों का इस्तेमाल पूरे साल किया जा सकता है। हालांकि, इस मिर्च को बेहद गर्म कहा जाता है, लेकिन इसका तीखापन, क्षेत्र के हिसाब से अलग-अलग हो सकता है।जहाँ कुछ मिर्च अत्यधिक गर्म हो सकती हैं, वही कुछ अन्य सुखद स्वाद के साथ मध्यम तीखी होतीहैं। स्थानीय किसानों का दावा है कि अगर इन मिर्चों को 2-3 महीने बाद फिर से सुखाया जाए तो ये लंबे समय तक सुरक्षित रह सकती हैं। लखोरी मिर्च की खेती, किसानों के लिए आर्थिक रूप से फायदेमंद भी है, क्योंकि वे भारी होती हैं और वजन के हिसाब से बेचने पर अच्छा लाभ प्रदान करती हैं। उत्तराखंड के स्थानीय लोग आमतौर पर बाद में उपयोग के लिए मिर्च को पीसकर पाउडर बना लेते हैं। पिसी हुई मिर्च का उपयोग करी (curry) और दाल जैसे विभिन्न व्यंजनों में तड़के के रूप में किया जाता है। इनका उपयोग मसालेदार अचार बनाने के लिए भी किया जाता है। इसके अतिरिक्त, लखोरी मिर्च को मांसाहारी व्यंजनों में एक अद्वितीय स्वाद देने के लिए जाना जाता है। यही लखोरी मिर्च हमारे रामपुर के नवाबी व्यंजनों को अपना जाना पहचाना और अनूठा स्वाद प्रदान करती है।

संदर्भ
https://rb.gy/r1x9o
https://rb.gy/dq9wd
https://rb.gy/2ssft
https://rb.gy/6fy1x

 चित्र संदर्भ

1. थाली में रखी लखोरी मिर्च को संदर्भित करता एक चित्रण (facebook)
2. टोकरी में रखी लाल मिर्च को दर्शाता चित्रण (Pxfuel)
3. हरी मिर्च को दर्शाता चित्रण (PixaHive)
4. कश्मीरी मिर्च को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
5. लखोरी मिर्च को संदर्भित करता एक चित्रण (facebook)



***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • क्या हमारी पृथ्वी से दूर, बर्फ़ीले ग्रहों पर जीवन संभव है?
    पर्वत, चोटी व पठार

     16-09-2024 09:36 AM


  • आइए, देखें, महासागरों में मौजूद अनोखे और अजीब जीवों के कुछ चलचित्र
    समुद्र

     15-09-2024 09:28 AM


  • जाने कैसे, भविष्य में, सामान्य आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस, पार कर सकता है मानवीय कौशल को
    संचार एवं संचार यन्त्र

     14-09-2024 09:23 AM


  • भारतीय वज़न और माप की पारंपरिक इकाइयाँ, इंग्लैंड और वेल्स से कितनी अलग थीं ?
    सिद्धान्त I-अवधारणा माप उपकरण (कागज/घड़ी)

     13-09-2024 09:16 AM


  • कालिदास के महाकाव्य – मेघदूत, से जानें, भारत में विभिन्न ऋतुओं का महत्त्व
    जलवायु व ऋतु

     12-09-2024 09:27 AM


  • विभिन्न अनुप्रयोगों में, खाद्य उद्योग के लिए, सुगंध व स्वाद का अद्भुत संयोजन है आवश्यक
    गंध- ख़ुशबू व इत्र

     11-09-2024 09:19 AM


  • लखनऊ से लेकर वैश्विक बाज़ार तक, कैसा रहा भारतीय वस्त्र उद्योग का सफ़र?
    मध्यकाल 1450 ईस्वी से 1780 ईस्वी तक

     10-09-2024 09:35 AM


  • खनिजों के वर्गीकरण में सबसे प्रचलित है डाना खनिज विज्ञान प्रणाली
    खनिज

     09-09-2024 09:45 AM


  • आइए देखें, कुछ दुर्लभ जीवों की अद्भुत क्षमताएं
    शारीरिक

     08-09-2024 09:20 AM


  • गणेश चतुर्थी विशेष: गणेश जी का हाथी स्वरुप है कई संस्कृतियों में भाग्य का प्रतीक
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     07-09-2024 09:19 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id