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भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिम–उत्तरी भाग में स्थित थार मरुस्थल(Thar Desert), जो ‘महान भारतीय मरुस्थल’(The Great Indian Desert) के नाम से भी प्रचलित है, एक विस्तारित शुष्क क्षेत्र है। यह मरुस्थल भारत और पाकिस्तान के बीच 200,000 वर्ग किमीक्षेत्र में फैला हुआ है। यह मरुस्थल बालू के टीलोंसे ढँका हुआ एक उष्ण मैदान है।यह विश्व का बीसवाँ सबसे बड़ा मरुस्थल है और नौवाँ सबसे बड़ा गरम उष्णकटिबंधीय मरुस्थल है। थार का 85% भाग भारत में और 15% भाग पाकिस्तान में है।भारत मेंथार मरुस्थल के 62% विस्तार के साथ राजस्थान के कुल क्षेत्रफल का 61.11% भाग मरुस्थल से घिरा हुआ है। हालांकि, यह मरुस्थल गुजरात, पंजाब, हरियाणा और पाकिस्तान के सिंध, पंजाब प्रांत में भी फैला हुआ है।थार का पश्चिमी भाग मरुस्थलीय है और बहुत शुष्क है, जबकि पूर्वी भाग में कभी-कभी हलकी वर्षा हो जाती है और रेत के टीले भी कम पाए जाते हैं ।
विश्व के सभीरेगिस्तान वैश्विक भू-सतह के लगभग एक-तिहाई हिस्से को आच्छादित करते है। इन रेगिस्तानों की विशेषता कम से कम वर्षा, अन-उपजाऊऔर रेतीली मिट्टी, अत्यधिक तापमान, झुलसानेवाली गर्म हवाएं, कम जलग्रहण क्षमता वाली भूमि, और अक्सर गैर-नवीकरणीय भूजल पर पूर्ण निर्भरताहै।फिर भी, रेगिस्तान लाखों लोगों की आजीविका का स्रोत होते हैं। लेकिन आजरेगिस्तान की खाद्य प्रणालीऔरकृषि जैवविविधता खतरे में है।जलवायु परिवर्तन, बढ़ती जनसंख्या, अनुचित भूमि प्रबंधन परियोजनाएं, अत्यधिक तापमान, मिट्टी की कम उर्वरता, कार्बनिक पदार्थों की सीमित उपलब्धता, पानी की कमी और लवणता, हवा का क्षरण, उच्च वाष्पीकरण दर, और ऊर्जा स्रोतों तथाबाजारों से अलगाव,रेगिस्तानी क्षेत्रों की कृषि के लिए समस्याएं बन जाते हैं।
लेकिन इसके बावजूद दशकों के अनुसंधान और तकनीकी विकास से कृषि अब सिर्फ अमरुस्थलीय क्षेत्रों तक ही सीमित न होकर,मरुस्थलीय क्षेत्रों में भी काफी प्रगति कर रहीहै।मरुस्थलीय कृषि में वृद्धि काफी हद तक संरक्षित कृषि प्रौद्योगिकी और अनुसंधान केंद्रों द्वारा विकसित परियोजनाओं के एक प्रभावी प्रबंधन के कारण आई है।साथ ही, अलवणीकरण प्रौद्योगिकी, नवीकरणीय ऊर्जा (विशेष रूप से सौर-ऊर्जा), जल-बचत प्रौद्योगिकी, ग्रीनहाउस सिस्टम(Greenhouse System)और वैकल्पिक उद्योगों कीसफलताओं से सबसे कठोर परिस्थितियों में भी, सबसे बंजर भूमिपर खाद्य उत्पादन सक्षम हुआ है।रेगिस्तानी वातावरण में कृषि के लिए प्रयोग में लाई जाने वाली कई नवीन तकनीकों ने, जैसे नेट हाउस(Net Houses), हाइड्रोपोनिक सिंचाई(Hydroponic Irrigation) और ड्रिप सिंचाई(Drip Irrigation) प्रणाली,ने पानी और ऊर्जा के उपयोग को कम करते हुए फसलों की उत्पादकता में वृद्धि की है।विश्व का 44% भोजन एवं 50% पशुधन भी, विश्व के सूखे क्षेत्रों में पैदा होता है। यह अनुमान लगाया गया है कि सूखे इलाकों में रहने वाले 2.7 बिलियन लोगों में से, लगभग 40 मिलियन लोग रेगिस्तानों में रहते हैं,जहां आम तौर पर 100 मिमी वार्षिक वर्षा होती हैं।
इस प्रकार की मरुस्थलीय खेती का विस्तार कई देशों, राज्यों और सरकारों की सहायक नीतियां बनाने की इच्छा से भी प्रेरित हुआ है।ये नीतियां खाद्य उत्पादों के आयात पर देशों की निर्भरता को कम करने में मदद करने के लिए और जैविक उत्पादों के निर्यात हेतु अतिरिक्त मूल्य वाले उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए मरुस्थलीय खेती को प्रोत्साहित करती हैं।
आइए,रेगिस्तान में कृषि की एक सफल कहानी को पढ़ते है।राजस्थान के बाड़मेर शहर के गडरा रोड पर दिखने वाले छोटे खजूर के पेड़ कई लोगों के लिए एक आश्चर्य की बात है। यह थार मरुस्थल का ही एक क्षेत्र है, जहां 2009 तक कोई बस्ती नहीं थी।हालांकि, आज भूजल तालिका के पुनर्भरण आधुनिक कृषि तकनीकों और किसानों के दृढ़ संकल्प के साथ यहां कई फसलों का सफल उत्पादन हो रहा है।इन नई तकनीकों एवं प्रयासों ने यहां न केवल लोगों को आजीविका का एक स्थायी साधन प्रदान किया है, बल्कि यहां के मरुस्थलीकरण को भी रोका है।
इस क्षेत्र में,जहां गर्मियों में चरम तापमान 50° सेल्सियस तक बढ़ जाता है,पहले केवल जौ और मक्के की ही फसल उगाई जाती थी;परंतु, आज किसानों के कुओं में उपलब्ध प्रचुर पानी के कारण पिछले 3-4 वर्षों में यहां किसानों ने फल और नकदी फसल उगाने के बारे में सोचने का साहस किया है।अन्यथा अधिकांश लोगों को इस क्षेत्र की विषम परिस्थितियों के कारण आजीविका के लिए बड़े शहरों में स्थानांतरित होना पड़ता।आज यहां अंजीर की खेती भी की जा रही है,जिससे किसानों को प्रति किलोग्राम पर 400–500 रुपए प्राप्त होते है।इसके अलावा,बेर और अनार भी कुछ सफल फसलों में शामिल है।
रेगिस्तानी क्षेत्रों की अप्रयुक्त भूमि में उच्च मूल्य के खनिज और पोषक तत्व होते हैं,जो थोड़े लवणीय जल के संयोजन के साथ बंजर भूमि को खेती योग्य भूमि में परिवर्तित करने में सक्षम होते हैं।कुछ वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार, रेगिस्तानी क्षेत्रों की मिट्टी की उर्वरता कुछ वर्षों तक बनी रहेगी ।साथ ही,मरुस्थल में कई क्षेत्रों में भूजलवाही स्त्रोत हैं जिनमें हजारों वर्षों से मीठे जल का भंडार है।
रेगिस्तानी कृषि की स्थिरता और लचीलेपन को सुनिश्चित करने और इसके सामाजिक-आर्थिक प्रभावों को अधिकतम करने के लिए, रेगिस्तान की खेती को दीर्घकालिक और एकीकृत कृषि प्रणाली के रूप में प्रबंधित किया जाना चाहिए।
संदर्भ
https://bit.ly/3ItSLfZ
https://bit.ly/3OqdoNF
https://bit.ly/3OubvQm
चित्र सन्दर्भ
1. रेगिस्तान में खेती को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. मरुस्थल और पहाडियों को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3. हाइड्रोपोनिक खेती को दर्शाता एक चित्रण (Wallpaper Flare)
4. रेगिस्तान में की गई खेती को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
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