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रामपुर और बरेली के बीच ग्रामीणों की आवाजाही को आसान बनाने के लिए 9.25 करोड़ रुपये की लागत से एक पुल का निर्माण किया गया था, हालांकि यह अभी तक चालू नहीं हुआ है। पुल के चालू न होने के कारण लोग आने-जाने के लिए नाव के सहारे नदी पार करने को मजबूर हैं।पुल के मार्ग पर मिट्टी डाल देने की वजह से पुल ऊंचा हो गया है और पुल के पास से गुजर रहीं बिजली की हाईटेंशन लाइनें नीची हो गई हैं। ऐसे में कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है। इसके लिए सेतु निगम की ओर से पुल को टीन की चादर लगाकर बंद कर दिया गया है।पुल चालू न होने की वजह से ग्रामीणों को आवागमन के लिए 15 से 20 किलोमीटर तक अतिरिक्त सफर तय करना पड़ता है। दरअसल, यह पुल रामपुर और बरेली की कनेक्टविटी के लिए अहम है क्योंकि, क्षेत्रीय लोगों को बरेली जाने के लिए पहले मिलक आना पड़ता है और फिर वे बरेली जा पाते हैं।लेकिन यदिपुल चालू हो जाता है तो क्षेत्र के लोग बरेली सीधे आ-जा सकेंगे। इससे उनके सफर का समयऔर पैसे की बर्बादी दोनों बचेगी।नदी पर पुल तो बन गया है लेकिन सड़क का काम शुरू नहीं हो सका है। पैदल और बाइक वाले भी नदी में पानी अधिक होने के कारण नाव से उतरने को मजबूर हैं।भाखड़ा-सैंजनी नदी बरेली और रामपुर दोनों के लिए अहम है।यदि पुल जल्द चालू हो जाए तो ग्रामीणों को इससे काफी लाभ होगा।हमारे देश में लगभग 173,000 पुल हैं और उनमें से लगभग 36,470 पुल ब्रिटिश राज के तहत बनाए गए थे। 2015 की रेलवे ऑडिट रिपोर्ट (Railway Audit Report) की सबसे हालिया जानकारी के अनुसार, लगभग 6,700 पुलऔर भी पुराने हैं, जिनमें से कुछ का निर्माण 140 साल पहले हुआ था।इनमें से कई पुल तकनीकी रूप से खराब हैं,जिसका अर्थ है कि वे जीर्ण-शीर्ण अवस्था में हैं।इन पुलों का उपयोग लोगों को जोखिम में डाल सकता है, तथा इनकी तत्काल मरम्मत या सुदृढीकरण करने की आवश्यकता है।भारतीय पुल प्रबंधन प्रणाली केंद्र का अनुमान है कि कम से कम 5,300 पुल संरचनात्मक रूप से संकटग्रस्त हैं और उन पर ध्यान देने कीतत्काल आवश्यकता है।2018मेंअकेले उत्तर प्रदेश में 226 खराब पुल थे।
कई लोगों को एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए पुलों का उपयोग करना पड़ता है। लगभग 5,000 से अधिक पुलों को मरम्मत की आवश्यकता है, और इस प्रकार इन पुलों के माध्यम से यात्रा करके भारतीय यात्री हर दिन अपनी जान जोखिम मेंडालते हैं।गुजरात में कुछ समय पूर्व एक पुल के गिरने से 135 लोगों की मौत हो गई थी, जिसने पूरे भारत में उन हजारों अन्य पुलों की सुरक्षा से सम्बंधित चिंता उत्पन्न की है, जिनका निर्माण औपनिवेशिकयुग के दौरान हुआ था।मोरबी में मौजूद पुल एक सदी से अधिक पुराना था,जो कि टूटते ही दो टुकड़ों में विभाजित हो गया। इस समय अनेकों लोग नदी पर शाम का आनंद लेने के लिए इकट्ठा हुए थे। पुल के बीच में खड़े लोगों में से कई नदी में गिर गए और डूब गए, जबकि अन्य नीचे मौजूद पत्थरों और शिलाखंडों पर गिरने के कारण मारे गए। इस घटना के बाद से भारत के अन्य पुराने पुलों को लेकर भी भय बढ़ रहा है।इंडियन इंस्टीट्यूशन ऑफ ब्रिज इंजीनियर्स (Indian Institution of Bridge Engineers) के सदस्य का कहना है कि कई संकटग्रस्त और पुराने पुलों का संरचनात्मक रूप से ऑडिट नहीं किया गया है। यह चिंता का विषय है, क्यों कि अंग्रेजों द्वारा बनाए गए पुल कम भार वाली वस्तुओं को ही वहन कर सकते थे।सरकार को हर तीन से चार साल में पुल की संरचना का ऑडिट करना चाहिए।कंक्रीट की गुणवत्ता की जांच करने के लिए स्ट्रेन गॉज सेंसर (strain gauge sensor) का उपयोग करना चाहिए ताकि यह भी पता चल सके कि वे भार उठाने योग्य हैं, या नहीं। आधुनिक पुलों में, ध्वनि संकेत के लिए संरचना में सेंसर लगे होते हैं, लेकिन भारत के पुराने पुलों में इनका अभाव है।2018 में, एक संसदीय समिति ने पाया कि भारत के रेलवे पुल यात्रियों के लिए एक जोखिम थे और उन्हें अपग्रेड करने की सख्त जरूरत थी।संसदीय समिति नेसंकटग्रस्त पुलों की मरम्मत में अत्यधिक देरी के लिए रेलवे को फटकार भी लगाई, क्यों कि संकटग्रस्त पुलों की मरम्मत पर ध्यान न देने सेयात्रियों की सुरक्षा से समझौता किया जा रहा है।संसदीय समितिकी रिपोर्ट में पुराने ब्रिटिश पुलों कीगुणवत्ता के लिए उनकी प्रशंसा भी की गई।रिपोर्ट में कहा गया, कि जबकि ब्रिटिश शासन के दौरान निर्मित कुछ रेलवे पुल अच्छी स्थिति में हैं, वहीं स्वतंत्रता के बाद निर्मित अनेकों पुल घटिया गुणवत्ता के हैं और उन्हें लगातार मरम्मत की आवश्यकता है।
संदर्भ:
https://bit.ly/41SoMF5
https://bit.ly/41Y3fLk
https://bit.ly/3MpTpfs
चित्र संदर्भ
1. नाव से नदी को पार करते ग्रामीणों को दर्शाता चित्रण (Flickr)
2. ग्रामीण भारत के एक सड़क पुल को दर्शाता चित्रण (Flickr)
3. एक गिरे हुए पुल को दर्शाता चित्रण (Pixabay)
4. पुल पर बैठे हुए बैल को संदर्भित करता एक चित्रण (Wallpaper Flare)
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