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लखनऊ से कुछ दूर स्थित, प्रसिद्ध कुकरैल घड़ियाल प्रजनन केंद्र (Kukrail Gharial Breeding Center) में, लगभग 300 घड़ियाल है। ये खूंखार दिखाई देने वाले सरीसृप, जलीय पारिस्थितिकी (Aquatic Ecology) में बेहद अहम् भूमिका निभाते हैं। हाल के दिनों में घड़ियालों और मगरमच्छों की जनगढ़ना से प्राप्त आंकड़ो को देखने के बाद, पर्यावरणविदों और संरक्षणवादियों ने राहत की सांस ली है, लेकिन खारे पानी का मगरमच्छ, अभी भी अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहा है।
ओडिशा के केंद्रपाड़ा (Kendrapara) जिले में भीतरकनिका राष्ट्रीय उद्यान (Bhitarkanika National Park) और इसके आसपास के क्षेत्रों में आयोजित वार्षिक सरीसृप जनगणना से पता चला है कि, 2023 में खारे पानी के मगरमच्छों (Saltwater Crocodiles) की आबादी में मामूली वृद्धि हुई है। वन अधिकारियों ने इस साल कुल 1,793 मगरमच्छों की गिनती की। इनमें 20 सफेद मगरमच्छ भी शामिल थे।
सरीसृपों की जनगणना करने के लिए, 22 टीमों का गठन किया गया था, जिन्हें उद्यान की खाड़ियों और नदियों के साथ-साथ आस-पास के क्षेत्रों में एस्टुराइन मगरमच्छों (Estuarine Crocodiles) की गिनती का काम सौंपा गया था। जनगणना 10 से 12 जनवरी तक हुई। चरम सर्दियों की इस अवधि में 50 प्रतिशत से अधिक एस्टुराइन मगरमच्छ, मिट्टी के किनारे धूप में निकलकर आते हैं, इसलिए यह समय सटीक गणना के लिए उपयुक्त साबित हुआ।
मगरमच्छों की गणना के बाद विभिन्न आयु समूहों से जुड़े, निम्नलिखित आंकड़ों को पेश किया गया
569 नवजात (दो फीट),
388 एक साल के बच्चे (2-3 फीट)
325 किशोर (3-6 फीट)
166 उप-वयस्क (6-8 फीट लंबे) और 345 वयस्क सरीसृप (8 फीट से अधिक)।
जनगणना रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि, भितरकनिका में 20 सफेद मुहाने वाले मगरमच्छ भी रहते हैं। साल 2002 से 2021 तक मगरमच्छ की आबादी के आंकड़ों का एक ऐतिहासिक रिकॉर्ड निम्नवत दिया गया है, जो उनकी संख्या में वृद्धि की प्रवृत्ति को उजागर करता है।
•2002 में 1,308
•2003 में 1,342
•2004 में 1,355
•2005 में 1,449
•2006 में 1,454
•2007 में 1,482
•2008 में 1,482
•2009 में 1,572
•2010 में 1,610
•2011 में 1,654
•2012 में 1,646
•2013 में 1,649
•2014 में 1,644
•2015 में 1,665
•2016 में 1,671
•2017 में 1,682
•2018 में 1,698
•2019 में 1,742
•2020 में 1,757
•2021 में 1,768
जनगणना करने के लिए टीम ने रात के समय स्पॉटलाइट्स (Spotlights) का इस्तेमाल किया और खारे पानी के मगरमच्छों का सटीक पता लगाने के लिए ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (Global Positioning System) तकनीक का इस्तेमाल किया। उन्होंने फोटोग्राफी कार्यों (Photographic Works) के लिए डिजिटल कैमरों (Digital Cameras) का भी इस्तेमाल किया, जिससे उन्हें मगरमच्छों की लंबाई और उम्र निर्धारित करने की अनुमति मिली। मगरमच्छों के सिर की तस्वीरों का विश्लेषण करके, शोधकर्ता उनकी कुल लंबाई मापने में भी सक्षम थे। टीम ने दिन और रात दोनों समयावधि में मगरमच्छों की गतिविधि के साथ-साथ उनकी आंखों की चमक से जुड़ा फील्ड डेटा (Field Data) एकत्र किया।
1975 में भितरकनिका के भीतर दंगमाला में शुरू की गई, मगरमच्छ प्रजनन और पालन परियोजना की सफलता ने मगरमच्छों की वृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (United Nations Development Program) के सहयोग से वन और पर्यावरण मंत्रालय (Ministry Of Environment And Forests) द्वारा शुरू की गई, इस परियोजना का प्रमुख उद्देश्य मगरमच्छों का संरक्षण करना है। परियोजना शुरू होने के बाद उद्यान की खाड़ियों, नदियों और अन्य जल निकायों में मगरमच्छों की संख्या बढ़ने लगी। 2006 में, भितरकनिका में एक 23 फुट लंबे खारे पानी के मगरमच्छ को गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड (Guinness Book Of World Records) द्वारा दुनिया के सबसे बड़े मगरमच्छ के रूप में भी मान्यता दी गई थी।
खारे पानी का मगरमच्छ, मुख्य रूप से सुंदरवन के दलदलों में पाया जाने वाला एक शानदार सरीसृप है। "दलदल के ड्रैगन (Swamp Dragon)" के रूप में जानी जाने वाली यह एक ऐसी प्रजाति है, जिसे अभी गहरे अध्ययन और सुरक्षा की सख्त आवश्यकता है। ये मगरमच्छ खारे और मीठे पानी, दोनों वातावरण में जीवित रह सकते हैं। इनकी शारीरिक संरचना, अविश्वसनीय रूप से मजबूत होती है और लंबाई में यह छह मीटर तक बढ़ सकते हैं, जिससे ये पृथ्वी पर सबसे बड़े सरीसृपों में से एक बन जाते हैं। लेकिन अफसोस की बात है कि खारे पानी के इस शानदार मगरमच्छ को आज कई खतरों का सामना करना पड़ रहा है। जंगलों की कटाई और प्रदूषण जैसी मानवजनित गतिविधियों के कारण, इनके निवास स्थलों पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है। अपने प्राकृतिक आवासों के नष्ट होने से इन शानदार जीवों के विलुप्त होने का खतरा पैदा हो गया है। खारे पानी के मगरमच्छ की सुरक्षा के लिए संरक्षण के प्रयास करने बेहद जरूरी हैं। पारिस्थितिकी तंत्र में उनके महत्व और उनके आवासों को संरक्षित करने की आवश्यकता के बारे में जागरूकता बढ़ाने की भी जरूरत है। इनके अवैध शिकार को रोकने के लिए संरक्षित क्षेत्रों की स्थापना और नियमों को लागू करने जैसी पहल एक महत्वपूर्ण बदलाव ला सकती है।
हमारे लखनऊ में कुकरैल नाइट सफारी (Kukrail Night Safari) और चिड़ियाघर परियोजना को केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण की तकनीकी समिति से प्रारंभिक स्वीकृति मिल गई है, जिससे इसके विकास का रास्ता साफ हो गया है। यह परियोजना वन्यजीव संरक्षण और पर्यावरण पर्यटन के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता के अनुरूप चलाई गई है। प्रस्तावित कुकरैल नाइट सफारी और चिड़ियाघर, 2027.4 हेक्टेयर वन क्षेत्र को कवर करेगा। इसमें एक जूलॉजिकल गार्डन (Zoological Garden) और एक नाइट सफारी पार्क (Night Safari Park) भी शामिल है, जिसमें घने क्षेत्रों को संरक्षित करते हुए जंगल के भीतर खुली जगह का उपयोग किया जाएगा। परियोजना का उद्देश्य ईकोटूरिज्म (Ecotourism) को बढ़ावा देना, स्थानीय रोजगार के अवसर पैदा करना तथा आसपास के क्षेत्रों के सांस्कृतिक, आर्थिक तथा सामाजिक विकास करना है। परियोजना के तहत सुगम्यता में सुधार करने के लिए, जंगल के बाहरी इलाके में चार-लेन सड़क बनाने की भी योजना है, जिससे आगंतुकों को यहां तक पहुंचने में आसानी होगी। साथ ही यह प्रयास वन्यजीव संरक्षण को भी सुनिश्चित करेगा और वन्यजीवों तथा जंगलों के बारे में जागरूकता बढ़ाएगा।
संदर्भ
https://bit.ly/41wqE6t
https://bit.ly/42Q1XmA
https://bit.ly/3Mlx9EM
चित्र संदर्भ
1. कुकरैल वन क्षेत्र को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. कुकरैल वन क्षेत्र के भीतरी दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. खारे पानी के मगरमच्छ को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. नन्हे खारे पानी के मगरमच्छों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. भीतरकनिका राष्ट्रीय उद्यान को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. कुकरैल घड़ियाल प्रजनन केंद्र के बोर्ड को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
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