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आज भारत की अधिकांश ग्रामीण आबादी के लिए, पशुधन अर्थात पालतू जानवर, दूध और जैविक खाद प्रदान करके, एक महत्वपूर्ण संपत्ति साबित हो रहे हैं। किंतु बीमार पड़ जाने या चोटिल हो जाने पर इन ग्रामीण किसानों की यही संपत्ति, इनके ऊपर बहुत बड़ा आर्थिक बोझ बन जाती है। कई बार इन जानवरों को अपने मालिकों द्वारा इसी बुरी स्थिति में सड़कों पर लावारिस छोड़ दिया जाता है। इसलिए यह जरूरी हो जाता है कि सभी पशुधन मालिकों को अपने मवेशियों का बीमा कराने के लिए प्रेरित किया जाए। ताकि इन जानवरों के जीवन के साथ-साथ इनके मालिकों की जेब भी सुरक्षित रहे।
डेयरी क्षेत्र, ग्रामीण भारत की सफलता की कहानियों में नए कीर्तिमान जोड़ रहा है। डेयरी क्षेत्र ने ही संसाधन विहीन, छोटे और सीमांत किसानों के साथ-साथ भूमिहीन मजदूरों के साथ मिलकर, भारत को दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक राष्ट्र बना दिया है।
आपको जानकर हैरानी होगी कि कमाई के मामले में दूध का मूल्य अब गेहूं और चावल के कुल मूल्य से भी अधिक हो गया है। लेकिन फिर भी सरकार द्वारा फसल बीमा योजना पर तो बहुत ध्यान दिया गया है, किंतु दुधारू पशुओं के जोखिम कवरेज को बड़े पैमाने पर नजरअंदाज किया जा रहा है। बाढ़ या सूखे जैसी आपदा के कारण पशुओं के मालिकों को भी उतना ही नुकसान होता है जितना किसानों को उनकी फसल के नुकसान से होता है। अगस्त 2018 में आई बाढ़ और भूस्खलन के कारण, अकेले केरल में 75,857 मवेशियों की जान चली गई थी। जब दुधारू पशु मरते हैं, तो मालिकों को बहुत बड़ा वित्तीय नुकसान होता है।
केरल के ‘राज्य आपदा राहत कोष’ (State Disaster Relief Fund) के दिशा-निर्देशों के तहत, राज्य के किसान गाय, भैंस या ऊंट के नुकसान के लिए 30,000 रुपये और भेड़, बकरी या सूअर के लिए 3000 रुपये की सहायता प्राप्त कर सकते हैं। हालांकि, दुधारू पशुओं के नुकसान की वास्तविक लागत इस राशि का 2-3 गुना अधिक है।
वहीं बीमा कंपनियाँ दुर्घटनाओं, बीमारियों, सर्जरी और यहाँ तक कि दंगों और हड़तालों के कारण दुधारू पशुओं के नुकसान को कवर करने के लिए अनेक योजनाओं की पेशकश करती हैं। बीमित राशि, जानवर के बाजार मूल्य के बराबर होती है, और मूल प्रीमियम दर (Original Premium Rate) प्रति वर्ष बीमा राशि का 4% तक है।
मई 2014 से, भारत सरकार द्वारा देश के सभी जिलों में दुधारू पशुओं सहित सभी पशुओं के लिए एक जोखिम प्रबंधन और बीमा योजना लागू की गई है। यह योजना बीमा प्रीमियम पर 50% सब्सिडी (Subsidy) प्रदान करती है, लेकिन यह योजना भेड़, बकरी, सुअर और खरगोश को छोड़कर प्रति लाभार्थी प्रति पांच पशुओं तक सीमित है। उपरोक्त जानवरों के संदर्भ में सब्सिडी 50 जानवरों तक उपलब्ध है। बीमा हेतु आवेदन करने के लिए किसानों को पशु चिकित्सक द्वारा जारी स्वास्थ्य प्रमाण पत्र प्रदान करने की आवश्यकता होती है।
किंतु आकर्षक शर्तों के बावजूद पशुओं के लिए बनाई गई यह बीमा योजना शुरू नहीं हो पाई है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2016-17 में बीमित पशुओं की संख्या 2014-15 के 14.80 लाख से घटकर 7.44 लाख हो गई। हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान जैसे कुछ राज्य, जहां गायों से संबंधित कई दुर्घटनाएं सामने आई हैं, वहां किसी भी जानवर का बीमा नहीं कराया गया है। भारत में ग्रामीण आबादी के पास बड़ी संख्या में गायें और भैंसें हैं, लेकिन उनमें से बहुत कम का ही बीमा होता है।
अब जरा नीचे दी गई सूची पर एक नजर डालिए:
बीमा योजना को सफल बनाने के लिए बड़ी संख्या में लोगों को बीमा खरीदने की आवश्यकता होती है, ताकि सभी के लिए प्रीमियम कम रखा जा सके। फसल बीमा के विपरीत, पशुधन बीमा में नुकसान के व्यक्तिगत आकलन की आवश्यकता भी होती है। बीमा कंपनियों के लिए छोटे किसानों तक पहुंचना महंगा भी साबित होता है।
प्रधान मंत्री फसल बीमा योजना के तहत फसल बीमा लेना किसानों के लिए अनिवार्य होता है किंतु पशु बीमा योजना वैकल्पिक है और यही इसकी विफलता का प्रमुख कारण है। बैंक पशुधन बीमा में शामिल नहीं हैं और जागरूकता की कमी और बीमा खरीदने के लिए आवश्यक प्रक्रिया के कारण, कुछ किसान अपने पशुओं का बीमा कराने की जहमत ही नहीं उठाते हैं। किसानों के द्वारा पशु बीमा खरीदने का विकल्प नहीं चुनने के कारण अन्य ऐसे किसानों के लिए, जो बीमा खरीदते हैं, प्रीमियम और बढ़ जाता है।
किंतु अब आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, ओडिशा, बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश जैसे बाढ़-प्रवण राज्यों में किसानों की सुरक्षा के लिए पशुधन बीमा कवरेज का विस्तार करना महत्वपूर्ण है। पशुपालन छोटे किसानों के लिए अतिरिक्त आय और महिलाओं के लिए रोजगार प्रदान करता है, इसलिए बीमा कवरेज प्रदान करने से उन्हें आपदाओं के दौरान होने वाले नुकसान से बचाने में मदद मिल सकती है। राज्य सरकारों और बीमा कंपनियों को पशु बीमा उत्पादों को और बढ़ावा देने की जरूरत है। अगर केरल के बाढ़ प्रभावित किसानों ने पशु बीमा लिया होता तो वे अपना नुकसान कम कर पाते। अतः अब किसानों की पशुधन हानि को दूर करने के लिए केंद्र सरकार ‘एक सार्वभौमिक पशुधन बीमा योजना’ की योजना बना रही है, जिसमें स्वदेशी और संकर नस्लों के साथ-साथ याक सहित सभी प्रकार के मवेशी शामिल होंगे।
रिपोर्टों के अनुसार, इस योजना को प्रधान मंत्री फसल बीमा योजना की तर्ज पर तैयार किया जा सकता है। इस योजना से भारत में उन लाखों पशुपालकों को राहत मिल सकती है जिन्हें पशु रोगों तथा अन्य कारणों से काफी नुकसान उठाना पड़ता है। इस योजना का अंतिम लक्ष्य किसानों और पशुपालकों को सुरक्षा प्रदान करना और पशुधन और उनके उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार करना है।
संदर्भ
https://bit.ly/3K8GrCR
https://bit.ly/3JLJOOW
चित्र संदर्भ
1. गाय और मनुष्य को संदर्भित करता एक चित्रण (Pxfuel)
2 जानवरों की खरीदारी को संदर्भित करता एक चित्रण (Flickr)
3. खिड़की से झांकती गाय को दर्शाता एक चित्रण (Pxfuel)
4. बीमार गाय को संदर्भित करता एक चित्रण (Flickr)
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