City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Total | ||
34210 | 511 | 34721 |
***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions
प्रभु श्री राम के जीवन दर्शन को दर्शाते अधिकांश धार्मिक धारावाहिकों में श्री राम की जीवन यात्रा को उत्तरकाण्ड तक ही दर्शाया जाता है। इसमें प्रभु श्री राम के अयोध्या लौटने, राजा के रूप में उनके राज्याभिषेक, और अपने भाइयों और पत्नी सीता के साथ उनके पुनर्मिलन की कहानी वर्णित है। इसलिए देश में ऐसे बहुत कम लोग हैं जो यह बता सकते हैं कि रामायण के अंत अर्थात प्रभु श्री राम के पृथ्वी पर अंतिम क्षण कैसे थे?
क्या आप जानते हैं कि भगवान विष्णु के सभी अवतारों (प्रभु श्री राम के लिए भी) “मृत्यु” शब्द प्रयोग नहीं किया जाता है। भगवान विष्णु के सभी अवतार धर्म की पुनर्स्थापना करने के लिए पृथ्वी पर आते हैं और फिर वैकुंठ लौट जाते हैं। श्री राम के वैकुंठ गमन को लेकर कई किवदंतियां प्रचलित हैं।
सबसे प्रचलित किवदंती के अनुसार अश्वमेध यज्ञ को पूरा करने के बाद, श्री राम, ब्रह्मचर्य और प्रशासन की अपनी सामान्य दिनचर्या में व्यस्त हो गए थे। उनके सभी भाइयों ने भी राज्य के विभिन्न हिस्सों पर शासन व्याप्त कर लिया था। माता सीता ने स्वयं पर लगे आरोपों से दुखी होकर पृथ्वी की देवी भु देवी के गर्भ में शरण ले ली थी, जिसके बाद गरुड़ ने उन्हें विष्णु लोक में पहुँचाया।
माता सीता के गमन के बाद, श्री राम ने ग्यारह हजार वर्षों तक अयोध्या पर शासन किया। इसी बीच एक दिन, एक वृद्ध तपस्वी भगवान ब्रह्मा का एक महत्वपूर्ण संदेश लेकर श्री राम से मिलने आए, और उनसे गुप्त रूप से बात करने की इच्छा प्रकट की। श्री राम ने लक्ष्मण को बुलाया और निर्देश दिया कि जब तक वह तपस्वी के साथ बातचीत कर रहे हैं तब तक किसी को भी प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। इसके बाद लक्ष्मण, स्वयं द्वार पर खड़े हो गए और यह सुनिश्चित किया कि कोई भी भीतर न आ सके।
वहीं भीतर तपस्वी ने प्रभु श्री राम को बताया कि रावण, कुंभकर्ण और अन्य राक्षसों की मृत्यु के बाद से राम को ग्यारह हजार साल तक जीवित रहना था और अब राम के लिए पृथ्वी छोड़ने और वैकुंठ लौटने का समय आ गया है।
जब यह गुप्त बातचीत चल रही थी, तभी महर्षि दुर्वासा भी वहां पहुंचे और श्री राम से मिलने की इच्छा प्रकट की। लेकिन लक्ष्मण ने उन्हें बाहर ही रोक दिया। इस बात पर ऋषि दुर्वासा क्रोधित हो गए। उन्होंने लक्ष्मण को श्राप देने की धमकी दी, जिसके बाद दुविधा में घिरे लक्ष्मण ने अनंत नाग (अपने मूल रूप) धारण करके, सरयू नदी में प्रवेश कर दिया। इसके बाद, श्री राम को भी यह आभास हुआ कि पृथ्वी छोड़ने का उनका समय भी अब आ गया है।
उन्होंने कुशावती साम्राज्य में अपने पुत्र कुश और द्वारावती में पुत्र लव को राजा घोषित किया। श्री राम से संकेत पाकर विभीषण, सुग्रीव, जाम्बवान, हनुमान, नील, नल, सुषेण और निषाद भी वहां पहुंचे। शत्रुघ्न ने अयोध्या में अपने पुत्रों का राज्याभिषेक किया। बाकी लोगों ने भी कहा कि वे राम की अनुपस्थिति में एक पल के लिए भी पृथ्वी पर नहीं रहना चाहेंगे। लेकिन राम ने विभीषण को लंका की सत्ता में बने रहने के लिए कहा और हनुमान को श्री राम के संदेश को बनाए रखने के लिए हमेशा के लिए पृथ्वी पर बने रहने का निर्देश दिया। उनमें से शेष बचे लोग श्री राम के साथ पवित्र सरयू नदी में प्रवेश कर गए, और जैसे ही वह नदी की गहराई में पहुंचे, वे महाविष्णु में परिवर्तित हो गए।
एक अन्य किवदंती के अनुसार अपने शासन के बाद, प्रभु श्री राम ने अपने दो पुत्रों, कुश और लव को अयोध्या के नए राजाओं के रूप में नियुक्त किया। भगवान राम ने उन्हें हजारों रथ, अनगिनत हाथी और दस हजार घोड़े भेंट किए।
भगवान राम ने विभीषण को समय के अंत तक लंका पर शासन करने की आज्ञा भी दी। भगवान राम ने भगवान हनुमान को अमरता प्रदान की और उनसे कहा कि जब तक दुनिया में राम कथा सुनाई जाएगी तब तक राम नाम बना रहेगा।
ऋषि वशिष्ठ ने महाप्रस्थान का अनुष्ठान किया। निर्धारित अनुष्ठान करने के बाद, भगवान राम ने पृथ्वी छोड़ दी और अपने वैकुण्ठ में प्रवेश किया। इसके बाद सभी देवी देवताओं ने परम आनंद की अनुभूति की और भगवान राम की पूजा की, जो अपने मूल विष्णु के रूप में लौट आए थे।
वैदिक शास्त्रों में, “श्री अयोध्या-पुरी” या “साकेत” को भगवान श्री राम के सर्वोच्च निवास के रूप में मनाया जाता है। वशिष्ठ-संहिता के अनुसार, राम का नाम, रूप, लीलाएं और निवास सर्वोच्च दिव्य और सबसे श्रेष्ठ हैं।
पवित्र शास्त्रों में कई वैकुंठ हैं, और उनमें से पाँच को प्रधान माना जाता है:
1) क्षीर-सागर,
2) राम-वैकुंठ
3) कर्ण-वैकुंठ,
4) महा- वैकुंठ
5) परा-वैकुंठ
श्री अयोध्या-पुरी (साकेत-लोक) सभी वैकुंठ का मूल स्रोत मानी जाती है, जहां श्री राम अपने मूल रूप में माता सीता जी के साथ मौजूद हैं। भगवान श्री राम के आध्यात्मिक निवास, साकेत-लोक को नित्य-अयोध्या (शाश्वत अयोध्या, अर्थात जहां कोई युद्ध या विवशता न हो) या परा-अयोध्या (सर्वोच्च आकाश में अयोध्या) के रूप में भी जाना जाता है। अयोध्या को वेद (अथर्व-वेद), आरण्यक (तैत्तिरीय-आरण्यक), विभिन्न उपनिषदों, पुराणों और संहिताओं आदि में ब्रह्म के परम निवास के रूप में वर्णित किया गया है।
संदर्भ
https://bit.ly/42HxkjQ
https://bit.ly/3nxEPts
https://bit.ly/3lKyHOh.
https://bit.ly/3KeTMZt
चित्र संदर्भ
1. श्री राम के अयोध्या आगमन को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
2. पृथ्वी के गर्भ में जाती माता सीता को संदर्भित करता एक चित्रण (GetArchive)
3. लक्ष्मण के प्रस्थान को दर्शाता एक चित्रण (Picryl)
4. राम दरबार को दर्शाता एक चित्रण (Creazilla)
5. प्रभु श्री राम के प्रस्थान को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.