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नौकरी, उद्योग, व्यापार जैसे कई कारणों से अपना देश छोड़ कर दूसरे देशों में रहने वाले भारतवासियों की आबादी दुनिया में सबसे ज्यादा है। काम के लिए करोड़ों भारतीय दुनिया के कई देशों में रहते हैं। हाल के वर्षों में देखा गया है कि भारत से अन्य देशों की तुलना में सबसे ज्यादा खाड़ी देशों की ओर श्रमिक रूख कर रहे हैं । खाड़ी देशों में आने वाले ब्लू-कॉलर श्रमिकों की सबसे बड़ी संख्या उत्तर प्रदेश और बिहार से है, जो कि 2018 में क्रमशः 86,273 और 59,181 दर्ज की गई। उत्तर प्रदेश की एनआरआई (NRI) मंत्री स्वाति सिंह के अनुसार‘हमारे जनसांख्यिकीय लाभ के कारण, उत्तर प्रदेश के खाड़ी देशों में जाने वाले श्रमिकों की संख्या सबसे अधिक है।’ 2020 में, सऊदी अरब की कुल आबादी में लगभग 38.4% प्रवासी थे, जिसमें से सऊदी अरब में काम करने वाले भारतीयों की संख्या लगभग तीस लाख से भी अधिक है।
आपको बता दे कि कतार में फीफा विश्व कप (FIFA World Cup) 2022 के फुटबॉल स्टेडियम को बनाने में वाराणसी के पास के एक गाँव के कई मजदूरों ने काम किया था और अच्छी आमदनी कमाई । लेकिन स्थिति वैसी नहीं है जैसा आप सोच रहे हैं। यहाँ विदेशी कामगारों के शोषण की कहानियां अक्सर सुर्खियां बनती हैं। इसलिए अगर उच्च मजदूरी से आकर्षित होकर आप सऊदी अरब जाने का मन बना रहे है तो आपको सऊदी अरब में मुस्लिम और गैर-मुस्लिम दोनों नियोक्ताओं के लिए काम करने की स्थिति के बारे में पता होना चाहिए।
खाड़ी देशों में कामगारों को जिस वेतन का वादा किया जाता है वो उन्हें नहीं मिलता और जो मिलता भी है वो भी देर से दिया जाता है। यहां काम करने के हालात ठीक नहीं होते। कामगारों का पासपोर्ट तक भी कंपनी रख लेती है। जिसके कारण कर्मचारी तभी अपने देश जा पाते हैं जब कंपनी चाहती है , फिर चाहे भले ही कर्मचारी की कोई भी मजबूरी क्यों न हो। सऊदी सरकार गैर-मुस्लिम संगठनों की उपस्थिति को प्रतिबंधित करने के लिए जानी जाती है। इसलिए कैथलिक और अन्य इकबालिया संगठनों को प्रवासी श्रमिकों के पक्ष में देश में कार्य करने की अनुमति नहीं है, जिसके कारण श्रमिकों को कोई सहायता भी नहीं मिल पाती है। ‘गल्फ को-ऑपरेशन काउंसिल’ (Gulf Cooperation Council- GCC) के 6 देशों - बाहरैंन, कुवैत, कतार , ओमान, सऊदी अरब और यूएई में 80 लाख से ज्यादा भारतीय कामगार रहते हैं। इनमें से लगभग 50 फीसदी ब्लू कॉलर कामगार हैं जो मज़दूरी करते हैं।
खाड़ी देशों में कफाला प्रणाली प्रवासी श्रमिकों को भर्ती करने का लगभग एकमात्र तरीका है , जिसके तहत श्रमिकों पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए जाते हैं । सीधे शब्दों में कहें तो दूसरे देशों से आकर यहां नौकरी करने वाले मजदूरों के पास उत्पीड़न से बचने का कोई अवसर नहीं होता। वह अपनी मर्जी से नौकरी नहीं छोड़ सकते और देश से बाहर जाने के लिए भी उन्हें अपने नियोक्ता से अनुमति लेना अनिवार्य होता है। बिना नियोक्ता की अनुमति के वह नौकरी नहीं बदल सकते और न ही वापस जा सकते हैं। नियोक्ताओं द्वारा अपने मजदूरों के पासपोर्ट जब्त करने, उन्हें अत्यधिक काम के लिए विवश करने, घरेलू कामगारों को बार-बार जबरन कैद करने और यहाँ तक कि उनका शारीरिक और यौन शोषण करने की भी घटनाएं सामने आयी है।
हालांकि, नवंबर 2020 में G20 शिखर सम्मेलन से पहले श्रम कानून सुधारों की घोषणा की गई थी, जिसमें अधिक श्रम गतिशीलता और निजी क्षेत्र में प्रवासी श्रमिकों के लिए नौकरी छोड़ने और देश में फिर से प्रवेश करने की अनुमति भी दी गई थी। इन उपायों का उद्देश्य कफाला व्यवस्था को समाप्त किए बिना उसमें सुधार करना था। किंतु इसके बावजूद कोविड-19 महामारी के समय तो कामगारों की दशा और भी अधिक ख़राब थी, क्योंकि उस समय यहाँ की अर्थव्यवस्था, विशेष रूप से तेल की कीमतों में महत्वपूर्ण गिरावट के कारण मंदी में प्रवेश कर गई थी, जिस कारण प्रवासियों को शारीरिक और मनोवैज्ञानिक यातनाओं का सामना करना पड़ा, साथ ही साथ खाड़ी देशो से बाहर निकलने में और भी अधिक परेशानियों का सामना करना पड़ा । कोविड काल में भी श्रमिकों को स्वच्छता संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ा। ह्यूमन राइट्स वॉच (Human Rights Watch (HRW) ने बताया कि कोविड के दौरान श्रमिकों को बहुत ही अपमानजनक स्थिति में रखा गया एवं उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया। उन्हें अत्यधिक भीड़भाड़ वाले कमरों में रखा जाता था, और गार्ड उन्हें रबर-लेपित धातु की छड़ों से यातनाएं देते थे। कभी-कभी तो श्रमिकों को गार्डों द्वारा पीटे जाने की भी खबरें सामने आई जिसके चलते 2020 में अक्टूबर और नवंबर के बीच तीन लोगों की मौत हो गई थी। ‘ह्यूमन राइट्स वॉच’ में ‘शरणार्थी और प्रवासी अधिकार शोधकर्ता’ के पद पर कार्यरत नादिया हार्डमैन (Nadia Hardman) ने कहा, “सऊदी अरब, दुनिया के सबसे अमीर देशों में से एक है, किंतु महामारी के बीच इस प्रकार की भयावह स्थिति में प्रवासी श्रमिकों को महीनों तक हिरासत में रखना कोई सही बात नहीं है।” नवंबर 2020 में ह्यूमन राइट्स वॉच को दिए गए एक साक्षात्कार में सात बंदी श्रमिकों ने बताया कि “सऊदी अधिकारियों ने उन्हें महीनों तक 350 अन्य प्रवासियों के साथ तंग, गंदे कमरों में रखा। उनमें दो लोग ऐसे थे जो एक साल से अधिक समय से हिरासत में थे। सभी के लेटने के लिए पर्याप्त जगह नहीं थी, इसलिए कुछ लोग दिन में सोते थे और कुछ रात में।उन्हें सोने के लिए गद्दे तक नहीं दिए गए थे , सिर्फ कुछ गंदे कंबल दिए थे।” सामान्य तौर पर, सऊदी अरब में प्रवासियों की न्याय तक पहुंच अत्यंत कठिन है।
कई बार तो स्थिति इतनी दयनीय हो जाती है कि मजदूर की मौत हो जाने के बाद भी परिवार तक कई कई दिनों तक सूचना नहीं पहुँचती। ऐसी ही एक घटना गाजीपुर के कासिमाबाद क्षेत्र के मखनुपुर गांव की है जहां का एक युवक मंजेश सिंह यादव सऊदी अरब में नौकरी करने गया था। वहां तबीयत खराब होने पर उसकी मृत्यु हो गई। यह युवक पिछले 3 साल से सऊदी अरब में ड्राइवर की नौकरी कर रहा था। चार महीने पहले शुगर लेवल बढ़ने पर उसकी तबीयत खराब हो गई थी और इलाज के बावजूद उसकी हालत में सुधार नहीं हो पाया था। और अंततः तबीयत ज्यादा बिगड़ने पर 9 जून 2022 को उसकी मृत्यु हो गई। युवक की मृत्यु के बाद साथ काम करने वाले उसी के इलाके के ही अलावलपुर निवासी सुरेंद्र यादव ने परिवार को घटना की जानकारी दी। परिवार ने शव को भारत लाने के लिए भारतीय दूतावास सहित जिलाधिकारी से भी गुहार लगाई, लेकिन युवक का शव पांच दिन बाद भी भारत नहीं पंहुचा। पत्नी ने पति का शव भारत भेजने के साथ वेतन भुगतान व आर्थिक सहयोग देने की गुहार लगाई थी।
राष्ट्रीय आंकड़ों से पता चलता है कि उत्तर प्रदेश में औपचारिक और अनौपचारिक दोनों क्षेत्रों में पिछले एक दशक में रोजगार के अवसरों में कमी आई है। इसके अलावा, उत्तर प्रदेश सरकार उच्च न्यूनतम मजदूरी को लागू करने में भी सक्षम नहीं रही है। इसलिए आने वाले वर्षों में दूसरे राज्यों और विदेशों में कामगारों के प्रवास बढ़ने की संभावना बढ़ गई है।
हालांकि, उत्तर प्रदेश का एनआरआई विभाग (NRI) अपने प्रवासी श्रमिकों के इन सभी मुद्दों को हल करने के लिए प्रयास कर रहा है। ‘उत्तर प्रदेश वित्तीय निगम-विदेशी जनशक्ति भर्ती एजेंसी’(यूपीएफसी-ओएमआरए) (UP Financial Corporation-Overseas Manpower Recruitment Agency) के माध्यम से उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा सीधे पूर्व-प्रस्थान उन्मुखीकरण कार्यक्रमों (Pre-departure orientation programmes) का प्रावधान किया जा रहा है ।ये कार्यक्रम वीजा, उत्प्रवास नियमों, रोजगार अनुबंधों, सीमा शुल्क नियमों, यात्रा औपचारिकताओं आदि के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं । यह एजेंसी नौकरी के इच्छुक उम्मीदवारों के लिए कौशल उन्नयन कार्यक्रम भी आयोजित करती है। इसके अलावा यह एजेंसी प्रवासी श्रमिकों के सामने आने वाली समस्याओं को दूर करने और उन्हें सहायता प्रदान करने भी मदद करती है। राज्य ने गोरखपुर, लखनऊ, मेरठ, नोएडा और वाराणसी जिलों में प्रकोष्ठों के साथ उत्तर प्रदेश एनआरआई शिकायत निवारण प्रणाली भी शुरू की है। भारत सरकार दखल देकर हजारों भारतीयों की मौजूदा समस्या का समाधान कर सकती है, लेकिन जब तक उनके प्रदेश में रोजगार के पर्याप्त अवसर नहीं होंगे, तब तक गरीबी और गरीबी में रहने वाले लोग सऊदी अरब जैसे खाड़ी देशों की ओर खींचे चले जाएंगे और उसके ना लौट कर आने के संकट के बादल वापस आते रहेंगे।
संदर्भ:
https://bit.ly/3m35XzX
https://bit.ly/3Z13CEr
https://bit.ly/3xUzY7G
https://bit.ly/3Z4ZoLK
चित्र संदर्भ
1. दौड़ लगाते श्रमिकों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. बुर्ज खलीफा के सामने की इमारत में काम करते श्रमिकों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. भवन निर्माण में लगे श्रमिकों को दर्शाता एक चित्रण (Picryl)
4. सैर पर निकले निर्माण श्रमिक को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
5. नौकरी एजेंसी को संदर्भित करता एक चित्रण (maxpixel)
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