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हमारे जंगलों को सुरक्षित रखने में क्या है शहरों का योगदान ?

लखनऊ

 03-03-2023 11:13 AM
जलवायु व ऋतु

जलवायु परिवर्तन वर्तमान समय की एक भयावह वास्तविकता है। मनुष्य इसे घटित करने वाले सबसे बड़े खलनायक रहे हैं। यदि इस मानव जनित जलवायु परिवर्तन का प्रभाव केवल इंसानों तक ही सीमित रहता, तब भी ठीक था, किंतु मुश्किल यह है कि हमारे लालच का शिकार कई बेजुबान और बेकसूर जानवर भी हो रहे हैं।
‘भारतीय मौसम विज्ञान विभाग’ (Indian Meteorological Department (IMD) के अनुसार पिछले वर्ष, 2022 में मार्च महीना भारत के पिछले 122 वर्षों के इतिहास में सबसे गर्म मार्च का महीना दर्ज किया गया था । इसी तरह भारत की राजधानी दिल्ली में अप्रैल का महीना 72 वर्षों में सबसे अधिक गर्म था। पिछले साल पूरे उत्तर भारत और पाकिस्तान ने भी लू के भयावह थपेड़ों को झेला है। शोधकर्ताओं के अनुसार, भविष्य में भारत और पाकिस्तान में गर्म लहरों के 100 गुना अधिक बढ़ने की संभावना है। जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को पूरी दुनिया में देखा जा रहा है। हालिया वर्षों में पहाड़ों में भूस्खलन की और शहरों में बाढ़ आने की घटनाएँ बढ़ी हैं, बड़े चक्रवातों की आवृत्ति में वृद्धि के साथ ही तटीय तूफानों में वृद्धि हो रही है और समुद्र का स्तर भी बढ़ रहा है। इन सभी में सबसे बुरी स्थिति तब नजर आती है, जब तापमान असहनीय स्तर तक गर्म हो जाता है।
जिसके कारण लू और जंगल में आग लगने की घटनाएं भी बढ़ जाती हैं। इस प्रकार तेजी से बदलती जलवायु न केवल मनुष्यों, बल्कि गैर-मानव प्रजातियों अर्थात जानवरों को भी प्रभावित कर रही है। कभी-कभी तो जानवरों का एक खास तबका दूसरों की तुलना में इन घातक गर्मी की लहरों के कारण अधिक गंभीर रूप से प्रभावित होता है। पिछले साल दिल्ली-एनसीआर (Delhi-NCR) में तापमान 46 डिग्री सेल्सियस (118.4 डिग्री फ़ारेनहाइट) तक बढ़ने के कारण, बेजुबान पक्षियों को बुखार, निर्जलीकरण (Dehydration) और हीटस्ट्रोक (Heatstroke) जैसी गंभीर स्थितियों का सामना करना पड़ा। रिपोर्टों के अनुसार, पिछले साल, गर्मियों के दौरान हैदराबाद में एक बचाव दल ने 150 से अधिक निर्जलित पक्षियों को बचाया, जबकि गुड़गांव के एक पक्षी अस्पताल में पिछले वर्षों की तुलना में पक्षियों की संख्या में 1.5 गुना अधिक वृद्धि देखी गई। पक्षियों की भांति ही अनेक सरीसृप (Reptiles) भी भीषण गर्मी के कारण गंभीर रूप से प्रभावित होते हैं। पिछले साल, गर्मियों में दिल्ली-एनसीआर में सरीसृपों, जैसे कि सांपों और छिपकलियों के लोगों के घरों में घुसने की घटनाएँ बढ़ गई थी। सरीसृप बाह्यतापी (Ectothermic) जानवर होते हैं, जिन्हें अपने शरीर के तापमान को नियंत्रित करने के लिए बाहरी श्रोतों की आवश्यकता पड़ती है। इसलिए, अत्यधिक गर्मी के दिनों में, वे आश्रय लेने के लिए ठंडे एवं छायादार स्थानों की तलाश में अपने गड्ढों से बाहर निकल आते हैं। अनियोजित शहरीकरण, वन क्षेत्र की कमी और अवक्रमित आवासों के कारण सरीसृपों के पास अब मानव आबादी वाले क्षेत्रों में आश्रय लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है।
गर्मी के कारण जंगलों में भी पानी की भारी कमी के कारण बाघ, तेंदुए और लोमड़ी जैसे कई जानवर गंभीर रूप से प्रभावित होते हैं । पानी एवं खाद्य स्रोतों की कमी के कारण दुर्लभ हिम तेंदुओं को भी अपने निवास स्थल बलदने पड़े हैं। उनका मूल आवास खंडित हो चुका है और सिकुड़ रहा है।
‘नेचर क्लाइमेट चेंज’ जर्नल (Nature Climate Change Journal) की पत्रिका में प्रकाशित शोध में अनुमान लगाया गया है कि ‘प्रकृति के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ’ (International Union for Conservation of Nature (IUCN) की संकटग्रस्त प्रजातियों की लाल सूची में शामिल 47 प्रतिशत स्तनपायी और 23 प्रतिशत पक्षी जलवायु परिवर्तन के कारण गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं। इस अध्ययन में शामिल 873 में से 414 स्तनपायी प्रजातियां और 1,272 में से 298 पक्षी प्रजातियां, जलवायु परिवर्तन से प्रभावित थीं। अधिक ऊंचाई पर रहने वाले पक्षियों पर सबसे ज्यादा मार पड़ी है। जलवायु परिवर्तन के कारण स्तनधारियों की, प्राकृतिक संसाधनों का सफलतापूर्वक उपयोग करने और पारिस्थितिक स्थितियों के अनुकूल होने की, क्षमता भी कम हो रही है। जलवायु परिवर्तन पक्षियों और स्तनधारियों दोनों के प्रवासन पैटर्न (Migration Patterns) को भी बाधित कर रहा है। जलवायु परिवर्तन के कारण उत्तरी अटलांटिक महासागर (North Atlantic Ocean) में कई मछलियाँ ठंडे तापमान की तलाश में उत्तर की ओर पलायन कर रही हैं, जिससे पूरे यूरोप (Europe) और उत्तरी अमेरिका (North America) में अटलांटिक पफिन (Atlantic Puffin) जैसे समुद्री जीवों के लिए भोजन की उपलब्धता कम हो गई है। साथ ही, अंटार्कटिक महासागर (Antarctic Ocean) में समुद्र-बर्फ के पिघलने और समुद्र के अम्लीकरण में वृद्धि के कारण क्रिल (Krill), जो कि छोटे आकार के कठिनी (Crustacea) प्रजाति के प्राणी हैं और विश्व-भर के सागरों-महासागरों में पाये जाते हैं, की आबादी भी कम हो रही है। इस कारण व्हेल (Whales), पेंगुइन (Penguins) और सील (Seals) जैसे समुद्री जीवों का अस्तित्व भी खतरे में पड़ गया है, क्योंकिप्राथमिक खाद्य स्रोत के रूप में ये जीव क्रिल पर ही निर्भर होते हैं।
आपको जानकर हैरानी होगी कि जलवायु परिवर्तन के कारण कई जीवों में महत्वपूर्ण शारीरिक परिवर्तन भी देखे जा रहे हैं। उदाहरण के तौर पर, अंडों के सिकने (परिपक्व होने) के दौरान बढ़ते तापमान के कारण कछुओं का लिंग अनुपात असंतुलित हो रहा है। परिणाम स्वरूप, कई समुद्र तटों पर 99% कछुए केवल मादा के रूप में पैदा हो रहे हैं। 2020 के ऑस्ट्रेलियाई जंगलों में आग लगने के कारण 60,000 से अधिक कोआला (Koalas) घायल हो गए थे, जिनमें से कुछ की बाद में मृत्यु हुई हो गई थी । बढ़ते तापमान के कारण इस तरह की जंगल की आग का निरंतर लगना जारी रह सकता है जिससे सूखे की संभावना भी बढ़ जाती है। परिणाम स्वरूप जलवायु परिवर्तन कोआला के लिए भोजन और पानी की उपलब्धता को कम कर रहा है।
जलवायु परिवर्तन की स्थिति को बदतर होने से रोकने के लिए, आज संपूर्ण विश्व को कार्बन उत्सर्जन को कम करने और वैश्विक तापमान वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने की आवश्यकता है। इसके अलावा जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिए व्यक्तिगत स्तर पर भी अपनी जीवन शैली में छोटे-छोटे बदलाव लाकर, हम सभी साइकिल और ई-रिक्शा (E-Rickshaw) जैसे पर्यावरण के अनुकूल परिवहन साधनों का प्रयोग करने, साझा गतिशीलता या सार्वजनिक परिवहन का विकल्प चुनने और कम अपशिष्ट पैदा करने जैसे पर्यावरण के अनुरूप विकल्प चुन सकते हैं। हमारी पृथ्वी की रक्षा और बेहतर स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने में जंगली जानवरों और पौधों के योगदान को उजागर करने और उनकी सराहना करने के लिए हर साल 3 मार्च को ‘विश्व वन्यजीव दिवस’ (World Wildlife Day) मनाया जाता है। यह संयुक्त राष्ट्र (United Nations) द्वारा स्थापित एक अंतर्राष्ट्रीय दिवस है। यह तिथि इसलिए चुनी गई है क्योंकि इस दिन वन्य जीवों एवं वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर सम्मेलन (Convention on International Trade in Endangered Species (CITES) की नींव रखी गई थी । लुप्तप्राय प्रजातियों को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से बचाने के लिए इस सम्मेलन के संकल्प पत्र को 1973 में हस्ताक्षरित और 1 जुलाई 1975 को लागू किया गया था।

संदर्भ

https://bit.ly/3KMEBIx
https://bit.ly/3EMqIqc
https://bit.ly/3EIkOWY

चित्र संदर्भ

1. कोआला (Koalas) को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia, flickr)
2. ध्रुवीय भालू को दर्शाता एक चित्रण (Free Vectors)
3. पेंगुइन के झुंड को दर्शाता एक चित्रण (Hippopx)
4. पक्षी प्रवास के मुख्य अंतरराष्ट्रीय फ्लाईवे को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. आग से घिरे कोआला को दर्शाता एक चित्रण (maxpixel)
6. ‘विश्व वन्यजीव दिवस’ को दर्शाता एक चित्रण (flickr)



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