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आपने मौके पर चौका लगने वाली लोकप्रिय कहावत अवश्य सुनी होगी। लेकिन आज, वास्तव में, यह कहावत सत्य होने जा रही है। दरअसल भारत के खूबसूरत उत्तर पश्चिमी राज्य ‘कश्मीर’ में ‘भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण’ (Geological Survey of India (GSI) द्वारा विद्युत बैटरी में प्रयोग होने वाले सबसे जरूरी तत्व “लिथियम (Lithium)" की खोज की गई है। यह हमारे लिए अच्छी खबर इसलिए है क्योंकि, लिथियम की खोज आज ऐसे समय में हुई है, जब देश को विकास और पर्यवारण सुरक्षा को संतुलित करते हुए, तेज़ी से आगे बढ़ने की सख्त आवश्यकता है।
लिथियम, इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माण में बेहद जरूरी किंतु दुर्लभ तत्व है। यह एक रासायनिक तत्व होता है। साधारण परिस्थितियों में यह प्रकृति की सबसे हल्की धातु और सबसे कम घनत्व वाला ठोस पदार्थ होता है।
लिथियम, रिचार्जेबल (Rechargeable) अर्थात बार-बार चार्ज होने वाली बैटरी में एक प्रमुख घटक होता है, जो स्मार्टफोन (Smartphone) और लैपटॉप (Laptop), साथ ही इलेक्ट्रिक कारों (Electric Cars) जैसे, कई उपकरणों को शक्ति प्रदान करता है। विशेषज्ञों के अनुसार जलवायु परिवर्तन से निपटने में लिथियम की खोज अहम भूमिका निभा सकती है। इस खोज के साथ ही कार्बन उत्सर्जन (Carbon Emissions) में कटौती के प्रयासों के तहत भारत 2030 तक निजी इलेक्ट्रिक कारों की संख्या में 30% की वृद्धि करने के अपने लक्ष्य को आसानी से प्राप्त कर सकता है। समय के साथ दुनिया भर में लिथियम सहित दुर्लभ धातुओं की मांग काफी बढ़ गई है। इसका प्रमुख कारण यह है कि आज कई देश जलवायु परिवर्तन को धीमा करने के लिए हरित समाधान अपनाने पर विचार कर रहे हैं। इसी क्रम में इसी वर्ष 2023 में, चीन ने बोलीविया (Bolivia) के विशाल लिथियम भंडार को विकसित करने के लिए $1 बिलियन के सौदे पर हस्ताक्षर किए। यहां दुनिया का सबसे अधिक अनुमानित 21 मिलियन टन लिथियम का भंडार हो सकता है।
विश्व बैंक (World Bank) के अनुसार, 2050 तक वैश्विक जलवायु लक्ष्यों को हासिल करने के लिए महत्वपूर्ण खनिजों के खनन में 500% की वृद्धि करने की आवश्यकता होगी। हालांकि, विशेषज्ञों के अनुसार लिथियम खनन की प्रक्रिया पर्यावरण के अनुकूल नहीं है। दरसल लिथियम, कठोर चट्टानों और भूमिगत खारे जलाशयों (Underground Brine Reservoirs) से निकाला जाता है जो बड़े पैमाने पर ऑस्ट्रेलिया, चिली और अर्जेंटीना में पाए जाते हैं। इसकी निष्कर्षण प्रक्रिया में बहुत अधिक पानी की आवश्यकता होती है। साथ ही इस प्रक्रिया के दौरान वातावरण में बड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड (Carbon Dioxide) भी छोड़ी जाती है।
अर्जेंटीना (Argentina) जैसे देशों में जहां पानी की बहुत कमी है, वहां पर इसे भूमिगत जलाशयों से निकालने के लिए बड़ी मात्रा में पानी का उपयोग किया जाता है। स्थानीय लोगों के अनुसार ऐसी गतिविधियां प्राकृतिक संसाधनों को समाप्त कर रही है और पानी की गंभीर कमी का कारण बन रही है।
हाल ही में सरकार द्वारा सूचना दी गई कि भारतीय राज्य जम्मू-कश्मीर में 59 लाख टन लिथियम तत्व की खोज कर ली गई है। भारत अभी तक लिथियम आयात के लिए ऑस्ट्रेलिया (Australia) और अर्जेंटीना (Argentina) पर निर्भर रहा है।
यह खोज ‘भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण’ के सानिध्य में की गई है। ‘भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण’ भारत की एक वैज्ञानिक संस्था अर्थात एजेंसी (Agency) है। 1851 में इसकी स्थापना खनन मंत्रालय (Ministry of Mines) के तहत, भारत सरकार के एक संगठन के रूप में की गई थी। यह दुनिया के सबसे पुराने संगठनों में से एक है। साथ ही भारतीय सर्वेक्षण (1767 में स्थापित) के बाद भारत में दूसरा सबसे पुराना सर्वेक्षण संगठन है।
लगभग 26 साल पहले, जीएसआई (GSI) द्वारा तत्कालीन केंद्र शासित प्रदेश जम्मू के “सलाल” (Salal) क्षेत्र में लिथियम की उपस्थिति से जुड़ी एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की गई थी। लेकिन इस संदर्भ में अब तक कोई भी सार्थक अनुवर्ती कार्रवाई नहीं हुई थी। जीएसआई की ही 1997 की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि “लगातार लिथियम मानकों और कई स्थानों पर व्यापक बॉक्साइट स्तंभ (Bauxite Pillars) की उपस्थिति को देखते हुए, यहाँ पर लिथियम की संभावना काफी आशाजनक प्रतीत होती है।" लेकिन इसके बावजूद अन्वेषण को आगे बढ़ाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया था । हालांकि, आज भी कश्मीर में लिथियम की स्थिति को स्पष्ट करते हुए कई विशेषज्ञ आगाह कर रहे हैं कि अभी जश्न मनाना जल्दबाजी होगी।
खनिज संसाधनों के लिए संयुक्त राष्ट्र (United Nations) रूपरेखा वर्गीकरण के अनुसार, खनिज पदार्थों के अन्वेषण के चार चरण होते हैं- पूर्व-परीक्षण (Reconnaissance), खोज (Discovery), पूर्वेक्षण (Prospecting) और आर्थिक खनन (Economic mining) । लेकिन जीएसआई के निष्कर्ष अभी तक दूसरे स्तर पर ही हैं, अतः दो स्तर अभी भी बाकी हैं।
भारत के पास अभी तक लिथियम की खुदाई और विकास करने की कोई भी बहुत अच्छी तकनीक नहीं है। हालांकि, एक बार जम्मू-कश्मीर प्रशासन द्वारा लिथियम की जमा राशि की नीलामी करने पर निजी निवेशक खनिज की खुदाई की प्रक्रिया शुरू कर सकते हैं ।
भारत सरकार के खनन सचिव विवेक भारद्वाज के अनुसार, “ यह खोज भारत को संभावित रूप से दुनिया की प्रमुख लिथियम खानों में से एक के रूप में मानचित्र पर ला सकती है।” अभी तक दुनिया का लगभग 50 प्रतिशत लिथियम संग्रह केवल तीन दक्षिण अमेरिकी देशों (South American Countries): अर्जेंटीना (Argentina), बोलीविया (Bolivia) और चिली (Chile) में ही पाया जाता हैं।
लेकिन यह खोज हल्की धातुओं के आयात पर भारत की निर्भरता को समाप्त कर सकती है। साथ ही सरकार की इलेक्ट्रिक वाहनों पर निर्भरता बढ़ाने की महत्वाकांक्षी योजना में सहायता कर सकती है। बैटरी, मोबाइल फोन, लैपटॉप और डिजिटल कैमरों के अलावा, लिथियम का प्रयोग चिकित्सा क्षेत्र में द्विध्रुवी विकार (Bipolar Disorder) के इलाज के लिए भी किया जाता है।
जम्मू के स्थानीय लोगों का कहना है कि इस खोज से उनके गांव का भाग्य बदल सकता है। ये साधारण पत्थर नहीं हैं। वास्तव में ये पत्थर हमारे “रियासी गांव (Reasi)” की तकदीर बदल देंगे।"
संदर्भ
https://bbc.in/3Xre7iD
https://bit.ly/3Ik6F4m
https://bit.ly/3Yq2d9P
चित्र संदर्भ
1. लिथियम की खदान को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
2. आवर्त सारणी के तीसरे तत्व लिथियम के इलेक्ट्रॉन विन्यास को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. भूमिगत नमकीन झील को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. लिथियम की सिल्लियों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. कोलकाता में जीएसआई मुख्यालय के फ्रंट गेट को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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