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जीव-जंतुओं के रोचक प्रसंग से संबंधित प्रारंग की पिछली पोस्ट में हमने आपको बताया था कि हमारे लखनऊ शहर का 100 साल से अधिक पुराना चिड़ियाघर, राज्य की राजधानी के बाहर एक नए स्थान कुकरैल वन क्षेत्र में स्थानांतरित हो गया है। लेकिन आज हम आपको इस वृहद स्थानांतरण से चिड़ियाघर के बेज़ुबान जानवरों के जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव और बदलावों से अवगत कराएंगे।
नवाब वाजिद अली शाह प्राणी उद्यान, जो कि लखनऊ चिड़ियाघर का आधिकारिक नाम है, को कुकरैल वन क्षेत्र में स्थानांतरित करने के बाद, वन विभाग ने 2023 के अंत तक कुकरैल चिड़ियाघर और ‘नाइट सफारी’ (Night Safari) परियोजना को पूरा करने की योजना बनाई है। विभाग ने 29 नवंबर, 2023 को कुकरैल चिड़ियाघर और नाइट सफारी पार्क में लखनऊ चिड़ियाघर का स्थापना दिवस मनाने का फैसला किया है। प्रस्ताव के अनुसार, कुकरैल में 2027 हेक्टेयर वन क्षेत्र में चिड़ियाघर और नाइट सफारी पार्क दोनों होंगे। चिड़ियाघर के बड़े क्षेत्र में नाइट सफारी की व्यवस्था की जाएगी। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि यह परियोजना वन के घने क्षेत्र को अस्त-व्यस्त नहीं करेगी।
राज्य सरकार, आगंतुकों को विश्व स्तरीय सुविधाएं प्रदान करने के अलावा संचार में सुधार के लिए, जंगल के बाहरी इलाके में चार लेन (Four Lane) सड़क विकसित करने की भी योजना बना रही है। अधिकारियों के अनुसार, यह परियोजना राज्य में पर्यावरणीय पर्यटन (Ecotourism) को बढ़ावा देगी, स्थानीय स्तर पर रोजगार पैदा करेगी और आसपास के क्षेत्रों में सांस्कृतिक, आर्थिक तथा सामाजिक विकास को भी इस योजना से बढ़ावा मिलेगा। साथ ही इस परियोजना से वन्यजीव संरक्षण को बढ़ावा मिलेगा और वन्य जीवन तथा जंगल के बारे में लोगों में जागरूकता भी बढ़ेगी।
चिड़ियाघर के इस स्थानांतरण से जुड़ी एक बड़ी चुनौती इन जानवरों के प्राकृतिक आवास अर्थात उद्यान के वृक्षों के स्थानांतरण की है। संबंधित अधिकारियों के अनुसार वृक्षों को स्थानांतरित करने के संबंध में उन्होंने अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया है।
हालांकि आजकल ऐसी प्रौद्योगिकियां मौजूद हैं, जिनकी सहायता से पूरे पेड़ों को बिना हानि पहुचाए स्थानांतरित किया जा सकता है, लेकिन फिर भी यह एक आसान कार्य नहीं होगा।
राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (National Botanical Research Institute (NBRI) ने चेतावनी दी है कि उद्यान से, वृक्षों का स्थानांतरण बड़ी मुश्किल भी खड़ी कर सकता है।
यह उद्यान, चिड़ियाघर से भी अधिक पुराना है, जिसे 18वीं शताब्दी में अवध के तत्कालीन नवाब ‘नवाब नसीरुद्दीन हैदर’ द्वारा आम के बगीचे के रूप में स्थापित किया गया था। उस समय इसे ‘बनारसी बाग’ के नाम से जाना जाता था। यहां कुछ बेहद दुर्लभ पेड़ भी पाए जा सकते हैं, जिनमें 100 साल पुराने पारिजात और बरगद के पेड़ भी शामिल हैं।
स्तनधारियों, पक्षियों और सरीसृपों की 100 से अधिक प्रजातियों को लखनऊ चिड़ियाघर से उनके नए घर कुकरैल में स्थानांतरित कर दिया गया है, जो क्षेत्रफल में उनके वर्तमान घर (चिड़ियाघर) के आकार से कम से कम दोगुना बड़ा है। यह पहली बार है जब उत्तर प्रदेश में एक पूरे चिड़ियाघर को स्थानांतरित किया जा रहा है।
जानवरों को स्थानांतरित करने में वन अधिकारियों के अलावा, अनुभवी विशेषज्ञों को भी कार्य पर लगाया गया है। उत्तर प्रदेश के पर्यावरण, वन, जलवायु परिवर्तन एवं प्राणी उद्यान राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) के अनुसार वृक्षारोपण अभियान के दौरान यदि कोई पौधा सूख गया हो, तो उसके स्थान पर तत्काल दूसरा पौधा लगाया जाना चाहिए। यदि लापरवाही पाई जाती है, तो संबंधित अधिकारी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। लखनऊ के कुकरैल रिजर्व फॉरेस्ट (Kukrail Reserve Forest) में नियोजित नाइट सफारी के लिए भूमि के इष्टतम उपयोग का निर्धारण करने के लिए एक डिजिटल सर्वेक्षण शुरू हो गया है। कुकरैल वन का कुल क्षेत्रफल 2,027.46 हेक्टेयर से भी अधिक है। 500 एकड़ भूमि पर चिड़ियाघर और नाइट सफारी विकसित करने का प्रस्ताव है।
राज्य सरकार ने अपने पूरक बजट में, 60 लाख रुपये निर्माण कार्य के लिए, 20 लाख रुपये मशीनरी के लिए और 10 लाख रुपये अन्य खर्चों के लिए आवंटित किए थे। जमीन का डिजिटल सर्वे इसलिए भी किया जा रहा है, ताकि यहां विकसित आधारिक संरचना (Infrastructure) को सही तरीके से डिजाइन करके उपलब्ध जमीन का ज्यादा से ज्यादा लाभ उठाया जा सके। कुकरैल वर्तमान में भी एक लोकप्रिय पिकनिक (Picnic) स्थल है। यहां एक मगरमच्छ प्रजनन केंद्र, कछुआ अनुसंधान और बचाव केंद्र पहले से ही मौजूद हैं। परियोजना के लिए कुकरैल नदी को भी नई दिशा में मोड़ा जाएगा और सड़क को चौड़ा किया जाएगा।
हालांकि चिड़ियाघर से संबंधित इतने बड़े फैसले लेने से पहले, यह जान लेना भी जरूरी है कि क्या जंगल सफारी पर जाना नैतिक है?
सफारी (Safari “जंगली जानवरों की दिनचर्या को नज़दीक से देखना”) पर्यटकों को वन्य जीवों को उनके प्राकृतिक आवास में ही देखने का मौका देती है। हालाँकि सफ़ारी आमतौर पर सर्कस (Circus) से बेहतर मानी जाती है, जहां अक्सर इंसानों के मनोरंजन के लिए जानवरों का दुरुपयोग या उन्हें प्रताड़ित किया जाता हैं।
लेकिन इसके बावजूद, सफारी या जानवरों के जीवन में दखल देना, इसलिए भी एक बड़ी चिंता का विषय है क्योंकि, इतिहास में सफ़ारी से जुड़ी अनैतिक और भयावह प्रथाओं की जड़ें काफी गहरी हैं। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि शुरुआत में जंगल सफ़ारी, जंगली जानवरों के शिकार को संदर्भित करती थीं। कई जंगल सफारी अभी भी शिकार का समर्थन करती हैं, और अपमानजनक प्रथाओं को बढ़ावा देती हैं, इसलिए जंगल सफारी का वन्य जीवों और उनके आवास स्थलों पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है।
हालांकि स्वयं को और जानवरों को भी इन दुष्प्रभावों से बचाने के लिए, उचित सफारी शिष्टाचार का पालन करना महत्वपूर्ण है। इसमें जानवरों और उनके स्थान का सम्मान करना, स्थानीय संस्कृति और रीति-रिवाजों का ध्यान रखना और अपने मार्गदर्शक (Guide) के दिशानिर्देशों का पालन करना शामिल है। इसके अलावा शिकार या पशु शोषण जैसी अनैतिक प्रथाओं का समर्थन करने से बचना तथा स्थानीय समुदायों और पर्यावरण पर पर्यटन के संभावित नकारात्मक प्रभावों से अवगत होना भी बेहद महत्वपूर्ण है।
संदर्भ
https://bit.ly/3IdnVbY
https://bit.ly/3FVtnNY
https://bit.ly/3I6akTV
https://bit.ly/3FZFLwj
चित्र संदर्भ
1. लखनऊ चिड़ियाघर को संदर्भित करता एक चित्रण (Flickr, wikimedia)
2. बाघ को देखते लोगों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. लखनऊ के पुराने चिड़ियाघर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. रात में तेंदुए को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. कुकरैल घड़ियालों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. पेड़ के पुनः प्रत्यारोपण को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
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