City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Total | ||
1109 | 784 | 1893 |
***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions
विज्ञान जगत में टायरानोसोरस रेक्स (Tyrannosaurus Rex (T-Rex) नामक डायनासोर (Dinosaur) को इतिहास में विलुप्त हो चुके, सबसे खूंखार मांसाहारी डायनासोरों में से एक माना जाता था। लेकिन हाल ही में, भारत में शोधकर्ताओं को इससे भी अधिक क्रूर और शक्तिशाली डायनासोर की उपस्थिति के प्रमाण मिले हैं। किंतु इसके बाद भी, दुर्भाग्यवश भारत की संपन्न जीवाश्म सम्पदा को हमेशा से ही बड़े पैमाने पर नज़रअंदाज़ किया जाता है। आखिर क्यों?
भारतीय राज्य गुजरात में खेड़ा जिले के रहियोली शहर में टायरानोसोरस रेक्स से भी अधिक क्रूर और मजबूत, राजसोरस नर्मदेंसिस (Rajasaurus Narmadensis) या "शाही छिपकली" जिसके जीवाश्मों की खोज की गई है जिसके सिर पर एक विशिष्ट मुकुट जैसी शिखा थी तथा जिसके जीवाश्म 65 मिलियन वर्ष पुराने माने जा रहे हैं।
1983 में, जियोलॉजिकल सोसायटी ऑफ इंडिया (Geological Society of India (GSI) के जीवाश्म विज्ञानी सुरेश श्रीवास्तव (Suresh Srivastava) ने राजसोरस नर्मदेंसिस के अक्षुण्ण मस्तिष्क कोटर (Intact Braincase) और कशेरुक (Vertebrae) की खोज की थी। यह खोज गुजरात के रहियोली में एक बड़े जीवाश्म स्थल के ठीक बगल में की गई थी, जो कभी डायनासोर के अंडों की सामुदायिक स्फुटनशाला (Hatchery) का मैदान था, जहाँ हजारों जीवाश्म डायनासोर के अंडे खोजे गए थे।
गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र सहित पूरे भारत में ऐसे कई डायनासोर के घोंसले के स्थलों का पता लगाया गया है। गुजरात के रहियोली में घोंसले के स्थल को दुनिया के सबसे बड़े जीवाश्म उत्खनन स्थलों और डायनासोर के घोंसले के स्थलों में से एक माना जाता है।
इसके अलावा 2021 में, जीएसआई के शोधकर्ताओं ने घोषणा की कि उन्होंने मेघालय में पश्चिमी खासी पहाड़ियों के आसपास एक स्थान पर डायनासोर की हड्डियों के जीवाश्मों की पहचान की है, जो एक सॉरोपॉड (Sauropod) नामक डायनासोर से संबंधित थे। वास्तव में, सॉरोपॉड, असाधारण रूप से लंबी गर्दन और पौधे खाने वाले दिग्गज डायनासोर थे, लेकिन इनके सिर असमान रूप से छोटे थे।
इस अनोखी खोज को अभी भी वैज्ञानिक रूप से प्रकाशित किया जाना बाकी है। लेकिन यह खोज मेघालय को गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और तमिलनाडु के बाद टाइटैनोसॉरस (Titanosaurus) नामक सोरोपॉड की हड्डियों की संपदा वाला भारत का पांचवां राज्य बना सकती है। अब तक भारत में, टाइटैनोसॉरस की सात प्रजातियों की खोज की जा चुकी है। टाइटैनोसॉरस इंडिकस (Titanosaurus Indicus) का पहला नमूना जबलपुर, मध्य प्रदेश में खोजा गया था। यह एशिया में डायनासोर के जीवाश्म का अब तक का पहला ज्ञात रिकॉर्ड है।
इसके अतिरिक्त भारत में रवींद्रनाथ टैगोर के सम्मान में नामित बारापासोरस टैगोरई (Barapasaurus Tagorei), श्रृंगासौरस इंडिकस (Shringasaurus Indicus), राहिओलिसौरस गुजरातटेंसिस (Rhiolisaurus Gujaratensis), ब्रुथकायसॉरस (Bruthakaysaurus), आदि के जीवाश्मों की लंबी सूची खोजी गई है।
भारत के विभिन्न हिस्सों में खोजे गए, ये सभी जीवाश्म भारत का गौरव हैं। भारत की विस्मयकारी जीवाश्म संपदा अविश्वसनीय रूप से विविध है और वर्षों से विकास तथा जीवाश्म भूगोल की हमारी समझ को बढ़ाने में अत्यधिक महत्व भी रखती है।
राष्ट्रसंत तुकादोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय (RTM University) के एक जीवाश्म विज्ञानी धनंजय मोहाबे के अनुसार भारत की जीवाश्म विरासत अपने आप में एक छिपा हुआ खजाना है। भारत में जीवाश्म विज्ञान से जुड़ी सभी आलोचनाओं के बाद भी, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) के पास उल्कापिंडों, जीवाश्मों और प्रागैतिहासिक जानवरों की हड्डियों का विशाल भंडार है, जो पिछले 150 वर्षों से अधिक समय से एकत्र किए जा रहे हैं। कोलकाता में इसके व्यापक संग्रह शोधकर्ताओं के लिए उपलब्ध हैं।
सन 2000 में, पश्चिमी भारत में नागपुर के केंद्रीय संग्रहालय का दौरा करते हुए, अमेरिका के जीवाश्म विज्ञानी जेफरी ए विल्सन (Jeffrey A. Wilson) ने सबसे आकर्षक जीवाश्मों का अध्ययन किया। विल्सन के अनुसार “यह पहली बार था जब एक शिशु डायनासोर और उसके अंडों की हड्डियाँ एक साथ एक ही नमूने में पाई गईं हों। लेकिन भारत में ऐसी कोई सुविधा उपलब्ध नहीं थी जो जीवाश्म की आवश्यक गहरी सफाई कर सके। अंततः स्पष्टीकरण के लिए नमूने को अमेरिका पहुंचाने के लिए विल्सन को भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) से अनुमोदन प्राप्त करने में चार साल लग गए। आखिरकार वह भारत से इस नमूने को अपने साथ वापस अमेरिका ले गए। एक बार वहां पहुंचने के बाद, इसकी नरम और नाजुक हड्डियों के चारों ओर चट्टानी आव्यूह(Matrix) को हटाने और सफाई में ही पूरा साल लग गया।
जीवाश्म, प्राचीन अतीत के रहस्यों को उजागर कर सकते हैं जिन्हें हम अन्यथा नहीं जान पाएंगे। लेकिन हाल के वर्षों में विज्ञान की महत्वपूर्ण उपलब्धियों के बाद भी , भारत की विशाल जीवाश्म संपदा का व्यवस्थित अध्ययन करने के लिए पर्याप्त धन या समर्थन भी नहीं है।
भारत की जीवाश्म विरासत का बड़े पैमाने पर उपयोग नहीं किया गया है और इसे भुला दिया गया है। उत्तर भारत में हिमालयी क्षेत्र प्राचीन समुद्री जीवों के जीवाश्मों का खजाना है, जिसमें स्पीति और लद्दाख जैसी नदी घाटियों में प्रचुर मात्रा में पाए जाने वाले ऐम्मोनाइट (Ammonite) जीवाश्म मिले हैं, और कश्मीर में ज़ांस्कर घाटी में पाए जाने वाले त्रिलोबाइट्स (Trilobites), ऐम्मोनाइट , मोलस्क (Molluscs) आदि के जीवाश्म मिले हैं।
डायनासोर, भूमि मगरमच्छ, अन्य सरीसृप और यहां तक कि प्रारंभिक मानव प्रजातियों के जीवाश्म भी यहां से प्राप्त हुए हैं। कैम्पिलोग्नाथस जैसे टेरोसॉरस, जो उड़ने वाले सरीसृप बताए जाते हैं तथा जो 182- 191 मिलियन वर्ष पहले भारत में रहते थे, के जीवाश्म, , पिछले कई वर्षों में राजस्थान के कोटा जिले और महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले में पाए गए हैं। भारत में सबसे शुरुआती व्हेल, कुछ सबसे बड़े गैंडों और हाथियों, डायनासोर के अंडे के और अजीब सींग वाले सरीसृप की भी खोज की गई है, जो कभी अस्तित्व में थे। लेकिन इसके बावजूद खोज में बहुत सारे अंतराल हैं, जिन्हें अभी भी भरने की जरूरत है। और ऐसा इसलिए है क्योंकि भारत के बड़े हिस्से को पेशेवर जीवाश्म विज्ञानियों द्वारा अभी भी व्यवस्थित रूप से खोजा जाना बाकी है।
विल्सन कहते हैं कि 1900 के दशक की शुरुआत में ब्रिटिश भूवैज्ञानिक भारत में अधिक विस्तृत संग्रह कर रहे थे, इसलिए आज यदि आप भारतीय डायनासोरों का पूरा संग्रह देखना चाहते हैं, तो आपको लंदन या न्यूयॉर्क (London or New York) जाना होगा। विशेष रूप से, इन सबका प्रभाव भारतीय बच्चों की पीढ़ी पर पड़ा है, जो अपने स्वयं के स्वदेशी डायनासोरों के बारे में बहुत कम जानकारी के साथ बड़े हुए हैं। जब तक इस तरह के विषयों की जानकारी को विद्यालयों के पाठ्यक्रम या पाठ्यपुस्तकों में जगह नहीं मिलती है, तब तक इनके बारे में जागरूकता उत्पन्न करना भी कठिन कार्य है। हालांकि, हाल के वर्षों में इस कठिनता को दूर करने के कई प्रयास किये गए हैं।
2018 में प्रकाशित वैशाली श्रॉफ की “द एडवेंचर्स ऑफ पद्मा एंड ए ब्लू डायनासोर (The Adventures of Padma and a Blue Dinosaur)” नामक पुस्तक को बच्चों को लुभाने के लिए बनाया गया था। भारतीय डायनासोर पर वास्तविक विवरण में कल्पना का उपयोग करने के कारण इस पुस्तक ने 2019 में पर्यावरणीय श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ भारतीय बाल लेखन पुरस्कार भी जीता। तब से लेकर आज तक श्रॉफ ने कई भारतीय शहरों में सैकड़ों स्कूली बच्चों से बात की है और उन्हें भारतीय डायनासोर की विभिन्न प्रजातियों तथा उनसे संबंधित प्रमुख खोजों से परिचित कराया है।
हालाँकि, जागरूकता के निर्माण के बाद भी, हाल के वर्षों में देश भर में, प्रमुख डायनासोर स्थलों में जीवाश्मों की चोरी और बर्बरता एक बड़ी चुनौती साबित हुई है, तथा बड़ी मात्रा में जीवाश्म विज्ञानी आंकड़े पैलियोन्टोलॉजिकल डेटा (Paleontological Data) खो गए हैं । पर्यवेक्षकों का कहना है कि भारत के जीवाश्म स्थलों की रक्षा के लिए आर्थिक प्रोत्साहन और आपराधिक दंड के अभाव में ये जीवाश्मिक खजाने हमेशा के लिए विलुप्त हो सकते हैं। जानकार मानते हैं कि चोरी, तस्करी, खरीद और जीवाश्मों को नुकसान पहुंचाने के लिए सख्त कानून बनाए जाने चाहिए।
संदर्भ
https://bit.ly/3Y2IgGm
https://bit.ly/3uukVQD
https://bit.ly/3usw0lb
चित्र संदर्भ
1. भारत में पाए जाने वाले जीवाश्म डायनासोर के अंडों की छवि, वर्तमान में इंड्रोडा फॉसिल पार्क, गांधीनगर, गुजरात इंडिया में प्रदर्शित की गई है, को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. प्राकृतिक इतिहास के क्षेत्रीय संग्रहालय, भोपाल, भारत में राजसौरस नर्मदेंसिस की प्रदर्शनी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. सॉरोपॉड (Sauropod) नामक डायनासोर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. श्रृंगासौरस इंडिकस को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. सिनोर्निथोमिमस नमूने को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. भारतीय संग्रहालय, कोलकाता में जीवाश्म को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
7. “द एडवेंचर्स ऑफ पद्मा एंड ए ब्लू डायनासोर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.