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जीवन में अर्थ को ढूंढना हो तो अवश्य पढ़ें यह पुस्तक
अगर मनुष्य दुख में हो तो वह असफलता की भावना के साथ निराश हो जाता है। ऐसे समय में “मैंज सर्च फॉर मीनिंग” (Man’s Search for Meaning) उस मनुष्य के लिए एक सहायक पुस्तक बन सकती है और संभावना है कि तब उसे उसकी निराश भावनाओं का समाधान मिल जाए।
मैंज सर्च फॉर मीनिंग, विक्टर फ्रैंकल (Viktor Frankl) द्वारा 1946 में लिखित किताब है। यह सरल लेकिन गहन और चिंतनशील है। उनकी किताबें जीवन में अर्थ खोजने और पीड़ा में मददगार साबित होती है।लेखक ऑस्ट्रियाई न्यूरोलॉजिस्ट, मनोचिकित्सक और होलोकास्ट उत्तरजीवी थे। किताब में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नाजी कंसंट्रेशन शिविरों में एक कैदी के रूप में अपने अनुभवों को लेखक ने बताया है।
साथ ही उनकी मनोचिकित्सा पद्धति का वर्णन भी किया गया है। उनके मुताबिक सकारात्मक महसूस करने के लिए जीवन में एक उद्देश्य की पहचान करना और फिर उस परिणाम की कल्पना करना महत्वपूर्ण है। लेखक के मतानुसार किसी कैदी की लंबी उम्र को उसके द्वारा की गई उसके भविष्य की कल्पना ने प्रभावित और प्रोत्साहित किया था। पुस्तक हमारे सामने इस प्रश्न का उत्तर रखती है की कंसंट्रेशन शिविरों में रोजमर्रा की जिंदगी आम आदमी के दिमाग में कैसी थी? पुस्तक के भाग एक में लेखक ने कंसंट्रेशन कैंप में रहते वक्त उनका अनुभव बताया है जबकि दूसरा भाग अर्थ के बारे में उनके विचारों और लोगोथेरेपी नामक उनके सिद्धांत पर प्रकाश डालता है।
कैंप में अपने जीवन के उदाहरणों का वर्णन करते हुए लेखक हमारे लिए, हम किसी भी स्थिति में एक कोई विशेष उद्देश्य और अर्थ को कैसे चुन सकते हैं इस विषय पर विचार प्रस्तुत करते हैं।फ्रैंकल वर्णनात्मक रूप से अपने व्यक्तिगत अनुभव और सूक्ष्म मानवीय परिवर्तनों की टिप्पणियों को दिखाता है, जिससे पाठक में आशा जाग उठती है। “जिसके पास जीने का कारण है वह लगभग किसी भी तरह का सामना कर सकता है”, यह विचार पुस्तक का महत्वपूर्ण विषय है। साथ ही पुस्तक फ्रैंकल के व्यक्तिगत अनुभवों और कहानियों, अस्तित्वगत अग्रदूतों के संदर्भ, मानवतावादी और मनोविश्लेषणात्मक विद्यालय के उद्धरण और अलंकारों का एक संग्रह है।
पहला खंड कंसंट्रेशन शिविरों में प्रत्येक कैदी द्वारा सामना की गई क्रूरता का वर्णन करता है, फ्रेंकल तीन साल तक उन कैदीयो में से एक था। जैसे ही फ्रेंकल को अपने ‘नग्न अस्तित्व’ का एहसास हुआ, उन्होंने कंसंट्रेशन कैंप में अपना अनुभव स्पष्ट करते समय, सभी कैदियों द्वारा किसी न किसी स्तर पर अनुभव की जाने वाली तीन मनोवैज्ञानिक स्तिथियों से हमे अवगत कराया है:
१.शिविर में प्रारंभिक प्रवेश के दौरान सदमा लगना,
२.शिविर के अस्तित्व के आदी होने के बाद उदासीनता, जिसमें कैदी केवल उसी को महत्व देता है जो स्वयं की मदद करता है और जो उसके दोस्त जीवित रहते हैं, और
यदि वह जीवित रहता है और मुक्त हो जाता है, तो प्रतिरूपण, नैतिक विकृति, कड़वाहट और मोहभंग की प्रतिक्रियाएँ।
वह अपने पहले विचारों पर प्रतिबिंबित करता है। हालाँकि उन्होंने क्रूरता की भाषा को कम किया है, लेकिन यह संदेश मिलता है कि यह निश्चित तौर पर सबसे बुरी पीड़ा थी, जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते है। पहले भाग के अंत तक पाठक जीवन के सही अर्थ को महसूस करता है - वह है प्रेम का और जीवन के छोटे-छोटे गौरव के लिए आभारी रहना।
पाठक को “लोगोथेरेपी” के बारे में भी जानकारी मिलती है जिसे लेखक दूसरे भाग में समझाता है। इस थेरेपी की प्रकृति, अर्थ और उद्देश्य को अच्छी तरह से समझाया गया है। मनोविश्लेषण और लॉगोथेरेपी के बीच अंतर स्पष्ट रूप से बताया हैं। फ्रेंकल लॉगोथेरेपी की कई अवधारणाओं को भी प्रस्तुत करता है। वह चित्रण और केस स्टडी सहित उपचार प्रक्रियाओं और तकनीकों का उत्कृष्ट विवरण प्रदान करता है। कुछ नये चिकित्सकों को प्रक्रियाएं ये मददगार लग सकती हैं।
पुस्तक का तीसरा पहलू उन पाठकों के लिए एक आकर्षण है जो लॉगोथेरेपी के सिद्धांतों को स्वयं पर लागू करने की आवश्यकता समझते हैं। दुखद आशावाद पर अनुभाग इसे विस्तृत करता है।
यह खंड चिकित्सक के लिए यह समझने में भी उपयोगी है कि कैसे लॉगोथेरेपी के माध्यम से प्रभावी ढंग से लोगों की समस्याओं से निपटा जा सकता है। फ्रेंकल यह समझाने का प्रयास करता है कि कैसे जीवन में अर्थहीनता पैथोलॉजिकल नहीं हो सकती है, लेकिन निश्चित रूप से रोगजनक हो सकती है।
लेखक ने यह भी स्पष्ट किया है कि वृद्धावस्था और मृत्यु को अवसरों और संभावनाओं के अंत के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि सभी “संभावित रूप से वास्तविक, सार्थक और वास्तविक मूल्यों” के रूप में देखा जाना चाहिए। इस बात के बहुत से साक्ष्य है कि लोग अपने जीवन में अलग-अलग तरीकों से अर्थ खोजते हैं। विशेष रूप से,लोगों का स्व-मूल्यांकन जैसे अन्य चरों के साथ सकारात्मक संबंध है। अध्ययन यह भी कहता है कि आत्मसम्मान और चिंता विकारों के बीच एक महत्वपूर्ण संबंध है।
फ्रेंकल के अनुसार जीवन का निष्कर्ष है की जीवन का अर्थ जीने के हर पल में पाया जाता है; दुख और मृत्यु में भी जीवन का अर्थ कभी समाप्त नहीं होता। फ्रेंकल ने अपने अनुभव से निष्कर्ष निकाला कि एक कैदी की मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रियाएँ न केवल उसके जीवन की परिस्थितियों का परिणाम होती हैं, बल्कि पसंद की स्वतंत्रता से भी होती है जो उसे हमेशा गंभीर पीड़ा में भी होती है। एक कैदी की अपने आध्यात्मिक आत्म पर आंतरिक पकड़ भविष्य में एक आशा होने पर निर्भर करती है, और एक बार जब एक कैदी उस आशा को खो देता है, तो वह बर्बाद हो जाता है।
संदर्भ
https://bit.ly/3i7YU7g
https://bit.ly/3GJl368
https://bit.ly/3EYgbIT
चित्र संदर्भ
1. “मैंज सर्च फॉर मीनिंग” पुस्तक और उसके लेखक को दर्शाता एक चित्रण (yotube, amazon)
2. लेखक विक्टर फ्रैंकल को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. एक प्रसन्न वृद्ध महिला को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. “मैंज सर्च फॉर मीनिंग” पुस्तक को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
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