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क्या डिजिटल प्रौद्योगिकी के उपयोग से हमारे मस्तिष्क स्वास्थ्य पर पड़ रहा है नकारात्मक प्रभाव?

लखनऊ

 13-06-2022 09:44 AM
संचार एवं संचार यन्त्र

पिछले तीन दशकों के दौरान, डिजिटल तकनीक ने हमारे दैनिक जीवन को बदलकर रख दिया है। हर उम्र के लोग अब बड़ी मात्रा में उपलब्ध ऑनलाइन सूचना और संचार मंचों का लाभ उठा रहे हैं जो उन्हें दूसरों से जोड़ते हैं। यह तकनीक हमें भारी मात्रा में सूचनाओं को उत्पन्न करने, संग्रहीत करने और संसाधित करने में मदद करती है और एक दूसरे के साथ तेजी से और कुशलता से परस्पर क्रिया करती है।अधिकांश वयस्क प्रतिदिन इंटरनेट का उपयोग करते हैं, और विवरण के अनुसार लगभग चार में से एक अधिकांश समय ऑनलाइन होते हैं।
एक ऑनलाइन दुनिया में इस परिवर्तन के कारण, न्यूरोसाइंटिस्ट्स ने अपना ध्यान इस बात पर केंद्रित करना शुरू कर दिया है कि डिजिटल तकनीक हमारे दिमाग और व्यवहार को कैसे बदल सकती है। उभरते हुए वैज्ञानिक प्रमाण इंगित करते हैं कि बार-बार डिजिटल (Digital) प्रौद्योगिकी का उपयोग मस्तिष्क के कार्य और व्यवहार पर नकारात्मक और सकारात्मक दोनों तरह से महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है।व्यापक स्क्रीन (Screen) समय और प्रौद्योगिकी के उपयोग के संभावित हानिकारक प्रभावों में ध्यान की कमी में बढ़ाव, भावत्मक में खराबी और सामाजिक बुद्धिमत्ता, प्रौद्योगिकी की लत, सामाजिक अलगाव, मस्तिष्क के विकास में खराबी और नींद में बाधा जैसे लक्षण शामिल हैं। हालाँकि, विभिन्न ऐप (Apps), वीडियोगेम (Videogames) और अन्य ऑनलाइन (Online)उपकरण मस्तिष्क के स्वास्थ्य को लाभ पहुंचा सकते हैं। कार्यात्मक इमेजिंग स्कैन (Imaging scan) से पता चलता है कि इंटरनेट उपयोगी वृद्ध वयस्क जो ऑनलाइन खोज करना सीखते हैं, अनुकरण इंटरनेटखोजों के दौरान मस्तिष्क तंत्रिका गतिविधि में उल्लेखनीय वृद्धि दिखाते हैं।वहीं कुछ कंप्यूटर प्रोग्राम (Computer programs) और वीडियोगेम (Videogames) स्मृति, मल्टीटास्किंग (Multitasking) कौशल, तरल बुद्धि और अन्य संज्ञानात्मक क्षमताओं में सुधार करने में मदद करते हैं।
इस चिंता के कारण कि एक युवा, विकासशील मस्तिष्क (जब मस्तिष्क विशेष रूप से लचीला) विशेष रूप से कंप्यूटर, स्मार्टफोन, टैबलेट या टीवी के संपर्क के प्रति संवेदनशील हो सकता है, अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स (American Academy of Pediatrics) ने सिफारिश की है कि माता-पिता 2 वर्ष या उससे कम उम्र के बच्चों के लिए स्क्रीन समय सीमित करें।यदि एक बच्चा डिजिटल मीडिया (Digital media) के साथ व्यापक समय बिताता है तो वे आमने-सामने संवाद करने में कम समय बिताता है।एक अध्ययन से पता चलता है कि वीडियो गेम खेलने से चेहरे के भावों के माध्यम से व्यक्त भावनाओं को पहचानने की क्षमता में बाधा उत्पन्न होती है। अध्ययन में 197 छात्रों (उम्र 17 से 23 वर्ष) में चेहरे के भावों से भावनाओं की पहचान करने की क्षमता पर वीडियोगेम खेलने के प्रभावों की जांच की।छात्रों को कुछ शांत चेहरों की शृंखला दिखाने से पहले उन्हें हिंसक वीडियोगेम खेलने दिया गया, जिसके परिणामस्वरूप वे शांत चेहरे को क्रोधित या खुश के रूप में पहचानते हैं।
प्रतिभागियों को चेहरे की अभिव्यक्ति बदलते समय भावनाओं को जल्दी से पहचानने के लिए कहा गया था।लेखकों ने पाया कि गुस्से वाले चेहरों की तुलना में खुश चेहरों की पहचान तेजी से की जाती है, लेकिन हिंसक वीडियो गेम खेलने से खुश चेहरे की पहचान के समय में देरी पाई गई।स्क्रीन- आधारित मीडिया (Media) से प्रतिबंधित पूर्व-किशोरों के पास आमने-सामने बातचीत के अधिक अवसर होते हैं, जिससे अशाब्दिक भावनात्मक और सामाजिक संकेतों को पहचानने की उनकी क्षमता में सुधार होता है। वहीं बाजार शोधकर्ता डीस्काउट (Dscout) के अनुसार, अमेरिकी (American) औसतन दिन में 2,617 बार आश्चर्यजनक रूप से अपने फोन को छूते हैं। डेलॉयट (Deloitte) द्वारा 2016 के एक सर्वेक्षण के अनुसार, फोन की जांच करना इतना प्रचलित हो गया है कि 40 प्रतिशत से अधिक उपभोक्ताओं ने कहा कि वे जागने के पांच मिनट के भीतर उपकरणों को देखते हैं। जबकि पचास प्रतिशत ने कहा कि वे आधी रात को उनकी जाँच करते हैं।फोन से परे, वीडियो स्क्रीन अपरिहार्य प्रतीत होते हैं, क्योंकि वे हमारे बैठकख़ाना (टीवी) और हमारे डेस्कटॉप (Desktop(कंप्यूटर)) पर हैं; वे टैक्सीकैब (Taxicabs) और लिफ्ट (Elevator) में हैं; वे प्रतीक्षा कक्ष और दुकानों में हैं, यहाँ तक कि गैस स्टेशन (Gas station) के पंपों पर भी। और वे लगातार हमारे हाथ में मौजूद रहते हैं। मस्तिष्क एक कार्य से दूसरे कार्य में तेजी से स्विच करना सीखना शुरू कर देता है। और ये हमारी आदत बन जाती है। लेकिन यह आदत ध्यान केंद्रण के साथ संघर्ष करती है। बोस्टन कॉलेज (Boston College) के एक अध्ययन में, टीवी और कंप्यूटर वाले कमरे में मौजूद लोगों को हर 14 सेकंड में 27.5 मिनट में 120 बार अपनी आँखें आगे-पीछे करते हुए पाया गया।अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन (American Psychological Association) सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार जो लोग लगातार अपने फोन की जांच करते हैं, वे इसका उपयोग कम बार करने वाले लोगों की तुलना में अधिक तनाव के स्तर की शिकायत करते हैं। तनाव, बदले में, हमारी ध्यान केंद्रित करने की क्षमता को नुकसान पहुंचाता है।
कुछ उपायों का उपयोग करके आप अपना ध्यान केंद्रित करने की क्षमता को वापस पा सकते हैं :
1. एक अच्छा उपन्यास पड़ने की सोचें।अटलांटा (Atlanta) में एमोरी विश्वविद्यालय (Emory University) के एक अध्ययन में, विषय रात में पढ़ते हैं और प्रत्येक सुबह उनके मस्तिष्क का fMRI स्कैन किया जाता है। स्कैन ने भाषा से जुड़े मस्तिष्क के हिस्से में बढ़ी हुई संयोजकता को दिखाया। शोध में सबसे दिलचस्प बात यह है कि प्रतिभागियों द्वारा पुस्तक समाप्त करने के बाद पांच दिनों तक तंत्रिका परिवर्तन जारी रहा।
2. कुछ उपकरण बजाना सीखें या ध्यान लगाएं या बिना किसी रुकावट के 30 मिनट तक कुछ लिखें।
3. सुबह काम करें। रोटमैन रिसर्च इंस्टीट्यूट (Rotman Research Institute) के एक अध्ययन में, 60 से 82 वर्ष की आयु के प्रतिभागियों ने संज्ञानात्मक कार्यों पर बेहतर प्रदर्शन किया और दोपहर की तुलना में सुबह में परीक्षण करने पर अधिक ध्यान को केंद्रित करवाया।
4. किसी भाषा को सीखने पर ध्यान केंद्रित करें। इंग्लैंड (England) में बर्मिंघम विश्वविद्यालय (University of Birmingham) के शोध में पाया गया कि द्विभाषी बोलने वाले एकभाषी की तुलना में ध्यान बनाए रखने में बेहतर थे।
5. स्वयंसेवा करने का प्रयास करें, इससे मस्तिष्क को भी काफी आराम मिलता है और दिमागों का आकार भी बढ़ता है।
कई लोगों द्वारा दर्शनशास्त्र के पिता माने जाने वाले सुकरात को इस बात की गहरी चिंता थी कि लेखन की तकनीक समाज को कैसे प्रभावित करेगी।चूंकि भाषण देने की मौखिक परंपरा के लिए कुछ हद तक सामग्री को याद रखने की आवश्यकता होती है, उन्हें इस बात की चिंता थी कि लेखन सीखने और याद रखने की आवश्यकता को समाप्त कर देगी।ऐसे ही कुछ अब डिजिटल तकनीक का हमारे ऊपर प्रभाव पड़ रहा है, जो खराब स्मृति, ध्यान या कार्यकारी कामकाज का कारण बन रही है।हालांकि, इन दावों की जांच करने पर, दो महत्वपूर्ण तर्कपूर्ण धारणाओं पर ध्यान दिया जाता है। पहली धारणा यह है कि प्रभाव का दीर्घकालिक संज्ञानात्मक क्षमताओं पर स्थायी प्रभाव पड़ता है। दूसरी धारणा यह है कि डिजिटल तकनीक का अनुभूति पर सीधा, असंयमित प्रभाव पड़ता है।साक्ष्य की एक महत्वपूर्ण परीक्षा से पता चलता है कि प्रदर्शित प्रभाव अस्थायी रहे हैं, दीर्घकालिक नहीं।उदाहरण के लिए, स्मृति के बाहरी रूपों पर लोगों की निर्भरता की जांच करने वाले एक प्रमुख अध्ययन में, प्रतिभागियों को कुछ जानकारी प्रदान की गई और कहा गया कि ये जानकारी आपके कंप्यूटर पर सहेजी जाएगी तो लोग उसे याद रखने के लिए कम इच्छुक थे। दूसरी ओर, उन्होंने जानकारी को बेहतर ढंग से याद किया जब उन्हें बताया गया कि इसे सहेजा नहीं जाएगा।इन निष्कर्षों से यह निष्कर्ष निकाला गया प्रौद्योगिकी का उपयोग करने से स्मृति खराब हो जाती है, एक निष्कर्ष जो अध्ययन के लेखकों ने नहीं निकाला।जब तकनीक उपलब्ध थी, लोग उस पर भरोसा करते थे, लेकिन जब यह उपलब्ध नहीं था, तब भी लोग याद रखने में पूरी तरह सक्षम थे।
ऐसे में यह निष्कर्ष निकालना जल्दबाजी होगी कि तकनीक हमारी याद रखने की क्षमता को कम कर देती है।इसके अलावा, अनुभूति पर डिजिटल तकनीक का प्रभाव उनकी संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं के बजाय किसी के प्रेरित होने के कारण हो सकता है।मुख्य अंतर यह है कि डिजिटल तकनीक हमें सूचना के जटिल समूहों को अनुरूप उपकरण की तुलना में अधिक प्रभावी ढंग से और कुशलता से उतारने में मदद करती है, और यह सटीकता का त्याग किए बिना ऐसा करती है।एक महत्वपूर्ण लाभ यह है कि आंतरिक संज्ञानात्मक क्षमता जो पंचांग की महत्वपूर्ण तारीखों को याद रखने जैसे विशिष्ट कार्यों को करने से मुक्त करता है और अन्य कार्यों के लिए स्थान को खाली रखता है।बदले में इसका मतलब है कि हम पहले से कहीं अधिक, संज्ञानात्मक रूप से अपने कार्यों को कर सकते हैं। इसलिए हम ऐसा मान सकते हैं कि डिजिटल तकनीक हमारी आंतरिक संज्ञानात्मक प्रक्रिया के साथ प्रतिस्पर्धा करने के बजाए हमारी याद रखने की क्षमता का विस्तार करती है।

संदर्भ :-
https://bit.ly/3mEk4sy
https://bit.ly/3zBTU1r
https://bit.ly/2Si6Osf
https://bit.ly/3Hc7wlD

चित्र संदर्भ
1. दिमाग का निरिक्षण करते शोधकर्ताओं को दर्शाता एक चित्रण (ucsdnews)
2. मोबाइल चलाते बच्चे को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. स्मार्टफोन में लगे किशोर को दर्शाता चित्रण (flickr)
4. मोबाइल और दिमाग की स्थिति को दर्शाता चित्रण (Pixabay)



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