भारत के राष्ट्रीय गान "जन-गण,मन" को केवल सुनने भर से ही, प्रत्येक भारतीय का सीना फक्र से चौड़ा
और सिर गर्व से ऊंचा हो जाता है! हालांकि भारतीय राष्टगान बंगाली भाषा में गाया एवं लिखा जाता है,
लेकिन इसके बावजूद, कोई भी भाषा बोलने वाले भारतीय को, इसके सार को समझने में कोई विडंबना नहीं
होती है! राष्ट्रगान के इन जादुई शब्दों को रचने का श्रेय, श्री रबिन्द्रनाथ टैगोर को जाता है, जिनके लिए
"शब्द सम्राट" की संज्ञा भी छोटी पड़ जाएगी! चलिए "एक कवि के तौर पर" रबिन्द्रनाथ टैगोर की जीवन
यात्रा पर एक नज़र डालते हैं।
नोबेल पुरस्कार (Nobel Prize) विजेता कवि, रबिन्द्रनाथ टैगोर ने, सदैव ही अपनी अनेक खूबियों में से
कविता को प्राथमिकता दी। उन्होंने नाटककार, उपन्यासकार, लघु कथाकार, और गैर-काल्पनिक गद्य के
लेखक, विशेष रूप से निबंध, आलोचना, दार्शनिक ग्रंथों, पत्रिकाओं, संस्मरणों और पत्रों के रूप में साहित्य में
उल्लेखनीय योगदान दिया है। इसके अलावा, उन्होंने खुद को संगीतकार, चित्रकार, अभिनेता-निर्माता-
निर्देशक, शिक्षक, देशभक्त और समाज सुधारक के रूप में भी भली भांति स्थापित किया है।
कवि, लेखक, उपन्यासकार और संगीतकार, रबिन्द्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई 1861 को कलकत्ता में हुआ
था, और उन्हें संगीत तथा साहित्य को आकार देने एवं प्रभावित करने के लिए जाना जाता है। विलक्षण
साहित्यिक और कलात्मक उपलब्धियों के धनी व्यक्ति, टैगोर ने भारतीय सांस्कृतिक पुनर्जागरण में एक
प्रमुख भूमिका निभाई और मोहनदास गांधी के साथ, आधुनिक भारत के वास्तुकारों में से एक के रूप में
पहचाने जाने लगे। भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने डिस्कवरी ऑफ इंडिया (Discovery of
India) में लिखा था, "टैगोर और गांधी निस्संदेह बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में दो उत्कृष्ट और प्रभावशाली
व्यक्ति रहे हैं।
टैगोर की कृतियों का भारतियों के मन, और विशेष रूप से उत्तरोत्तर उभरती पीढ़ियों पर जबरदस्त प्रभाव रहा
है। केवल बंगाली ही नहीं, बल्कि भारत की सभी आधुनिक भाषाओं को उनके लेखन से आंशिक रूप से ढाला
गया है। किसी भी अन्य भारतीय से अधिक, उन्होंने पूर्व और पश्चिम के आदर्शों में सामंजस्य बिठाने में
मदद की है और भारतीय राष्ट्रवाद के आधार को व्यापक आकार देने की कोशिश की है।
अपने करियर की 60 से अधिक वर्षों की अवधि में टैगोर ने न केवल उनके व्यक्तिगत विकास और बहुमुखी
प्रतिभा का विस्तार किया, बल्कि 19 वीं सदी के अंत और 20 वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में भारत के कलात्मक,
सांस्कृतिक और राजनीतिक उतार-चढ़ाव को भी दर्शाया। टैगोर परिवार के सदस्यों ने तीनों आंदोलनों में
सक्रिय रूप से भाग लिया था, और टैगोर के काम, व्यापक अर्थों में, इस त्रि-आयामी क्रांति की परिणति का
प्रतिनिधित्व करते थे।
टैगोर की काव्य संवेदनशीलता को आकार देने में, उनके घर का कलात्मक वातावरण, प्रकृति की सुंदरता
और उनके संत चरित्र पिता का अहम योगदान रहा है। उन्होंने "माई लाइफ (My Life)" में लिखा है, “मेरे
परिवार के अधिकांश सदस्य, मेरे लिए उपहार के समान थे। उनमें से कुछ कलाकार थे, कुछ कवि थे, कुछ
संगीतकार थे और इस प्रकार हमारे घर का पूरा वातावरण सृजन की भावना से व्याप्त था।" उनकी प्रारंभिक
शिक्षा घर पर निजी शिक्षकों के अधीन हुई, लेकिन टैगोर ने माई बॉयहुड डेज़ (My Boyhood Days
(1940)) में लिखा, की उन्हें "सीखने की चक्की" अर्थात स्कूल बिल्कुल पसंद नहीं थे, जो "सुबह से रात तक
पीसती रहती थी।"
एक छात्र के रूप में, उन्हें कलकत्ता के चार अलग-अलग स्कूलों में भर्ती कराया गया था, लेकिन उन्हें यह
बिल्कुल भी रास न आया और यहाँ वे अक्सर नखरे करना शुरू कर देते थे। प्रकृति उनका पसंदीदा स्कूल थी!
इस संदर्भ में उन्होंने लिखा है की "मुझे बचपन से ही, प्रकृति की सुंदरता, पेड़ों और बादलों के साथ एक
अंतरंग भावना की गहरी समझ थी। उनके पिता, देवेंद्रनाथ, जिन्हें लोकप्रिय रूप से महर्षि (महान ऋषि)
कहा जाता है, एक लेखक, विद्वान और रहस्यवादी थे, जो कई वर्षों तक राजा राममोहन राय द्वारा
स्थापित ब्रह्म समाज आंदोलन के एक प्रतिष्ठित नेता थे।
टैगोर ने बहुत कम उम्र में कविता लिखना शुरू कर दिया था! अपने जीवनकाल के दौरान उन्होंने कविता के
लगभग 60 खंड प्रकाशित किए, जिसमें उन्होंने कई काव्य रूपों और तकनीकों गीत, सॉनेट (Sonnet), ओड
(Ode), नाटकीय एकालाप, संवाद कविताएँ, लंबी कथा और वर्णनात्मक रचनाओं के साथ रचनात्मक
प्रयोग किया।
गीत की उनकी पहली उल्लेखनीय पुस्तक, संध्या संगीत (1882; " शाम के गीत "), ने बंकिम चंद्र चटर्जी की
प्रशंसा भी प्राप्त की। उनकी प्रसिद्द रचनाओं में (1890; "द माइंड्स क्रिएशन (The Mind's Creation) "),
सोनार तारी (1894; " द गोल्डन बोट (the golden boat) "), चित्रा (1896), नैवेद्य (1901; " प्रसाद "),
खेया (1906; " फेरिंग एक्रॉस (Faring Across) "), और गीतांजलि शामिल हैं, जिसने उनकी गीतात्मक
कविता को गहराई, परिपक्वता और शांति प्रदान की, तथा अंततः 1912 में, गीतांजलि के अंग्रेजी अनुवादों के
प्रकाशन के साथ उन्हें विश्व ख्याति दिलाई।
गीतांजलि का प्रकाशन टैगोर के लेखन करियर में सबसे महत्वपूर्ण घटना थी, क्योंकि इसकी लोकप्रियता के
दम पर उन्होंने 1913 में साहित्य में नोबेल पुरस्कार जीता। रबिन्द्रनाथ ठाकुर (टैगोर) ने लगभग हर
साहित्यिक रूप का अभ्यास किया, लेकिन उनकी प्राथमिक विधा गीत कविता ही है। उन्होंने कोई
महाकाव्य और वस्तुतः किसी भी प्रकार की कोई लंबी कविता भी नहीं लिखी। उनकी लगभग 4,500
काव्यात्मक वस्तुओं में से, लगभग 2,200 गीत ही हैं। उनकी कविताएँ एक असाधारण औपचारिक सीमा
को कवर करती हैं। उनके द्वारा निर्मित गीत के छंद-रूपों की एक विशाल श्रृंखला है।
उन्होंने ब्रह्म समाज के लिए कई भी भजन लिखे। उनकी कविता वेदों और उपनिषदों की गहन आत्मसात
को भी दर्शाती है। उनके द्वारा रचित बहुत सारी कविताएं मानवीय मामलों को शुद्ध और सरल, सबसे
ऊपर मानवीय प्रेम को संबोधित करती हैं। उनकी रचनाओं में स्थानीय व्यंग्य से लेकर वैश्विक व्यवस्था पर
तीखे हमलों तक कुछ राजनीतिक कविताएँ भी शामिल हैं। कई कविताएँ महिलाओं के आंतरिक जीवन और
बाहरी स्थिति से संबंधित हैं। रबिन्द्रनाथ ने अपनी कविता में विषयों और चिंताओं का एक पूरा ब्रह्मांड
शामिल किया है। टैगोर ने 7 अगस्त 1941 को अपनी मृत्यु से कुछ घंटे पहले ही अपनी आखिरी कविता “
मृत्यु के पंख (Wings of Death)” लिखी थी।
संदर्भ
https://bit.ly/3FlPGvz
https://bit.ly/39BoME1
चित्र संदर्भ
1 बिलासपुर रेलवे स्टेशन पर रबीन्द्रनाथ टैगोर की कविता को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. रबीन्द्रनाथ टैगोर की छवि को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. विल्मोट ए परेरा और रवींद्रनाथ टैगोर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. रबीन्द्रनाथ टैगोर की प्रतिमा को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. पुस्तक पकडे रबीन्द्रनाथ टैगोर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.