रबिन्द्रनाथ टैगोर द्वारा स्थापित शांतिनिकेतन की तर्ज पर समझिये आदर्श शिक्षा की परिभाषा

लखनऊ

 07-05-2022 10:48 AM
विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

भारतीय शिक्षा प्रणाली, कई विद्वानों के लिए, आजादी के 7 दशकों के बाद भी त्रुटिपूर्ण और पुनः विचारणीय विषय हैं! वास्तव में किसी व्यक्ति के बेहतर भविष्य की नीवं उसके बचपन में ही पड़ जानी चाहिए! अतः किसी बच्चे, या एक पूरे देश के भविष्य को भी सुरक्षित करने के लिए, आज ही हमें उनकी शिक्षा व्यवस्था और विषयों को आदर्श बनाने पर विचार करना होगा। यदि पूरी भारतीय शिक्षा प्रणाली को सुधारने के लिए किसी एक व्यक्ति से सलाह ली जाए, तो संभवतः रबिन्द्रनाथ टैगोर से आदर्श व्यक्ति मुश्किल से ही मिलेगा। शिक्षाशास्त्र पर मजबूत पकड़ के संबंध में, रबिन्द्रनाथ द्वारा संचालित शांति निकेतन शिक्षा व्यवस्था अद्वितीय मानी जाती है! चलिए जानते है की उनकी शिक्षा व्यवस्था, आज भी प्रासंगिक क्यों है, और कैसे रबिन्द्रनाथ टैगोर की प्रारंभिक शिक्षा ने, उनकी क्रांतिकारी सोच को आकार दिया?
शिक्षा, भाषा और ज्ञान के प्रसार के समान कोई अन्य विकासवादी विकास नहीं होता। शायद यही कारण है कि, 21वीं सदी में भी माता-पिता अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा प्रदान करने के लिए लगातार प्रयास और कड़ी मेहनत करते हैं। हालांकि अपने मूल लक्ष्य से भटकते हुए आज की शिक्षा प्रणाली, कई मायनों में अभिभावकों को निराश ही कर रही है। शिक्षा पर महान दर्शन का केंद्र होने के बावजूद, भारतीय शिक्षा प्रणाली, भारत के महान दार्शनिकों की सूक्ष्म आवृत्तियों (subtle frequencies) से संदेश लेने में विफल हो रही है। आदर्श शिक्षा प्रणाली के श्रोत माने जाने वाले, भारत के दिव्य कवि, रबिन्द्रनाथ टैगोर का जन्म, स्वतंत्रता पूर्व भारत में संघर्ष की अवधि के दौरान हुआ था। वे स्वतंत्र मन, मुक्त ज्ञान और स्वतंत्र राष्ट्र के विकास के पक्षधर थे। एक छोटे लड़के के रूप में भी वह महसूस कर सकते थे कि, औपचारिक स्कूल, एक मृत दिनचर्या और बेजान क्रियाकलापों के अलावा और कुछ भी नहीं थे।
उन्होंने स्कूलों को रचनात्मकता के लिए स्वतंत्रता के आभाव में, केवल रटने की चक्की माना। यहां तक की आम स्कूली शिक्षा का उनके जीवन पर लगभग किसी भी प्रकार का प्रभाव ही नहीं पड़ा। उनके अनुसार, शिक्षा का प्राथमिक उद्देश्य, किसी के जीवन और बाहरी दुनिया के बीच सही तालमेल को सक्षम बनाना था। टैगोर के शैक्षिक दर्शन में चार मूलभूत सिद्धांत हैं; प्रकृतिवाद, मानवतावाद, अंतर्राष्ट्रीयवाद और आदर्शवाद। उनके द्वारा संचालित शांतिनिकेतन तथा विश्व भारती दोनों इन्हीं चार सिद्धांतों पर आधारित हैं। उन्होंने इस बात पर बहुत ज़ोर दिया की, शिक्षा एक प्राकृतिक परिवेश में प्रदान की जानी चाहिए। वह बच्चों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देने में विश्वास करते थे। उन्होंने कहा था "बच्चों का अवचेतन मन सक्रिय होता है, जो एक पेड़ की तरह आसपास के वातावरण से अपना भोजन इकट्ठा करने की शक्ति रखता है।" उन्होंने यह भी कहा कि एक शैक्षणिक संस्थान "एक मृत पिंजरा नहीं होना चाहिए जिसमें जीवित दिमाग को कृत्रिम रूप से तैयार भोजन से खिलाया जाता है। टैगोर के अनुसार, "शिक्षा का अर्थ मन को उस परम सत्य का पता लगाने के लिए सक्षम करना है जो हमें धूल के बंधन से मुक्त करता है और हमें चीजों का नहीं बल्कि आंतरिक प्रकाश का, शक्ति का नहीं बल्कि प्रेम रुपी धन प्रदान करता है। शिक्षा ज्ञानोदय की एक प्रक्रिया है, यह दैवीय धन है। यह सत्य की प्राप्ति में मदद करती है ”।
टैगोर द्वारा प्रतिपादित शिक्षा के लक्ष्यों को उनके दर्शन और जीवन्त हृदय के सन्दर्भ में पढ़ा जाना चाहिए। टैगोर के विचार उनके जीवन के पहले चरण में आश्रम प्रतिमान से, दूसरे में राष्ट्रीय शिक्षा के मॉडल के माध्यम से और तीसरे में विश्वभारती के विचारों के माध्यम से और अंत में लोकशिक्षा के विचार के प्रचार से जुड़े थे।
शिक्षा का उद्देश्य अज्ञानता को दूर कर ज्ञान के प्रकाश में लाकर मनुष्य को पूर्णता प्रदान करना है। और इसे आर्थिक, बौद्धिक, सौंदर्य, सामाजिक और आध्यात्मिक रूप संपूर्ण जीवन प्रदान करने में सक्षम होना चाहिए। रबिन्द्रनाथ द्वारा संचालित स्कूल शांतिनिकेतन का मुख्य उद्देश्य -प्रकृति के प्रति प्रेम पैदा करना, अपनी मूल भाषा में ज्ञान प्रदान करना, मन, हृदय और इच्छा की स्वतंत्रता, एक प्राकृतिक वातावरण प्रदान करना और अंततः भारतीय संस्कृति को समृद्ध करना था।
आज भी टैगोर की शिक्षा नीति कम लोकप्रिय नहीं है! हाल ही में, भारत के प्रधानमंत्री द्वारा पश्चिम बंगाल में विश्व भारती विश्वविद्यालय, शांतिनिकेतन, के शताब्दी समारोह को संबोधित किया गया। शांतिनिकेतन महर्षि देवेंद्रनाथ टैगोर द्वारा बनाया गया था, और बाद में उनके बेटे रबिन्द्रनाथ टैगोर द्वारा विस्तारित किया गया था। शांतिनिकेतन, जिसे आज कोलकाता के उत्तर में सौ मील दूर एक विश्वविद्यालय शहर के रूप में जाना जाता है, मूल रूप से देवेंद्रनाथ टैगोर द्वारा बनाया गया एक आश्रम था, जहां कोई भी किसी भी, जाति और पंथ के बावजूद, एक सर्वोच्च भगवान का ध्यान करने के लिए आ सकता था और समय बिता सकता था। यह क्षेत्र दो तरफ से नदियों, अजय और कोपई से घिरा हुआ है। सन 1873 में रबिन्द्रनाथ टैगोर जब 12 वर्ष के थे, तब वह पहली बार शांति निकेतन गए थे। 1888 में, उनके पिता देबेंद्रनाथ ने ट्रस्ट डीड (trust deed) के माध्यम से एक ब्रह्मविद्यालय की स्थापना के लिए पूरी संपत्ति को समर्पित कर दिया। 1901 में, रबिन्द्रनाथ ने एक ब्रह्मचर्यश्रम शुरू किया और इसे 1925 से पाठ भवन के रूप में जाना जाने लगा। रथींद्रनाथ टैगोर शांतिनिकेतन ब्रह्मचर्य आश्रम के, पहले पांच छात्रों में से एक थे। शांतिनिकेतन, रबिन्द्रनाथ टैगोर के शिक्षण स्थल के दृष्टिकोण का प्रतीक है, जो आज भी धार्मिक और क्षेत्रीय बाधाओं से मुक्त है। टैगोर, शांतिनिकेतन में कला के विभिन्न रूपों का समर्थन करने और उन्हें एक साथ लाने वाले पहले लोगों में से एक थे। शांतिनिकेतन की स्थापना, शिक्षा को कक्षा की सीमाओं से परे जाने में मदद करने के उद्देश्य से की गई थी, यह 1921 में विश्व भारती विश्वविद्यालय के रूप में विकसित हुआ।
दरअसल 1921 में रबिन्द्रनाथ टैगोर द्वारा स्थापित विश्व-भारती विश्वविद्यालय, देश का सबसे पुराना केंद्रीय विश्वविद्यालय है। विश्व भारती को कला, भाषा, मानविकी, संगीत आदि की खोज के उद्देश्य से संस्कृति के केंद्र के रूप में स्थापित किया गया था तथा इसे 1951 में संसद के एक अधिनियम द्वारा राष्ट्रीय महत्व की संस्था भी घोषित किया गया था। मई 1951 में, विश्व भारती को संसद के एक अधिनियम द्वारा एक केंद्रीय विश्वविद्यालय और "राष्ट्रीय महत्व का एक संस्थान" घोषित किया गया।

संदर्भ
https://bit.ly/3shjUua
https://bit.ly/3Fn2pOw
https://bit.ly/3MTnfYr

चित्र संदर्भ
1  शांतिनिकेतन में गांधीजी और रबीन्द्रनाथ टैगोर को दर्शाता एक चित्रण (Picryl)
2. शांतिनिकेतन में रबीन्द्रनाथ टैगोर के घर को दर्शाता एक चित्र (wikimedia)
3. शांतिनिकेतन परिसर को दर्शाता एक चित्र (wikimedia)
4. रवींद्रनाथ टैगोर और प्रोफेसर आइंस्टीन को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)



RECENT POST

  • होबिनहियन संस्कृति: प्रागैतिहासिक शिकारी-संग्राहकों की अद्भुत जीवनी
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:30 AM


  • अद्वैत आश्रम: स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं का आध्यात्मिक एवं प्रसार केंद्र
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:32 AM


  • जानें, ताज महल की अद्भुत वास्तुकला में क्यों दिखती है स्वर्ग की छवि
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:25 AM


  • सांस्कृतिक विरासत और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध अमेठी ज़िले की करें यथार्थ सैर
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:34 AM


  • इस अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस पर जानें, केम्ब्रिज और कोलंबिया विश्वविद्यालयों के बारे में
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:33 AM


  • क्या आप जानते हैं, मायोटोनिक बकरियाँ और अन्य जानवर, कैसे करते हैं तनाव का सामना ?
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:20 AM


  • आधुनिक समय में भी प्रासंगिक हैं, गुरु नानक द्वारा दी गईं शिक्षाएं
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:32 AM


  • भारत के सबसे बड़े व्यावसायिक क्षेत्रों में से एक बन गया है स्वास्थ्य देखभाल उद्योग
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:22 AM


  • आइए जानें, लखनऊ के कारीगरों के लिए रीसाइकल्ड रेशम का महत्व
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:26 AM


  • वर्तमान उदाहरणों से समझें, प्रोटोप्लैनेटों के निर्माण और उनसे जुड़े सिद्धांतों के बारे में
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:32 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id