रामपुर में जुम्मा और जुम्हरात (गुरुवार की शाम) का विशेष महत्व है। विशेषकर श्रमिकों या मजदूर वर्ग के
लिए, क्योंकि इस दिन प्रत्येक श्रमिक को उसकी प्रत्येक दिन की मजदूरी का भुगतान किया जाता है। हर दिन
का भुगतान सप्ताह के एक दिन अर्थात गुरुवार की शाम को किया जाता है। भारत में कार्य की भुगतान प्रणाली
भिन्न-भिन्न है, यह भुगतान कार्य के घंटों के हिसाब से अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग निर्धारित किया
गया है। व्यक्ति जितना वक्त कार्य करने में व्यतीत करता है उसे उसका कार्य समय कहा जाता है। दूसरे शब्दों
यह वह समय अवधि है जब किसी व्यक्ति द्वारा श्रम किया जाता है और उसे इस कार्य के बदले भुगतान
किया जाता है। इस समय अवधि में व्यक्तिगत कार्यों को शामिल नहीं किया जा सकता। व्यक्तिगत कार्यों में
लगने वाले श्रम को अवैतनिक श्रम माना जाता है जैसे घर में अपने बच्चों या पालतू जानवर की देखभाल
करना अवैतनिक श्रम के अंतर्गत आता है।कारखाना अधिनियम 1948 के अनुसार, प्रत्येक वयस्क (एक व्यक्ति
जिसने 18 वर्ष की आयु पूरी कर ली है) एक सप्ताह में 48 घंटे से अधिक और एक दिन में 9 घंटे से अधिक
काम नहीं कर सकता है। अधिनियम की धारा 51 के अनुसार, प्रसार 10-1/2 घंटे से अधिक नहीं होना चाहिए।
न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 भी नियम 20 से 25 के तहत काम के घंटों के बारे में निर्दिष्ट करता है
कि एक दिन में काम के घंटों की संख्या एक वयस्क के लिए 9 घंटे से अधिक नहीं होनी चाहिए।
कारखाना अधिनियम, 1948 की धारा 66 महिलाओं को शाम 7.00 बजे से सुबह 6.00 बजे के बीच काम करने
के लिए रोजगार पर प्रतिबंध लगाती है। हालाँकि, मुख्य निरीक्षक को छूट देने का अधिकार है, लेकिन उस
स्थिति में महिलाओं को रात 10.00 बजे से सुबह 5.00 बजे के बीच काम करने की अनुमति नहीं है।वहीं यह
अधिनियम निर्दिष्ट करता है कि सप्ताह के पहले दिन साप्ताहिक अवकाश, जो रविवार है या कोई अन्य दिन
हो सकता है, जैसा कि कारखाने के मुख्य निरीक्षक द्वारा लिखित रूप में अनुमोदित किया जा सकता है।धारा
52 के तहत साप्ताहिक अवकाश को बदलने का प्रावधान है ताकि इस खंड की आवश्यकताओं का पालन करते
हुए श्रमिकों को साप्ताहिक अवकाश के दिन काम करने की अनुमति दी जा सके। अनुपयुक्त साप्ताहिक
अवकाश के स्थान पर प्रतिपूरक अवकाश की अनुमति देने का प्रावधान भी निर्दिष्ट किया गया है।साथ ही
कारखाना अधिनियम, 1948 के प्रावधानों के अनुसार कम से कम आधे घंटे का विश्राम अंतराल प्रदान किया
जाना चाहिए, इस तरह से काम की अवधि 5-1 / 2 घंटे से अधिक नहीं होनी चाहिए।न्यूनतम मजदूरी
अधिनियम के अनुसार, एक वयस्क श्रमिक के कार्य दिवस को इस प्रकार व्यवस्थित किया जाना चाहिए कि
विश्राम के अंतराल को मिलाकर यह किसी भी दिन 12 घंटे से अधिक न हो।
कारखाना अधिनियम, 1948 के प्रावधान के अनुसार युवा व्यक्ति को "बच्चा" या "किशोर" (एक व्यक्ति जिसने
15 वर्ष की आयु पूरी कर ली है, लेकिन 18 वर्ष की आयु पूरी नहीं की है) के रूप में परिभाषित किया गया है।
इसमें उल्लेख है कि बाल श्रमिकों के काम के घंटे दिन में 4-1 / 2 घंटे तक सीमित रहें।यह भी निर्दिष्ट करता
है कि अधिकतम 5 घंटे से अधिक नहीं होना चाहिए। अधिनियम के प्रावधान यह भी निर्दिष्ट करते हैं कि
महिला बाल श्रमिकों को धारा 71 के अनुसार शाम 7.00 बजे से सुबह 8 बजे के बीच काम करने के लिए
प्रतिबंधित किया गया है।न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 के अनुसार किशोरों के लिए काम के घंटों की
संख्या सरकार द्वारा अनुमोदित चिकित्सक द्वारा निर्धारित की जाएगी, जो कि किशोर को वयस्क या बच्चे के
रूप में मानने पर तय की जाएगी। 2016 में भारत में प्रति कर्मचारी औसतन 1,980 वार्षिक घंटे कार्य किया
गया जिसके साथ भारत ओईसीडीरैंकिंग (OECD Ranking) में चौथे स्थान पर रहा।
दुनिया के अधिकांश हिस्सों में, कार्यसप्ताह सोमवार से शुक्रवार तक का होता है तथा सप्ताहांत के लिए शनिवार
और रविवार का दिन निर्धारित किया गया है। इसके विपरीत कुछ देशों में कार्य सप्ताह रविवार से गुरुवार या
सोमवार से गुरुवार तक का निर्धारित किया गया है। कुछ स्थानों में सप्ताहांत केवल रविवार का होता है। ईसाई
परंपरा में, रविवार के दिन को आराम और पूजा का दिन माना जाता है। इजराइल (Israel) में सप्ताहांत शुक्रवार
और शनिवार को मनाया जाता है। सप्ताहांत की वर्तमान अवधारणा पहली बार 19वीं सदी में ब्रिटेन (Britain) में
शुरू हुई थी। कुछ देशों में केवल एक दिवसीय सप्ताहांत को अपनाया गया है जो कुछ स्थानों में रविवार को
तथा कुछ स्थानों में शुक्रवार को निर्धारित किया गया है। अधिकांश देशों में दो-दिवसीय सप्ताहांत को अपनाया
गया है जोकि धार्मिक परंपरा के अनुसार अलग-अलग दिन होता है अर्थात शुक्रवार या शनिवार, या शनिवार और
रविवार, या शुक्रवार और रविवार।
वर्तमान समय में घर से कार्य करने की स्थिति को ध्यान में रखते हुए कई देशों ने कार्यप्रणाली में कुछ बदलाव
लाने पर विचार किया है। कर्मचारियों के पेशेवर और व्यक्तिगत जीवन दोनों पर पकड़ बनाने में मदद करने के
लिए चार दिवसीय कार्य सप्ताह योजना को पेश किया गया है। एक चार-दिवसीय सप्ताह, एक ऐसी व्यवस्था है
जहां एक कार्यस्थल या विद्यालय में काम करने वाले कर्मचारी या छात्र पांच के बजाय प्रति सप्ताह चार दिनों
के दौरान कार्य करते हैं या विद्यालय जाते हैं।यह व्यवस्था लचीले कामकाजी घंटों का एक हिस्सा हो सकती है,
और कभी-कभी लागत में कटौती करने के लिए उपयोग की जाती है, जैसा कि तथा कथित "4/10 कार्य
सप्ताह" के उदाहरण में देखा गया है, जहां कर्मचारी चार दिनों में सामान्य 40 घंटे काम करते हैं, अर्थात
"4/10" सप्ताह।हालांकि, चार दिन का सप्ताह एक निश्चित कार्यसूची भी हो सकता है।भारत सरकार द्वारा भी
हाल ही में 4/10 कार्य सप्ताह में परिवर्तन करने पर विचार किया जा रहा है। हालांकि लोकसभा में केंद्रीय श्रम
मंत्री ने सरकार के इस तरह के किसी भी कदम से इनकार किया है।पहले चौथे वेतन आयोग की सिफारिशों के
आधार पर, केंद्र ने पांच दिवसीय कार्य सप्ताह की शुरुआत की है, जिसका प्राथमिक उद्देश्य कर्मचारियों को
अधिक खाली समय देना था जो बेहतर कार्य-जीवन संतुलन की ओर ले जाता है और उनकी दक्षता में भी सुधार
करता है।
संदर्भ :-
https://bit.ly/3e6Ql7V
https://cnb.cx/3hIm5AW
https://bit.ly/3hJx2CB
https://bit.ly/3AvQMC1
https://bit.ly/3hk2Hv9
https://bit.ly/2UoAM4g
https://bit.ly/3xqHq8M
चित्र संदर्भ
1. चार दिवसीय कार्य को दर्शाता एक चित्रण (adobe)
2. प्रति नियोजित व्यक्ति औसत वार्षिक कार्य घंटे (2017) दर्शाता मानचित्र (wikimedia)
3. कारखाना अधिनियम, 1948 के सिद्धांत दर्शाता एक चित्रण (youtube)
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