द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के साथ ही विश्व में शीत युद्ध का दौर प्रारंभ हो गयाथा, जिसमें
संपूर्ण विश्व वैचारिक आधार पर मुख्यतः दो गुटों में विभाजित हो गया। इस वैचारिक युद्ध के एक
एक ओर साम्यवादी सोवियत संघ तो दूसरीओर पूंजीवादी अमेरिका (America) जैसी महाशक्तियाँ
मौजूद थीं।शीत युद्ध के दौरान दो राजनीतिक-सैन्य गुटों के बीच नीति की स्वायत्तता (समान दूरी
नहीं) बनाए रखने के लिए गुटनिरपेक्षता की नीति बनाई गई। गुटनिरपेक्ष आंदोलन (Non Aligned
Movement, NAM) ने अपनी स्वायत्तता की रक्षा के लिए नए स्वतंत्र विकासशील देशों को एक साथ
जुड़ने हेतु एक मंच प्रदान किया। यह कई देशों का एक अलग समूह था, जो एक या दूसरे गुट से
निकटता और निर्भरता के अलग-अलग पैमाने के साथ था; और व्यापक रूप से गैर-उपनिवेशीकरण,
सार्वभौमिक परमाणु निरस्त्रीकरण और रंगभेद के खिलाफ उठाया गया एक कदम था।
भारत गुटनिरपेक्ष आंदोलन का संस्थापक और इसके सबसे महत्त्वपूर्ण सदस्यों में से एक है तथा 1970
के दशक तक भारत ने इस आंदोलन की बैठकों में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया, किंतु 1970 के दशक
के बाद गुटनिरपेक्ष आंदोलन में भारत की स्थिति बदलने लगी और सोवियत संघ की ओर भारत का
झुकाव बढ़ने लगा, जिससे गुटनिरपेक्ष आंदोलनके उद्देश्यों को लेकर छोटे देशों के बीच भ्रम की स्थिति
पैदा हो गई। शीत युद्ध की समाप्ति के साथ ही सोवियत संघ का विघटन हो गया था। उस समय
तक उपनिवेशवाद काफी हद तक समाप्त हो चुका था, दक्षिण अफ्रीका में रंगभेदी शासन भी समाप्ति
के कगार पर था और सार्वभौमिक परमाणु निरस्त्रीकरण के अभियान पर भी विराम लग गया था।
शीत युद्ध की बेड़ियों से मुक्त होकर, गुटनिरपेक्ष देश पूर्व-पश्चिम विभाजन के पार संबंधों के अपने
नेटवर्क में विविधता लाने में सक्षम थे। नेम (NAM), जो मुख्यत: शीत युद्ध के दौरान एक अमेरिकी
(American) विरोधी संगठन के रूप में गठित किया गया था, आज सभी प्रासंगिकता खो चुका है।शीत
युद्ध के दौरान भी, भारत पूर्णत: गुटनिरपेक्ष नहीं था। नेम के अधिकांश सदस्यों का झुकाव सोवियत
संघ की ओर था।शीत युद्ध की समाप्ति के बाद से नेम का महत्व कम हो गया। नेम के 120 स्थायी
सदस्यों में से, भारत अपने लोकतांत्रिक मूल्यों और अपनी जनसंख्या और अर्थव्यवस्था के आकार के
कारण समूह के नेता के रूप में उभरने के लिए पूरी तरह से तैयार है। इसके अलावा, मिस्र (Egypt)
और तत्कालीन यूगोस्लाविया (Yugoslavia) के साथ नेम के तीन संस्थापक देशों में से एक के रूप में
भारत की साख भी इसके पक्ष में कार्य करती है।
भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने हाल ही में अपने बयान में कहा कि गुटनिरपेक्षता एक
विशिष्ट युग और एक विशेष संदर्भ में प्रासंगिकता की अवधारणा थी, हालांकि इसके अंतर्गत उठाए
गए कदम स्वतंत्र भारत की विदेश नीति में आज भी शामिल हैं। स्वतंत्रता के बाद भारत नेम
(गुटनिरपेक्ष आंदोलन) (NAM ( Non Aligned Movement )) का एक प्रमुख सदस्य था। कोविड -19 के
बाद, भारत नेम को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रहा है, क्योंकि विश्व व्यापी भू-राजनीतिक
बदलाव स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं क्योंकि महामारी बड़ी आर्थिक चुनौतियां और युद्ध जैसा परिदृश्य
बनाती हुयी नजर आ रही है। लेकिन जैसा कि हाल के चीन (China) सीमा हमलों से पता चलता है,
भारत के हित में अब एक बड़े नेम की पुर्नस्थापना और प्रभावशीलता बहुत मुश्किल हो सकती है,
भले ही यह चीन बनाम यूएसए (USA) की आर्थिक लड़ाई के बीच चयन करने का सही मध्य मार्ग ही
क्यों ना हो। चीन के साथ मौजूदा गतिरोध के मद्देनजर, भारत की विदेश नीति के लिए अपने
अवरोधों को दूर करने और चीन का मुकाबला करने के लिए एकमात्र व्यवहार्य विकल्प के रूप में
संयुक्त राज्य अमेरिका ही मौजूद है।
संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बीच "नए शीत युद्ध" की स्थिति गति पकड़ रही है। इस तरह
के परिदृश्य की संभावना में, दुनिया के मध्य शक्तियों की एक प्रमुख सामूहिक - एक संतुलनकारी
भूमिका निभाने के लिए नेम पर एक बार फिर से ध्यान केंद्रित किया जाएगा। पूरी संभावना है कि
भारत वैश्विक विश्व व्यवस्था में अपनी वर्तमान स्थिति के साथ दक्षिण-दक्षिण सहयोग (South-South
cooperation) के दायरे में गुटनिरपेक्ष आंदोलन के नेतृत्व के माध्यम से इस मध्य शक्ति संतुलन का
नेतृत्व करने के लिए उत्सुक होगा।
2019–2022 की अवधि के लिए नेम के अध्यक्ष की पहल पर 4 मई, 2020 को आयोजित "यूनाइटेड
अगेंस्ट कोविड -19" (United Against Covid-19) शीर्षक से एक ऑनलाइन (Online) शिखर सम्मेलन
हुआ , जिसे मुख्य रूप से कोविड-19 महामारी से लड़ने के लिए वैश्विक संघर्ष और नेम को बढ़ाने के
लिए समर्थन को संबोधित किया। नेम, साथ ही अन्य देशों में इस बीमारी के कारण होने वाले
परिणामों से निपटने और कम करने में अपनी भूमिका बढ़ाएगा। कोविड -19 के चलते भारत ने
अपनी जरूरतों के बावजूद, गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) के 59 सदस्यों सहित 123 से अधिक भागीदार
देशों को चिकित्सा आपूर्ति सुनिश्चित की।
जैसा कि दुनिया को उम्मीद है कि कोविड-19 के बाद एक नई वैश्विक व्यवस्था का उदय होगा,
जिसमें भारत जैसी उभरती मध्य शक्तियां एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तैयार हैं। भारत के
वर्तमान प्रधान मंत्री ने "मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली की सीमाओं" को स्वीकार किया और "निष्पक्षता,
समानता और मानवता पर आधारित वैश्वीकरण का एक नया खाका" पेश किया। इसके अलावा,
उन्होंने आर्थिक विकास के साथ-साथ "मानव कल्याण को बढ़ावा देने के लिए" अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों
की आवश्यकता पर भी जोर दिया, और अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन और आपदा
प्रतिरोधी बुनियादी ढांचे के लिए गठबंधन के माध्यम से इस तरह की पहल के लिए भारत की
"चैंपियनिंग" (championing) पर प्रकाश डाला।
संदर्भ:
https://bit.ly/2UnDnLZ
https://bit.ly/3AFaonw
https://bit.ly/3whACsN
https://bit.ly/3hDcaNe
https://bit.ly/3yonF1D
https://bit.ly/3hfBLfZ
चित्र संदर्भ
1. NAM का Tehran में 16वां शिखर सम्मेलन का एक चित्रण (wikimedia)
2. गुटनिरपेक्ष आंदोलन के सदस्य देशो का एक चित्रण (wikimedia)
3. पीएम मोदी के वर्चुअल गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) शिखर सम्मेलन के सम्बोधन को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
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