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पवित्र कुरान में स्वर्ग की अवधारणा के अनुसार स्वर्ग में कई सुंदर बागीचे हैं तथा इनमें से प्रत्येक पहले की अपेक्षा अधिक सुंदर है। बाग के रूप में स्वर्ग का पुन: निर्माण मुगलों द्वारा एक नवाब के काल से दूसरे नवाब के काल तक स्थानांतरित होता गया। कैसरबाग महल इस तरह के बागीचे का एक सुंदर उदाहरण पेश करता है, जो कि भारत के अवध क्षेत्र में स्थित लखनऊ शहर का एक परिसर है। लखनऊ के कैसरबाग महल को लखनऊ की आत्मा कहा जाता है। नवाब वाजिद अली शाह ने साल 1850 में कैसरबाग की स्थापना करते हुए यहां एक अनोखा खूबसूरत बागीचा भी बनवाया था और इसका नाम कैसरबाग पैलेस (palace) रखा। इसके पूर्व और पश्चिम दोनों तरफ में जो दरवाजे बनवाए थे, उस पर कुल एक-एक लाख रुपये खर्च किए थे। यही वजह है कि इसे लाखी दरवाजा भी कहते हैं। लखनऊ के कैसरबाग में जहां स्वर्ग की अनुभूति कराने वाले इस प्रकार के बगीचों को फलों के पेड़, बहते पानी के झरने, और सुगंधित फूलों से डिजाईन (design) किया गया था, वहीं शहर के उपनगरों में कई और चारदीवारी वाले बगीचे भी थे।
विशेष रूप से जो जानवरों की लडाईयों, बागों के रूप में, और शिकार के लिए छोटे विनोद ग्रहों (Villas-ऐसे मकान जिनका निर्माण भोग-विलास करने के लिए किया जाता है) के साथ विकसित किया गया है। कैसरबाग को अपनी वास्तुकला के लिए विशेष तौर पर जाना जाता है। वाजिद अली शाह संगीत और साहित्य के प्रेमी थे और इसलिए वे महल परिसर में एक ऐसा बाग चाहते थे जो स्वर्ग की तरह दिखे। यहां बैठ कर नाटक, संगीत, नृत्य आदि का लुफ्त उठाया जा सकता था।
बागानों में विभिन्न रास्तों का निर्माण बड़ी कुशलता से किया गया था तथा मार्गों को ज़िग-ज़ैग (Zig-Zag) तरीके से बनाया गया था जो कि आगंतुकों को भ्रमित कर देते थे। कैसर बाग़ में तीन प्रमुख भाग थे, पहला सार्वजनिक भाग जहाँ राजा अपने अधिकारियों से मिलते थे। इसी भाग में राज्याभिषेक आदि जैसे बड़े कार्यक्रम किये जाते थे। दूसरे हिस्से में निजी मस्जिद, कार्यालय, पुस्तकालयों आदि थे तथा तृतीय हिस्से में रानियों के रहने के लिए आवास बनाए गये थे। इस हिस्से में राजा और कुछ गिने चुने मेहमानों को ही जाने की अनुमति होती थी। कैसरबाग़ लखनऊ का सबसे खूबसूरत स्थान था जहाँ पर हर वो चीज़ उपलब्ध थी जो कि स्वर्ग की अवधारणा को परिपूर्ण करती है। कभी लखनऊ की आत्मा कहे जाने वाले कैसरबाग पैलेस के दोनों दरवाजे कैसरबाग की शोभा हुआ करते थे। इसकी बनावट की बात करें, तो इस विशालकाय दरवाजे के तीन दर वाले फाटकों पर चार बुर्ज बने हैं और बीच में मार्टिन (Martin) के मकबरे वाली सीढ़ीदार चौपड़, जो इस दरवाजे की खूबसूरती को बढ़ाता है। इसके ऊपरी हिस्से पर सुनहरे गुंबद का छत्र रखा रहता था, जिसपर कभी सल्तनत अवध का झंडा लहराया करता था। 1857 क्रांति कैसर बाग़ के लिए घातक सिद्ध हुई। क्रांति के दौरान कैसर बाग़ में स्थित अनेक इमारतें गिरा दी गयी। इमारतों के साथ यहां स्थित अनेकों स्वर्गरूपी बगीचे भी तबाह कर दिये गए। इसकी चहारदीवारी भी गिरा दी गयी तथा आस-पास मौजूद कई मंदिर और मस्जिद आदि भी ध्वस्त हो गये। आयरिश पत्रकार विलियम हॉवर्ड रसेल ने 1858 में हुए विद्रोह के दौरान नशे में उन्मत ब्रिटिश सैनिकों द्वारा क़ैसर बाग़ की लूटपाट का एक लेख भी लिखा है। कैसरबाग़ क्षेत्र आज भारतीय पुरातत्त्व विभाग के संरक्षण में है। इस इमारत में आज सफ़ेद बारादरी, शेर दरवाज़ा आदि बचे हुए हैं। यहाँ पर दो दरवाज़े भी उपलब्ध हैं जिन्हें लाखी दरवाज़ा कहते हैं, जो कि वर्तमान समय में क्षतिग्रस्त अवस्था में हैं।
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