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धरती पर अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए मनुष्य भोजन पर निर्भर है तथा भोजन के मुख्य स्रोत के रूप में वह पेड़-पौधों का उपयोग करता है। किंतु यदि पेड़-पौधों को मृदा या मिट्टी से उपयुक्त पोषक तत्व प्राप्त न हो, तो मनुष्य भी अपने पोषण स्तर को प्राप्त नहीं कर सकता। लखनऊ में खेती के लिए अधिकतर दोमट मिट्टी या चिकनी मिट्टी का उपयोग होता है और यहां मिट्टी की अत्यधिक विविधता देखने को मिलती है, जिनमें बलुई मिट्टी, दोमट मिट्टी, सिल्टी (Silty) दोमट मिट्टी, सिल्टी चिकनी दोमट मिट्टी, चिकनी दोमट मिट्टी आदि हैं। लखनऊ क्षेत्र में जो मिट्टी सबसे अधिक पायी जाती है, वह है दोमट मिट्टी। यह मिट्टी रेत, गाद और चिकनी मिट्टी के संयोजन से मिलकर बनी है। इस प्रकार यह मिट्टी पौधों की वृद्धि के लिए उपयुक्त है। मिट्टी की इस विविधता में अनेक गतिविधियां जैसे कृषि क्षेत्र, वन, चारागाह आदि के लिए किया जाता है। लखनऊ का कुल कृषि क्षेत्र 215280 हेक्टेयर (Hectare), शुद्ध कृषि क्षेत्र 138148 हेक्टेयर तथा शुद्ध सिंचित क्षेत्र 124000 हेक्टेयर है।
वर्तमान समय में जलवायु परिवर्तन तथा गरीबी समाज की प्रमुख समस्याओं में से एक हैं। लेकिन मृदा जलवायु परिवर्तन और गरीबी दोनों के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जलवायु परिवर्तन की यदि बात करें तो इसका मुख्य कारण ग्रीन हाउस (Greenhouse) गैसें हैं, जिनमें कार्बन डाई ऑक्साइड (Carbon dioxide) भी शामिल है। वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा को कम करने हेतु यदि कार्बन उत्सर्जन का संग्रहण और भंडारण जैव ईंधन से जलने वाले बिजली संयंत्रों द्वारा किया जाता है, या कार्बन को अवशोषित करने के लिए नए वन लगाये जाते हैं, तो इनके साथ अन्य समस्याएं पैदा होंगी। इसे प्रभावी बनाने के लिए बड़े पैमाने पर इसके उपयोग की आवश्यकता होगी जिसकी वजह से बहुत अधिक भूमि, पानी, या ऊर्जा भी जरूरी होंगे और साथ ही यह बहुत महंगा भी होगा। किंतु भूमि और पानी पर कम प्रभाव के साथ और ऊर्जा की कम आवश्यकता और कम लागत के साथ मिट्टी में कार्बन का पृथक्करण वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड को हटाने का एक अपेक्षाकृत प्राकृतिक प्रभावी तरीका है।
बेहतर भूमि प्रबंधन और कृषि पद्धतियाँ कार्बन को संग्रहित करने और ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) से निपटने में मदद करने में मिट्टी की क्षमता को बढ़ा सकती हैं। पृथ्वी की मिट्टी में लगभग 2,500 गीगाटन (Gigatons) कार्बन है, जो वायुमंडल में कार्बन की मात्रा का तीन गुना से अधिक है और सभी जीवित पौधों और जानवरों में संग्रहित मात्रा का चार गुना है। इस प्रकार मिट्टी जलवायु परिवर्तन के खिलाफ कार्बन भंडारण को बढ़ाने के तरीकों में एक महत्वपूर्ण हथियार है। मिट्टी द्वारा कार्बन को अवशोषित और संग्रहित करने की क्षमता स्थान के अनुसार बदलती रहती है और यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि भूमि का प्रबंधन कैसे किया जाता है? 2017 के एक अध्ययन के अनुसार बेहतर प्रबंधन के साथ, वैश्विक कृषि क्षेत्र में हर साल एक अतिरिक्त 1.85 गीगाटन कार्बन संग्रहित करने की क्षमता है। विवेकपूर्ण तरीके से मिट्टी के उपयोग और भूमि प्रबंधन के माध्यम से कार्बन (जो मृदा कार्बनिक पदार्थों में संग्रहित है) का संरक्षण जलवायु परिवर्तन को कम करने में मदद कर सकता है। इसके साथ ही यह मिट्टी और पानी की गुणवत्ता को सुधारने और खाद्य सुरक्षा को भी बेहतर बना सकता है।
अवशेष प्रबंधन और वैकल्पिक फसलों जैसे अभ्यासों से किसान और अन्य हितधारक मिट्टी से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने में मदद कर सकते हैं। इस तरह के हस्तक्षेप से मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ का निवेश बढ़ता है और मिट्टी के कार्बनिक पदार्थों के अपघटन में कमी आती है।
वहीं यदि गरीबी की बात की जाए तो मिट्टी की गुणवत्ता की भूमिका यहां भी देखने को मिलती है। एक अध्ययन के अनुसार अफ्रीका के सबसे गरीब जिलों में मिट्टी की गुणवत्ता बेहतर (बदतर नहीं) है और भूमि की उर्वरता बदतर सड़कों वाले जिलों में अधिक है। अध्ययन के परिणाम बताते हैं कि परिवहन की लागत अफ्रीका में गरीबी के मुख्य चालक हैं और यह मिट्टी की गुणवत्ता को अभिशाप में बदल सकता है। विशेष रूप से, गरीब बुनियादी ढांचे वाले जिलों में, गरीबी की दर बढ़ जाती है क्योंकि मिट्टी की गुणवत्ता बेहतर हो जाती है। ये परिणाम प्रचुर मात्रा में कृषि संसाधनों के साथ पृथक जिलों में अपेक्षाकृत कम मानव पूंजी निवेश के कारण हैं। मिट्टी की गुणवत्ता और भूमि की उर्वरता कृषि उत्पादन और आर्थिक विकास के प्रमुख निर्धारक हैं। नतीजतन, मिट्टी की गिरावट और सूखे को व्यापक रूप से खाद्य असुरक्षा और ग्रामीण गरीबी से जुड़ा माना जाता है। इसलिए यह आश्चर्यजनक नहीं है कि नीति-निर्माताओं और शिक्षाविदों ने हाल ही में आधुनिक आदानों को अपनाने पर ध्यान केंद्रित किया है, जिसमें उर्वरक का उपयोग और ग्रामीण गरीबी के संभावित समाधान के रूप में उन्नत बीज शामिल हैं। पारंपरिक रूप से मिट्टी की गुणवत्ता को ग्रामीण गरीबी के साथ नकारात्मक रूप से जोड़ा जाता है और गरीबी उन्मूलन के लिए भूमि की उर्वरता में सुधार महत्वपूर्ण है। लेकिन अध्ययन के परिणामानुसार अफ्रीका में मिट्टी की गुणवत्ता और गरीबी के बीच एक सकारात्मक सहसंबंध मौजूद है। इसका अर्थ है कि जिन क्षेत्रों में भूमि सबसे उपजाऊ है, वहां की मिट्टी के औसतन अधिक खराब होने की संभावना है, उन क्षेत्रों की तुलना में जहां मिट्टी पहले से ही खराब है। सड़कें अच्छी मिट्टी वाले क्षेत्रों में खराब होती हैं, जैसे पहाड़ियों और घाटियों में, और खराब मिट्टी वाली क्षेत्रों अच्छी होती हैं, जैसे तट के समतल भू-भाग में। तथ्य यह है कि विकास और गरीबी में कमी के लिए मिट्टी की गुणवत्ता की भूमिका बुनियादी ढांचे की उपलब्धता और बाजारों की पहुंच पर निर्भर करता है।
मिट्टी एक जीवित इकाई है और यह जीवन के लिए महत्वपूर्ण भी है। एक स्वस्थ मिट्टी में रहने वाले जीवों का वजन लगभग 5 टन प्रति हेक्टेयर है। मिट्टी बायोटा (Biota) की गतिविधि और प्रजातियों की विविधता कई आवश्यक पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के लिए जिम्मेदार हैं। मृदा कार्बनिक पदार्थ सामग्री मृदा स्वास्थ्य का एक संकेतक है, और यह जड़ भाग में वजन से लगभग 2.5% से 3.0% है। भूमि के दुरुपयोग और मिट्टी के कुप्रबंधन से मृदा स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है और यह पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं को कमजोर कर सकता है। जुताई की कृषि पद्धति जैसे फसल अवशेषों को जलाना, फसल के अवशेषों को निकालना, अत्यधिक जुताई, बाढ़ आधारित सिंचाई, और रसायनों का अंधाधुंध उपयोग मिट्टी स्वास्थ्य को ख़राब कर सकते हैं। उत्तर पश्चिमी भारत और अन्य जगहों की अधिकांश फसली मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा अक्सर 0.5% से कम होती है। इससे फसल की पैदावार कम और रुक जाती है। एक आवरित फसल या चारा उगाना, अवशेषों को घास-फूस से ढकना, प्रबंधित चराई, खाद और जैव-उर्वरकों का उपयोग, कृषि-वानिकी, पेड़ों और पशुधन के साथ फसलों का एकीकरण, भूमि पर सभी जैव-कचरे का पुनर्चक्रण आदि कुछ ऐसे उपाय हैं, जो मृदा स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रख सकते हैं। कोविड-19 महामारी ने उपभोक्ताओं द्वारा सुरक्षित भोजन की मांग को मजबूत किया है। कोविड-19 ने खाद्य उत्पादन और आपूर्ति श्रृंखला के व्यवधान से भारत और अन्य जगहों पर खाद्य और पोषण संबंधी असुरक्षा की समस्या को बढ़ा दिया है। कृषि रसायनों के उच्च उपयोग और फसल अवशेषों को जलाने जैसे कृषि संबंधी अवशेष भारतीय मिट्टी को ख़राब कर रहे हैं और अपने नागरिकों के स्वास्थ्य को खतरे में डाल रहे हैं। पानी का प्रदूषण और वायु का प्रदूषण मानव स्वास्थ्य समस्याओं को बढ़ाता है। हमें स्थानीय खाद्य उत्पादन प्रणालियों को मजबूत करना चाहिए और उनका लचीलापन बढ़ाना चाहिए। कृषि को पोषण के प्रति संवेदनशील होना चाहिए। भोजन पौष्टिक होना चाहिए, प्रोटीन और अन्य सूक्ष्म पोषक तत्वों से समृद्ध होना चाहिए। किंतु यह तभी होगा जब पौष्टिक भोजन स्वच्छ वातावरण में स्वस्थ मिट्टी पर उगाई जाने वाली फसलों से आया हो।
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