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रामपुर जिला मध्य गंगा जलोढ़ मैदान का एक हिस्सा है। जिले में सबसे अधिक ऊंचाई ग्राम मनुनगर और सबसे कम राम गंगा बाढ़ के मैदान में गंगापुर गाँव में है। जिले में तराई ट्रैक्ट (Tract), मेन्डेर फ्लड प्लेन (Meander Flood Plain), छोटा जलोढ़ मैदान, पुराने जलोढ़ मैदान आदि भू-आकृतियों इकाइयों की पहचान की गई है। क्षेत्र की रूप-रेखा के आधार पर विभिन्न उपजाऊ प्रकार की मिट्टी को विभिन्न भू-आकृति इकाइयों में विकसित किया गया है। रामपुर में महीन बनावट वाली कार्बनिक पदार्थ से समृद्ध मिट्टी तराई क्षेत्र में होती है। दोमट मिट्टी का विकास ऊँची या पहाड़ी भूमि क्षेत्र में हुआ। सिल्टी (Silty) मिट्टी छोटे जलोढ़ मैदानों में होती है। जिले के भूमि उपयोग पैटर्न (Pattern) को तय करने में मिट्टी के प्रकार ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, क्योंकि इन मिट्टी से युक्त भूमि का उपयोग वन, कृषि, चारागाह, उद्यानों, आदि के लिए किया जाता है।
वर्तमान समय में प्रदूषण पृथ्वी पर रह रहे जीवों की प्रमुख समस्या है। पृथ्वी पर यह विभिन्न रूपों में मौजूद है, जैसे वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण आदि। इन सभी प्रदूषणों में मृदा प्रदूषण भी एक है। पर्यावरण प्रदूषण केंद्रों के अनुसार, मिट्टी में जहरीले रसायनों (प्रदूषकों) की वह सांद्रता, जो मानव स्वास्थ्य या पारिस्थितिकी तंत्र के लिए हानिकारक हो, मृदा प्रदूषण कहलाती है। मृदा प्रदूषण का मुख्य कारण मानव निर्मित कचरा है। मृदा प्रदूषण एक जटिल घटना है, और इसका कारण विभिन्न प्रकार की गतिविधियां हैं। इन गतिविधियों में औद्योगिक गतिविधियां, कृषि गतिविधियाँ, आकस्मिक तेल रिसाव, अम्लीय वर्षा आदि हैं। 20वीं सदी में औद्योगिक विकास बहुत तीव्र गति से हुआ है, जिसके कारण खनन और विनिर्माण में वृद्धि हुई। अधिकांश उद्योग पृथ्वी से खनिज निकालने पर निर्भर हैं, चाहे वह लौह अयस्क हो या कोयला उप-उत्पाद। इनका सुरक्षित निपटान नहीं होने की वजह से औद्योगिक अपशिष्ट मिट्टी की सतह में लंबे समय तक रहते हैं, जो मिट्टी की गुणवत्ता को खराब करते हैं। इसी प्रकार से आधुनिक समय में कृषि क्षेत्र में रासायनिक कीटनाशकों और उर्वरकों का उपयोग बहुत अधिक हो रहा है। ये रसायन पानी के साथ मिश्रित हो कर जमीन में रिसते हैं और मिट्टी की उर्वरता को कम करते हैं। तेल रिसाव रसायन भंडारण और परिवहन के दौरान हो सकता है, और यह अधिकांश ईंधन स्टेशनों (Stations) पर देखने को मिलता है। ईंधन में मौजूद रसायन मिट्टी की गुणवत्ता को खराब करते हैं और उन्हें खेती के लिए अनुपयुक्त बना देते हैं। इसी प्रकार अम्लीय वर्षा तब होती है, जब हवा में मौजूद प्रदूषक वर्षा के साथ मिल जाते हैं और वापस जमीन पर गिरते हैं। प्रदूषित पानी मिट्टी में पाए जाने वाले कुछ महत्वपूर्ण पोषक तत्वों को नष्ट करता है और मिट्टी की संरचना को बदल देता है।
मृदा प्रदूषण का सीधा प्रभाव हमारे दैनिक जीवन के लगभग सभी पहलुओं पर पड़ता है। दूषित मिट्टी में उगाई जाने वाली फसलें और पौधे, मिट्टी से प्रदूषण को बड़ी मात्रा में अवशोषित करते हैं, और इन सभी का मानव द्वारा उपभोग किया जाता है। इस प्रकार मृदा प्रदूषण मानव स्वास्थ्य को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है, जिसका असर मानव के साथ-साथ पेड़-पौधों की वृद्धि पर भी पड़ता है। कई पौधे स्वयं को उस स्थिति से अनुकूलित नहीं कर पाते जिसमें मिट्टी का रसायन बहुत कम समय में मौलिक रूप से बदल जाता है। इससे मिट्टी में पाये जाने वाले कवक व जीवाणु, जो मिट्टी को एक साथ बांधे रखते हैं, घटने लगते हैं और मिट्टी के कटाव की एक अतिरिक्त समस्या उत्पन्न होती है। मृदा प्रदूषण से मिट्टी की संरचना में परिवर्तन हो सकता है। यह अन्य शिकारियों को भोजन की तलाश में दूसरे स्थानों पर जाने के लिए भी मजबूर करता है और भूमिगत जल की विषाक्तता को भी बढ़ाता है।
मिट्टी की खाद्य सुरक्षा में अहम भूमिका होती है। आज, विश्व स्तर पर मिट्टी 7 अरब लोगों के लिए पर्याप्त भोजन प्रदान करती है। हालांकि यह उपलब्धता असमान रूप से वितरित है। 2050 तक 900-1000 करोड़ लोगों को भोजन प्रदान करने के लिए, बायोफिजिकल (Biophysical) के साथ-साथ भोजन की सामाजिक-आर्थिक उपलब्धता साथ ही साथ खाद्य उत्पादक क्षमता में दृढ़ता से सुधार किया जाना है। दुनिया भर में भूमि उपयोगकर्ताओं की क्षमता है कि वे अपनी मिट्टी का प्रबंधन निरंतर और उत्पादक रूप से कर सकें। विवेकपूर्ण मिट्टी प्रबंधन संयुक्त राष्ट्र स्थिरता लक्ष्य को साकार करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिसका उद्देश्य भूख को समाप्त करना, खाद्य सुरक्षा और बेहतर पोषण प्राप्त करना और स्थायी कृषि को बढ़ावा देना है। खाद्य सुरक्षा प्राप्त करना एक चुनौती है और मिट्टी इसके समाधान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। मिट्टी हमारे खाद्य उत्पादन का मुख्य आधार है।
मिट्टी को रखरखाव की आवश्यकता होती है, लेकिन बढ़ते दबाव के कारण मिट्टी का दोहन तेज हो गया है। 2014 में, प्रति व्यक्ति कृषि योग्य भूमि 0.20 हेक्टेयर (Hectare) थी, जबकि 50 साल पहले यह कुछ 0.37 हेक्टेयर थी, जो कि विश्व बैंक द्वारा बताए गए क्षेत्रीय अंतरों के साथ थी। मिट्टी की गुणवत्ता को बनाए रखने और मृदा प्रदूषण को कम करने के लिए विभिन्न उपाय किये जा सकते हैं। जैसे रासायनिक उर्वरकों के उपयोग को कम करना, वनीकरण को बढ़ावा देना, उत्पादों का पुनःचक्रण और पुनः उपयोग करना, प्राकृतिक खाद के उपयोग को बढ़ावा देना आदि।