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सिकंदर बाग और बड़ा इमामबाड़ा, लखनऊ की शान में चार चाँद लगा देते हैं

लखनऊ

 04-12-2024 09:26 AM
वास्तुकला 1 वाह्य भवन
लखनऊ का इतिहास, बेहद समृद्ध और यहाँ की संस्कृति बेहद जीवंत रही है। यहाँ की शानदार इमारतें, हमें गर्व की अनुभूति करने के कई मौके देती हैं। इनमें से प्राचीन किले लखनऊ की सबसे अनोखी और प्रभावशाली विशेषताओं में से एक हैं। ये किले, हमें शहर के गौरवशाली अतीत की झलक दिखाते हैं।
इन किलों का निर्माण, नवाबों और मुगल बादशाहों के समय में हुआ था। उस दौर में ये किले केवल इमारतें नहीं थे, बल्कि शक्ति, सुरक्षा और कला के केंद्र के रूप में काम करते थे। आज भी, ये किले उस समय के युद्धों, राजनीति और वैभव की कहानियाँ बयां करते हैं।
बड़ा इमामबाड़ा, सिकंदर बाग और रेज़ीडेंसी, लखनऊ की कुछ सबसे प्रसिद्ध इमारतों में गिने जाते हैं। आज के इस लेख में, हम इन किलों की प्रमुख विशेषताओं पर नज़र डालेंगे। साथ ही, हम ये भी जानेंगे कि ये किले उस समय रक्षा और वास्तुकला के नज़रिए से क्यों खास थे। इसके बाद, हम बड़ा इमामबाड़ा की ओर चलेंगे। यह किला लखनऊ के सबसे चर्चित स्थलों में से एक है। इसका अनोखा डिज़ाइन और ऐतिहासिक महत्व इसे और भी ख़ास बनाते हैं। इसके बाद, हम सिकंदर बाग किले के बारे में जानेंगे, जो लखनऊ के इतिहास में अपनी ख़ास जगह रखता है।
चलिए, सबसे पहले उन ख़ूबियों के बारे में जानते हैं जो एक किले को दूसरी इमारतों से अलग बनाती हैं:
दीवारें: पहले के समय में ऊँची-ऊँची दीवारें सुरक्षा की दृष्टि से सबसे आसान और असरदार तरीका हुआ करती थीं। इन्हें कस्बों या महत्वपूर्ण जगहों को घेरने और उनकी रक्षा करने के लिए बनाया जाता था। कई बार पूरे शहर को इन विशालकाय दीवारों से घेर दिया जाता था। इन दीवारों के निर्माण में मिट्टी, पत्थर, ईंट और चूने के प्लास्टर जैसी सामग्रियों का उपयोग होता था।
प्राचीर: दीवार के ऊपर के सपाट हिस्से को प्राचीर कहा जाता है। यह हिस्सा सैनिकों को पैदल चलने के लिए एक रास्ते के रूप में काम करता है। युद्ध के समय यहीं से सैनिक दुश्मनों पर निशाना साधते हैं। प्राचीर के निर्माण में मिट्टी, पत्थर, कंक्रीट और लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता था। यह उस दौर की सुरक्षा के लिए बेहद अहम था।
गढ़: गढ़ किले के उस हिस्से को कहा जाता है, जो मुख्य दीवार से बाहर की ओर निकला होता है। इसका डिज़ाइन, इस तरह होता है कि सैनिक अलग-अलग कोणों से दुश्मनों पर हमला कर सकें। बारूद और तोपों के आविष्कार के बाद गढ़ों का महत्व और बढ़ गया। भारतीय किलों में गढ़ों को गोलाकार या कोणीय आकार में बनाया गया।
खाई: किले के चारों ओर एक चौड़ी और गहरी खाई भी होती है, जो रक्षा की पहली पंक्ति का काम करती थी। कई खाइयाँ कृत्रिम झीलों जैसी लगती थीं। ऐसी भी मान्यताएँ हैं कि दुश्मन को डराने के लिए खाइयों में मगरमच्छ या अन्य खतरनाक जानवर छोड़े जाते थे।

गेट: किलों के गेट उनकी सुरक्षा और शान दोनों के प्रतीक थे। गेट से ही संरक्षित क्षेत्र तक पहुँचा जा सकता था। कई किलों में एक से ज्यादा गेट होते थे, जो अक्सर लकड़ी और लोहे से बने होते थे। भारतीय किले अपने भव्य और सजावटी गेट के लिए प्रसिद्ध हैं।
वॉच टावर (Watch Tower): वॉच टावर, किले की ऊँची जगह पर बनाए जाते थे। इनसे गार्ड्स दूर तक इलाके पर नज़र रख सकते थे। यहाँ से आने वाले दुश्मनों की सेना को देखकर तुरंत अलार्म बजाया जा सकता था। वॉच टावर में तोप और बंदूकें भी रखी जाती थीं। तटीय क्षेत्रों में ये टावर जहाज़ों की गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए भी ख़ास होते थे।
पैरापेट: पैरापेट, प्राचीर के किनारे पर बनी एक छोटी दीवार या रेलिंग होती है। यह सैनिकों को कवर देती थी और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करती थी। इसमें दुश्मनों पर गोली चलाने के लिए छोटे-छोटे छेद बनाए जाते थे। पैरापेट के निर्माण में मिट्टी, लकड़ी, कंक्रीट और लोहे जैसी सामग्री का इस्तेमाल किया जाता था।
मेरलॉन: मेरलॉन पैरापेट का ठोस हिस्सा होता है, जो सैनिकों को दुश्मनों पर निशाना साधते समय सुरक्षा प्रदान करता है। दो मेरलॉन के बीच की जगह को "क्रेनेल" कहते हैं। शुरुआती समय में, मेरलॉन छोटे और साधारण होते थे, लेकिन मध्यकाल में इनके डिज़ाइन और आकार में जटिलता आ गई।
बुर्ज: बुर्ज किले की दीवार से ऊपर उठता हुआ एक टॉवर होता है। कभी-कभी यह एक बड़े टॉवर के ऊपर बने छोटे टॉवर जैसा दिखाई देता है। बुर्ज में बंदूकें रखी जाती थीं, ताकि ऊँचाई से दुश्मनों पर हमला किया जा सके। वॉच टावर के विपरीत, बुर्ज दीवार या इमारत का हिस्सा होता था।
एक आदर्श किले की सभी खूबियाँ आपको लखनऊ के ‘बड़ा इमामबाड़ा’ में देखने को मिल जाएँगी। बड़ा इमामबाड़ा लखनऊ के सबसे ख़ास और मशहूर ऐतिहासिक स्थलों में से एक है। इसका निर्माण 18वीं शताब्दी में अवध के नवाब आसफ़ -उद-दौला द्वारा करवाया गया था। इस शानदार इमारत को अपनी अनोखी वास्तुकला और रोचक इतिहास के लिए जाना जाता है। बड़ा इमामबाड़ा की सबसे अनोखी बात यह है कि इसकी संरचना में कोई भी बीम या पिलर नहीं हैं। यह दुनिया की सबसे बड़ी मेहराबदार इमारतों में से एक है। इसका केंद्रीय हॉल वाकई में देखने लायक है, जिसे असफ़ी मस्जिद भी कहते हैं।
बड़ा इमामबाड़ा में एक शानदार भूलभुलैया भी है। यह जटिल गलियारों और सीढ़ियों का एक नेटवर्क है। ये गलियारे बेहद संकीर्ण और अंधेरे हैं। भूलभुलैया में 489 एक जैसे दिखाई देने वाले द्वार हैं। ये द्वार इतने मिलते-जुलते हैं कि लोग आसानी से रास्ता भटक जाते हैं।
भूलभुलैया का डिज़ाइन ऐसा है कि यह घुसपैठियों को भ्रमित कर देता था। इसे राजा के खजाने की सुरक्षा के लिए बनाया गया था। इस संरचना के कई मार्ग इमारत को ठंडा रखने का काम भी करते हैं।
यह इमारत केवल एक स्मारक नहीं है, बल्कि इसका निर्माण एक महत्वपूर्ण उद्देश्य के साथ किया गया था। दरसल 1784 में लखनऊ में भीषण अकाल पड़ा था। इस कठिन समय में नवाब आसफ़ -उद-दौला ने बड़ा इमामबाड़ा का निर्माण शुरू करवाया। इस ईमारत ने हज़ारों लोगों को रोज़गार दिया। लखनऊ में एक पुरानी कहावत है, "जिसको न दे मौला, उसको दे आसफ-उद-दौला।"
बड़ा इमामबाड़ा, अपने भव्य प्रवेश द्वार के लिए प्रसिद्ध है। इसे रूमी दरवाज़ा या तुर्की गेट भी कहते हैं। यह स्थान केवल एक ऐतिहासिक इमारत नहीं है, बल्कि शिया मुसलमानों के लिए एक पवित्र धार्मिक स्थल भी है। यहां मुहर्रम के दौरान जुलूस और समारोह आयोजित किए जाते हैं।
बड़ा इमामबाड़ा का परिसर लगभग 50,000 वर्ग फ़ीट में फैला हुआ है। इसमें मुख्य इमारत के साथ भूलभुलैया, एक मस्ज़िद, एक बावड़ी और अन्य संरचनाएँ भी शामिल हैं। कुल मिलाकर बड़ा इमामबाड़ा केवल एक इमारत नहीं है, बल्कि यह लखनऊ की संस्कृति, इतिहास और वास्तुकला का एक शानदार उदाहरण है।
बड़ा इमामबाड़ा की भांति ही सिकंदर बाग भी लखनऊ का एक बेहद ख़ास और ऐतिहासिक स्थान है। यह जगह, लखनऊ की समृद्ध संस्कृति और इतिहास की झलक दिखाती है। यह स्थान, सुंदर उद्यान लखनऊ की एक व्यस्त सड़क पर, कई सरकारी कार्यालयों के करीब स्थित है।
इस बाग का निर्माण, अवध के अंतिम नवाब वाजिद अली शाह ने अपनी पत्नी सिकंदर बेगम के लिए करवाया था। इसका निर्माण, 1853 में पूरा हुआ था और उस समय इसे बनाने में करीब 5 लाख रुपये खर्च हुए थे। इस बाग के केंद्रीय हिस्से में एक खूबसूरत मस्जिद, और तीन गुंबद वाली एक और मस्जिद भी है। इसकी वास्तुकला वाकई में देखने लायक है।
देश की आज़ादी की लड़ाई में भी इस बाग की बेहद अहम भूमिका रही है। 1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, सिकंदर बाग भारतीय सैनिकों के लिए एक महत्वपूर्ण ठिकाना बन गया था। 16 नवंबर, 1857 को ब्रिटिश सेना (जिसे सर कॉलिन कैंपबेल लीड कर रहे थे।) ने इस बाग पर हमला कर दिया। उन्होंने बाग की दीवारें तोड़ दीं और 2,000 से ज़्यादा भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को मार डाला। यह जगह, अब उस संघर्ष और बलिदान की कड़वी याद दिलाती है।
आज, सिकंदर बाग, उन सभी बहादुर लोगों के एक गौरव प्रतीक के रूप में खड़ा है, जिन्होंने देश के लिए लड़ते यहाँ अपनी जान दी। इसमें उदा देवी जैसी निडर योद्धा महिला का नाम भी शामिल है, जो एक दलित थीं और इस विद्रोह में उनकी भूमिका बेहद अहम थी। सिकंदर बाग, आज भी भारत के जटिल इतिहास और स्वतंत्रता संग्राम की यादों को जीवंत कर देता है।

संदर्भ
https://tinyurl.com/25qxtzm8
https://tinyurl.com/2ye6j4dj
https://tinyurl.com/22nhjlbf

चित्र संदर्भ
1. बड़ा इमामबाड़ा परिसर को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
2. बुंदेलखंड क्षेत्र के प्रमुख रजवाड़ों - झाँसी, समथर, बरुआ सागर तथा ओरछा के शाही स्मारकों और किलों को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
3. किले के चारों ओर पानी को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
4. जौनपुर के शाही किले के गेट को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
5. बड़ा इमामबाड़ा के निकट स्थित असफ़ी मस्जिद को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
6. बड़ा इमामबाड़ा के दूर के एक दृश्य को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)


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