स्लो लोरिस (Slow Loris) के बारे में पारंपरिक मान्यताएँ कम से कम कई सौ वर्षों से दक्षिण पूर्व एशिया के लोकगीतों में पाई जाती हैं। केवल इतना ही नहीं उनके अवशेषों को अच्छी किस्मत लाने के लिए घरों और सड़कों के नीचे दफनाया जाता है और उनके शरीर के प्रत्येक हिस्से का इस्तेमाल पारंपरिक औषधि (जिसमें, कैंसर, कुष्ठ रोग, मिर्गी और लैंगिक संचारित रोगों के इलाज के लिए बनाई जाने वाली औषधि शामिल है) में किया जाता है। इस पारंपरिक चिकित्सा के प्राथमिक उपयोगकर्ता शहरी, मध्यम आयु वर्ग की महिलाएं हैं, जो अन्य विकल्पों को अपनाने में असहमति दर्शाती हैं। स्लो लोरिस नक्टिसिसबस (Nycticebus) वंश से संबंधित हैं, जिसमें चार प्रजातियां शामिल हैं: पिग्मी स्लो लोरिस, जवान स्लो लोरिस, सुंडा स्लो लोरिस और बंगाल स्लो लोरिस।
स्लो लोरिस का सिर गोल होता है और इनमें एक संकीर्ण थूथन होती है, साथ ही बड़ी आँखें होती हैं और इनमें विशिष्ट रंग का स्वरूप होता है। इनके हाथ और पैर लगभग बराबर होते हैं और इनका धड़ लंबा और लचीला होता है, जिससे वे पास की शाखाओं पर जाने में समर्थ रहते हैं। स्लो लोरिस के हाथों और पैरों में कई अनुकूलन होते हैं, जो उन्हें पिन्सर (Pincer) जैसी पकड़ देता है और उन्हें लंबे समय तक शाखाओं को पकड़े रहने में सक्षम बनाता है। स्लो लोरिस जानबूझकर, धीरे-धीरे या बिना शोर किए आगे बढ़ते हैं और जब किसी शिकारी का एहसास होता है तो ये हिलना बंद कर देते हैं और गतिहीन रहते हैं। इनके मनुष्यों के अलावा प्रलेखित शिकारी, साँप, बाज़ और आरंगुटान (Orangutan) हैं, हालांकि बिल्लियां, कस्तूरी बिलाव ((सीविट)Civet) और भूरे भालू संदिग्ध क्षेणी में हैं। इनके सामाजिक स्वरूप के बारे में ज्यादा अधिक जानकारी नहीं प्राप्त है, लेकिन वे खुशबू के निशान द्वारा संवाद करने के लिए जाने जाते हैं।
इनमें नर अत्यधिक प्रादेशिक होते हैं। स्लो लोरिस में धीरे-धीरे प्रजनन होता है और शिशुओं को शुरू में शाखाओं पर या माता-पिता द्वारा ले जाया जाता है। वे सर्वाहारी होते हैं, छोटे जानवरों, फल, पेड़ की गोंद और अन्य वनस्पतियों का सेवन करते हैं। बंगाल स्लो लोरिस का अन्य सभी स्लो लोरिस में सबसे बड़ा विस्तार है और यह बांग्लादेश, कंबोडिया, दक्षिणी चीन, पूर्वोत्तर भारत, लाओस, बर्मा, थाईलैंड और वियतनाम में पाए जा सकते हैं। वहीं स्लो लोरिस की प्रजातियों में सबसे बड़ी प्रजाति बंगाल लोरिस की ही है, ये सिर से पूंछ तक 26 से 38 सेमी (Centimetres) और इनका वजन 1 से 2.1 किलोग्राम के बीच तक होता है। इसकी भौगोलिक सीमा किसी भी अन्य स्लो लोरिस की प्रजातियों की तुलना में बड़ी है। इसे 2001 तक सुंडा स्लो लोरिस की उप-प्रजाति माना जाता था, जाति वृत्तीय विश्लेषण से पता चलता है कि बंगाल स्लो लोरिस सुंडा स्लो लोरिस से सबसे अधिक रूप से संबंधित हैं।
अन्य स्लो लोरिसों की तरह, इनका सिर भी गोल, चेहरा सपाट, बड़ी आँखें, छोटे कान और घने, ऊनी फर होते हैं। इनमें पाए जाने वाला विष, भुजा संबंधित ग्रंथि से स्रावित होता है, जो अन्य स्लो लोरिस प्रजातियों से रासायनिक रूप से भिन्न होता है। बंगाल स्लो लोरिस निशाचर और शुष्क होते हैं, जो सदाबहार और पर्णपाती दोनों जंगलों में पाए जाते हैं। यह घने कैनोपियों (Canopies) के साथ वर्षावनों को पसंद करते हैं और इसके मूल निवास में इसकी उपस्थिति एक स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र को इंगित करती है। इनके आहार में मुख्य रूप से फल होते हैं, लेकिन ये कीड़े, पेड़ की गोंद, घोंघे और छोटे कशेरुक का भी सेवन करते हैं। सर्दियों में, यह पौधे से निकलने वाले रस और गोंद पर निर्भर करते हैं।
स्लो लोरिस के विषैले दांत होते हैं, जो स्तनधारियों के बीच एक दुर्लभ और लोरिसिड प्राइमेट (Lorisid Primates) के लिए अद्वितीय है। यह विष आमतौर पर उनकी बांह की एक यौन ग्रंथि पर मौजूद होता है, जो उनके द्वारा उस यौन ग्रंथि को चाटने से प्राप्त होता है और यह लार के साथ मिश्रित होने पर सक्रिय हो जाता है। इनके ये जहरीले दांत इन्हें शिकारियों से बचाते हैं और शिशुओं की सुरक्षा के लिए वे चाटने के दौरान इस विष को उनके बालों पर भी लगा देते हैं। स्लो लोरिस में पाए जाने वाले इस विष को और अधिक समझने के लिए हमें पहले इनके "बांह ग्रंथियों" को समझना होगा, कोहनी की आकुंचक सतह या उदर पक्ष में थोड़ी उभरी हुई लेकिन मुश्किल से दिखाई देने वाली सूजन को बांह ग्रंथि कहा जाता है। घर में पाले गए स्लो लोरिस के अवलोकन से पता चलता है कि जब इन जानवरों को किसी चीज से परेशानी या भय महसूस होता है तो वे अपने बांह ग्रंथि से लगभग 10 माइक्रोलीटर (Micro-liter) शिखरस्रावी पसीने के रूप में स्पष्ट, गहन-महक वाले द्रव का स्राव करते हैं।
आमतौर पर, नर और मादा स्लो लोरिस परेशान होने पर रक्षात्मक रुख अपनाते हैं। जिसमें वे अपने सिर को नीचे की ओर झुकाते हैं, जिससे उनके सिर और गर्दन पर बांह ग्रंथि लग जाती है। स्लो लोरिस में बांह ग्रंथि 6 सप्ताह की उम्र से ही सक्रिय हो जाती है। लोरिस में मजबूत जबड़े की मांसपेशियाँ और नुकीले दाँत होते हैं, जो काटने पर आसानी से मानव त्वचा या पतले दस्तानों में छेद कर देते हैं। स्लो लोरिस के काटने के बाद होने वाली स्वास्थ्य समस्याएं उसके द्वारा उत्पादित विष से फैलने वाले बैक्टीरिया और वायरस के कारण या तो एनाफिलेक्टिक शॉक (Anaphylactic Shock) के कारण हो सकती है।
वहीं आपको एक बात और बता दें कि एक विषैला जानवर और एक जहरीला जानवर एक समान नहीं होते हैं, इनके मध्य मुख्य अंतर यह है कि दरसल एक विषैला जानवर अपने शिकार के शरीर में काटने या डंक मारने से विषाक्त पदार्थों को डालता है। वहीं एक जहरीला जानवर विषाक्त पदार्थों का उत्पादन करता है, जो साँस लेने के बाद जहरीली होती है जैसे, पफर मछली। चिकित्सा साहित्य से पता चलता है कि मानव में विष स्लो लोरिस के काटने से आता है, न कि उनके विषाक्त पदार्थों को साँस के माध्यम से लेने पर।
परंतु आज इन खूबसूरत प्रजाति को इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (The International Union for Conservation of Nature) की लाल सूची में लुप्तप्राय के रूप में सूचीबद्ध किया गया है और विदेशी पालतू व्यापार और पारंपरिक चिकित्सा में बढ़ती मांग के कारण इनके पूर्णतया विलुप्त होने का खतरा है। यह स्थानीय पशु बाजारों में बेचे जाने वाले सबसे आम जानवरों में से एक है। लोग अक्सर लोरिस को पालतू जानवर के रूप में खरीदते हैं क्योंकि वे काफी प्यारे दिखते हैं, लेकिन वे इन्हें खरीदने से पहले कोई शोध नहीं करते हैं और अंततः स्लो लोरिस को काफी क्षति का सामना करना पड़ता है। पालतू जानवर के रूप में अनुकूल न होने के बावजूद स्लो लोरिस को उनके प्यारे रूप के चलते लोगों में इन्हें पालने की सनक देखी गई है। यद्यपि इनका कारोबार करना अवैध है लेकिन फिर भी कई लोगों द्वारा गैरकानूनी रूप से स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों ओर इनका आयात किया जा रहा है। हवाई अड्डों पर सैकड़ों अवैध रूप से निर्यात किए जाने वाले स्लो लोरिस को जब्त किया जाता है, हालांकि उन्हें छिपाना आसान है, इसलिए इनकी संख्या का एक छोटा हिस्सा ही जब्त हो पाता है।
इस अवैध व्यापार में स्लो लोरिस को व्यापारियों द्वारा की जाने वाली क्रूरता का सामना भी करना पड़ता है। व्यापारियों द्वारा इन्हें छोटे बच्चों के लिए एक उपयुक्त पालतू जानवर बनाने के लिए इनके दांतों को काट या निकाल दिया जाता है, इस प्रक्रिया से अक्सर स्लो लोरिस को अत्यधिक रक्त की हानि, संक्रमण आदि से गुजरना पड़ता है। दांतों के अभाव में स्लो लोरिस खुद को बचा पाने में असमर्थ हो जाते हैं और इसलिए उन्हें जंगल में दोबारा नहीं छोड़ा जा सकता। व्यवसायों में अधिकांश पकड़े हुए लोरिस भी अनुचित देखभाल के चलते कम पोषण, तनाव या संक्रमण से मर जाते हैं। इस अवैध व्यापार की वजह से इनकी जंगली आबादी में भारी गिरावट आई है, और यह कई क्षेत्रों में स्थानीय रूप से विलुप्त भी हो गए हैं। हालांकि ये कई संरक्षित क्षेत्रों में पाए जाते हैं, लेकिन यह उन्हें बड़े पैमाने पर अवैध शिकार और अवैध वनों की कटाई से नहीं बचा पाता है। इस प्रजाति के लिए गंभीर संरक्षण के मुद्दों में संरक्षण उपायों को बढ़ाने, वन्यजीव संरक्षण कानूनों को सख्त करने और खंडित संरक्षित क्षेत्रों के बीच संपर्क बढ़ाने की आवश्यकता है।
चित्र सन्दर्भ:
मुख्य चित्र में बंगाल स्लो लोरिस को दिखाया गया है। (Flickr)
दूसरे चित्र में सुंडा स्लो लोरिस (Sunda Slow Loris) को दिखाया गया है। (Youtube)
तीसरे चित्र में बंगाल स्लो लोरिस का चित्रांकन दिखाया गया है। (Wikipedia)
चौथे चित्र में बंगाल स्लो लोरिस को काले पार्श्वभूमि पर दिखाया है। (Prarang)
अंतिम चित्र में स्लो लोरिस को आत्मरक्षा की स्थिति में दिखाया गया है। (Youtube)
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