आई.ए.एस. जिसे हिंदी में भारतीय प्रशासनिक सेवा कहते हैं एक प्रतिष्ठित औपनिवेशक (Colonial) विरासत है। पहले भारतीय सिविल सेवा (Indian Civil Services) को अक्सर भारत में ब्रिटिश शासन के 'स्टील फ्रेम' के रूप में जाना जाता था। आज़ादी के बाद 1947 में, आई.ए.एस. को राष्ट्रिय एकता बनाए रखने के लिए एक प्रमुख संस्था माना गया। आई.ए.एस. का काम भारत में अखंडता और एकता बढ़ाना था और कई रियासतों को एकीकृत कराना था। उप-प्रधानमंत्री सरदार पटेल ने इस सेवा (आई.ए.एस.) की अहमियत को बारीकी से जाँचा। वे चाहते थे कि देशभर में यह सेवाएँ केंद्र सरकार के नियंत्रण से चलें। इन प्रस्तावों का मुख्यमंत्रियों द्वारा विरोध किया गया। उन्होंने भारतीय सिविल सेवा की जगह राज्य सिविल सेवा का पक्ष लिया। यह कई सिद्धांतों के खिलाफ़ था और भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के बाद केंद्र में शक्ति होना ज़रूरी था।
राष्ट्रीय एकीकरण एक अहम् कार्य है, यह केवल क्षेत्रीय मामला नहीं है मगर यह सामाजिक भी है। आई.ए.एस. का राष्ट्रीय एकीकरण में अहम् योगदान रहा है। आज आई.ए.एस. के कुल 5,000 सदस्य हैं। यदि आई.ए.एस. परीक्षा के बारे में देखा जाए तो 1854 में, ब्रिटिश शासकों ने भारतीय सिविल सेवा (आई.सी.एस.) में प्रवेश के लिए खुली प्रतिस्पर्धी परीक्षा की शुरुआत की। हालांकि भारतीयों को इसके लिए बैठने का अधिकार था पर इस परीक्षा को देने का एकमात्र परीक्षा केंद्र लंदन में था। आई.सी.एस. का भारतीयकरण केवल 1922 में शुरू हुआ, जब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दबाव में आकर इलाहाबाद में प्रवेश परीक्षा का आयोजन किया गया था। तब से ही भारत में इस परीक्षा का आयोजन किया जाता रहा है। 1923 में कप्तान पी. एस. कैनन द्वारा विदेश में प्रशिक्षण लेने वाले जिला अधिकारीयों को प्रशिक्षण देने के लिए ‘सिटीजनशिप इन इंडिया’ नाम की पुस्तक का विमोचन किया गया। इस पुस्तक में भारत को संभालने और यहाँ पर जिलाधिकारी की भूमिका किस तरह से निभाई जा सकती है का विवरण प्रस्तुत किया गया था।
आई.ए.एस. अधिकारी के क्या-क्या कर्त्तव्य हैं ?
सर्विस के शुरुआत में आई.ए.एस. अधिकारियों को उप-जिला मजिस्ट्रेट का पद मिलता है। कुछ साल की कार्यकुशलता के बाद उन्हें जिला मजिस्ट्रेट का पद मिल जाता है। डी.एम. (DM) के पद पर 16 साल काम करने के बाद वे किसी भी विभाग में कमीशनर के रूप में जा सकते हैं। आई.ए.एस. अधिकारी देश और राज्य को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संबोधित करते हैं।
आई.ए.एस. अधिकारी के कुछ कर्त्तव्य यह हैं -
जिला मजिस्ट्रेट के रूप में -
* कानून और व्यवस्था का रखरखाव करना।
* पुलिस और जेल की निगरानी करना।
* अधीनस्थ कार्यकारी मजिस्ट्रेट की निगरानी करना।
* निवारक अनुभाग में मामलों की सुनवाई करना।
* भूमि अधिग्रहण सम्बंधित मामलों को देखना।
* कोई आपदा जैसे बाढ़, सूखा, तूफान आदि आने पर आपदा प्रबंधन का काम करना।
* दंगे फ़साद होने पर संकट प्रबंधन का काम करना।
कलेक्टर के रूप में -
* भूमि मूल्यांकन
* भूमि अधिग्रहण
* आयकर देय राशी, उत्पाद शुल्क, सिंचाई देय राशी की वसूली
* कृषि ऋण का वितरण
* जिला बैंकर्स समन्वय समिति और उद्योग केंद्र के अध्यक्ष।
जिला आयुक्त के रूप में -
* सभी मामलों पर मंडल आयुक्त को रिपोर्ट देना।
जिला इलेक्शन अधिकारी के रूप में -
* ज़िले में चुनाव का आयोजन करवाना।
आईएएस की परीक्षा को भारत की सबसे कठिन परीक्षा कहा जाता है। यूनियन पब्लिक सर्विस कमिशन (UPSC) की परीक्षा में अच्छे अंक लाने के बाद ही लोग आई.ए.एस. के लिए चुने जाते हैं। इसके बाद चुने गए परीक्षार्थियों का इंटरव्यू लिया जाता है जिनमें उनके अन्दर के हुनर और सोचने की शक्ति को मापा जाता है। हर वर्ष लाखों छात्र UPSC की परीक्षा देते हैं लेकिन उनमें से केवल 5000 चुने जाते हैं। UPSC की दो परीक्षा होती हैं - एक प्री और एक मेन।
जौनपुर का और UPSC के इम्तेहान का अपना एक अलग ही रिश्ता है। यहाँ से बड़ी संख्या में इस परीक्षा को उत्तीर्ण करने वाले बच्चे निकले हैं जो आज देश विदेश में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। जौनपुर में स्थित माधोपट्टी गावं देश के शीर्ष गावं के रूप में गिना जाता है क्यूंकि यहाँ से देश के अन्य गावों की तुलना में सबसे ज्यादा संख्या में कलेक्टर निकले हैं। हाल ही में जौनपुर के सूरज ने UPSC की परीक्षा में 117 वां स्थान प्राप्त किया है। यकीनन आई.ए.एस. अधिकारी का कार्य एक निष्ठा और लगन से करने वाला कार्य है।
1.https://journals.openedition.org/samaj/633
2.https://www.quora.com/What-are-the-duties-of-an-IAS-officer
3.https://hindi.news18.com/news/uttar-pradesh/jaunpur-suraj-kumar-rai-of-jaunpur-selected-in-ias-1359181.html
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