भारत में परमाणु ऊर्जा संयंत्र, देश की ऊर्जा व्यवस्था का अहम हिस्सा बनते जा रहे हैं। ये संयंत्र, बिजली की बढ़ती मांग को पूरा करने में मदद करते हैं और कार्बन उत्सर्जन को कम रखते हैं। इस वजह से, ये जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए एक अच्छा विकल्प साबित हो रहे हैं। भारत में कई परमाणु ऊर्जा संयंत्र पहले से काम कर रहे हैं। ऊर्जा की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए नए संयंत्र भी बनाए जा रहे हैं।
भारत ने परमाणु ऊर्जा के विकास के लिए एक तीन-चरणीय कार्यक्रम तैयार किया है। यह कार्यक्रम दर्शाता है कि भारत किस तरह से परमाणु ऊर्जा को बढ़ावा देना चाहता है। आज के इस लेख में हम भारत में मौजूद परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की सूची देखेंगे और जानेंगे कि वे देश की ऊर्जा आपूर्ति में किस तरह योगदान दे रहे हैं। अंत में, हम नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन यानी एन टी पी सी (NTPC) के बारे में बात करेंगे, जो भारत के ऊर्जा क्षेत्र में एक भरोसेमंद नाम है।
परमाणु ऊर्जा आधुनिक समाज के विकास और अस्तित्व के लिए बहुत जरूरी है। 1950 के दशक में डॉ. होमी भाभा ने भारत के तीन-चरणीय परमाणु कार्यक्रम की योजना शुरू की थी। इस योजना का मुख्य उद्देश्य भारत के बड़े थोरियम (Thorium) भंडार का सही उपयोग करना है।
भारत के पास, यूरेनियम (Uranium) कम मात्रा में है, जबकि कई देशों में, यह बड़ी मात्रा में उपलब्ध है। इस कारण भारत ने थोरियम-आधारित परमाणु ईंधन चक्र विकसित करने की योजना बनाई। इसका मकसद तीन चरणों में ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनना है।
संयुक्त राष्ट्र के मानव विकास सूचकांक के अनुसार, भारत का यह कार्यक्रम ऊर्जा खपत बढ़ाने और जीवन की गुणवत्ता सुधारने के लिए बेहद ज़रूरी है।
भारत के तीन-चरणीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम को तीन मुख्य हिस्सों में बांटा गया है:
- दबावयुक्त भारी जल रिएक्टर (PHWR)
- फ़ास्ट ब्रीडर रिएक्टर (FBR)
- उन्नत भारी जल रिएक्टर (AHWR)
अब हम इन चरणों को आसान भाषा में समझते हैं:
चरण 1: दबावयुक्त भारी जल रिएक्टर (PHWR): इस चरण में प्राकृतिक यूरेनियम का उपयोग किया जाता है। इससे बिजली बनाई जाती है और साथ में प्लूटोनियम-239 का उत्पादन होता है। 1960 के दशक में भारत ने इस पद्धति को अपनाया क्योंकि इसके तहत यूरेनियम का कुशलता से उपयोग होता है।
चरण 2: फ़ास्ट ब्रीडर रिएक्टर (FBR): दूसरे चरण में प्लूटोनियम-239 (Plutonium-239) का इस्तेमाल किया जाता है। इससे ऊर्जा पैदा होती है और साथ ही थोरियम का उपयोग करके यूरेनियम-233 (Uranium-233) बनाया जाता है। यह तीसरे चरण के लिए ज़रूरी है।
चरण 3: उन्नत भारी जल रिएक्टर (AHWR): इस चरण का लक्ष्य एक स्थायी परमाणु ईंधन चक्र बनाना है। इसमें थोरियम और यूरेनियम-233 का मिश्रण इस्तेमाल किया जाएगा।
थोरियम का उपयोग करना आसान नहीं है, क्योंकि यह सीधे ऊर्जा पैदा नहीं कर सकता। इसे काम में लाने के लिए यूरेनियम-233 या प्लूटोनियम जैसे तत्वों की जरूरत होती है। थोरियम न्यूट्रॉन को अवशोषित करता है और इससे फास्ट ब्रीडर रिएक्टर में प्लूटोनियम बनता है।
थोरियम का ज़्यादा उपयोग जल्द करने से ऊर्जा उत्पादन धीमा हो सकता है। इसलिए इसे सही समय पर दूसरे चरण के दौरान शामिल किया जाना चाहिए।
तीसरे चरण में थोरियम का पूरा उपयोग किया जाता है। भारत का यह कार्यक्रम ऊर्जा उत्पादन में आत्मनिर्भरता लाने और थोरियम जैसे संसाधनों को सही तरीके से इस्तेमाल करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
आइए, अब एक नज़र भारत में चल रहे परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की सूची पर डालते हैं:
परमाणु ऊर्जा संयंत्र के संचालन का चरण उसकी कुल उम्र का सबसे लंबा हिस्सा होता है। भारत में फ़िलहाल कुल 6,780 मेगावाट की क्षमता वाले कई परमाणु रिएक्टर काम कर रहे हैं। इनमें 18 प्रेशराइज़्ड हैवी वाटर रिएक्टर (PHWR) और 4 लाइट वाटर रिएक्टर (LWR) शामिल हैं।
भारत के कुछ प्रमुख परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की सूची नीचे दी गई है:
- तारापुर परमाणु ऊर्जा संयंत्र
- राजस्थान परमाणु ऊर्जा संयंत्र
- मद्रास परमाणु ऊर्जा संयंत्र
- नरौरा परमाणु ऊर्जा संयंत्र
- काकरापार परमाणु ऊर्जा संयंत्र
- कैगा जनरेटिंग स्टेशन
- कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा स्टेशन
भारत अपनी परमाणु ऊर्जा क्षमता को लगातार बढ़ा रहा है। देश की योजना है कि 2031-32 तक परमाणु ऊर्जा की क्षमता को 8,180 मेगावाट (MW) से बढ़ाकर 22,480 मेगावाट किया जाए। इसके बाद, 2047 तक इसे 30,000 मेगावाट तक ले जाने का लक्ष्य है। यह विकास भारत की स्वच्छ ऊर्जा और कार्बन उत्सर्जन को कम करने की योजना का हिस्सा है।
इस बदलाव में एन टी पी सी (NTPC) यानी नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन एक प्रमुख भूमिका निभा रही है। एन टी पी सी, भारत की सबसे बड़ी और सबसे भरोसेमंद बिजली उत्पादन कंपनी है। यह अब परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में भी कदम रख रही है, जिससे देश के ऊर्जा क्षेत्र में इसकी भागीदारी और मज़बूत हो रही है।
1975 में स्थापित एन टी पी सी, विद्युत मंत्रालय के अंतर्गत काम करती है। इसकी कुल स्थापित क्षमता 76.47 गीगावाट (GW) है, जिसमें इसके संयुक्त उपक्रम भी शामिल हैं। यह 94 बिजली संयंत्रों का प्रबंधन करती है। कंपनी राज्य बिजली बोर्डों और अन्य उपयोगिताओं को थोक बिजली बेचती है।
एन टी पी सी पारंपरिक रूप से कोयला और तापीय बिजली उत्पादन के लिए जानी जाती है। लेकिन अब इसका लक्ष्य भारत की सबसे बड़ी एकीकृत बिजली कंपनी बनना है। कंपनी 2032 तक 130 गीगावाट की उत्पादन क्षमता हासिल करना चाहती है। यह लक्ष्य भारत के स्वच्छ ऊर्जा समाधानों पर बढ़ते फोकस के साथ मेल खाता है।
एन टी पी सी ने अपना पोर्टफ़ोलियो बिजली उत्पादन से आगे बढ़ाकर परामर्श सेवाओं, परियोजना प्रबंधन, ऊर्जा व्यापार, तेल और गैस अन्वेषण और कोयला खनन तक विस्तारित किया है।
अब, एन टी पी सी परमाणु ऊर्जा को अपनाकर एक कार्बन-मुक्त भविष्य की ओर कदम बढ़ा रही है। यह फैसला एन टी पी सी की स्वच्छ ऊर्जा और स्थायी विकास के प्रति प्रतिबद्धता को दिखाता है। इससे भारत के ऊर्जा परिदृश्य में एन टी पी सी की भूमिका और मज़बूत होगी।
संदर्भ
https://tinyurl.com/24bemrl9
https://tinyurl.com/2xofe878
https://tinyurl.com/25r4egll
चित्र संदर्भ
1. निर्माणाधीन कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. परमाणु ऊर्जा संयंत्र के एक मॉडल को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. भीतर से परमाणु ऊर्जा संयंत्र को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
4. गुजरात के काकरापार में निर्माणाधीन परमाणु ऊर्जा स्टेशन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. हरियाणा में स्थित झज्जर पावर स्टेशन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)