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पिछले कुछ एक–दो दशक से हमारा शहर मेरठ फिल्म निर्माताओं के बीच नया पसंदीदा शहर बनकर उभरा है। यह शहर न केवल बॉलीवुड निर्देशकों के लिए एक नए शूटिंग स्थल के रूप में उभर रहा है, बल्कि, यह कई आगामी फिल्मों का सेट भी है। आइए, मेरठ में फिल्माई गई कुछ बॉलीवुड फिल्मों और उनके निर्देशकों द्वारा हमारे शहर में फिल्म निर्माण के दौरान साझा किए गए अनुभवों पर नजर डालें। साथ ही, उन प्रतिभाशाली सितारों के बारे में भी चर्चा करें, जो हमारे शहर से हिंदी फिल्म उद्योग में अपना नाम कमा रहे हैं।
१. फिल्म सांड की आंख:
जीवनीपरक फ़िल्म ‘सांड की आंख’ में अभिनय करने वाली दोनों अभिनेत्रियों को बूढ़ी महिलाओं के रूप में दिखाया गया है, जो हमारे उत्तर प्रदेश के पारंपरिक ग्रामीण परिधान पहने हुए हैं। लेकिन, दरअसल उनके हाथ में बंदूकें थी। यह फिल्म दुनिया की दो सबसे उम्रदराज़ शार्पशूटर (Sharpshooters) चंद्रो और प्रकाशी तोमर के जीवन पर आधारित है। तोमर परिवार मेरठ के पास एक कस्बे जोहरी से आता है, और इस भूमि की अनुभूति को समझने के लिए, इस फिल्म के निर्देशक तुषार हीरानंदानी ने वास्तव में मेरठ के विभिन्न स्थानों में शूटिंग की है। यह पहली बार था कि, इतने कुशल सितारों ने परतापुर रेलवे स्टेशन सहित मेरठ के बाहरी स्थानों पर शूटिंग की है।
फिल्म ओमकारा:
विशाल भारद्वाज की फिल्म ‘ओमकारा’ 2006 में आई थी। इस फिल्म के साथ अपने अनुभव साझा करते हुए वे कहते हैं कि, “मुझे आज भी वे दिन याद हैं, जो मैंने मेरठ में बिताए थे। और, मैंने ओमकारा फिल्म बनाते समय उन पुरानी यादों का इस्तेमाल किया। मैंने फिल्म के माध्यम से मेरठ में अपनी पूरी यात्रा को शब्द दिए हैं।” उत्सुक दर्शकों और मेरठ निवासियों को फिल्म में, मॉल रोड, त्यागी हॉस्टल और बुढ़ाना गेट जैसे शहर के प्रतिष्ठित स्थानों का उल्लेख मिलता हैं।
फिल्म जॉली एलएलबी:
2013 में अरशद वारसी द्वारा फिल्म ‘जॉली एलएलबी’ की शूटिंग हमारे शहर में की गई थी। उन्होंने इस फिल्म में, एक चालाक मेरठिया वकील के रूप में अभिनय किया था, जिसने मेरठवासियों का ध्यान खींचा था।
फिल्म मेरठिया गैंगस्टर्स:
फिल्म मेरठिया गैंगस्टर्स (2015) में अन्य चीजों के अलावा, हमारे शहर की सबसे व्यस्त सड़कों में से एक, घंटा घर पर फिल्माया गया एक एक्शन सीक्वेंस(Action sequence) शामिल था।
फिल्म बधाई हो:
वास्तव में, वर्ष 2018 विशेष रूप से मेरठ आधारित फिल्मों के लिए घटनापूर्ण था। एक हिट फिल्म ‘बधाई हो’ का कौशिक परिवार मेरठ से था, और हालांकि फिल्म दिल्ली में सेट की गई थी, इसमें मेरठ का अनोखा खड़ीबोली लहजा दिखाया गया था। साथ ही, हमारे शहर में फिल्म सेट का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था।
फिल्म जीरो:
शाहरुख खान और कैटरीना कैफ की ‘जीरो’ फिल्म के पोस्टर की पृष्ठभूमि में, हमारे शहर का प्रतिष्ठित घंटा घर देखा जा सकता है। फिल्म की शूटिंग से पहले इस फिल्म निर्माता– आनंद एल राय ने, 2017 में मेरठ में एक सप्ताह बिताया था। बाद में उन्होंने, मुंबई के एक स्टूडियो में पूरे घंटा घर और उसके आसपास के बाजार के सेट को फिर से बनाया। निर्माता आनंद के लिए, हमारे शहर का चुनाव, शहर के चरित्र के कारण था। हमारा शहर उनके लिए एक व्यक्तित्व के समान था।
जबकि, वर्तमान समय में हमारे शहर में कुछ अन्य फिल्मों की शूटिंग चल रही है। इसके साथ ही, एक विवादास्पद अपराध पर आधारित एक वेब सीरीज (Web series) पर भी काम चल रहा है। इनके अलावा, आनंद कुमार की ‘मेरठ जंक्शन’ फिल्म तथा तिग्मांशु धूलिया की ‘बेगम समरू’ यह जीवनी भी कुछ दिनों में सिनेमाघरों में देखी जा सकती हैं।
वास्तव में, सवाल यह है कि, मेरठ अचानक बॉलीवुड का प्रिय क्यों बन गया है? फिल्म ‘बधाई हो’ के लेखक अक्षत घिल्डियाल, जिन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा मेरठ से की है। वह कहते हैं कि, “अब छोटे शहरों पर आधारित फिल्मों को मुख्यधारा माना जाता है।” ‘मेरठिया गैंगस्टर्स’ फिल्म को लिखने और निर्देशित करने वाले ज़ीशान क़ादरी कहते हैं, “मेरठ को फिल्माने हेतु चुनने का एक सबसे बड़ा कारण यह हो सकता है कि, आज बहुत सारे लेखक मेरठ शहर से हैं। जब मैं अपनी स्नातक की पढ़ाई कर रहा था, तो मैं तीन साल तक मेरठ में रहा था। मैंने मेरठ में पढ़ाई की है, इसलिए, मेरे निर्देशन की पहली फिल्म मेरठिया गैंगस्टर्स थी।” जबकि, दूसरी ओर, विशाल भारद्वाज का कहना है कि, ओमकारा के लिए उन्होंने जो देहाती किरदार बनाए थे, उनमें से अधिकांश उन लोगों से प्रेरित थे, जिन्हें उन्होंने शहर में खुद को बड़े होते देखा था।
बॉलीवुड सिनेमा के अलावा, अपनी भाषा, कला और संस्कृति के समृद्ध इतिहास को बनाए रखने के लिए, मेरठ ने अपना स्वयं का ग्रामीण सिनेमा उद्योग विकसित किया है। इसे स्थानीय लोग मॉलीवुड (Mollywood) कहते हैं। बॉलीवुड के विपरीत, यहां फिल्में सिनेमाघरों में रिलीज नहीं होती हैं, बल्कि, सीडी(CD) के रूप में बाजार में वितरित की जाती हैं। एक सीडी की कीमत 25 रुपये से 40 रुपये के बीच होती है। हरियाणवी में बनी ये फिल्में, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दिल्ली और राजस्थान के सीमावर्ती इलाकों में बेहद लोकप्रिय हैं।
मॉलीवुड फिल्मों के एक निर्देशक– संजीव वेदवान कहते हैं, “पहले, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्से, दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (Delhi’s NCR) और राजस्थान सीमा, एक बड़े हरियाणा क्षेत्र का हिस्सा थे। जबकि, बाद में इन्हें अन्य राज्यों में मिला लिया गया। लेकिन इन क्षेत्रों की बोली, भाषा और संस्कृति नहीं बदल पाई। यही वजह है कि, हरियाणवी फिल्में आज भी यहां लोकप्रिय हैं।
दिलचस्प बात यह है कि, बड़े स्क्रीन पर रिलीज न होने पर भी मॉलीवुड को कई लाख रुपये का अच्छा कारोबार मिलता है। शायद इसलिए, क्योंकि स्थानीय लोग अभिनेताओं को ऐसी भूमिकाएं निभाते हुए देखना पसंद करते हैं, जिनसे वे खुद को परिचित कर सकते हैं। साथ ही, फिल्मों में उस बोली का इस्तेमाल होता है, जिसे वे सुनना चाहते हैं।
माना जाता है कि, ‘धाकड़ छोरा’ मॉलीवुड की पहली पूर्ण लंबाई वाली फिल्म थी। मॉलीवुड की शुरुआत धाकड़ छोरा की रिलीज के साथ होती है। जबकि, पहले केवल ऑडियो और लघु वीडियो क्लिप ही बनाये जाते थे।
संदर्भ
http://tinyurl.com/hv86eye7
http://tinyurl.com/ycthj4y7
http://tinyurl.com/3xbtxj56
चित्र संदर्भ
1. गाजियाबाद में दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे और जॉली एलएलबी के पोस्टर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. फिल्म सांड की आंख के पोस्टर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. ओमकारा के पोस्टर का एक चित्रण (wikimedia)
4. जॉली एलएलबी के पोस्टर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. मेरठिया गैंगस्टर्स के पोस्टर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. फिल्म बधाई हो के पोस्टर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
7. फिल्म जीरो के पोस्टर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
8. फिल्म निर्माता– आनंद एल राय को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
9. मेरठ शहर के विभिन्न स्थलों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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