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मेरठ ही है, नई दिल्ली के बाद, देश का दूसरा सबसे बड़ा प्रकाशन और मुद्रण केंद्र

मेरठ

 23-11-2023 10:06 AM
वास्तुकला 2 कार्यालय व कार्यप्रणाली

हमारे मेरठ शहर के प्रकाशन उद्योग का इतिहास, मेरठ के अपने विकास के साथ भी जुड़ा हुआ है। मेरठ में इस उद्योग की शुरुआत 1806 के आसपास उस दौरान हुई, जब अंग्रेजों ने यहां पर कैंट (Cantonment) की स्थापना की। इस कदम को मेरठ शहर के आधुनिकीकरण की शुरुआत के रूप में देखा जाता है। मेरठ में पहला प्रिंटिंग हाउस (printing house) भी लगभग उसी समय स्थापित किया गया था। हालांकि इसकी सटीक स्थापना के बारे में ठोस सबूत अभी तक खोजे नहीं गए हैं। 1849 में, एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई थी, जिसमें वर्तमान उत्तर प्रदेश (तब दक्षिणी क्षेत्र के दक्षिणी भाग) में समाचार पत्रों और मुद्रण दुकानों का विवरण दिया गया था। इस रिपोर्ट से पता चला कि “उस समय इस क्षेत्र में 23 प्रिंटिंग प्रेस थे, जहाँ पर किताबों के अलावा 29 अखबारों और पत्रिकाओं को छापा जाता था।” 1850 तक, दक्षिणी क्षेत्र के दक्षिणी हिस्सों (लखनऊ को छोड़कर) में प्रिंटिंग प्रेस की संख्या 24 हो गई थी। इनमें आगरा में सात, बनारस में चार, दिल्ली, मेरठ और लाहौर में दो-दो तथा कानपुर, इंदौर, शिमला और बरेली में एक-एक प्रिंटिंग प्रेस शामिल थी।
मेरठ के प्रकाशन उद्योग के विकास में हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं ने बड़ी अहम् भूमिका निभाई है। हालाँकि, शुरुआती वर्षों में, मेरठ मुख्य रूप से उर्दू के लिए जाना जाता था। एक सदी पहले तक, भी मेरठ की प्रिंटिंग प्रेसों से अधिकांश प्रकाशन उर्दू में होते थे। मेरठ का ऐतिहासिक प्रकाशन उद्योग, सरधना की बेगम समरू से भी काफी प्रभावित रहा है, जिन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया था। उनके धर्म परिवर्तन के कारण सरधना, रोमन कैथोलिक मिशनरियों (Roman Catholic Missionary) का केंद्र बन गया। 1848 के आसपास, इन मिशनरियों ने मुख्य रूप से अपने धर्म को बढ़ावा देने के लिए सरधना में एक प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना की। इसके बाद उन्होंने धार्मिक पुस्तकें प्रकाशित कीं और ईसाई पादरियों के व्याख्यानों तथा वार्तालापों को फ़ारसी और देवनागरी लिपियों में प्रसारित किया। यदि हम भारत की बात करें तो यहां पर प्रिंटिंग प्रेस का इतिहास 16वीं शताब्दी में शुरू हुआ, जब पुर्तगाली व्यापारी प्रिंटिंग की इस तकनीक को गोवा लाए थे। भारत में पहला प्रिंटिंग प्रेस (Printing Press) 1556 में, जोआओ डि बस्टामांटे (João De Bustamante) द्वारा सेंट पॉल कॉलेज (St. Paul's College), गोवा में स्थापित किया गया था। जबकि भारतीय स्वामित्व वाला पहला प्रिंटिंग प्रेस 1780 में कलकत्ता में स्थापित किया गया था। इन्ही प्रिंटिंग प्रेसों ने भारत में पश्चिमी विचारों और संस्कृति को फैलाने तथा दुनिया के बाकी हिस्सों में हमारे देश से जुड़ी जानकारी प्रसारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान, कई भारतीय प्रिंटिंग प्रेसों का उपयोग राजनीतिक साहित्य के उत्पादन और वितरण के लिए भी किया गया था। 20वीं शताब्दी में आधुनिक प्रिंटिंग प्रौद्योगिकी की शुरुआत ने तो भारत के प्रिंटिंग उद्योग में क्रांति ला दी थी। 1850 के दशक तक, पुणे, दिल्ली, लखनऊ और अहमदाबाद जैसे कुछ अन्य शहर भी प्रिंट के केंद्र के रूप में उभरे थे। उन्नीसवीं सदी के अंत तक, भारत दुनिया के सबसे बड़े प्रिंट बाजारों में से एक बन गया था, और आज 21वीं सदी में भी यह स्थिति कायम है। भारत के मुद्रण इतिहास में ईसाई मिशनरी मुख्य प्रचारक माने जाते हैं और उन्होंने ही भारत के कई क्षेत्रों में छपाई की शुरुआत की। कलकत्ता के पास सेरामपुर में विलियम कैरी (William Carey) द्वारा 1799 में बैप्टिस्ट मिशन प्रेस (Baptist Mission Press) की स्थापना की गई थी। अन्य मिशन प्रेस में मुंबई में अमेरिकन मिशन प्रेस (American Mission Press) (1817), कटक मिशन प्रेस (1837) और मैंगलोर में बेसल मिशन प्रेस (Basel Mission Press) (1841) शामिल हैं। 1857 के विद्रोह से पहले की अवधि में, देश के कई हिस्सों में व्यापक रूप से ब्रिटिश सत्ता विरोधी भावना उभर रही थी। इसी भावना को दबाने के लिए मेरठ के प्रकाशनों ने पुस्तकों, समाचार पत्रों और पैम्फलेटों (pamphlets) का सहारा लिया। अधिकतर आरंभिक प्रकाशन गृह मेरठ की पुरानी तहसील और वर्तमान सुभाष बाज़ार के आसपास स्थित थे।
19वीं शताब्दी के अंतिम दशक में मेरठ के प्रकाशन उद्योग में हिंदी और देवनागरी लिपियों में प्रकाशनों में वृद्धि देखी गई। इसका श्रेय काफी हद तक मेरठ के स्थानीय निवासी और दयानंद सरस्वती के आर्य समाज के अनुयायी पंडित गौरीदत्त शर्मा के प्रयासों को दिया जाता है। स्वामी दयानंद सरस्वती के भाषणों से प्रभावित होकर ही पंडित गौरीदत्त शर्मा ने देवनागरी लिपि को बढ़ावा देने के लिए खुद को समर्पित कर दिया। ऐसे ही कई साहित्यकारों के प्रयासों की बदौलत वर्तमान में, मेरठ का प्रकाशन उद्योग शैक्षिक प्रकाशनों के लिए एक प्रमुख केंद्र के रूप में विकसित हो गया है।
आज की तारीख में मेरठ, को उत्तर प्रदेश का दरियागंज कहा जाता है। यह देश के प्रकाशन और मुद्रण उद्योग का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन चुका है। नई दिल्ली के बाद, देश का दूसरा सबसे बड़ा प्रकाशन और मुद्रण केंद्र मेरठ में ही है। मेरठ पुस्तक उद्योग, प्रकाशकों, लेखकों और कलाकारों का एक नेटवर्क, अपनी हिंदी पल्प फिक्शन (Pulp Fiction) के लिए प्रसिद्ध है। मेरठ के बारे में एक और दिलचस्प तथ्य यह है कि यह भारत में कागज को पुस्तकों में परिवर्तित करने वाले सबसे किफायती स्थान के रूप में प्रतिष्ठित है। हालांकि, जीएसटी (GST) लागू होने से मेरठ के प्रकाशन उद्योग पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। जीएसटी के कारण बढ़ी हुई लागत, प्रकाशकों से वहन की जा रही है, क्योंकि पुस्तकों पर कर नहीं लगने के कारण उपभोक्ता जीएसटी से अनजान हैं। इसका असर वितरण नेटवर्क पर भी पड़ा

संदर्भ
https://tinyurl.com/5xvp7x6j
https://tinyurl.com/5hby47b7
https://tinyurl.com/38wb5k8r

चित्र संदर्भ
1. कमबोब गेट मेरठ को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
2. मेरठ केंट को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
3. प्रिंटिंग प्रेस में काम करती महिलाओं को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. बेगम समरू को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
5. प्रिंटिंग प्रेस गोवा राज्य संग्रहालय को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)

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