Post Viewership from Post Date to 04-Nov-2023 (31st Day)
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
3138 294 3432

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

रामपुर के नवाबों के बेशकीमती आभूषणों का संग्रह क्यों था ऐतिहासिक?

मेरठ

 04-10-2023 10:50 AM
म्रिदभाण्ड से काँच व आभूषण

साल 2020 में रामपुर के कोठी खास बाग का रहस्यमय और बहुचर्चित ‘स्ट्रांग रूम’ खोला गया था। लेकिन, वहां दरअसल कुछ भी नहीं था। शहर के स्थानीय लोगों ने दावा किया कि कोठी खास बाग से कई कीमती आभूषण 70 और 80 के दशक में, देश की सबसे बड़ी चोरी के रूप में गायब हो गए हैं। यूं तो कोठी खास बाग आज भी रामपुर में है, लेकिन इसने अपना प्राचीन गौरव खो दिया है। नवाब काज़िम अली खान ने दावा किया कि, उनकी चाची एवं मुर्तजा खान की पत्नी, आफताब जामिनी के पास आखिरी बार 1993 में उनकी मृत्यु तक, इस कमरे की चाबियां थीं। तथा उन्होंने अपने निधन से पहले, वहां से राजसी सामान बदल दिया होगा। दरअसल, रामपुर की रियासत को सुरक्षित करने के बाद, 1774 ईसवी में रामपुर के पहले नवाब बने नवाब फैजुल्ला खान ने मुगल कुलीनों से दुर्लभ और मूल्यवान पांडुलिपियों के साथ-साथ, दुर्लभ रत्नों को भी इकट्ठा करना शुरू कर दिया था। फैजुल्ला खान के वंशज, नवाब हामिद अली खान (जन्म 1889- मृत्यु 1930) ने रामपुर किले के अंदर, एक शानदार दरबार महाकक्ष के साथ हामिद मंजिल महल भी बनवाया था, जिसमें एक समय में सोने का सिंहासन और रामपुर के नवाबों का सोने का हुक्का रखा हुआ था। हामिद मंजिल महल के शाही शयनकक्ष में नवाब का अलंकृत सोने का बिस्तर और चांदी की ड्रेसिंग टेबल (Dressing Table) भी थी। नवाब हामिद अली खान के उत्तराधिकारी, उनके बेटे नवाब रज़ा अली खान (जन्म 1930- मृत्यु 1956) थे।
रामपुर राज्य के तत्कालीन प्रधान मंत्री कर्नल जेड. एच. जैदी (Z. H. Zaidi) के विशेषज्ञ मार्गदर्शन में, रज़ा अली खान ने बड़ी संख्या में उद्योग स्थापित किए। इस कारण, रामपुर भारत में सबसे अधिक औद्योगीकृत राज्यों में से एक बन गया और इसकी आय तीन गुना हो गई। उद्योगों द्वारा उत्पन्न अपार धन से, नवाब रज़ा अली खान ने खासबाग महल का पुनर्निर्माण किया, जिससे यह भारत का पहला वातानुकूलित महल बन गया। महल के केंद्र में शाही ‘खजाना तिजोरी ' (Treasure Vault) थी। नवाब रज़ा अली खान ने रामपुर आभूषण संग्रह में भी काफी वृद्धि की। इसमें भारी मात्रा में, अमूल्य माणिक, दुर्लभ पन्ने और हीरे शामिल थे। गहनों के कमरे ‘स्ट्रांगरूम’ (Strong room) की सामग्री या आभूषणों के बारे में केवल नवाब और कोष अधिकारी को ही जानकारी थी। जबकि, एकमात्र व्यक्ति जिन्हें इस खजाने की तिजोरी का दौरा कराया गया था, वह भारत के तत्कालीन वाइसरॉय (Viceroy) थे।
1942 में, रामपुर के युवराज मुर्तजा अली खान वाइसरॉय लॉर्ड माउंटबेटन (Lord Mountbatten) के सहयोगी थे। अतः रामपुर की उनकी एक यात्रा के दौरान, उन्हें रामपुर शाही तिजोरी के अंदर ले जाया गया, जिसका उन्होंने अपनी डायरी में विस्तृत विवरण लिखा है।
रामपुर के नवाबों की तिजोरी में विशेष रूप से ध्यान आकर्षित करने वाला आभूषण ‘शाही हार’ था। इसके बारे में, माउंटबेटन का दावा है कि, इसमें चार शानदार गोलकोंडा हीरे जड़े थे, जिन्हें वह ‘एंपरेस ऑफ इंडिया’ (Empress of India)’, ‘क्लोंडाइक (Klondyke)’ और अन्य दो हीरो को ‘द ट्विन्स (The Twins)’ नाम देते हैं। दिलचस्प बात यह है कि इन हीरों का अन्य कहीं भी कोई संदर्भ नहीं मिलता है, और न ही किसी आभूषण इतिहासकार ने इनका उल्लेख किया है। माउंटबेटन का रामपुर के मोतियों का वर्णन भी उतना ही चौंका देने वाला है, जिसमें तीन मोतियों के हार शामिल हैं। इनमें विलक्षण मोती थे जो उनके अंगूठे के नाखून जितने बड़े थे। रामपुर के नवाबों के पास वास्तव में, दस हजार से कुछ अधिक रत्न थे। लेकिन वास्तव में, सबसे अधिक आकर्षक आभूषणों में हीरे, पन्ने, माणिक आदि के आभूषण शामिल थे। साथ ही, इनमें पुष्प हार, मुकुट, हार, कंगन, अंगूठियां, कान की बालियां, एपॉलेट (Epaulettes) और पुगारी आभूषण शामिल थे। 1947 के एक मूल्यांकन के अनुसार, इस पूरे संग्रह का मूल्य 3.5 करोड़ रुपये था!
वर्ष 1966 में नवाब रजा अली खान की मृत्यु के बाद उनके ताज तथा आभूषण समेत कई अन्य कीमती आभूषण, उनके वंशजों को सौंप दिए गए एवं रामपुर के कोठी खास बाग में रख दिए गए, जहां ये मुकुट व आभूषण 1966 तक सुरक्षित थे। जबकि, बाद में अवैध तस्करी के कारण ये मुकुट भारत से लंदन (London) पहुंच गए, जहां पर नीलामी कंपनी क्रिस्टीज (Christies) द्वारा उनकी नीलामी की गई।
रामपुर के गहनों के संबंध में, भारत के राष्ट्रीय अभिलेखागार के एक रिकॉर्ड के अनुसार, सात वस्तुओं को ‘विरासत’ के रूप में सूचीबद्ध किया गया था, जबकि बाकी आभूषण उनकी पत्नी और सात बच्चों के बीच वितरित किए गए थे। हमनें रामपुर के नवाबी आभूषणों में गोलकोंडा हीरों का जिक्र पाया। क्या आप जानते हैं कि सदियों से दक्कन का क्षेत्र दुनिया में ‘हीरे की राजधानी’ के नाम से विख्यात रहा है। दुनिया के अधिकांश शानदार और बड़े से बड़े हीरों का खनन दक्कन (वर्तमान तेलंगाना और आंध्र प्रदेश राज्यों का क्षेत्र) के मध्य में स्थित गोलकोंडा में किया गया था। दुनिया की कुछ सबसे प्रचुर हीरे की खदानें पेन्नार, कृष्णा और गोदावरी नदियों के किनारे थी। मुख्य रूप से कडप्पा, अनंतपुर, बेल्लारी, कुरनूल, गुंटूर, महबूबनगर, कोल्लूर, गोलापिल्ली, एलुरु और नंद्याला के किनारे ये खाने विकसित हुई थी। कई विदेशी यात्रियों और योद्धाओं ने भी इन रत्नों की तारीफ की है। रत्न सदियों से, किसी शासक की शक्ति, प्रतिष्ठा और संपन्नता को दर्शाने में उल्लेखनीय भूमिका निभाते रहे हैं। दुनिया के सबसे प्रसिद्ध हीरों में से एक, कोहिनूर हीरा, जो अब ब्रिटिश शाही परिवार (British Royal Family) के स्वामित्व में है, एक समय काकतीय राजवंश के स्वामित्व में था, जिन्होंने लगभग एक हजार साल पहले तेलंगाना पर शासन किया था। काकतीयों के शाही संरक्षण के तहत, कोहिनूर, एक हिंदू देवी भद्रकाली को समर्पित था। और इसीलिए, इसे भद्रकाली मंदिर में रखा गया था। लेकिन, जैसे-जैसे राजनीतिक विजय और सत्ता के खेल के उतार-चढ़ाव ने समय की रेत पर अपनी छाप छोड़ी, कोहिनूर को छल द्वारा भारत से बाहर भेज दिया गया।
विवादों से घिरे, हमारे रामपुर का खजाना भारत की आभूषण विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। हमें उम्मीद है कि इन खजानों की एक झलक से आप में रामपुर के अतीत का अध्ययन करने में नई रुचि पैदा होगी।

संदर्भ
https://tinyurl.com/e65nba5n
https://tinyurl.com/4p6b29rw
https://tinyurl.com/bdhunmfe
https://tinyurl.com/24pxfycy

चित्र संदर्भ
1. रामपुर के खासबाग महल और आभूषणों को दर्शाता एक चित्रण (Prarang)
2. रामपुर के खासबाग महल को दर्शाता एक चित्रण (Prarang)
3. स्वर्णिम आभूषणों को दर्शाता एक चित्रण (rawpixel)
4. खजाने की तिजोरी को दर्शाता एक चित्रण (pxhere)
5. हीरे की अंगूठी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)

***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • उत्तर भारतीय और मुगलाई स्वादों का, एक आनंददायक मिश्रण हैं, मेरठ के व्यंजन
    स्वाद- खाद्य का इतिहास

     19-09-2024 09:25 AM


  • मेरठ की ऐतिहासिक गंगा नहर प्रणाली, शहर को रौशन और पोषित कर रही है!
    नदियाँ

     18-09-2024 09:18 AM


  • क्यों होती हैं एक ही पौधे में विविध रंगों या पैटर्नों की पत्तियां ?
    कोशिका के आधार पर

     17-09-2024 09:16 AM


  • आइए जानें, स्थलीय ग्रहों एवं इनके और हमारी पृथ्वी के बीच की समानताओं के बारे में
    पर्वत, चोटी व पठार

     16-09-2024 09:34 AM


  • आइए, जानें महासागरों से जुड़े कुछ सबसे बड़े रहस्यों को
    समुद्र

     15-09-2024 09:27 AM


  • हिंदी दिवस विशेष: प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण पर आधारित, ज्ञानी.ए आई है, अत्यंत उपयुक्त
    संचार एवं संचार यन्त्र

     14-09-2024 09:21 AM


  • एस आई जैसी मानक प्रणाली के बिना, मेरठ की दुकानों के तराज़ू, किसी काम के नहीं रहते!
    सिद्धान्त I-अवधारणा माप उपकरण (कागज/घड़ी)

     13-09-2024 09:10 AM


  • वर्षामापी से होता है, मेरठ में होने वाली, 795 मिलीमीटर वार्षिक वर्षा का मापन
    जलवायु व ऋतु

     12-09-2024 09:25 AM


  • परफ़्यूमों में इस्तेमाल होने वाले हानिकारक रसायन डाल सकते हैं मानव शरीर पर दुष्प्रभाव
    गंध- ख़ुशबू व इत्र

     11-09-2024 09:17 AM


  • मध्यकालीन युग से लेकर आधुनिक युग तक, कैसा रहा भूमि पर फ़सल उगाने का सफ़र ?
    मध्यकाल 1450 ईस्वी से 1780 ईस्वी तक

     10-09-2024 09:32 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id