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1984 में कोलकाता मेट्रो की शुरुआत के बाद से, भारत में विभिन्न शहरों में मेट्रो रेल का तेजी से विस्तार हुआ है, जिनमें दिल्ली अग्रणी है और अन्य शहर भी आगे बढ़ रहे हैं। पूरे देश में 540 स्टेशनों के साथ 670+ किलोमीटर की चौंका देने वाली मेट्रो लाइनें चालू हैं और 500+ किलोमीटर की लाइनें निर्माणाधीन हैं, जिनमें हमारा मेरठ शहर भी शामिल है, हमारे मेरठ शहर में रैपिड रेल ट्रांजिट सिस्टम परियोजना भी निर्माणाधीन है। यह परियोजना 2025 तक पूरा होने की संभावना है।
हमारे मेरठ से प्रतिदिन हजारों लोग अपने कार्यों और नौकरी के लिए दिल्ली और एनसीआर शहरों में आते जाते हैं। सुबह जल्दी उठकर जाने और देर रात को लौट कर आने में इन लोगों का काफी समय व्यर्थ होता है। हालांकि ये लोग दिल्ली या अन्य शहरों में रहकर भी अपना कार्य कर सकते हैं किंतु ज्यादातर लोग अपने घर वापस लौट कर आना चाहते हैं फिर चाहे इसके लिए उन्हें अपना समय ही क्यों ना गवाना पड़े। मेट्रो लाइन और रैपिड रेल सिस्टम के बनने से इन लोगों के समय की बचत होगी । इसमें कोई संदेह नहीं है कि मेट्रो रेल एक तरह से यात्रियों के लिए एक वरदान है क्योंकि यह सुरक्षित, स्वच्छ, आरामदायक, सामयिक और किफायती परिवहन का साधन प्रदान करता है। आइए जानते हैं मेट्रो से होने वाले लाभों के बारे में-
यातायात में सुधार: मेट्रो सिस्टम जहाँ भी उपलब्ध होता है, वहाँ ज्यादातर लोग मेट्रो का इस्तेमाल करते हैं जिससे सड़क पर यातायात कम हो जाता है और ट्रैफिक जाम से भी मुक्ति मिलती है ।
प्रदूषण में कमी: मेट्रो कार्यक्रम प्रदूषण को कम करने में मदद कर सकता है, क्योंकि यह बदले में पब्लिक परिवहन का उपयोग करने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करता है, जिससे सार्वजनिक ट्रांसपोर्ट के संचालन से वाहनों के उपयोग की सीमा कम होती है। और इसका रखरखाव भी आसान हो जाता है। इसमें किसी भी प्रकार की वायु वेंटिलेशन (ventilation) की आवश्यकता नहीं होती है। दिन में अन्य भूमिगत वाहनों की तरह अतिरिक्त रोशनी की आवश्यकता भी नहीं होती है।
अधिक लोगों की सार्वजनिक परिवहन तक पहुंच: मेट्रो से ज्यादा से ज्यादा लोगों को सार्वजनिक परिवहन तक पहुंचने का अच्छा मौका प्राप्त होता है, विशेषकर उन लोगों को जो गाड़ी नहीं चला सकते या चलाना नहीं चाहते हैं। इस प्रणाली का आसानी से उन्नयन किया जा सकता है।
समय की बचत: मेट्रो अक्सर ट्रैफिक की तुलना में तेज होती हैं, जिससे लोगों के समय की बचत होती है।
सुरक्षित: मेट्रो कार्यक्रम सुरक्षित यातायात की गारंटी देता है। आग लगने की स्थिति में इस स्टेशन को फायर टेंडर का उपयोग करके आसानी से खाली कराया जा सकता है जो भूमिगत स्टेशनों के लिए बहुत मुश्किल है।
अन्य अंतरराष्ट्रीय शहरों के अनुभव और वर्तमान में मेरठ में स्थापित की जा रही दो बड़ी परिवहन प्रणालियों - मेरठ मेट्रो और मेरठ रैपिड ट्रांजिट सिस्टम की लागत और लाभों को देखते हुए इनकी तुलना करना सार्थक है।अन्य देशों में विभिन्न अध्ययनों ने "रोजगार और मेट्रो/रैपिड परिवहन प्रणालियों" के बीच संबंध दिखाया है।मेरठ के भीतर रोजगार की अधिकांश संरचना अनौपचारिक यानी देहाती और अंशकालिक है।औपचारिक रोजगार के लिए, मेरठ के श्रमिकों का एक बड़ा हिस्सा वास्तव में प्रतिदिन दिल्ली जाता है और रात में या सप्ताहांत में वापस लौटता है। डेटा संग्रह या नौकरी बाजारों के अध्ययन के बिना, इतने बड़े निवेश से संकेत मिलते हैं कि "मेरठ मेट्रो" परियोजना मेरठ के भीतर रोजगार पर महत्वपूर्ण प्रभाव नहीं डाल सकती है, हालांकि, मेरठ और दिल्ली को जोड़ने वाली रैपिड ट्रांजिट प्रणाली मेरठ निवासियों जो प्रतिदिन काम के लिए नोएडा/ दिल्ली आ-जा रहे हैं, के लिए बड़ा वरदान साबित हो सकती है।
"मेट्रो" एक तेज़ ट्रेन प्रणाली है जो वर्तमान में मेरठ शहर में बनाई जा रही है।जून 2015 में रेल इंडिया टेक्निकल एंड इकोनॉमिक सर्विस लिमिटेड (Rail India Technical and Economic Service Limited (RITES) द्वारा परियोजना की व्यवहार्यता का अध्ययन करके,इस परियोजना को हरी झंडी दिखाई गई थी । चूंकि अब सरकार ने मेरठ मेट्रो की लाइन 1 को आरआरटीएस (RRTS) में विलय कर दिया, इसलिए इसके आरआरटीएस परियोजना के साथ 2025 (चरण 1) के आसपास पूरा होने की संभावना है। आरआरटीएस परियोजना के साथ इसका विलय होने के कारण कम से कम 6500 करोड़ रुपये की बचत होगी। उधर उत्तर प्रदेश मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन (Uttar Pradesh Metro Rail Corporation (UPMRC) द्वारा मेरठ मेट्रो लाइन 2 के विस्तृत डिजाइन के लिए टेंडर जारी कर दिए गए हैं। मेट्रो एक प्रकार का सार्वजनिक परिवहन है जो बड़े शहरों में लोगों को यात्रा करने का एक सुरक्षित, तेज़ और पर्यावरण के अनुकूल तरीका प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
लेकिन यहां एक प्रश्न उठता है कि हमारे देश भारत में भूमिगत या एलिवेटेड मेट्रो रेल- में से कौन सी बेहतर है? आइए इसका उत्तर जानने का प्रयास करते हैं-भारत में अंडरग्राउंड (यूजी) मेट्रो (underground (UG) metro) की लंबाई एलिवेटेड मेट्रो (elevated metro) की तुलना में बहुत कम है। स्थानीय निवासी अपने घरों के पास एलिवेटेड कॉरिडोर (elevated corridor) का विरोध करते आ रहे हैं।अंडरग्राउंड (यूजी) मेट्रो आमतौर पर शहर के पुराने, भीड़-भाड़ वाले हिस्सों में चलती है, जहां सड़कें संकरी होती हैं ।
इन क्षेत्रों में, बहुत सारी इमारतों को गिराए बिना ऊंचे रेल ट्रैक बनाना मुश्किल है।एलिवेटेड मेट्रो मौजूदा सड़कों के समानंतर ही चलती हैं क्योंकि सड़क अधिकार (ROR ) से परे इनके लिए जमीन मिलना बहुत मुश्किल है। आज के समय में भूमि की कीमतें दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही हैं और इमारतों का अधिग्रहण या विध्वंस किसी भी परियोजना को रोक सकता है।एलिवेटेड ट्रेन पटरियों का उपयोग करके, सड़क क्रॉसिंग, राजमार्ग ओवरपास, रेलरोड पुल और यहां तक कि अन्य एलिवेटेड मेट्रो प्रणालियों की आवश्यकता जैसे मुद्दों से बचा जा सकता है। । इस प्रकार, एलिवेटेड संरेखण योजना को शहर के सड़क नेटवर्क के साथ ही चलाया जा सकता है।
यूजी मेट्रो को आम तौर पर एलिवेटेड मेट्रो सिस्टम की तुलना में अधिक सामग्री की आवश्यकता होती है क्योंकि यूजी मेट्रो के लिए सुरंग बनाने में भूमिगत मार्ग की खुदाई शामिल है, जिसमें अधिक सामग्री की खपत होती है, जबकि एलिवेटेड मेट्रो मुख्य रूप से एलिवेटेड ट्रैक और समर्थन संरचनाओं के लिए सामग्री का उपयोग करते हैं, जो मात्रा में कम हो सकती है।हालाँकि, यूजी मेट्रो प्रणाली के लिए बिजली की खपत मुख्य रूप से पर्यावरण नियंत्रण प्रणाली (ईसीएस) और टनल वेंटिलेशन सिस्टम (टीवीएस (tunnel ventilation system)) के कारण लगभग दस गुना अधिक है। साथ ही एलिवेटेड मेट्रो कॉरिडोर के लिए रास्ता बनाने के लिए सैकड़ों पेड़ काटे जाते हैं, जिससे शहरीकरण के कारण पहले से क्षतिग्रस्त हुयी हरियाली और अधिक नष्ट हो जाती है। एलिवेटेड मेट्रो के निर्माण के दौरान यातायात व्यवधान, ट्रैफिक जाम, अतिरिक्त ईंधन जलने, शोर और धूल जैसी अन्य समस्याएं सालों तक बनी रहती हैं।
इसके अलावा आसपास की इमारतों की निकटता के कारण एलिवेटेड मेट्रो के संचालन के दौरान ध्वनि प्रदूषण का प्रभाव दूरगामी होता है। अगर इन सभी पहलुओं पर ध्यान दिया जाए तो निश्चित ही यूजी मेट्रो निर्माण ज्यादा फायदेमंद साबित होता है।
एलिवेटेड मेट्रो की अग्रिम लागत यूजी मेट्रो प्रणाली से लगभग तीन गुना कम है। साथ ही, एलिवेटेड मेट्रो के लिए बिजली की खपत लगभग दस गुना कम है। हालाँकि, शहर इसके लिए अपने आप में एक बहुत बड़ी कीमत चुका रहे हैं जैसे भूमि अधिग्रहण की लागत, बिजली, गैस, सीवर लाइनों आदि जैसी सतह और भूमिगत उपयोगिताओं को स्थानांतरित करने की लागत, स्टेशन, प्रवेश निकास बनाने की लागत और सड़कों का संकीर्ण होना आदि।
एलिवेटेड मेट्रो एक मुख्य सड़क के समग्र सौंदर्य को बदल देती है। इसके बड़े खंभे (मध्य में लगभग 3.5मीटर चौड़ाई) सामान्य यातायात को बाधित करते हैं इसके साथ ही सड़कों पर विशाल स्टेशन भवनों का निर्माण कराया जाता है और फुटपाथ/ सड़कों पर इसकी प्रवेश/निकास संरचनाएं होती हैं। यह हरे आवरण और सड़क के किनारे खुले स्थानों को कम करता है। यातायात जाम, यातायात परिवर्तन, असुरक्षित सड़क की स्थिति, भारी निर्माण वाहन/क्रेन की आवाजाही, उपयोगिता व्यवधान, शोर, धूल और रात के समय काम करने के कारण एलिवेटेड मेट्रो की निर्माण गतिविधि पर भारी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। मेट्रो सिस्टम को बनाने में अक्सर कई साल लग जाते हैं, जिसके दौरान ट्रैफिक और अन्य सार्वजनिक व्यवस्थाओं पर असर होता है।
इसके अलावा बड़े नगरों में, मेट्रो सिस्टम लोगों के बीच स्थानीय वायरसों के संचरण के आशंकित केंद्र बन सकती हैं, जिससेवायरसों के फैलने की आशंका होती है, जैसा कि कोविड-19 (COVID-19) के दौरान हुआ था।
मेट्रो रेल प्रणाली का निर्माण और रखरखाव महंगा हो सकता है, खासकर निर्माण और विकास के शुरुआती चरणों में। यह उन शहरों या देशों के लिए एक महत्वपूर्ण नुकसान हो सकता है जिनके पास ऐसी परियोजना का समर्थन करने के लिए पर्याप्त मात्रा में वित्तीय संसाधन नहीं होते हैं।
कुछ मामलों में, मेट्रो रेल प्रणाली के निर्माण के लिए भूमि अधिग्रहण या इमारतों के विध्वंस की आवश्यकता हो सकती है, जिससे निवासियों या व्यवसायों का विस्थापन किया जाता है। यह एक विवादास्पद मुद्दा हो सकता है और इससे परियोजना का सामाजिक या राजनीतिक विरोध हो सकता है।
मेट्रो ट्रेनें जब भूमिगत या आवासीय क्षेत्रों के नजदीक से गुजरती हैं तो यह ध्वनि प्रदूषण का एक स्रोत हो सकती हैंऔर पटरियों के पास रहने वाले या काम करने वाले लोगों के लिए परेशानी का सबब बन सकती हैं।
मेट्रो ट्रेनों के चलने से पटरियों के पास स्थित इमारतों या संरचनाओं के लिए कंपन जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। इससे संरचनात्मक क्षति या अन्य समस्याएं हो सकती हैं जिनका समाधान करने की आवश्यकता हो सकती है।
मेट्रो रेल प्रणालियाँ आमतौर पर शहर के केवल कुछ हिस्सों को ही कवर करती हैं, और वे सभी गंतव्यों तक नहीं पहुँच पाती हैं। मेट्रो रेल प्रणाली विकलांग लोगों के लिए पूरी तरह से सुलभ नहीं हो सकती है, खासकर यदि स्टेशन या ट्रेनें लिफ्ट या व्हीलचेयर रैंप जैसी सुविधाओं से सुसज्जित नहीं हैं।
मेट्रो रेल प्रणालियाँ अपराध के प्रति संवेदनशील हो सकती हैं, खासकर यदि उनमें पर्याप्त स्टाफ न हो या अच्छी रोशनी न हो। यह उन यात्रियों के लिए चिंता का विषय हो सकता है जो ज्यादातर रात में यात्रा करते हैं ।
रखरखाव, मरम्मत या अन्य मुद्दों के कारण मेट्रो रेल प्रणालियों में देरी या व्यवधान का अनुभव हो सकता है। इससे यात्रियों को असुविधा हो सकती है और उनकी यात्रा योजनाओं पर असर पड़ सकता है।
इन फायदों और नुकसानों के साथ, मेट्रो सिस्टम के प्रभाव और महत्व नगरों और उनके लोगों के आवश्यकताओं और परिस्थितियों पर निर्भर करते हैं। इसलिए, हर नगर के लिए मेट्रो सिस्टम के फायदे और नुकसान अलग-अलग हो सकते हैं।
संदर्भ:
https://tinyurl.com/bdh6z7a2
https://tinyurl.com/mrymc5s7
https://tinyurl.com/mrytyr38
https://tinyurl.com/2m9nat77
https://tinyurl.com/5d83tzsu
https://tinyurl.com/2amv3m52
चित्र संदर्भ
1. दिल्ली मेट्रो को दर्शाता एक चित्रण (Wikimedia)
2. निर्माणाधीन मेट्रो लाइन को दर्शाता एक चित्रण (Wikimedia)
3. दिल्ली मेट्रो के विस्तार को दर्शाता एक चित्रण (Wikimedia)
4. दिल्ली मेट्रो को दर्शाता एक चित्रण (Wikimedia)
5. एक अन्य निर्माणाधीन मेट्रो लाइन को दर्शाता एक चित्रण (Wikimedia)
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