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चेहरा देखकर स्वभाव का आंकलन करने वाली ’फिजियोग्नोमी’ कितनी भरोसेमंद है?

मेरठ

 18-07-2023 09:43 AM
विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

एक आम आदमी भी किसी इंसान के चेहरे को देखकर, उसकी मन में चल रही सुखद या दुखद भावनाओं का आसानी से अंदाजा लगा सकता है, लेकिन जब कोई आपका चेहरा देखकर यह दावा करने लगे कि वह आपका भविष्य बता सकता है, तो ऐसी स्थिति में आपको निश्चित तौर पर सतर्क हो जाना चाहिए।
किसी भी व्यक्ति के बाहरी रूप, विशेषकर उसके चेहरे के आधार पर उसके चरित्र या व्यक्तित्व का आकलन करने की प्रथा को रूपाकृति विज्ञान अर्थात फिजियोग्नोमी (Physiognomy) कहा जाता है। कभी-कभी, फिजियोग्नोमी को ‘एंथ्रोपोस्कोपी’ ('Anthroposcopy') भी कहा जाता है। हालांकि ‘एंथ्रोपोस्कोपी’ शब्द , जो किसी व्यक्ति के समग्र स्वरूप को भी संदर्भित करता है, की उत्पत्ति 19वीं शताब्दी में हुई थी। फिजियोग्नोमी में एक सामान्य उदाहरण के तौर पर “किसी की तेज़ बुद्धि और कला के प्रति अधिक रूचि को उसकी ऊँची भौंह के साथ जोड़ दिया जाता है।” इससे पता चलता है कि किसी व्यक्ति का चेहरा या शारीरिक विशेषताएं उसके विशिष्ट गुणों या व्यवहार से जुड़ी हो सकती हैं। भारत में फिजियोग्नोमी, उच्च जाति के लोगों के बीच सामुद्रिक-शास्त्र नामक एक परंपरा के रूप में इतिहास में भी मौजूद थी। 18वीं शताब्दी तक इस परंपरा का उपयोग यह निर्धारित करने के लिए किया जाता था कि संपत्ति का उत्तराधिकारी कौन होगा? साथ ही इसकी मदद से व्यवस्थित विवाह के लिए उचित भागीदारों का भी चयन किया जाता था।
इसके तहत किसी व्यक्ति के चेहरे के आधार पर भाग्य की भविष्यवाणी करना शामिल था। यह मूल रूप से एक लोक कला थी जिसे प्राचीन ग्रंथों में विभिन्न संस्करणों में संरक्षित किया गया था। समय के साथ इस कला को हिंदू पौराणिक कथाओं के माध्यम से वैधता प्राप्त हुई और इसे एक ब्राह्मण विज्ञान में पुनर्गठित किया गया, जिसे ‘सामुद्रिका-शास्त्र’ के नाम से जाना जाता है। इस प्रथा को प्राचीन यूनानी दार्शनिकों द्वारा भी अपनाया गया था, लेकिन मध्य युग के दौरान इसकी विश्वसनीयता में कमी देखी गई। 19वीं सदी में योहान कैस्पर लैवेटर (Johann Caspar Lavater) के काम से इसे फिर से लोकप्रियता मिली, लेकिन बाद में इसकी लोकप्रियता फिर से कम हो गई। 19वीं शताब्दी के दौरान, वैज्ञानिकों द्वारा नस्लवाद का समर्थन करने के लिए शारीरिक पहचान का उपयोग किया गया था। हालांकि आज, शारीरिक पहचान का फिर से अध्ययन किया जा रहा है। शरीर विज्ञान को विशेषज्ञों द्वारा छद्म विज्ञान (Pseudoscience) माना जाता है, क्योंकि इसके दावों का समर्थन करने के लिए वैज्ञानिक प्रमाणों का अभाव है। इसके बावजूद, कई लोग अभी भी शरीर विज्ञान में विश्वास करते हैं। इसके साथ ही कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence) के क्षेत्र में हाल ही में हुई प्रगति ने भी इस क्षेत्र में नई रुचि जगाई है। प्राचीन काल में व्यक्ति की शक्ल-सूरत और उसके आंतरिक गुणों के बीच संबंध को लेकर कई मान्यताएं प्रचलित थीं। भारतीय विद्वानों के साथ-साथचीनी परंपराओं में भी शरीर विज्ञान का कई वर्षों तक गहन अभ्यास किया गया। साथ ही यह प्रथा प्रारंभिक ग्रीक कविताओं में भी दिखाई दी थी। शारीरिक सिद्धांत के प्रारंभिक संकेत ईसा पूर्व 5वीं शताब्दी के एथेंस (Athens) में कला के विशेषज्ञ ज़ोपाइरस (Zopyrus) के कार्यों में दिखाई देते हैं। चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में प्राचीन दार्शनिक ‘अरस्तू’ (Aristotle) ने भी रूप-रंग और चरित्र के बीच संबंध पर चर्चा की। उनका मानना था कि किसी व्यक्ति की कुछ दृश्य विशेषताएं उसकी भावनाओं और इच्छाओं को इंगित कर सकती हैं। फिजियोग्नोमी पर सबसे पुराना जीवित व्यवस्थित ग्रंथ ‘फिजियोग्नोमोनिका’ (Physiognomonica) नामक पुस्तक को माना जाता है, जिसका श्रेय भी अरस्तू को ही दिया जाता है। इसमें प्रकृति और रूप-रंग के आधार पर मानव व्यवहार और विभिन्न मानव विशेषताओं के बीच संबंध के साथ-साथ जानवरों के व्यवहार पर भी चर्चा की गई है।
18वीं और 19वीं शताब्दी में फिजियोलॉजी ने खूब लोकप्रियता हासिल की। इस विज्ञान का उपयोग बैल्ज़ैक (Balzac), चौसर (Chaucer) और डिकेंस (Dickens) जैसे कई यूरोपीय उपन्यासकारों द्वारा अपने पात्रों का विस्तार से वर्णन करने के लिए किया गया था। इस विज्ञान ने जोसेफ ड्यूक्रेक्स (Joseph Ducreux) जैसे कलाकारों को भी प्रभावित किया, जिन्होंने अपने चित्रों में शारीरिक पहचान का उपयोग किया। ऑस्कर वाइल्ड (Oscar Wilde) का उपन्यास “द पिक्चर ऑफ डोरियन ग्रे” (The Picture Of Dorian Gray) भी शरीर विज्ञान के इर्द-गिर्द ही घूमता है। 19वीं शताब्दी में शरीर विज्ञान का ही दूसरा रूप ‘फ्रेनोलॉजी’ (Phrenology) लोकप्रिय हुआ। इसे जर्मन चिकित्सक फ्रांज जोसेफ गैल (Franz Joseph Gall) और योहान स्परज़ाइम (Johann Spurzheim) द्वारा विकसित किया गया था और इसने यूरोप (Europe) और संयुक्त राज्य अमेरिका (United States of America) में व्यापक ध्यान आकर्षित किया। फ्रेनोलॉजी के तहत व्यक्तित्व लक्षणों को खोपड़ी के आकार के साथ जोड़ा जाता है।
फिजियोग्नोमी भी फ्रेनोलॉजी से जुड़ी थी, लेकिन 19वीं सदी के अंत में यह प्रचलन से बाहर हो गई। हालांकि, सेसारे लोम्ब्रोसो (Cesare Lombroso) ने अपराध विज्ञान के क्षेत्र में इसका उपयोग जारी रखा, जिनका मानना था कि आपराधिक व्यवहार को शारीरिक विशेषताओं के माध्यम से पहचाना जा सकता है। हालांकि, लोम्ब्रोसो के सिद्धांतों को आज छद्म विज्ञान माना जाता है।
फिजियोलॉजी आपको किसी व्यक्ति के रंग रूप के आधार पर उसके चरित्र के बारे में निर्णय लेने की अनुमति देती है। फिजियोलॉजी के द्वारा आप किसी भी व्यक्ति की पृष्ठभूमि निर्धारित कर सकते हैं, चाहे वह किसी शाही या कुलीन परिवार से हो, चाहे वह विद्वान और मेहनती हो, या धोखेबाज और पाखंडी हो, या उसकी आँखें उसके असली स्वभाव को प्रकट करती हों। लिखावट, हस्ताक्षर और तंत्रिका विज्ञान भी किसी व्यक्ति के बारे में अहम् जानकारी प्रदान करते हैं। हालांकि, ये तरीके अभी भी विवादित हैं। शोध से पता चला है कि आज भी कई लोग अक्सर चेहरे की विशेषताओं के आधार पर ही किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व के बारे में निर्णय लेते हैं। कुछ अध्ययनों में चेहरे के गुणों को शक्ति, गर्मजोशी और ईमानदारी जैसी विशिष्ट व्यक्तित्व विशेषताओं से भी जोड़ा गया है। हाल के वर्षों में, शारीरिक लक्षणों की पहचान में शोधकर्ताओं की रुचि का फिर से पुनरुद्धार हुआ है और शोधकर्ताओं ने चेहरे के लक्षणों और व्यक्तित्व के बीच संबंधों की खोज की है। उदाहरण के लिए, एक अध्ययन में पाया गया कि चौड़े चेहरे वाले आइस-हॉकी खिलाड़ियों (Ice-Hockey Players) के बर्फ में खेल के दौरान हिंसक हो जाने की अधिक संभावना होती है। हालांकि हमें यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि शारीरिक लक्षणों की पहचान के माध्यम से व्यक्तित्व की व्याख्या करने की आलोचना की जाती रही है, और इसकी वैधता पर व्यापक रूप से सवाल उठाए जाते रहे हैं। इसके कई दावों को खारिज कर दिया गया है और इसे विश्वसनीय वैज्ञानिक अभ्यास नहीं माना जाता है।

संदर्भ
https://tinyurl.com/4dtcuanw
https://tinyurl.com/2p98wvr4
https://tinyurl.com/2p967y7s
https://tinyurl.com/34wct38k
https://tinyurl.com/ebc62e5k

चित्र संदर्भ
1. चहरे में उठ रहे विभिन्न भावों को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
2. चार्ल्स ले ब्रून (1619-1690) द्वारा मानव शारीरिक पहचान और पाशविक रचना के बीच संबंध का चित्रण करने वाला एक लिथोग्राफिक चित्रण (wikimedia)
3 .मानव शरीर विज्ञान को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. अलग-अलग प्रकार की नाक को दर्शाता चित्रण (Free Vectors)
5. चौरासी शारीरिक व्यंग्यचित्रो को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
6. विविध चेहरों को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
7. एक बालिका को दर्शाता चित्रण (Pixabay)

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